वो चेहरा अपना सा लगता है,
शांत आखें कुछ कहती हैं,
चंचल मन मचलता है
दिल में हलचल सी होती है,
फिर क्यों?
वो कुछ कहती नहीं ।
क्यों देखती है वो नजरें बचाकर,
क्यों हंसती है वो हमसे चुराकर,
क्यों चुप सी रहती है वो हमको देखकर,
पर
फिर भी होता है हमारा मेल।
आखिर ऐसा क्यों होता है?
कुछ न कहना भी लगता है
कहने से अच्छा,
न मिलना भी लगता है
मिलने से अच्छा,
समझते हैं हम एक दूसरे को,
शायद
इसीलिए वो चेहरा अपना सा लगता है।
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फिर भी होता है हमारा मेल।
आखिर ऐसा क्यों होता है?
कुछ न कहना भी लगता है
कहने से अच्छा,
न मिलना भी लगता है
मिलने से अच्छा,
समझते हैं हम एक दूसरे को,
शायद
इसीलिए वो चेहरा अपना सा लगता है।
सुंदर...
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