जन संदेश

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Sunday, September 30, 2007

क्या पत्रकारिता के उद्देश्य मेंभटकाव आया है?

देश की समस्याओं और पेशानियों को सामने लाना मीडिया का कर्तव्य होता है और इस कार्य के लिए सबसे अहम भूमिका पत्रकार निभाता है । जब एक साधारण व्यक्ति समाज में फैली बुराईयों को देखता है और फिर उस बुराई के प्रति वह संघर्ष करना चाहता है । तो उस व्यक्ति को माध्यम की आवश्यकता पड़ती है। ऐसे में मीडिया एक सशक्त माध्यम के रूप में होता है और पत्रकार उसका वाहक।
यदि हम स्वतन्त्रता के पहले की बात करें, तो पत्रकारिता नें स्वतन्त्रता आन्दोलनों में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी । स्वतन्त्रता के समय कि जो पत्रकारिता थी वह एक उद्देश्य को लेकर थी । और वह उद्देश्य था भारत की स्वतन्त्रता।
जन जागरण कार्य किया था स्वतन्त्रता प्राप्ति में पत्रकारिता ने । पत्रकार निस्वार्थ भाव से कार्य करते थे । देश की उन्नति, विकास ही लक्ष्य हुआ करता था।
बात स्वतन्त्रता के बाद की पत्रकारिता पर यदि करें तो देश नये-२ आजादी की खुली हवा में सांसे ले रहा था । अब पत्रकारिता ने यहां पर देश के प्रगति में भूमिका निभाई। तथा देश को गावों से जोडा तथा गावों के रहन -सहन की दशा को पूरे देश तक पहुचाया ।
धीरे-धीरे भारत विकास के पथ पर बढ़ रहा था अर्थव्यवस्था, अन्तरराष्टीय मंच एवं युद्धों में पत्रकारिता का बहुत ही अहम योगदान रहा था । यह कहा जा सकता है कि समाज के दर्पण के रूप में थी उस समय की पत्रकारिता ।और पत्रकार भी अपनी बात स्वतन्त्रतापूर्वक रखते थे । तथा समाज कल्याण की भावना से प्रेरित थे।
अब बात विकासशील भारत की जहां पत्रकारिता एक व्यवसाय के रूप में स्थापित हो गयी। पत्रकारिता एवं पत्रकार के उद्देश्य बदल गये, मायने बदल गये। निस्वार्थ भावना की जगह, स्वार्थी भावनाओं ने जगह ले ली।सम्पादक की जगह पर मैनेजर और सामाजिकता की जगह पर भौतिकता की भावना जागृत हो गयी।
आज पत्रकार यदि कुछ अच्छे कार्य भी करना चाहता है, तो उसके ऊपर बैठा मैनेजर पहले उस खबर को आर्थिक नजर से देखकर तब उसको प्रसारित करता है क्योंकि कहीं ऐसा न हो जायेकि उस खबर से उसे आर्थिक हानि न उठानी पड़े । जब इस तरह की भावनाएं होगी तो स्वतन्त्र पत्रकारिता की कल्पना करना व्यर्थ है। और बेचारा पत्रकार भी अपनी रोजी रोटी भला क्यों दावं पर लगाये । वह भी अपने ऊपर हो रहे अत्याचार को खून का घूट पीकर सहन करता है ।कारण बेरोजगारी से अच्छा है यह जीविकोपार्जन। कम से कम दो रोटी तो मिल रही है।

जियो उनके लिए

अपने लिए तो सब जीते हैं।
आओं जियें उनके लिए जो जी कर भी मरें से हैं।
जाओ पास उनके दो सहारा,
दो पग चलने का।
दो विश्वास ,
दो बात बोलने का।
और
बाटों प्रेम भाई चारे को।
माना कि कठिन है ,
हवा के विपरीत चलना,
मुश्किल है रीति को बदलना,
पर
कब तक धरे रहोगे हाथ पे हाथ,
अरे देखो वह- सडक पर जो जा रहा है छोटा सा लडका।
दो लाठियों हे सहारे,
अपनी मंजिल की तरफ।
क्या हार मानी उसने?
नही न।
तोफिर तुम कैसे हार गये?
अरे जागृत करो सोये हुए मानव को
और
जागृत करो मानवता को,
जो कि सो रही है न जाने कब से?
अस्तित्व को पहचनों अपने।
और जियों उनके लिए जो जी कर भी मरे से है।
जरूरत है तुम्हारी उनको,
जागो और जियो उनके लिए।
क्योंकि अपने लिए तो सब ही जीते है तुम जियों उनके लिए।

Saturday, September 29, 2007

हसगुल्ले

१-
मेंटल हास्पिटल में पागलों की संख्या काफी बढ़ती ही जा रही थी।
डाक्टर साहब ने कहा- आज एक टेस्ट लेते है और देखते हैं कि कितने मरीज ठीक हो गए है और कितने को छुट्टी दी जा सकती है। डाक्टरसाहब ने सभी मरीजों को क्लास रूम में बुलाया और चाँक लेकर ब्लैकबोर्ड पर एक बंद दरवाजा बनाया।
डाक्टर ने कहा - जो भी इसे खोल देगा, उसे एक आइसक्रीम दी जाएगी।
सारे एक साथ ब्लैकबोर्डपर झपट पडें। केवल एक मरीज चुपचाप बैठ कर उन्हें देखता रहाथा।
डाक्टर सोच में पड़ गया और कहने लगा कि आह सिर्फ एक ही मरीज डिस्चार्ज होगा।
चुपचाप बैठे मरीज से डाक्टर ने कहा कि तुम चुपचाप क्यों बैठे हो?
मरीज बोला- चुप हो जाओ, वरना सब के सब मुझ पर झपट पडेगें।
डाक्टर - पर क्यों?
मरीज बोला- कयोंकि इस दरवाजें की चाबी मेरे पास है।
२-
बच्चा अपने पिता से- डैडी आपने रेडियो को फ्रिज में क्यों रख दिया ?
पिता- अरे मैं कूल म्यूजिक सुनना चाहता हूँ।
३-
पिता बेटी से- मुझे तुम्हारी पसंद अच्छी नहीं लगी, इससे कहीं अच्छामिल सकता है।
मां पति से- आपको अपनी बेटी कीपसंद अच्छी क्यों नही लगी?
पति- नहीं लगी, क्योंकि इससे कहीं अच्छा लड़का उसे मिल सकता था।
पत्नी गुस्से में- हां , मेरे पिताजी भी तुम्हारे बारे में यही कहते थे कि तुमसे अच्छा लड़का मिल सकता था।

Friday, September 28, 2007

पाकिस्तानी हिन्दुओं की दशा




भारत और पाकिस्तान आज़ादी के साठ साल पूरे होने पर तरह-तरह के समारोह गये लेकिन कराची के हिंदू के लिए इन समारोहों का कोई मतलब नहीं . बल्कि उनके सामने ज़िंदगी और मौत का सवाल खड़ा है.
कराची की एक ऐसी बस्ती में रहते हैं जो चारों तरफ़ से मुसलमानों से घिरी हुई है और उनके लिए हर दिन यह ख़तरा लेकर आता है कि आज जाने क्या होगा. उनका दिन जब सही सलामत गुज़र जाता है तो बड़ी राहत की साँस लेते हैं.
बुजुर्ग कहते हैं, “हमने तो जैसे-तैसे वक़्त गुज़ार लिया लेकिन हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए पाकिस्तान में हालात अच्छे नहीं हैं. हम बहुत डर में ज़िंदगी गुज़ार रहे हैं. हमारे बुज़ुर्गों ने पाकिस्तान में रहने का फ़ैसला करके बहुत बड़ा ख़तरा मोल लिया था.”
पाकिस्तान में रहने वाले 25 लाख हिंदुओं हैं जिन्हें संविधान में तो बराबरी का दर्जा हासिल है लेकिन हक़ीक़त कुछ और ही है.
बहुत सारे हिंदुओं का यह भी कहना है कि आम ज़िंदगी में उन्हें कोई ख़ास परेशानी नहीं है लेकिन बहुत सारे ऐसे मुद्दे भी हैं जिनमें उन्हें अहसास होता है कि वे एक मुसलिम देश में रहते हैं जहाँ कभी-कभी कट्टरपंथियों का दबदबा उन्हें यह सोचने को मजबूर कर देता है कि पाकिस्तान में हिंदुओं का भविष्य क्या है?
अगस्त 1947 में पाकिस्तान बनते समय उम्मीद की गई थी कि वो मुसलमानों के लिए एक आदर्श देश साबित होगा लेकिन मोहम्मद अली जिन्ना ने कहा था कि पाकिस्तान एक मुस्लिम देश ज़रूर होगा मगर सभी आस्थाओं वाले लोगों को पूरी धार्मिक आज़ादी होगी.
पाकिस्तान के संविधान में ग़ैर मुसलमानों की धार्मिक आज़ादी के बारे में कहा भी गया है, “देश के हर नागरिक को यह आज़ादी होगी कि वह अपने धर्म की अस्थाओं में विश्वास करते हुए उसका पालन और प्रचार कर सके और इसके साथ ही हर धार्मिक आस्था वाले समुदाय को अपनी धार्मिक संस्थाएँ बनाने और उनका रखरखाव और प्रबंधन करने की इजाज़त होगी.”
मगर आज के हालात पर ग़ौर करें तो पाकिस्तान में ग़ैर मुसलमानों की परिस्थितियाँ ख़ासी चिंताजनक हैं. उनकी पहचान पाकिस्तानी पहचान में खो सी गई है, बोलचाल और पहनावा भी मुसलमानों की ही तरह होता है, वे अभिवादन के लिए
पाकिस्तान में हिंदुओं की ज़्यादातर अबादी सिंध में है. सिंध और पंजाब में रहने वाले हिंदुओं के हालात में भी ख़ासा फ़र्क नज़र आता है. सिंध में हिंदू अपने अधिकारों के लिए संघर्ष भी करते नज़र आते हैं लेकिन लाहौर में रहने वाले हिंदू जैसे पूरे तौर पर सरकार पर निर्भर हैं और उन पर सरकार की निगरानी भी है.
कराची के स्वामीनारायण मंदिर परिसर में आस पास रहने वाले हिन्दू कहते है कि उन्हें वहाँ कोई परेशानी नहीं है और हिंदू अपने त्यौहार – होली, दीवाली, रामलीला वग़ैरा भारत में हिंदुओं की ही तरह पूरी आजादी और उत्साह से मनाते हैं.
स्वानारायण मंदिर कराची महानगर पालिका के दफ़्तर के बिल्कुल सामने है और मंदिर परिसर में ही अनेक हिंदुओं के घर भी हैं और वहीं आसपास कुछ दुकानें भी. और उस परिसर में ऐसा ही माहौल रहता है जैसाकि भारत के किसी हिंदू बहुल इलाक़े में.
वैसे तो कराची में अनेक इलाक़ों में हिंदू मंदिर और घर नज़र आते हैं लेकिन एक ऐसी भी बस्ती है जिसमें हिंदू, सिख और ईसाई रहते हैं और वहाँ अनेक मंदिरों के अलावा चर्च और एक छोटा सा गुरुद्वारा भी है. नारायणपुरा नामक यह बस्ती भी बदहाली की वही कहानी कहती है जो भारत के किसी बेहद पिछड़े इलाक़े में होती है यानी भारी गंदगी, कुपोषित बच्चे और बेकार घूमते युवक
हमारे पूर्वजों ने वापिस पाकिस्तान आने का फ़ैसला करके बहुत बड़ी ग़लती की थी लेकिन हमारी मजबूरी ये है कि भारत सरकार भी हमें स्वीकार करने को तैयार नहीं है और पाकिस्तान में हम डर की ज़िंदगी जीने के लिए मजबूर हैं मुसलमानों की ही तरह अस्सलामुअलैकुम और माशाअल्लाह, इंशाअल्लाह जैसे शब्दों का इस्तेमाल करते हैं. इन बस्तियों में बातचीत से ऐसा आभास होता है कि वहाँ ग़ैरमुसलमानों को कोई परेशानी ही नहीं है लेकिन सच जानने की कोशिश करें तो कुछ हिंदुओं के अनुसार एक मौलवी ने एक मंदिर पर क़ब्ज़ा करके वहाँ पीर की दरगाह बना ली है.उस बस्ती में रहने वाले बताते हैं कि उनके पूर्वज 1950 के दौर में भारत के कच्छ इलाक़े में पहुँचे थे लेकिन वहाँ उन्हें समाज और सरकार का कोई सहयोग नहीं मिला और फिर वे मजबूर होकर पाकिस्तान ही लौट आये भारत में तथाकथित उच्च जाति के हिंदुओं ने उन्हें स्वीकार करने से इनकार कर दिया और छुआछूत की समस्या की वजह से उनके पूर्वज भारत से एक बार फिर पाकिस्तान लौट आए.

