बिन कहें समझ लेना तेरा ,
हर बात को ,
हवाओं में लहराती जुल्फ
से बेवजह उलझना तेरा,
है आसमां आज भी शान्त सा,
क्या देखती हो उसमें तुम
और
न जाने ढूढती हो क्या?
नजर को झुकाये ये शर्माना
फिर
किसी एक बार पर मुस्काना ,
ये अदा भाती है मुझे
ये जानती हो।
फिर क्यों
अब वो बात आती नहीं है सामने,
मिलना तो अब मिलना हो गया ,
हम आये
और
तुम आये
दो चार पल के लिए,
क्यों देखता हूँ
अन्जान रास्तों को उम्मीद से,
जबकि पता है अब नहीं इनसे है
तेरा कोई वास्ता।
2 comments:
बढ़िया है.
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निवेदन
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-समीर लाल
-उड़न तश्तरी
सुन्दर भाव।
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