ये जश्न कैसा ,
ये उल्लास कैसा,
ये आवाज कैसी,
ये दर्द कैसा,
अरे ....
यह क्या?
यह तो किसी के रोने की आवाज है,
अरे भई देखों तो
कौन है ?
क्यों क्या हुआ?
डर गये खुद को ही देखकर न।
यह हर्ष
यह उल्लास
और
यह दर्द
यह दुख
तुम्हारा अपना ही है।
क्यों नकाब हटता नहीं है अभी भी तुम्हारा?
खुद से कब तक दूर भागो गे,
यूँ ही,
पहचानों ,भूलो नहीं कि तुम भी,
इनमें से ही एक हो,
एक दिन तुम भी,
ऐसे हो जाओगे,
ये स्वार्थ,
ये सोहरत,
ये पैसे,
और
ये लालच यही
रह जायेगी,
इसलिए
ये सोये हुए इंसान जाग जाओ
अब
आखिर कब से तो सो रहे हो,
जगाओ अपनी आत्मा,
और
पैदा करों इंसानियत को,
जो न जाने कहाँ गुम गई है,
इस जहान में।।
1 comment:
It's nice
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