तथ्य बी बी सी से----

मुश्किल में सरकार


सेतुसमुद्रम कनाल प्रोजेक्ट को भाजपा ने धर्म से जोडकर राष्टीय मुद्दा के रूप में प्रस्तुत कर दिया । सोयी हुई राजनीति में गरमाहट आ गयी और फिर तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम करूणानिधि के बयान " जब राम ही नहीं तो राम सेतु कैसा" को लेकर पक्ष और विपक्ष में जबरदस्त टक्कर देखने को मिली। पक्ष की मुश्किलों को संस्कृति मंत्री अम्बिका सोनी और जहाज रानी मंत्री टी आर बालू और कानून मंत्री हंसराज के सुप्रीमकोर्ट में राम सेतु मुद्दे पर दाखिल हलफनामें ने और बढ़ा दिया। तथा सरकार दबाव में आगयी ।और इसके चलते अन्ततः काग्रेस को विपक्ष के विरोध के चलते अपने हलफनामें वापस लेने पड़े।
अमेरिका भारत परमाणु समझौते को लेकर पहले से ही लेफ्ट और भाजपा सरकार पर दबाव बनाये हुए है ।तथा कुछ ऐसी परिस्थितियां बनती जा रही है जिससे की मध्यावधि चुनाव के संकट मडराने लगा है । हाल के दिनों में काग्रेस ने पार्टी में कई बदलाव किये है। जिसको की भाजपा चुनाव की तैयारी के रूप में देख रही है।
भाजपा ने सेतुसमुद्रम प्रोजेक्ट के तहत एडम्स ब्रिज को तोड़ने (भाजपा जिसे राम सेतु का नाम दे रही हैऔर भगवान राम द्वारा निर्मित मानती है) का विरोध कर ही है। और इसे देश की धार्मिक आस्था से जोड़ रही है । हाल के दिनो़ में भाजपा के कार्यकारिणी की बैठक भोपाल में हुई। जहां विश्व हिन्दू परिषद तथा भाजपा ने राम सेतु मुद्दे को भावी चुनावी मुद्दे के रूप में रखेगें।
फिलहाल जो स्थितियाँ बन रही है उसे देखते हुए काग्रेस की मुश्किल बढ़ती ही दिख रही है।अभी ६ महीने बाद परुमाणु मुद्दे पर जो समिति गठित की है उसकी भी रिपोर्ट आयेगी ।जिस पर काग्रेस को पहले से ही लेफ्ट से घिरा है
।अब कैसे छुटकार पाती है काग्रेस यह देखने की बात होगी । या फिर सरकार गिरती है और चुनाव होतें है। ये तो आने वाला समय ही बतायेगा?

Thursday, September 27, 2007

'जग मामा'

मोटा चश्मा, कमर है टेढी
टुक-टुक करके चलते हैं।
हाथ में हरदम छडी है रहती
उन्हें 'जग मामा' कहते है।।
भेशभूषे पर ध्यान न देना,
ऐसा उनका कहना है।
जोकर जैसी लम्बी टोपी,
लम्बा कुर्ता पहना है।।
मुहँ है दातों से खाली,
और सुनाई नहीं देता।
जब भी उनसे बात करों,
सिर 'हां' मे हिलता रहता ।।
चाटे जब भी मुह कुत्ता,
उनको पता नही होता ।
बकरी आ कर कुर्ता खा जाती,
उनको खबर नही हो पाती।।
ऐसे है अपने 'जग मामा'
रहते हैं हमेशा हँसते ।
बच्चों से उनको बहुत प्यार,
रोज नई कहानी कहते ।।

लेखक-

शशि श्रीवास्तव
मो-९९६८१५१४०५
ईमेल-para_shashi@yahoo.com

जरा याद इन्हें भी कर लो ।भगत सिह


शहीदों की चिताओं पर लगेगें हर बरस मेले,
वतन पर मरनें वालों का यही बाकी निशा होगा।
भारत उस समय ब्रिटिश हुकूमत के आधीन हुआ करता था । जब एक ऐसे व्यक्तित्व का जन्म पंजाब के लायलपुर जिले के बंग गांव में २७ सितम्बर १९०७ में हुआ। परवरिश स्वतन्त्रता संग्रामियों के बीच हुई तो सम्भव था कि भगत सिह भला कैसे अछूते रह जाते ।भगत सिह के पिता सरदार किशन सिहं जी खुद एक स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी थे और कई बार वो जेल भी गये। भगत सिह ने अपने २४ साल के जीवन काल में ब्रिटिश हुकूमत की दीवारें दहला दी। शुरू से ही क्रान्तिकारी विचार धारा के थे ।और स्वतन्त्रता के लिए हो रहे आन्दोलन ने भगत सिह को
इस के लिए प्रेरित किया। १३ अप्रैल १९१९ जलिया वाला बाग काण्ड एक ऐसी ही घटना थी।
भगत सिहं का युवा व्यक्तित्व हमेशा इस बात के लिए उन्हें प्रेरित करता कि हमें स्वतन्त्रता मिलनी चाहिए और हम इसको हासिल करके रहेंगे।अग्रेजो के द्वारा किये जा रहे अत्याचार ने उन्हें स्वतन्त्रता आन्दोलन में उतरने को मजबूर किया । भगत सिहं ने उस समय के क्रान्तकारियों चन्द्रशेखर आजादकी हिन्दुस्तान रिपब्लिक आर्मी में शामिल हो गये और नियमित रूप से अपने आप को झोक दिया।१९२९ में भगत सिहं ने और राजगुरू ने जनरल असेम्बली के बीचों बीच बम फेंक कर अपनी स्वातन्त्रता के इरादे स्पष्ट कर दिये तब फिर भगत सिह को गिरफ्तार कर लिया गया और उनके खिलाफ ब्रिटिश सरकार ने आतंकवादी गतिविधियों में संलिप्त होने काआरोप लगा कर मुकदमा चलाया और अततः फासी देने का आदेश दिया जिसे भगत सिह जी ने फुलों कि माला समझ कर गले में डाल लिया।भगत सिह सुखदेव और राजगुरू को भले ही फासी मिली पर क्या जो उनकी जो भावनाए थी व जो सोच थी उसको दबा सके । नही कभी भी नही बल्कि भगत सिह ने जान बूझकर ही खुद बम फेकने का फैसला किया था जिससे उनकी बात पूरे भारत में फैल सके। ।
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,
देखना है जोर कितना बाजू -ए- कातिल में है,
इन्कलाब जिन्दाबाद।
यही रहें थे आखिरी इस वीर जवान के।
शत-शत नमन

Wednesday, September 26, 2007

दिल के जज्बात।


सामने वाली खडकी में एक चादँ है,
वैसे तो चांद रात में ही निकलता है,
पर
ये चांद वक्त बे वक्त निकल आता है।
इस तरह से निकलना और फिर छिप जाना,
बहुत ही तडपाता है।
न जाने कितनी बार कई-२ घण्टे गुजारे हैं मैनें,
उसके दीदार के लिए?
न जाने कितनी ही रातें काटी है,
एक झलक पाने के लिए?

वैसे तो पता है उसको भी,
कि
कोई अपना है जो नजरें बिछाये राह तकता रहता है
उसकी,
पर वह करे भी तो क्या?
उसकी भी तो है कुछ मजबूरी,
उसकी भी तो है कुछ परिधि,
कुछ सीमाएं,
कुछ सरहदें।

वह भी जगमगाना चाहती है,
हमको बताना चाहती है, कि
जो तुम्हारे रास्ते है,
जो तुम्हारी मजिंले है,
मै भी तो उस पर चलना चाहती हूँ,
उसको पाना चाहती हूँ।

पर कह नहीं पाती कुछ भी,
क्या कहना ही जरूरी है हर बात को?
नहीं।
वह तो कहती है सब कुछ अपनी झुकी नजरों से,
अपनी खामोशियों से,
मैं महसूस करता है इस अनकहे जज्बात को,
उसके प्यार को।
बस एक बार सुनना चाहता हूँ तुमसे।
मुझे यकीन है तुम तोडं दोगी,
सारी बंदिशें , सारी सरहदें,
और
आओगी मेरे पास।
कहोगी अपने दिल के जज्बात।

Tuesday, September 25, 2007

हम ही है बादशाह T-20 के


हौशले गर बुलंद हो तो मंजिल मिल ही जाती है के वाक्य को सत्यार्थ कर भारतीय टीम T-20 विश्व कप का शहरा अपने सर पर आखिरकार सजा ही लिया। पाकिस्तान से हुए मुकाबले में मैच समाप्त होने के पहले एक बार फिर हमेशा की तरह ही सांसे थम गयी थी। आखिरी समय तक कोई नहीं कह सकता था कि मैच किसके पक्ष में जायेगा ? पर अन्तत; भारत ने पाकिस्तान की टीम को जीत के लिए निर्धारित १५८ रन के ५ रन पहले ही रोक दिया और पहले वर्ल्ड कप अपनी झोली में कर लिया। भारतीय गेंदबाजों ने जो लाजवाब गेदबाजी की और पाकिस्तान के किसी बल्लेबाज कोई टिक नहीं सके बेशक पाकिस्तान ने शुरूआत में बेहतरीन शुरूआत की पर आरपी सिहं , इरफान पठान और जोगिन्दर शर्मा ने मिलकर सभी पाकिस्तानी बललेबाजों को पवेलियन का रास्ता दिखा दिया। फाइनल मैच में मैन आफ द मैच का पुरस्कार इरफान पठान और मैन आफ द सिरीज का पुरस्कार का पाकिस्तान के शाहिद आफरीदी को मिला।भारत ने वेस्टन्डीज में हुए विश्वकप के पहले दौर से बाहर हो जाने का दर्द काफी हद तक कम कर दिया और २४ साल बाद एक बार फिर हम विश्व विजेता बन गये।

