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Saturday, May 31, 2014

रावणों के झुंड में-(कविता)नीशू तिवारी

चिथड़े-चिथड़े नोच कर,
रक्तरंजित रूह उसकी।
मांस के लोथड़े में कहीं,
मानवता आज सड़ गई।।

दर्द भी तिलमिला उठा,
मौनव्रत थी धारणा उसकी।
मूक दर्शक रावणों के झुंड में,
माँ भी नग्न हो गई।।

(बदायूं )

Thursday, May 29, 2014

हस्ताक्षर मौन है(कविता)

हस्ताक्षर मौन हैं, पहचान बनकर।
हूं उपस्थित आज, अनजान बनकर।।

सब्र को अपने चुनौती कौन देता है भला?
कर सकूं अपराध तो हो बोध इसका।।

मेरे मिटने से भला क्या हो सकेगा इस धरा का ?
रात है कहती है हर रोज सुबह उस सूर्य से।।

है नियति का खेल यह, किसको पता।
कौन डूबे और किसका होगा उदय।।


हस्ताक्षर मौन है, पहचान बनकर।।

Friday, May 23, 2014

पाती

दूर देश आई पाती

हाल खबर पहुंचाने को
दादी का वो खेल खेलावन
मां की ममता पाने को।

बाबा मुझसे रूठ गए 
भैया के संग जाने को
कहते थे मां से बाबा मेरे
साहब, मेरा छोटा सो।।

अब सब बीत गया
सारा जग हमें पाने में, 
न बाबा हैं, न दादी मेरी
है पाती मेरे खजाने में।।

दूर देश से आई पाती, ,,,,
हाल खबर,,,।।।

"उक्त पंक्तियां मेरी
@ गुड्डो दादी को समर्पित।"