जन संदेश

पढ़े हिन्दी, बढ़े हिन्दी, बोले हिन्दी .......राष्ट्रभाषा हिन्दी को बढ़ावा दें। मीडिया व्यूह पर एक सामूहिक प्रयास हिन्दी उत्थान के लिए। मीडिया व्यूह पर आपका स्वागत है । आपको यहां हिन्दी साहित्य कैसा लगा ? आईये हम साथ मिल हिन्दी को बढ़ाये,,,,,, ? हमें जरूर बतायें- संचालक .. हमारा पता है - neeshooalld@gmail.com

Friday, September 5, 2008

वो बातें............

बिन कहें समझ लेना तेरा ,
हर बात को ,
हवाओं में लहराती जुल्फ
से बेवजह उलझना तेरा,
है आसमां आज भी शान्त सा,
क्या देखती हो उसमें तुम
और
न जाने ढूढती हो क्या?
नजर को झुकाये ये शर्माना
फिर
किसी एक बार पर मुस्काना ,
ये अदा भाती है मुझे
ये जानती हो।
फिर क्यों
अब वो बात आती नहीं है सामने,
मिलना तो अब मिलना हो गया ,
हम आये
और
तुम आये
दो चार पल के लिए,
क्यों देखता हूँ
अन्जान रास्तों को उम्मीद से,
जबकि पता है अब नहीं इनसे है
तेरा कोई वास्ता।

2 comments:

Udan Tashtari said...

बढ़िया है.

-----------------


निवेदन

आप लिखते हैं, अपने ब्लॉग पर छापते हैं. आप चाहते हैं लोग आपको पढ़ें और आपको बतायें कि उनकी प्रतिक्रिया क्या है.

ऐसा ही सब चाहते हैं.

कृप्या दूसरों को पढ़ने और टिप्पणी कर अपनी प्रतिक्रिया देने में संकोच न करें.

हिन्दी चिट्ठाकारी को सुदृण बनाने एवं उसके प्रसार-प्रचार के लिए यह कदम अति महत्वपूर्ण है, इसमें अपना भरसक योगदान करें.

-समीर लाल
-उड़न तश्तरी

Yamini Gaur said...

सुन्दर भाव।