Monday, September 24, 2007

बने तो मौत बने

जब लगा खत्म हुई अब तलाश मंज़िल की।
धोका था नज़रों का वो इसके सिवा कुछ भी नहीं।।

समझा था क़ैद है तक़दीर मेरी मुट्ठी में;
रेत के दाने थे वे इसके सिवा कुछ भी नहीं।

मैं समझता रहा एहसास जिसे महका सा;
एक झोंका था हवा का वो और कुछ भी नहीं।

मैं समझता हूँ जिसे जान,जिगर,दिल अपना;
मुझे दिवाना वो कहते हैं और कुछ भी नहीं।

आजकल प्यार मैं अपने से बहुत करता हूँ;
होगा ये ख़्वाब और इसके सिवा कुछ भी नहीं।

लगा था रोशनी है दर ये मेरा रोशन है;
थी आग दिल में लगी इसके सिवा कुछ भी नहीं।

तेरे सिवाय जो कोई बने महबूब मेरी ;
बने तो मौत बने इसके सिवा कुछ भी नहीं।।

Sunday, September 23, 2007

एक रोचक मुकाबला और अब फाइनल


भारतीय क्रिकेट प्रेमियों को सेमी फाइनल मुकाबला शायद ही भूले । मैने भी I I T दिल्ली के नीलगिरी हास्टल में इस सेमी फाइनल का मुकाबले का लुत्फ उठाया। T-20 का यह सबसे रोमांचक मुकाबला था। भारतीय क्रिकेट प्रेमी भारतीय टीम के जीतते ही प्रशंसक अपने कपडें उतार ऊपर उछाल के डांस करके खुशी का इजहार कर रहें थे। मैने भी अपने ४ घंटे का पूरा पैसा वसूल किया। पूरे IIT में जश्न का महौल जैसा था ।जीत की खुशी में खूब आतिशबाजी हुई मानो ऐसा लग रहा था कि मानों दीपावली का त्यौहार हो।
भारत और आस्ट्रेलिया के बीच डरबन में खेला गया T-२० का दूसरा सेमीफाइनल मुकाबला भारत के पक्ष में रहा। भारत पहले खेलते हुए २० ओवरों में ५ विकेट के नुकसान पर १८८ रन बनायें। इस १८८ रनों में युवराज सिहं की ३० गेदों पर ७० रन की धुआंधार पारी जिसमें ५ छक्के और इतने ही चौके लगायें ।युवराज नें विश्व कप का सबसे लम्बा छक्का (११९ मीटर)भीलगाया ।और साथ में धोनी ३६ रन और उथप्पा की ३४ रन की तेज पारियो का योगदान रहा।जिसकी सहायता से भारत यहाँ तक आसानी से पहुच सका।
आस्ट्रेलिया जब अपनी पारी की शुरूआत करने मैदान पर उतरा तो उसने धीमी शुरूआत की अर्थात आरपी सिहं और श्री संत ने गेदबाजी आक्रमण को और पैना कर दिया । गिलक्रिस्ट ने आरपी सिहं पर जरूर कुछ शानदार स्ट्रोक लगाये पर जलद ही श्री संत ने उनके विकेट उखाड़ दिये। फर हेडेन और सायमण्ड ने मिलकर आस्ट्रेलिया की पारी में रनों की गति को बढा़ना शुरू किया और सफल भी रहे । दोनों ने जोगिन्दर शर्मा और सहवाग की खूब धुलाई करी। परन्तु धोनी ने गेदबाजी में परिवर्तन कर श्री संत को मोर्चे पर ला दिया और श्री संत ने हेडेन को शुरू में ही खूब परेशान किया था और अन्ततः हेडेन की भी वही हालात हुई जो गिलक्रिस्ट की हई थी ।श्री संत ने हेडेन को बोल्ड आउट किया। हेडेन ने अर्द्धशतकीय पारी खेली। इसके बाद पठान ने सायमण्ड को आउट कर पैवेलियन की राह पकडाई और इस आस्ट्रेलिया को जीत के लिए १८ गेदों पर ३० रन की जरूरत थी। हरभजन और आरपी सिहं ने अपनी बढिया गेदबाजी की बदौलत भारत को लगभग जीत कर द्वार पर ला खडा किया ।अब पारी का अन्तिम ओवर फेकनें के लिए कप्तान धोनी ने ये जिम्मेदारी जोगिन्दर शर्मा के हाथ में दी। अब जीत के लिए ६ गेंद पर २२ रन चाहिए थे ।आखिरी ओवर में जोगिन्दर ने अच्छी गेदबाजी की और आस्ट्रेलिया के फाइनल कमें पहुचने के सपने को धो दिया ।इस जीत के साथ भारत फाइनल में प्रवेश कर चुका है। जहां पर २४ को भारत का मुकाबला चिर प्रतिद्वन्दी पाकिस्तान से होगा।
भारत ने विश्वकप विजेता टीम को हरा कर अपने २००३ के विश्वकप के फाइनल के हार का बदला ले लिया है अब भारत को T-20 का ताज पहनने के लिए मात्र एक कदम आगे बढाना है। जिस तरह से भारतीय टीम खेल रही है उसके प्रदर्शन को देखते हुए पाकिस्तान के साथ एक कांटे की टक्कर होने की प्रबल संभावना है ।
वैसे भारत T-20 का फाइनल कप ले कर ही लौटे यही शुभकामना हमारी तरफ से भारतीय क्रिकेट टीम को। अब यह तय हो चुका है कि यह पहला T-20 कप एशिया में ही आयेगा पर किससे पास यह देखना होगा?

Saturday, September 22, 2007

हंसगुल्ले पार्ट-२


एक बार एक संता एक फिल्म हाल में जुरासिक पार्क देखने गया। जैसे ही डायनासोर अपना शिकार करते,वैसे ही संता अपनी सीट के नीचे छिप जाता।
दूसरी सीट पर बैठे एक व्यक्ति संता से कहा,'डरो मत , ये फिल्म है।
संताः मुझे तो पता है कि यह फिल्म है , पर डायनासोर को नहीं पता ना ।



मां (चिटूं से) उठो चिटूं, स्कूल के लिए देर हो जाएगी।
चिटूं मैं आज स्कूल नही जाना चाहता।
मां पर क्यों?
चिटूं मां ,' मैने अभी सपना देखा कि मैं १०० मीटर की दौड़ में दौड़ रहा हूँ।
मां तो क्या हुआ ?
चिटूं अरे मां इतनी लम्बी रेस के बाद मै बहुत थक गया हूँ।




एक बार अजीत अपनी बीबी के साथ आटि रिक्शा में कही जा रहा था।
आटो वाले ने जैसे ही शीशा सेट किया, अजीत चिल्लाया ओssए तू मेरी बीबी को देखता है। चल तू पीछे बैठ , आटो मै चलाता हूँ।



राबर्ट बास अब मै मिशन पर कैसे जाऊ? हैडएक हो गया है
अजीत राबर्ट हेड एक हो या दो , पर काम तो करना होगा।



एक बार एक व्यक्ति हेडमास्टर के पास गया और देखा कि वह अपने कुत्ते के साथ शतंरज खेल रहा है। लगता है आपका कुत्ता काफी बुद्धिमान है। उस व्यक्ति ने कहा।
' नही- नहीं' हेडमास्टर बोला," मै पहले भी तीन बाजियाँ जीत चुका हूँ।

Friday, September 21, 2007

मुझको भूल जाना और मुस्कराना तुम


मुझको भूल जाना और मुस्कराना तुम ,
न मुझको याद करना तुम और न ही याद आना तुम।
तेरी तस्वीर सजा रखी है मैनें दिवार -ए-दिल पर अपने,
उसी के सहारे काट दूगां जिदगी को मैं,
मगर ये बात याद रखना तुम,
मुझको भूल जाना और मुस्कराना तुम।
ये मानकर चलना कि कोई मुशाफिर था,
जो पल में ही बन गया अपना,
और कर गया दीवाना,
फिर अगले ही पल न जाने कहां खो गया इस जमाने में।
यहां तुम मान लेना कि -
था कोई सपना
या कोई अफसाना,
और फिर यही बात गुनगुनाना तुम,
मुझको भूल जाना और मुस्कराना तुम।
न मुझको याद रखना तुम और न ही याद आना तुम।
वैसे भी क्या यह मिलना, कम था किसी चमत्कार से कम,
कुछ पल ,कुछ घड़ी में बंध गये हम जन्मों के लिए।
और बिछडे तो ये कहते हुए- मुझको भूल जाना और मुस्कराना तुम ,
न याद करना तुम और न ही याद आना तुम?????????????????????

जरा नजर इधर भी करिये जनाब , सच भी देखिये ना


मैं हमेशा से कई चीजों के खिलाफ रहा हूँ। जिसमें से भिक्षावृति एक है । मेरा मानना है कि क्या मेरे १ रूपये देने से इनके कष्ट में कमी आ सकती है तो मैने पाया की नहीं। हाँ एक बात ये हो सकती है कि एक दिन के लिए उनकी कमायी में कुछ जरूर मदद हो जाए पर क्या इससे उनका ये भीख मागना छूट जायेगा नहीं कभी नहीं । मैं पहले सोचा करता था कि ये भीख मांगने वाले लोग जो भी पैसा पूरे दिन में कमाते है वह पूरा पैसा इनका हो जाता है पर जब मैने सच्चाई जानी तो और भी दुखी हुआ । क्या आपको मालूम है कि भीक्षावृति का भी एक व्यापार होता है ? इसको चलाने वाले भी कोई और है जो भीख मांगते हुए दिख जाते है ये मात्र एक दिहाडी वाले मजदूर मात्र के रूप में कार्य करते हैं।सारी कामयी में इनको दिन की मजदूरी के अलावा कुछ भी नहीं मिलता ।
इस भीक्षाबृति का कारोबार आजकल बहुत ही तेजी से बढ़ रहा है । इसका उदाहरण हम चौराहों पर जाम के बीच और बाजार और भीड़ वाली जगह पर आसानी से देख सकते है। मुझे जब यह पता चला कि इस कारोबार में छोटे बच्चों का बहुत ज्यादा उपयोग हो रहा है खासकर जो १ साल से लेकर १२ साल तक के बच्चें है। और जिस बच्चे की उमर जितनी कम होगी उसी अनुसार उस बच्चे को पैसा अधिक मिलता है । ये वो बच्चे होते है जिनके माँ-बाप इनका पालन-पोषण नहीं कर पाते है कारण होता है अधिक बच्चे होना जिस वजह से इनके माता पिता इनका लालन - पालन कर पाने में असमर्थ होते हैं और मजबूर हो के इस तरफ अपने नन्हे मुन्हे बच्चे को फेंक देते है। साथ ही साथ इससे बच्चे और परिवार का भी भरण पोषण आसानी से हो जाता है।
आपके साथ भी कभी यह हुआ होगा या फिर कभी हो सकता है कि आप अपनी मोटर साइकिल या फिर कार पर हों और आप के पास कोई नन्हा बच्चा प्यारी मुस्कान लिए हुए कहता है कि " बाबू जी १ रूपया दोना भूख लगी है खाना- खाना है " तब फिर मन में यही होता कि इसको दुत्कार दिया जाय या फिर आप जेब में हाथ डालकर एक सिक्के उसके हाथ पर रख देते हैं और वह मुस्कुराता हुआ अपने नये ग्राहक की तलाश में आगे बढ़ जाता है और न जाने ऐसे कितने लोगो से यही डायलाग दिन भर कहता है । कितनी हया और कितना निर्लज्जपन आ जाता है इनमें या फिर एक तरह का डर क्योंकि इनका भी एक निर्धारित लक्ष्य होता है जिसको दिन भरमें हासिल करना होता है नही तो अपने पेट से काट के दें पैसे ।
इस तरह की बुराईयां हमारे आसपास ही पल रही है। और हम सब इसको नजरंदाज कर देते हैं। जो कि एक युवा और पढ़लिखे समाज के लिये शर्म की बात है। आखिर इन सब को, इस सबसे कब निजात मिलेगी बात मैं मेट्रों सिटी दिल्ली की करता हूँ यहाँ तो समाज शिकक्षित है फिर भी यहाँ पर ही यह धन्धा जोरों पर हैं । क्या यहां कि सरकार इस पर नजर नहीं रखती या फिर जानबूझ कर आखों पर पर्दा डालें हुए है। पर मेरा आप सभी युवाओं से अनुरोध है कि इस समाजिक बुराई को दूर करने के लिए आगे आईये। आखिर कब तक हम मुह को छिपा कर अधेरें में बैठे रहेगें।

