चिथड़े-चिथड़े नोच कर,
रक्तरंजित रूह उसकी।
मांस के लोथड़े में कहीं,
मानवता आज सड़ गई।।
दर्द भी तिलमिला उठा,
मौनव्रत थी धारणा उसकी।
मूक दर्शक रावणों के झुंड में,
माँ भी नग्न हो गई।।
(बदायूं )
रक्तरंजित रूह उसकी।
मांस के लोथड़े में कहीं,
मानवता आज सड़ गई।।
दर्द भी तिलमिला उठा,
मौनव्रत थी धारणा उसकी।
मूक दर्शक रावणों के झुंड में,
माँ भी नग्न हो गई।।
(बदायूं )