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Saturday, September 8, 2007

आतंकवाद का वैश्वीकरण


९‍‍ और ११ सितम्बर की घटना को भूलना चाहता है पूरा विश्व। पर हाल ही में टी वी और अखबारों की खबरें बीती हुई घटनाओं के दृश्य को सजीव कर देती है । चाहे वो ब्रिटेन में ग्लासगो हवाई अड्डे पर हमला हो या भारत में हैदराबाद की मसजिद पर बम विस्फोट या फिर अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेट टावर पर हमला । सभी त्रस्त है इस बीमारी से।
बात पाकिस्तान की , की जाय जो कि जन्मदात एवं पालन पोषण का केन्द्र रहा है आतंकवाद का। वह भी अछूता नही रहा है इससे। अभी हाल ही के बीते दिनों में रावलपिडीं में जिस तरह से रक्षा कर्मियों पर हमला किया गया उसमें करीब ५० लोग को जान से हाथ धोना पड़ा था । साथ ही लाल मसजिद पर कार्यवाही को भी देखा जा सकता है । पाकिस्तान भी त्रस्त है इस समस्या से ,कैसे छुटकारा पाया जाय?
अमेरिका ने अफगानिस्तान में तालिबान पर जिस उद्देश्य से हमला किया था वह मात्र उसके हथियारों का दिखावा मात्र साबित हुआ । और कुछ भी नही। अमेरिका ने पैसे को पानी की तरह बाहाया ।इसका एक फायदा केवल यही हुआ की वह विश्व मे अभी सर्व शक्तिशाली है।
हाल ही में ओसामा बिन लादेन का नया वीडियो टेप जारी हो रहा है जिसमें ९ और ११ की घटनाओं की पुनरावृत्ति होने की बात कही है।
ऐसे में एक बात का खतरा पूरे विश्व पर मडराने लगा है कि यह कब, कहाँ और कैसे होगा इसका पता नहीं। परन्तु सतर्कता ही बचाव हो सकता है। आतंक का वैश्वीकरण हो गया है ।यह अन्तर राष्टीय समस्या के रूप में व्याप्त है और इससे कोई भी देश बचा नही है। अब कैसे छुटकार पाया जा सकता है इससे। निर्दोष लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ता है और फिर सरकार द्वारा निंदा के मात्र दो शब्द के अलावा कुछ नहीं होता है और इसी ही फुरसत भी मिल जाती है।
अगर खासतौर पर भारत की बात करें तो यहाँ पर आतंकवाद की जड़ जिस तरह से अपनी को पकड़ मजबूत कर रहा है उससे भविष्य में भयानक हादसे होने के आसार नजर आते हैं। चाहे माओंवादी हो या फिर आतंकवादी। हमले भारत को कमजोर कर रहे हैं। हाल ही में असम में हिन्दी भाषियों की जिस तरह से निर्मम हत्या की हई वह बहुत ही दुखद बात है परन्तु केन्द्र सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी रही तथा इसमे कोई विशेष रूचि नही दिखाई। आखिर कब तक हाथ पर हाथ धरे इस तरह की घटनाओं को होते देखते रहेगे?

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