Thursday, September 20, 2007

एक निवेदन ब्लागर समूह से

जब कुछ लिखिये तो यह बात मन में होती है जो कुछ मैने लिखा है वह सही है या फिर क्या गलती रह गयी है और यह कितना पसंद किया जायेगा और इसका मापक यह है कि जो लिखा है उसको कितने लोग पढते हैं और कितने लोग उस पर अपनी प्रतिक्रया और टिप्पणी करते है।पर मैने अब तक अपने ब्लाग पर जो भी लिखा है उसको हमारे ब्लागर समूह नें काफी हद तक पंसद भी किया है और जो कुछ कमियां रह गयी उसे बहुत ही अच्छी तरह से सुधारने के लिए टिप्पणियों द्वारा बताया ।
मै तो अपने को सौभागयशाली मानता हूँ क्यों कि मै एसी जगह पर लिख रहा हूँ ।जहाँ पर मेरी कमियां और अच्छाईयों का पता आसानी से चल जाता है । वैसे मैं ब्लाग के बारे में बहुत कुछ नहीं जानता था पर जब से मैने दिल्ली की राह(२८-०४-२००७) पकडी। तब मेरा उद्देश्य किसी अच्छे मीडिया स्कूल से पत्रकारिता करने का था और मैने कई जगह पर प्रवेश परीक्षाएं दी पर असफल रहा और अततः माखन लाल राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय में मास्टर्स आफ जर्नलिस्म में दाखिला हो गया । तो मन में कुछ लिखने की इच्छा होने लगी मैने कापी और कलम का सहारा लिया । और हाँ ब्लाग चलाने की प्रेरणा मुझे अपने भैया श्री पकंज तिवारी और मेरे मित्र प्रमेंन्द्रजी से मिली।
वैसे मेरी शिक्षा तो इलाहाबाद में हुई, तथा वही से ही लिखने का शौक था, पर १२वीं के बाद से मैंने कुछ कम ही लिखने का काम किया पर जब मुझे पत्रकारिता के क्षेत्र में आना ही था तो मैने दुबारा लिखना प्रारम्भ किया । और मैने कई लोगो की मदद से एक ब्लाग बनाया जिसका नाम "मीडिया व्यूह" रखा ।
पर सब कुछ बिलकुल नया था, इस लिए बहुत ही अटपटा लग रहा था और ना ही मुझे हिन्दी लिखने ही आता था तो अब एक और समस्या कि किस प्रकार से मैं अपनी लिखी हुई कविताऐं और लेख को ब्लाग पर डाल सकूं ।तो फिर यहां पर शैलेश जी हिन्द-युग्म के और अपने भाई साहब की मदद से हिन्दी लिखना सुलभ हो पाया और अब तक तो काफी हद तक लिखने भी लगा हूँ। तो यहां मेरे मन में यह विचार आता कि ऐसे बहुत से लोग है जो कि हिन्दी के लिए कुछ करना चाहते है पर हिन्दी न लिख पाने के कारण इस सबसे वंचित रह जाते है। अतः यहाँ पर सभी ब्लागर का ये दायित्व हो जाता है कि वे कुछ न कुछ लोगो की मदद अवश्य करें। और हिन्दी टंकण में सहायता प्रदान करें।

अगर सीखना है तो सीखो इनसे


न तन पर कपडें,
न सर पें छावं,
न खाने की रोटी,
और
न ही रहने की ठावं,
पर जिये जा रहें है,
जीने की उम्मीद लिये हुए?


फिर भी,
कितनी खुशी।
कितनी सन्तुष्टि है ।
क्या इनके भी है कुछ सपने?
क्या इनकी भी है कुछ उम्मीदें ?
शायद हां।
यह भी तो है हममें से ही एक।
मैने देखा-
मिट्टी से सना उसका पूरा शरीर,
रूखे -२, लटियाये बाल।
जस्ते की थाली में बिखॆरे कुछ भात।
और
इधर -उधर भिनभिनाती मक्खियों का झुण्ड।
दिन तो बीत जाता है धूप -छावं के खेल में सड़को पर,
पर जगमगाती रात में भी एक रोशनी की किरण भी नहीं इनके लिए।
क्या दुख नहीं होता है देखकर इनको?
पर साथ ही साथ,
जीवन संघर्ष देखना है तो देखो इनको,
और सीखो,
संघर्ष करना।

Wednesday, September 19, 2007

भूल -सुधार रिपोर्ट " राष्ट्र की प्रगति में हिन्दी पत्रकारिता का महत्व"

मैनें यह रिपोर्ट दुबारा से तैयार की है. कारण श्री संजय जी एवं राजीव जैन जी के कमेंट थे जिसके लिए मैने यह दुबारा प्रयास किया है और मुझे यकीन है कि मै अबकी बार कुछ हद तक कामयाब होऊगा । मै संजय जी और राजीव जैन जी का तहे दिल से शुक्रिया अदा करना चाहूगा , ऐसे ही अपनी प्रतिक्रया देते रहिए जिससे मार्गदर्शन होता रहे।

माखन लाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय के नोएडा परिसर में भारतीय प्रेस परिषद के तत्वाधान में एक वाद - विवाद प्रतियोगिता का आयोजन हुआ। जिसका विषय- " राष्ट्र की प्रगति में हिन्दी पत्रकारिता का महत्व" था।

इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि के रूप में माखन लाल विश्वविद्यालय के कुलपति श्री अच्युतानंदन मिश्र जी थे। तथा अन्य गणमान्य विशिष्ट जनों में माखन लाल विश्वविद्यालय, नोएडा परिसर के प्रबंधक श्री अशोक टण्डन जी , भारतीय प्रेस परिषद के सदस्य श्री एस एन सिन्हा जी एवं वरिष्ट पत्रकार श्री राम जी त्रिपाठी जी उपस्थित थे।
इस प्रतियोगिता में कुल १२ टीमों के कुल २६ प्रतिभागीओं ने हिस्सा लिया। इन टीमों में माखन लाल विश्व विद्यालय के नोएडा परिसर , भोपाल परिसर एवं राजधानी के आस-पास के मीडिया इन्स्टीट्यूट ने भाग लिया।
इस प्रतियोगिता के प्रथम विजेता भोपाल परिसर के अंकुर विजय वर्गीय रहे। द्वितीय स्थान पर पंकज शर्मा पाइनियर इन्स्टीट्यूट नई दिल्ली तथा तृतीय स्थान पर संत राम माखन लाल विश्वविद्यालय नोएडा परिसर के रहे।
प्रथम पुरस्कार के लिए ३००० रूपये एवं द्वितीय पुरस्कार के लिए २००० रूपये तथा तृतीय पुरस्कार के लिए १५०० रूपये प्रदान किया गया तथा साथ में भारतीय प्रेस परिषद की तरफ से प्रशस्ति पत्र प्रदान किया गया।
एक विशेष पुरस्कार पिकीं इयान स्कूल आफ मास कम्युनिकेशन की छात्रा को मिला।
कार्यक्रम के समापन पर एस एन सिन्हा जी के शब्द-
"पत्रकारिता का एक मिशन रहा है, न कि पैसा कमाने का जरिया, परन्तु अब समय बदला आज के युवा पत्रकार अपनी प्रगतिशील सोच एवं विचार धारा से हिन्दी पत्रकारिता को नयी दिशा देगें साथ ही साथ पत्रकारिता के मानदण्ड एवं ऊचाई को बनायें रखगें".
राम जी त्रिपाठी के शब्द-
"हिन्दी पत्रकारिता का एक लम्बा इतिहास रहा है इसने ही ब्रिटिश हुकूमत की जड़ों तक को हिला दिया तथा देश को एक नये आयाम तक ला पहुँचाया".आप के क्या विचार है इस विषय पर? जरूर अवगत करायें।

रिश्ते क्यों टूटते हैं ?


हाथ से हाथ छूटने से , रिश्ते नहीं टूटते ।बात ही बात में, हम नहीं रूठते ।
पर क्यों हो जाती है दूरियाँ इतनी, कि पास होके भी पास नही हो पाते ।

Tuesday, September 18, 2007

राष्ट्र की प्रगति में हिन्दी पत्रकारिता का महत्व

हिन्दी दिवस बीते अभी कुछ ही दिन हुए है । मेरे संस्थान में हिन्दी दिवस पर एक क्रार्यक्रम होना था पर किसी कारण वश यह क्रार्यक्रम आज(१८-९-२००७) सम्पन्न हुआ । माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय के नोएडा परिसर में " राष्ट्र की प्रगति में हिन्दी पत्रकारिता का महत्व" वाद -विवाद प्रतियोगिता हुई। इसमें कुल १२ टीमों ने भाग लिया ।ये टीमें राजधानी के आस पास के सभी मीडिया कालेजों से आयी थी, जो माखन लाल से जुडें हुए है। इस प्रतियोगिता को प्रेस काउन्सिल आफ इण्डिया के सानिध्य से कराया गया। इस प्रतियोगता में तीन प्रतिभागी विजयी रहे।वैसे इस (" राष्ट्र की प्रगति में हिन्दी पत्रकारिता का महत्व) पर ज्यादा वाद -विवाद की आवश्यकता नहीं रही पर सभी प्रतिभागी ने अपनी बात अपने ढ़ग से कही ।वैसे हिन्दी तो हमारी राष्ट्र भाषा १९४९ में बनी परन्तु इसके पहले भी हिन्दी का वर्चस्व पूरे देश मे रहा था । चाहे १८५७ की क्रान्ति हो या फिर स्वतन्त्रता अन्दोलन इन सब में हिन्दी भाषा का महत्व पूर्ण योगदान रहा है। पर यह भी बात उतनी ही सच है कि केवल हिन्दी भाषा ही भारत में नहीं बोली जाती बल्कि अन्य भाषाओं ने भी अपना भरपूर साथ दिया । ये बात जरूर रही कि सम्पूर्ण उत्तर भारत में हिन्दी का बोलबला रहा इस वजह से ये सम्पूर्ण राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करती है। हमारे स्वतन्त्रता स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी चाहे वे माखन लाल चतुर्वेदी हो, या फिर महात्मा गांधी जी, या फिर लाला लाज पत राय जी इत्यादी लोगो नें पत्र , अखबार और जनसमूह में जाकर हिन्दी के माध्यम से जन आन्दोलन कर सके। तो इस लिए भाषा का महत्तव हमेशा रहा है और रहेगा। कुछ लोग आज दूसरी अन्य भाषा के महत्व को बताते है पर हम किसी भाषा के गुलाम क्यों बने ।जब हमारी भाषा ब्रिटिश हुकूमत की जड़ को हिला दिया तो हम भला और की तरफ नजर क्यों डालें ये तो वो करें जिसके पास अपना वजूद नही है। हमारे पास तो इतिहास है। पिछले १५० वर्षों का।वैसे जब देश आजाद हुआ तो देश को विकास के नये रास्ते को ढूढना था और इस काम आसान किया पत्रकारिता ने अपना योगदान करके। इस तरह से पत्रकारिता का अहम योगदान रहा है राष्ट्र की प्रगति में। आप के क्या विचार है इस विषय पर? जरूर अवगत करायें।

Monday, September 17, 2007

प्रात: काल की नव वेला मे


प्रात: काल की नव वेला मे
स्वर्णिम शान्ति का दूत बनू मै।
शान्ति सौहार्द व भाई चारा
सदा रहे सुन्दर वसुन्धरा में॥


न हथियारो से न औजरो से
न द्वेष भावना से शान्ति आयी है।
हिल मिल जुल कर रहने से
इस जग मे प्रेम भावना आयी है॥

