करता हूँ तेरे खत का इंतजार आज भी
उतनी ही बेसब्री से,
जितना की प्यार की पहली सीढी की शुरूआत करते हुए किया करता था।
खत पर लिखी तुम्हारे दिल की एक -२ बात को पढ़कर,
हंसना, मुस्कराना, खिलखिलाना ,
अच्छा लगता था मुझे।
पर
अब नहीं आते है खत तेरे,
शायद डाकिया ही भूल गया है घर मेरा।
आज भी याद है मुझे ,
डाकिये का वो पुकारना -
बाबू जी डाक लाया हूँ,
और मेरा उससे झपट कर जल्दी -२
खत खोल कर सारी बातें एक सांस में पढ़ जाना ,
और फिर उस खत को देर तक निहारना ।
फिर कई बार उसी खत को पढ़ना,
एक -एक लाइनों को कई -२ बार पढ़ना,
न जाने क्या ढूढता था उन लाइनों में,
पता नहीं?
पर अच्छा लगता था,
यूँ पढ़ना और सोच -२ कर खुश हो जाना।
पर
अब ऐसा कुछ नहीं होता।
निहारता हूँ बार - बार उन विरान गलियों को,
न जाने कितनी बार पूछता हूँ उससे -
कि कोई खत तो नही आया है मेरा?
पर वही उत्तर -नहीं
नहीं आया।
फिर वही उदासी लिये इंतजार करता हूँ,
एक नयी सुबह की जिसमें कि उम्मीद होती है , उमंग होती है,
कि शायद आज मैं कामयाब हो जाऊगा। पर
वो आज कब आयेगा पता नहीं ;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;
उतनी ही बेसब्री से,
जितना की प्यार की पहली सीढी की शुरूआत करते हुए किया करता था।
खत पर लिखी तुम्हारे दिल की एक -२ बात को पढ़कर,
हंसना, मुस्कराना, खिलखिलाना ,
अच्छा लगता था मुझे।
पर
अब नहीं आते है खत तेरे,
शायद डाकिया ही भूल गया है घर मेरा।
आज भी याद है मुझे ,
डाकिये का वो पुकारना -
बाबू जी डाक लाया हूँ,
और मेरा उससे झपट कर जल्दी -२
खत खोल कर सारी बातें एक सांस में पढ़ जाना ,
और फिर उस खत को देर तक निहारना ।
फिर कई बार उसी खत को पढ़ना,
एक -एक लाइनों को कई -२ बार पढ़ना,
न जाने क्या ढूढता था उन लाइनों में,
पता नहीं?
पर अच्छा लगता था,
यूँ पढ़ना और सोच -२ कर खुश हो जाना।
पर
अब ऐसा कुछ नहीं होता।
निहारता हूँ बार - बार उन विरान गलियों को,
न जाने कितनी बार पूछता हूँ उससे -
कि कोई खत तो नही आया है मेरा?
पर वही उत्तर -नहीं
नहीं आया।
फिर वही उदासी लिये इंतजार करता हूँ,
एक नयी सुबह की जिसमें कि उम्मीद होती है , उमंग होती है,
कि शायद आज मैं कामयाब हो जाऊगा। पर
वो आज कब आयेगा पता नहीं ;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;
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