Sunday, September 16, 2007

२०-२० विश्व कप


२०-२० विश्व कप की धूम मची है । जहां लोगो का भरपूर मनोरजन हो रहा है, साथ ही साथ समय की भी बचत भी हो रही है जहां पूरे दिन में एक ही मैच हो पाता था अब वही कम से कम तीन मैच आसानी से खेला जा रहा है।इस प्रतियोगिता में कुल १२ टीमें हिस्सा ले रही हैं।इस विश्व कप का पहला मैच काफी रोमाचंक रहा। वेस्टन्डीज के २०७ के जवाब में दक्षिण अफी्का ने उसे आसानी से८ विकेट से रौदां। क्वालीफाइग मुकाबलें में भारत और पाकिस्तान के बीच काटें की टक्कर देखने को मिली और मैच को "बाल आउट" नियम तक जाना पड़ा। इस में भारत ने ३-० से हरा दिया। इसके बाद सबसे बड़ा उलटफेर आस्ट्रेलिया और जिम्बाम्वें के मैच में हुआ । जिम्बाम्बें ने विश्व कप विजेता टीम को हरा दिया । इस प्रथम विश्व कप में रनों का अम्बार सा लग गया है सभी टीमें अपनी जीत के लिए जी जान लगा दे रही हैं । इस प्रतियोगिता में पहला शतक क्रिस गेल ने लगाया ।तथा श्रीलंका ने २०-२० में सबसे अधिक रनों के २२० रनों को तोड़कर २६० का लम्बा स्कोर बनाया । हब तक हुए सभी मुकाबलें में दर्शक ने भर पूर मनोरंजन किया है और आगे भी अच्छे मैच देखने को मिलेगें।वैसे सुपर आठ में पहुची सभी टीमें तीन -२ मैच खेलेगीं, तथा चार सार्वाधिक अंक पाने वाली टीम के बीच सेमी फाइनल मुकाबला होगा।आज हुए भारत और न्यूजीलैण्ड का मैच काफी रोमाचंक रहा पहले खेलते हुए न्यूजीलैण्ड ने १९३ रन बनाये सभी विकेट खोकर तथा जवाब में भारत की टीम नें अपनी पारी में ९ विकेट पर १८० रन ही बना सकी । इस मैच की खासियत सहवाग और गम्भीर की आकर्षक पारी रही जिसका सभी ने खूब आनन्द उठाया।

Saturday, September 15, 2007

तेरे खत का इंतजार


करता हूँ तेरे खत का इंतजार आज भी
उतनी ही बेसब्री से,
जितना की प्यार की पहली सीढी की शुरूआत करते हुए किया करता था।
खत पर लिखी तुम्हारे दिल की एक -२ बात को पढ़कर,
हंसना, मुस्कराना, खिलखिलाना ,
अच्छा लगता था मुझे।
पर
अब नहीं आते है खत तेरे,
शायद डाकिया ही भूल गया है घर मेरा।
आज भी याद है मुझे ,
डाकिये का वो पुकारना -
बाबू जी डाक लाया हूँ,
और मेरा उससे झपट कर जल्दी -२
खत खोल कर सारी बातें एक सांस में पढ़ जाना ,
और फिर उस खत को देर तक निहारना ।
फिर कई बार उसी खत को पढ़ना,
एक -एक लाइनों को कई -२ बार पढ़ना,
न जाने क्या ढूढता था उन लाइनों में,
पता नहीं?
पर अच्छा लगता था,
यूँ पढ़ना और सोच -२ कर खुश हो जाना।
पर
अब ऐसा कुछ नहीं होता।
निहारता हूँ बार - बार उन विरान गलियों को,
न जाने कितनी बार पूछता हूँ उससे -
कि कोई खत तो नही आया है मेरा?
पर वही उत्तर -नहीं
नहीं आया।
फिर वही उदासी लिये इंतजार करता हूँ,
एक नयी सुबह की जिसमें कि उम्मीद होती है , उमंग होती है,
कि शायद आज मैं कामयाब हो जाऊगा। पर
वो आज कब आयेगा पता नहीं ;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;

Friday, September 14, 2007

१४ सितम्बर यानी हिन्दी दिवस


१४ सितम्बर यानी हिन्दी दिवस । वैसे तो मेरा मानना ये रहा है कि किसी भी साहित्य ,भाषा एवं संस्कृति के लिए कोई एक दिन रखा जाय ये पूर्णतः सही नहीं हैं , परन्तु हमारी परम्परा ऐसी रही है तो यह भी मान्य है।हिन्दी दिवस पर जो विचार मेरे मन में आता है वह यह है कि क्या आज हम अपनी राष्ट्रभाषा को किस हद तक प्रयोग करते हैं। और इसके विकास के लिए कितने प्रयत्नशील है? परन्तु यहाँ पर हमें नकारात्मक उत्तर ही मिलता है । हिन्दी दिवस पर ही नहीं हमें तो वर्ष के प्रत्येक दिवस पर इस बात को अपने मष्तिस्क एवं विचार में रखना चाहिए । वैसे यदि मैं स्वयं को ही लूँ तो यह बात सामने आती है कि क्या हम जो भाषा का प्रयोग बोलने में करते हैं वह हिन्दी ही है या कि कुछ और तो जो उत्तर मेरे समक्ष होता है वह है मिली जुली अर्थात खिचड़ी । मैने एक राष्ट्रीय पात्रिका में पढ़ा था ।कि विश्च में सबसे ज्यादा चीनी उसके बाद हिन्दी और फिर अग्रेजी भाषा बोली जाती है। परन्तु जब बात भारतीयों की की जाय तो यहां पर हमें विपरीत दृष्टिकोण देखने को मिलता है। मैने स्वयं यह महसूस किया है कि यदि आप हिन्दी भाषा का प्रयोग करते तो आप को एक पिछ़डे हुए क्षेत्र का व्यक्ति समझा जायेगा , यदि उसी स्थान पर आप यदि कमजोर एवं टूटी फूटी इग्लिश का प्रयोग करते है तो आप को बहुत ही सम्मानित दृष्टि से देखा जाता है । यहाँ पर विचारधारा बदलने की आवश्यकता है क्योंकि हिन्दी एक प्राचीन भाषा के साथ-२ कई भाषा की जननी रही है। मैं यहं पर किसी भाषा का विरोध नहीं कर रहा हूँ पर मेरा उद्देश्य हिन्दी के गिरते स्तर को लेकर है। मुझे गांधी का एक वक्तब्य याद आता है जिसमें उन्होंने कहा था कि " मैं अपनी बात अपनी भाषा में ही कहूंगा , जिसकी गरज होगी वह मेरी बात को सुनेगा"।यहां पर स्पष्ट बात यह रही कि यदि आप की बात प्रभावशाली ,औचित्यपूर्ण और सत्य है। तो उसे सभी लोग सुनेगें चाहे वो किसी भी भाषा की क्यों न हों। इसलिए किसी विदेशी भाषा का गुलाम न बनें।

तुम बिन


तुम बिन सूना मन का आगंन,
तुम बिन सूना मेरा जीवन,
तुम नहीं तो लगता है,
जिंदगी कुछ भी नही।
तुम हो तो जिंदगी अधूरी नही,
सोचती हूँ क्या हो तुम मेरे?
इस रिश्ते को क्या नाम दूँ?
क्या पहचान दूँ?
और सोचते -२ उलझ जाती हूँ,
फिर अपने आप से कहती हूँ,
अरे तुम तो मेरे अच्छे दोस्त हो,
मेरे हृदय के सफेद पृष्ठपर कर दिये तुम ने हस्ताक्षर ,
और उस हस्ताक्षर को जीवन का अंग मानकर जीती रहीं हूँ मैं।
तुमने तो शब्दों के ऐसे जाल बुने,
फंस जाऊगीं मै तुम्हें पता था।
भूल गयी थी मैं,
कि तुम एक मर्द ही हो,
दिल तोड़ना तुम्हारी फितरत है।।।।।।।।।




प्रिया प्रांजल तिवारी की तरफ से

Thursday, September 13, 2007

मेरे ख्यालों में आती हो तुम


तुम अब रोज ही आती हो मेरे ख्यालों मे,
जब होता हूँ मैं बिल्कुल अकेला , तन्हा
तब तुम्ही तो देती हो मेरा साथ,
पर ये कोई नहीं जानता सिवाय मेरे कि
मैं अकेला नहीं, तुम भी हो
मेरे साथ, मेरे पास,
एकदम दिल के करीब।
मैं जब मिलता हूँ तुमसे ,
तो कह नहीं पाता कुछ भी तुमसे
ऐसा नही कि बातें नहीं है मेरे पास
पर
डर लगता है कि कहीं इनकार न कर दो तुम
और टूट जायें मेरे सपने,
मेरी ख्वाहिशें।
जो मैने देख रखें है तुम्हारे लिए,
और फिर छूट न जाये तुम्हारा साथ,
तुम बंद न कर दो मेरे ख्यालों मे आना।
इसलिए सोचता हूँ हकीकत में सही न सही,
पर
ख्यालों में तो तुम मेरी हो,
कोई न कर सकता है मुझे तुम से अलग ।
अगर हो भी गया तो क्या तुम रह पाओगी मेरे बगैर ,
नही कभी नहीं ।
मैं तो चाहता हूँ कि तुम आती रहो,
यूँ ही हमेशा
मेरे ख्यालों में मेरे सपनों में,
और
देती रहो मेरा साथ
बढाती रहो मेरा विश्वास ,
क्योंकि जानती हो तुम कि मैं नहीं रह सकता तुम्हारे बगैर,
तुम ही तो हो मेरी सांसे ,
जिसके सहारे जी रहा हूँ मैं ।

Wednesday, September 12, 2007

क्या लिखूँ ?


क्या लिखूँ ? समझ में नही आ रहा है पर लिखना है, सो लिख रहा हूँ । बात कहाँ से शुरू करूँ ,कैसे करू। चलिए अब बात यह है कि भारत में शिक्षा के विकास के लिए है। आप मानिए कि भारत में शिक्षा के स्तर में सुधार हुआ है । खासकर गांव जहाँ पर स्त्रियों की दशा कुछ अव्छी नही हुआ करती थी वही आज सब कुछ बदल गया है। जागरूकता फैली लड़कियों की उपस्थिति अब स्कूल , कालेजों मे वृहत संख्या में देखी जा सकती है। आज ये विषय मुझे उस समय सूझा जब मैने एक ऐसी घटना को देखा तब आश्चर्य चकित रह गया। मैने देखा कि कि एक १२ से १३ साल की बच्ची एक आम के पेड़ के नीचे बोरी विछाये कुछ लिखने और पढ़ने की कोशिश कर रही थी। जबकि उसके पास कोई खास सुविधा नही पर फिर भी एक लगन और पढ़ने का जज्बा। बताइए क्या है उसके पास न तो एक स्कूल बैग । नहीं कापी किताब ,और नही कोई बताने वाला कि जो वह कर रही है उसमें क्या सही है और क्या गलत पर पढने की ख्वाहिस।आज नहीं सही पर एक दिन इन बच्चों से ही भारत का भविष्य उज्जवल होगा।अब बात सरकार की शिक्षा से जुडी हुई योजनाओं की। तो क्या ये योजनाएं सफल है अपने उद्देश्यों में। इन जरूरत मदों के लिए क्या अलग से कोई व्यवस्था होगी ? जवाब किसके पास है यह कोई बताने को तैयार नही है यहां पर यदि हम सूचना के अधिकार की बात करें तो कोई खास फायदा नही होने वाल है। जवाब देर से मिलेगा तथा गोलमटोल भी मिलेगा और हो सकता है कि न भी मिले। भारत बनता है यहां निवास करने वाले हर नागरिक से तो ऐसे में किसी की उपेक्षा कर कैसे आगे बढ़ जाती है सरकार । यदि देखा जाय तो इन गरीब लोगों से ही पार्टियों को सबसे ज्याद वोट मिलते है पर सबसे ज्यादा इन की ही दुर्गति क्यों ?

Tuesday, September 11, 2007

कितने तानाशाही पूर्ण फैसले पंचायतों के


गांव की एक महिला के साथ हुए बलात्कार के बाद उसकी हत्या के मामले में अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए पंचायत के हुक्म पर राजस्थान के अजमेर जिले के बेराज गावं के पुरूषों को सरेआम नंगा होना पड़ा। अपराधी की पहचान के लिए सुबह से लेकर चले इस अभियान में १०साल से कम उम्र के सभी पुरूषों के कपड़े उतरवाये। हांलाकि पंचायत को किसी के खिलाफ सबूत नहीं मिला।जयपुर से लगभग १४० किमी दूर बोराज गांव की एक ३५ वर्षीय विवाहित महिला गीता रावत की लाश देर रात एक पहाडीपर मिली। पुलिस को संदेह था कि गीता के साथ हत्या से पहले बलात्कार हुआ था। पुलिस ने शक जाहिर किया कि अपराधी संभवतः मृतक की जान - पहचान वाला हो सकता है पुलिस के मुताबिक मृतका ने बलात्कार एवं हत्या के दौरान संघर्ष किया था ।इसीलिए पंचायत ने १५०० पुरूषों को लाईन में खड़ा कर उनके कपड़े उतरवाये ताकि शरीर पर खरोच के निशान देखें जा सके।आप ने अभी कुछ ही दिनों पहले एक मामले को सुना ही होगा जिसमें हरियाणा में एक ही गोत्र में विवाह करने पर पंचायत ने विवाहित जोड़े को भाई बहने की तरह रहने और राखी बाधने को कहा। ताथ सबसे बडी बात यह की ८ दिन के छोटे बच्चे को माँ से अलग कर दिया था। अतः पंचायत के इस तरह के फैसले कितने तानाशाही पूर्ण है तथा पुलिस भी विवश दिखी ऐसे मौके पर। अगर बात करें भारतीय संविधान की तो उसमें ऐसा कोई कानून नहीं है जो कि यह बात स्वीकारे की ऐसी शादी गलत है तो पंचायती फैसले के विरूद्द सरकार क्यो कुछ शक्त कदम नहीं उठाती है। मेरा मानना है कि यह पंचायती फैसले पूर्णतः गलत है क्योंकि राजस्थान में जिसने भी यह कुकृत्य किया हो पर सजा सब को क्यों मिल रही है ? इस पर सरकार को गम्भीरता से विचार करना चाहिए तथा इन पर अंकुश लगाना चाहिए।

Monday, September 10, 2007

भारत में हर २८वें ईमेल में वायरस

भारत में इन्टरनेट पर लोगों की निर्भरता बढ़ती जा रही है। ऐसे में ईमेल अपनों के टच में रहने का सबसे बेहतर जरियाट साबित हो रहा है। पर एक स्टडी के मुताबिक भारत में हर २८ में से १ ईमेल वायरस वाला होता है और इससे कंम्प्यूटर के चौपट होने का खतरा बढ़ जाता है।
स्टडी में कहा गया है कि जाली या ऊँटपटाग वेबसाइटों की संख्या बेहताशा बढ़ रही है और स्टाँर्मवर्म मान का एक नया वायरस कंम्प्यूटरों को प्रभावित कर रहा है । ये जाली वेबसाइटें वायरस हमले के लिए आभासी पोस्टकार्ड और यू टयूब विडियो का इस्तेमाल कर रही है। यह स्टडी मेसेजिंग सिक्युरिटी और मैनेजमेंट सर्विस प्रोवाइडर फर्म मेसेजलैब्स ने पेशकी है। स्टडी में कहा गया है कि दुनिया भर में लगभग १८ लाख कंम्प्यूटर पर स्टाँर्मवर्म वायरस का असर हुआ है। यानी ईमेल पर अधिक निर्भरता अच्छी नहीं है और जरा -सी चूक आपके कंम्प्यूटर को खराब कर सकती है।
इसके मुताबिक अगस्त महीने में वायरस हमलों के लिहाज से भारत सबसे उचित क्षेत्र बना रहा। यहां किसी कंम्प्यूटर पर आने वाले हर लगभग २८वें ईमेल में से १ वायरस से प्रभावित था । वहीं स्पैम या अवांछित समूह ईमेल की संख्या कुल ईमेल की २९;५ फीसदी रही। स्टडी में पाया गया है कि आभासी पोस्टकार्ड या यू टयूब वीडियो आमंत्रण का लिंक देने वाले ईमेल की संख्या में इजाफा हुआ है। १५ अगस्त को जाली या ऊँटपटाग वेबसाइटों की संख्या में अचानक बढोत्तरी हुई। इस दिन ऐसी वेबसाइटों के जरिये महज २४ घंटें में ६ लाख ईमेल भैजे गये। स्टडी में पेश आकलन के मुताबिक नई ऊटपटाग वेबसाइटों की संख्या में काफी तेजी से बढोत्तरी हो रही है। सिर्फ अगस्त महीने में रोजाना औसतन १७२२ ऐसी वेबसाइटें पकड़ में आई और इन्हें प्रतिबन्धित किया गया ।





कहीं खुशी तो कहीं गम


कहीं खुशी तो कहीं गम एक तरफ भारतीय क्रिकेट का नेटवेस्ट सिरीज में हारना तो दूसरी तरफ भारतीय हाँकी की एशिया कप में धूम । भारतीय हाँकी में वाकई चक हे फैक्टर आ रहा है एशिया कप फाइनल में भारत ने साउथ कोरिया को ७-२ से रौंद कर खिताब बरकरार रखा । एशियन गेम्स चैम्पियन कोरिया को भारत ने इस टूर्नामेंट में दूसरी बार हराया है।पूरे टूर्नामेंट में भारत ने लगातार सात मैच जीते, ५७ गोल किये सिर्फ ५ गोल खाये। इससे पहले भारत ने २००३ में पाकिस्तान को हरा कर एशिया कप जीता था । वर्ल्र्ड कप में भारत सेकेण्ड लास्ट यानी ११वें स्थान पर रहा, ओलम्पिक के लिए हम डायरेक्ट क्वालीफाई भी नहीं कर पाये, सैफ गेम्स में भी हम नम्बर २ पर रहे। एशियन गेम्स में भी भारत पाँचवें नम्बर पर रहा ।पिछले साल वर्ल्ड कप में दुर्गति के बाद पूर्व कप्तान जोकिम कारवाल्हो को कोच बनाया गया । जोकिम ने टीम को भरोसा दिलाया कि वे दुनिया की किसी भी टीम को हरा सकते है। उनका जोर मजबूत मिसफील्ड पर रहा इसमें सबसे बडी भूमिका सरदारा सिंह और इग्नेस टिर्की ने निभायी । ये दोनों डिफेंस के साथ भारत के अक्रामण के सूत्रधाररहे।एशिया कप फतह करने के बाद पेइचिंग ओलम्पिक के क्वालीफाइंग में आसान पूल मिलेगा, जो अगले साल होगें। भारत का डिफेंस अर्से से कमजोर था जो अब दिलीप टर्की के फिट होने के बाद मजबूत है भारत का पेनाल्टी कार्नर कनवर्जन भी सुधरा , फारवर्डलाइन को प्रभोजोत सिंह , शिवेन्द्र सिंह और तुषार खाडेकर की तिकडी ने धारदार बना दिया।

Sunday, September 9, 2007

टाँय टाँय फुस्स


भारत और इग्लैण्ड के बीच खेला गया नेटवेस्ट सीरीज का फाइनल मुकाबला इग्लैण्ड के पक्ष में रहा। लॉर्ड्स एक दिवसीय क्रिकेट मैच में इंग्लैंड ने भारत की टीम को सात विकेट से हरा दिया । इसी के साथ इंग्लैंड ने सात मैचों की सिरीज़ 4-3 से जीत ली । केविन पीटरसन को मैन ऑफ़ द मैच और इयन बेल को प्लेयर ऑफ़ द सिरीज़ का पुरस्कार मिला।
भारत ने सिरीज मे ३-१ से पिछड़ने के बाद दोनों मुकाबले जीत कर सीरीज मे ३-३ की बराबरी कर सातवें मैच को रोमांचक बना दिया था। और उम्मीद यही लगायी जा रही थी ।कि भारत टेस्ट के साथ ही वन डे सिरीज पर भी कब्जा कर लेगा। परन्तु क्रिकेट अनिश्चतताओं का खेल, जिसमें की केवल वर्तमान प्रदर्शन पर ही सब कुछ निर्भर करता है। लार्डस के मैच मे भारत ने पहले खेलते हुए ५० ओवरों में मात्र १८७ रन बनाया । जिसे इग्लैण्ड ने ३६ वें ओवर मे ही जीत लिया। भारत के इस प्रदर्शन से सभी क्रिकेट प्रेमियों को गहरा झटका लगा। क्योंकि भारत की इस हार से यही कहावत याद आती है कि " पूरी नदी पार कर, किनारे पर डूब गये " । वैसे भारत में क्रिकेट को धर्म की तरह पूजा जाता है । पर विश्व कप २००७ में जिस तरह से भारत का प्रदर्शन था उससे क्रिकेट प्रमियों को ऐसा झटका लगा कि वे अब तक अपने पुराने जज्बें को हासिल नही कर पाये हैं वैसे इग्लैण्ड की सिरीज को जीत कर भारत अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा प्राप्त कर सकता था पर ऐसा करने में असफल रहा।
अगर भारत की कमियों को गिनाया जाय तो कई प्रमुख रूप से है । जैसे की फील्डिग की कमजोरी। भारत ने इस सीरीज में बहुत ही बेकार प्रदर्शन किया इस मामले में। और दूसरे नम्बर पर गेदंबाजो का प्रदर्शन भी कुछ खास नही रहा जिससे की हमें हार का मुह देखना पडा।
अब यहाँ पर यह जरूरत लगती है की भारत को एक बढिया कोच की जरूरत है जिसे इन कमियों को दूर किया जा सके या कम किया जा सके। अन्यथा अन्तरराष्टीय स्तर पर इस तरह के प्रदर्शन से टीम अपना सर्वोच्च प्रदर्शन करने में कामयाब नही हो सकती है।

Saturday, September 8, 2007

आतंकवाद का वैश्वीकरण


९‍‍ और ११ सितम्बर की घटना को भूलना चाहता है पूरा विश्व। पर हाल ही में टी वी और अखबारों की खबरें बीती हुई घटनाओं के दृश्य को सजीव कर देती है । चाहे वो ब्रिटेन में ग्लासगो हवाई अड्डे पर हमला हो या भारत में हैदराबाद की मसजिद पर बम विस्फोट या फिर अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेट टावर पर हमला । सभी त्रस्त है इस बीमारी से।
बात पाकिस्तान की , की जाय जो कि जन्मदात एवं पालन पोषण का केन्द्र रहा है आतंकवाद का। वह भी अछूता नही रहा है इससे। अभी हाल ही के बीते दिनों में रावलपिडीं में जिस तरह से रक्षा कर्मियों पर हमला किया गया उसमें करीब ५० लोग को जान से हाथ धोना पड़ा था । साथ ही लाल मसजिद पर कार्यवाही को भी देखा जा सकता है । पाकिस्तान भी त्रस्त है इस समस्या से ,कैसे छुटकारा पाया जाय?
अमेरिका ने अफगानिस्तान में तालिबान पर जिस उद्देश्य से हमला किया था वह मात्र उसके हथियारों का दिखावा मात्र साबित हुआ । और कुछ भी नही। अमेरिका ने पैसे को पानी की तरह बाहाया ।इसका एक फायदा केवल यही हुआ की वह विश्व मे अभी सर्व शक्तिशाली है।
हाल ही में ओसामा बिन लादेन का नया वीडियो टेप जारी हो रहा है जिसमें ९ और ११ की घटनाओं की पुनरावृत्ति होने की बात कही है।
ऐसे में एक बात का खतरा पूरे विश्व पर मडराने लगा है कि यह कब, कहाँ और कैसे होगा इसका पता नहीं। परन्तु सतर्कता ही बचाव हो सकता है। आतंक का वैश्वीकरण हो गया है ।यह अन्तर राष्टीय समस्या के रूप में व्याप्त है और इससे कोई भी देश बचा नही है। अब कैसे छुटकार पाया जा सकता है इससे। निर्दोष लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ता है और फिर सरकार द्वारा निंदा के मात्र दो शब्द के अलावा कुछ नहीं होता है और इसी ही फुरसत भी मिल जाती है।
अगर खासतौर पर भारत की बात करें तो यहाँ पर आतंकवाद की जड़ जिस तरह से अपनी को पकड़ मजबूत कर रहा है उससे भविष्य में भयानक हादसे होने के आसार नजर आते हैं। चाहे माओंवादी हो या फिर आतंकवादी। हमले भारत को कमजोर कर रहे हैं। हाल ही में असम में हिन्दी भाषियों की जिस तरह से निर्मम हत्या की हई वह बहुत ही दुखद बात है परन्तु केन्द्र सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी रही तथा इसमे कोई विशेष रूचि नही दिखाई। आखिर कब तक हाथ पर हाथ धरे इस तरह की घटनाओं को होते देखते रहेगे?

Friday, September 7, 2007

कौन है कालाहांडी के लिए ज़िम्मेदार?


उड़ीसा के कालाहांडी ज़िले में सैकड़ों लोगों की मौत हो चुकी है, सरकार इन मौतों की वजह पेट की बीमारी बताती है जबकि स्थानीय लोगों का कहना है कि इसकी असली वजह भूख है.
कालाहांडी के दुर्गम इलाक़ों में अनाज की कमी और दूषित पानी पीने से सैंकड़ों लोगों की जानें गई हैं.
राज्य सरकार यह स्वीकार करने को तैयार नहीं है कि इस पिछड़े आदिवासी बहुल ज़िले में लोगों को पेट भरने के लिए अनाज नहीं मिल रहा है जबकि वहाँ के लोग पत्ते उबालकर खा रहे हैं. कई स्थानों पर तो लोगों को नौ महीने से अनाज नहीं मिला है. ग़ैर सरकारी संस्थाओं का कहना है कि कम से कम 250 लोगों की मौत हुई है जबकि राज्य के खाद्य आपूर्ति मंत्री मनमोहन सामल कहते हैं कि सिर्फ़ 79 लोगों की मौत हुई है. सरकारी आँकड़ों की मानें तो अब तक 180 लोगों की मौत हो चुकी है लेकिन ये हैज़ा और दस्त से मरे हैं.
दूसरी ओर अंतरराष्ट्रीय राहत संस्था एक्शन एड मरने वालों की संख्या लगभग 350 बता रहा है और इसने बीमारियों के अलावा भूख को भी एक बड़ा कारण बताया है.
उन
गांवों और क़स्बों की स्थिति ज़्यादा ख़राब है जहाँ पहुँचने के रास्ते नहीं हैं. इन इलाक़ों में पहाड़ों और नदियों को पार करके ही जाया जा सकता है .

दुनिया की पाँचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था जो खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर है उसके नागरिकों की ऐसी दशा क्यों हो रही है? इसके लिए कौन ज़िम्मेदार है? कालाहांडी की भयावह सचाई क्या देश को झकझोरने में सफल रही है या देश के बाक़ी लोग अब भी बेपरवाह हैं?

साभार - उपरोक्त चित्र कालाहांडी के न होने के होने के बाद भी वहॉं की दशा दिखाने के प्रयास में सहायक है, उक्त चित्र के लिये इसके मूल चित्रकार को धन्यवाद देता हूं। 

क्या यही है असली तस्वीर हमारी ?


हिन्दुस्तान की आबादी विश्व में चीन के बाद दूसरे स्थान पर है। तथा भौगोलिक स्थिति के दृष्टिकोण से हम विश्व में सातवें नम्बर पर है। आबादी की जो दर हे उससे देश में जो सबसे बड़ी समस्या उभरकर सामने आयी है वो है- रोटी, कपड़ा और मकान। भारत में अब खाद्ययान की समस्या और कपड़ा उद्योग की समस्या से काफी हद तक तो निजात पा चुका है परन्तु सबसे विकट समस्या रहने की है, मकान की है।भारतीय अर्थव्यवस्था जिस तरह से विकास के पथ पर अग्रसर है उससे तो यही परिणाम सामने उभरकर आ रहा है कि जो अमीर है वो और अमीर होंगे तथा गरीब तो गरीब है ही। उनकी दशा तो पहले से ही दयनीय है अब आगे क्या होगा इस गरीब जनता का ये तो भविष्य ही बतायेगा। मेट्रो सिटी की बात तो दूर, गावों में भी जीवन यापन करना दूभर भी हो गया है। रोजगार न होने के कारण गांव से किसानों का पलायन शहरों की तरफ तीव्र गति से हो रहा है ।जिससे शहरों का विस्तार तेजी से हो रहा है । शहरी जीवन की चकाचौंध में भोला -भाला व्यक्ति किस प्रकार से अपना और अपने परिवार का जीवन निर्वहन कर सकता है?सरकार ने २६ जनवरी एवं १५ अगस्त पर अनेक लोक - लुभावन योजनाऐं लागू कर राष्ट्र की समृद्धी के लिए जो प्रयास किया उससे कुछ खास फायदा होता नहीं दिख रहा है। सच्चाई साफ है योजनाएं दिखावा मात्र लगती है । फायदा जिसको होना चाहिए वह जानता ही नहीं है कुछ? गरीब किसान को तो जरूरत है बस दो जून की रोटी की । जिसे पाकर वह जीने के लिए सांसे ले सके।

Thursday, September 6, 2007

स्टिंग आपरेशन कितना सही और कितना गलत ?


टी वी चैनलों ने आगे बढ़ने की होड़ में एक दूसरे से बेहतर एवं तीव्र गति से सूचना पहुचाने काम बहुत ही निष्ठापूर्वक कर रहे हैं । आजकल के समाचार चैनल में क्रान्ती आ गयी है । बर्चस्व की जंग छिडी है कि सर्वश्रेष्ठ कौन है?
टी वी चैनल के द्वारा आम जनता को जानकारी उपलब्ध कराना ही लक्ष्य होता है।सूचना बेहतर ढ़ग से मिल सके। तथा साथ ही साथ अपनी आर्थिक स्थिति भी सुदृढ़ कर सके। जिस तरह से पिछले साल सांसद को पैसे लेकर सवाल पूछने के मामले का पर्दाफाश हुआ है । उससे मीडिया का कार्य काफी महत्तवपूर्ण हो गया । इसके द्वारा भ्रष्ट लोगों को उनकी करतूत का फल आसानी से प्राप्त हो सका।
इसी तरह का प्रयास विदेशों मे हुआ। आपरेशन चक्रव्यूह भी इसी तरह का था। जिसमे सांसदों को एक दूसरे से अवैधानिक रूप से धन लेते दिखाया गया। अतः लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी ने अपने फैसले में सभी ११सांसदों की सदस्यता भंग कर दी।इस प्रकार समाचार चैनल द्वारा चलाये गये स्टिंग आपरेशन से सफेदपोश लोग गलत कामों की ओर नही जा रहे हैं या जो जा रहे है वो बहुत ही सावधानी पूर्वक । क्योंकि उन्हे यह डर है कि कहीं अगले दिन उनकी तस्वीर चैनकों के लिए एक्सक्लूसिब न्यूज के रूप मे हो सकती है। इस प्रकार से चैनलो द्वारा चलाया गया स्टिंग आपरेशन सफल रहे। सूचना एवं प्रद्दौगिकी के समय मर सबकुछ तीव्रगति से विकसित हो रहा हे तो ऐसे मे भला समाचार चैनल हओ क्यों पीछे रहते तथआ अपनी उपयोगिता साबित करते हुए न्यूज चैनल स्टिंग आपरेशन तक आ गये। जिससे चैनलो की मांग दर्शकों में बढी तथा चैनलो को भारी लाभ हुआ
स्टिंग आपरेशन से ये बात सामने आयी है कि उच्च स्तर पर लोग किस हद तक भ्रष्ट है तथा किस हद तक गिर कर वे भ्रष्टाचार को बढावा दे रहे है इस प्रकार अब हम यह भी कह सकते है कि ये आपरेशन कुछ हद तक सच्चाई सामने ला रहे है जिससे ये नकाबपोश लोग का असली चेहरा सामने आ रहा है।
परन्तु जिस चीज में अच्छाई होती है तो कुछ बुराई भी । हुआ ये की अभी कुछ ही दिन पहले एक शिक्षिका उमा खुराना के ऊपर वेश्यावृत्ति का आरोप लगा कर मीडिया ने स्टिग आपरेशन चलाया जिससे हिंसा भड़की लोग घायल हुए तथा पुलिस को भी कार्यवाही करनी पडी और शिक्षिका को गिरफ्तार कर लिया और सरकार ने जाँच समिति गठित की जिसकी रिपोर्ट में यह बताया गया है कि यह एक षडयन्त्र के रूप में था। मामला लेन देन का था। जो लडकी ने टी वी पर शिक्षिका के ऊपर वेश्यावृत्ति का आरोप लगा रही थी वो भी झूठ साबित हुआ।
अतः कुछ फायदे तो कुछ नुकसान भी।

Wednesday, September 5, 2007

न ये जाना मैंने

कितना टूटा ,कितना बिखरा न ये जाना मैंने।तुमको चाहा , तुमको पूजा ये माना मैनेयाद करके ही अब जीलेता हूँ मै तो, तुमने क्या माना, न ये जाना मैंने।एक बार जो कर देती इजहार-ए-मुहब्बत, तो क्या जाता तेरा। न कहलातामहफिल में दीवाना तेराएक अर्ज है तुमसे,अपना मानो या न मानो कोई बात नहीं,पर न कहना कभी बेगाना मुझको।

चक दे इण्डिया


भारतीय हाँकी टीम इन दिनों चेन्नई में चल रहे एशिया कप में अपना परचम लहरा रही है भारत ने अपने खेले सभी ४ मुकाबले में जीत दर्ज करके अपने ग्रुप से सबसे ऊपर १२ अंको के साथ विराजमान है।भारत का पहला मुकाबला चीन जैसी कडी टीम से हुआ ।भारत के लिए पहला मुकाबला जीतना आसान काम नहीं था परन्तु अच्छे क्षेत्ररक्षण और डिफेन्स की वजह से भारत ने चीन को १-० से परास्त किया। इस जीत से भारतीय टीम का आत्मविश्वास काफी बढा जो कि आगे मैचों मे देखने को मिला। दूसरा मुकाबला श्रीलंका से था। जिसमें भारतीय खिलाड़ियों ने धुआधार गोल किये और गोल की बरसात की ।भारत ने इस मैच को २०-० के अन्तर से जीत कर सेमीफाइनल में प्रवेश करने के रास्ते को आसान कर लिया ।इसके पहले १९३३ के ओलम्पिक में भारत ने अमेरिका को २४-१ से परास्त किया था।तीसरा मुकाबला दक्षिण कोरिया जैसी मजबूत टीम से रहा। परन्तु भारतीय खिलाडियो ने अपना हौसला कायम रखा तथा विजय अभियान को आगे बढ़ाते हुए कोरिया को भी ३-२ से करारी शिकस्त दी । अब बारी थी बाग्लादेश की जो की हारने के लए अपनी बारी का इंतजार कर रही थी और एक औपचारिक मैच हुआ। भारतीय टीम ने बाग्लादेश पर ६-० से पटकनी दी। और सेमी फाइनल में पहुचने वाली पहली टीम बन गई है।सबसे खास बात यह है कि भारत ने अब तक ३० गोल किये है। पूल ए में मलेशिया ने ३ मैच में ३ मैच जीते है तथा दूसरे स्थान पर पाकिस्तान ३ में से २ मैच जीते है तथा ६ अंक है ।जापान ने ३ में से २ मैच जीतकर ६ अंक हासिल किये है। हांगकांग ने ४ मे से १ मैच जीत के साथ ३ अंक है। तथा सिगांपुर को अभी भी कोई अंक हासिल नही हो सका है। तथा पूल बी मे भारत ४ में से चार मैच जीत कर १२ अंक हासिल कर तालिका में पहले स्थान पर है । दक्षिण कोरोया ने ३ मैच में २ मैच जीते तथा ६ अंको के साथ दूसरे पारदान पर है चीन भी ३ मे से २ मैच जीत कर तीसरे स्थान पर है इसके भी ६ अंक है । और बाग्लादेश ने ४ मैच मे २ मैच मे जीत दर्ज की है तथा ६ अंक हासिल किया है श्रीलंका और थाईलैण्ड को अभी अपना खाता खोलना बाकी है।अतः इस प्रतियोगिता मे भारत काफी मजबूत स्थिति में है। यह कप भारत के ही नाम हो यही मेरी कामना है। चक दे इण्डिया

Tuesday, September 4, 2007

सच जो मैंने देखा

मैं प्रतिदिन बस से नोएडा अपने पत्रकारिता विश्वविद्यालय जाता हूँ रोज वही भाग-दौड़। सुबह उठना और फिर जल्दी-२ नहा धोकर बस पकड़कर नोएडा के लिए रवाना होना यही मेरी दैनिक प्रक्रिया है पर यह बताने के पीछे जो बात है वो यह है कि-मै ३ सितम्बर को नोएडा से वापस नई दिल्ली आने के लिए बस पर बैठ गया क्योंकि मुझे नोएडा के सेक्टर २० में रहने के लिए कमरा ढूढना था इसलिए सेक्टर २० से ही बस पर बैठा। जैसे ही मै बस पर चढा तो देखा कि बस खाली है पर पूरी सीट भरी है केवल कन्डक्टर के बगल वाली ही सीट खाली है तो मैने अपने को वहीं पर स्थापित कर लिया। धीरे -२ बस रूक -२ कर आगे बढने लगी ।अब हाईवे रोड पर आकर बस रूकी( अक्सर जहां पर पढने और काम करने वाले लोगों की भीड़ बस का इंतजार किया करती रहती है) लोगों का चढना शुरू हुआ वैसे सभी स्टैण्ड पर ही ऐसा होता परन्तु भीड़ ज्यादा थी इसलिए मेरा ध्यान चढने वालों पर ही था सब जब चढ़ गये तो मैने कि मेरे पास दो लड़कियाँ खडी है मैंने अपनी सीट खाली कर दी और एक लड़की को बैठने का न्यौता दिया सो औपचारिकता में वह लड़की नहीं कर मना किया तो मैने आग्रह किया और उसने स्वीकार कर लिया। मुझे अच्छा लगा परन्तु अब मै खडा़ था बस की भीड में और मेरे पास कम कपडों में लडकी खडी थी पर वह परेशान थी गर्मी से और अपने बैग से जब मेरा ध्यान उस पर गया तो यही समझ में आया। मैंने तो अपना बैग जो लडकी मेरी सीट पर बैठी थी उसे ही दे दिया था तो मै काफी सहज महसूस कर रहा था ।इसी बीच बस धीरे -२ स्टैण्ड पार करते हुये आगे बढ़ रही थी तभी पीछे से एक ५५-६० वर्ष के भाई साहब मेरे बगल और उस लडकी के पीछे सटकर खडे़ हो गये मैने जब ध्यान दिया तो देखा की वह एक हाथ के विकलांग है । मुझे दया आ गयी उनको देख कर। बस चलती रही मेरा ध्यान उन पुरूष पर था जो मेरे पास ही खडे़ थे । मेने ध्यान दिया तो पाया कि जो लड़की उनके आगे खडी़ है वे बस के धक्के के बहाने पीछे से उसके कंधे को चूमने की कोशिश कर रहें है जैसे ही उनका ध्यान मेरी तरफ आया वे सजग हो गये और थोडा पीछे हट गये ऐसी हरकत एक दो बार होती रही मैने सोचा कि अगर अबकी कुछ किया तो मजा चखा ही दूँगा। पर ऐसी नौबत नहीं आयी वो लड़की अपोलो हास्पिटल के पास ही उतर गयी साथ में रसिया युवक भी उतर गया। अब आगे क्या हुआ पता नही, पर रास्ते भर यही सोचता रहा कि बाप की उम्र के वे पुरूष और बेटी की उम्र की लड़की और ऐसा व्यवहार? कितना गिर गया है यह समाज? यह तो मेरी आखों देखी सच घटना है।और न जाने कितनी ही घटनाएं घटित होती रहती है पता ही नहीं लगता। प्रश्न है क्यों ? सच जो मैंने देखा

Monday, September 3, 2007

क्यों आती है तुम्हारी याद

क्यों आती है तुम्हारी याद
मैं तो भूलना चाहा था हमेशा तुमको,
कोशिश भी की
थी पर भूल ना पाया
कोई दिन ,कोई रात नहीं ऐसी कि
याद ना आयी हो तुम्हारी।
तुम्हारे साथ बीते वो लम्हें,
और उन लम्हों की यादें आज भी ताजा है मेरे मस्तिष्क पटल पर,
कैसी मुस्कराती थी तुम,
कैसी इठलाती थी तुम,
वो खिलखिलाकर हंसना, और फिर झट से किसी बात को लेकर रूठ जाना,
और मेरे एक बार मनाने पर झट से मान जाना।
तुम्हारी वो नशीली नजरों से मुझे निहारना और मेरे एक बार तुम्हारी तरफ देखने पर,
वो शर्माकर नजेरें हटा लेना।
कितनी माशूमियत थी उन आखों में,
कितना प्यार था।
जब मिले थे आखिरी बार हम दोनों कुछ पल के लिए , और
खायी थी साथ कसमें साथ जीने -मरने की,
तुम्हारा वो मुझसे लिपटना और फिर बिछड़ना
न जाने कब तक के लिए ?
वो मुझे दिखाने के लिए होठों पर झूठी मुस्कान लिए मुस्कराने की कोशिश करती रही थी तुम;;;;;;;;;;;
पर कामयाब न हो सकी थी,
मैने जाना था तुमको,
जानता था तुम्हारी भावनाएं, तुम्हारी इच्छाएं,
पर मजबूर था उसकी कसमों के आगे जो दिया था तुमने।
अब भूलना चाहता हूँ,
पूछता हूँ अपने आप से ही कि
क्यों याद आती है तुम्हारी याद ?

Saturday, September 1, 2007

सक्रियता बढ़ती न्यायपालिका की'''''''''''''''''''''''''दिये अहम फैसले


पिछले दिनों न्यायपालिका ने गजब के फैसले दिये हैं चाहे वो अभिनेता संजय दत्त को टाडा अदालत के न्यायधीश पी डी कोडे द्वारा १९९३ मुम्बई बम काण्ड की सुनवाई के दौरान केवल अवैध हथियार रखने का दोषी पाया जिसके तहत ६ वर्ष के कठोर कारावास की सजा सुनाई। टाडा अदालत ने १०० लोगों को बम काण्ड में दोषी करार दिया । भले ही इस मामले में न्याय प्रक्रिया में देरी हुई परन्तु लाख कोशिश के बावजूद भी आरोपी बच नही सके । संजय दत्त ने टाडा अदालत के फैसले के विरूद्ध उच्चतम न्यायालय में जमानत के लिए याचिका दायर की जिसको न्यायालय ने स्वीकार कर लिया।
उधर दूसरी तरफ चिंकारा शिकार में मामले जानेमाने फिल्म अभिनेता सलमान खान को पिछले सप्ताह जोधपुर के सत्र न्यायाधीश ने दोषी पाया तथा ५ वर्ष की कैद को बरकरार रखा है तथा साथ ही साथ सलमान के अदालत में न मौजूद होने के कारण गैर जमानती वारण्ट जारी किया जिसके चलते पुलिस ने सलमान को जोधपुर हवाईअड्डे पर तब गिरफ्तार किया जब वो मुम्बई से जोधपुर में आत्म समर्पण करने आ रहे थे। सलमान को मिली पाँच वर्ष की क़ैद की सज़ा के ख़िलाफ़ उनके वकीलों ने जोधपुर हाईकोर्ट में अपील की थी जिसपर सुनवाई के बाद शुक्रवार को उनकी ज़मानत मंज़ूर कर दी गई ।
इस तरह से यह बात तो निकल कर सामने आयी की न्याय पालिका अपना काम पूरी मन लगन से कर रही है पर न्यायप्रकिया इतनी जटिल है कि दोषी किसी न किसी तरह से बच ही जाते है । पर चाहे आदमी हो या फिर कोई खास शख्सियत कानून से बच नहीं सकता।

विखरती हुई परम्पराएं


विगत दिनों में हमारे सामने एक ऐसी घटना उजागर हुई जिससे की पूरा देश शर्मसार हुआ । गुरू शिष्य की परम्परा पर एक दाग लग गया जिससे पवित्र रिश्ते की मजबूत डोर कमजोर पड़ गई। बात अरूणा आसफ अली मार्ग स्थित सर्वोदय विद्यालय की गणित विषय की शिक्षिका उमा खुराना द्वारा बच्चों को नशीली दवा देकर फिर उनकी ब्लू फिल्म बनाकर उनको ब्लैकमेल करके वेश्यावृत्ति के लिए मजबूर किया जाना तथा मामला सामने आते ही वहां के आसपास के लोग तथा बच्चों के मां बाप का जमवाड़ा लग जाने से स्कूल विरोधी गतिविधि शुरू हुई भीड़ ने जमकर तोड़फोड़ किया। इस प्रकार घटना में कई लोग को चोटें आयी ।
परन्तु यहां पर महत्तपूर्ण एवं ध्यान देने की बात यह है कि शिक्षा के मन्दिर में नन्हें बच्चों के साथ ऐसा व्यवहार ? जहां से तैयार होता है भारत का भविष्य एवं युवा सोच।
भारत का इतिहास गवाह रहा है कि भारत में गुरू शिष्य परम्परा सदियों से वली आ रही है पर ऐसा क्या बदलाव आया कि एक शिक्षिका को इस हद तक के कुकर्म करने के लिए अपने को गिराना पड़ा ।माना की पैसा जीने के लिए आवश्यक है पर गलत कार्यों को बढ़ावा देकर ऐशोआराम कहाँ तक उचित है?
इतना ही नहीं पूरी दिल्ली में इस रैकेट का जाल फैला है तो इसका मतलब यह भी है की इस धन्धे में और लोग भी शामिल है? पर कौन है पता नहीं, वैसे ये काम पुलिस का है पर आप को पता है कि ये सब पुलिस के ही बल से होता है । अब देखना है कि परदे के पीछे के लोगों को बाहर लाया जाता है या फिर वही की ये अपने पैसे के दम पर फिर पाक साफ रह जायेंगे अगर हम प्रशासन की बात मानें की सच्चाई सामने आयेगी तो हो सकता है कि उन मासूमों को न्याय मिल सके तथा उनकी मुस्कान वापस देखने को मिले जिसकी सम्भावना बहुत कम ही है क्योंकि पुराने आकड़े हमें विश्वास न करने पर मजबूर करते है।