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Thursday, September 27, 2007

'जग मामा'

मोटा चश्मा, कमर है टेढी
टुक-टुक करके चलते हैं।
हाथ में हरदम छडी है रहती
उन्हें 'जग मामा' कहते है।।
भेशभूषे पर ध्यान न देना,
ऐसा उनका कहना है।
जोकर जैसी लम्बी टोपी,
लम्बा कुर्ता पहना है।।
मुहँ है दातों से खाली,
और सुनाई नहीं देता।
जब भी उनसे बात करों,
सिर 'हां' मे हिलता रहता ।।
चाटे जब भी मुह कुत्ता,
उनको पता नही होता ।
बकरी आ कर कुर्ता खा जाती,
उनको खबर नही हो पाती।।
ऐसे है अपने 'जग मामा'
रहते हैं हमेशा हँसते ।
बच्चों से उनको बहुत प्यार,
रोज नई कहानी कहते ।।

लेखक-

शशि श्रीवास्तव
मो-९९६८१५१४०५
ईमेल-para_shashi@yahoo.com

2 comments:

Pramendra Pratap Singh said...

बहुत बढि़यॉं बधाई।

गिरिराज जोशी said...

बहुत सुन्दर!

बच्चों के लिये प्रयास किये जाने की बेहद आवश्यकता है, आप बधाई के पात्र हैं।

मेरा आपसे निवेदन है कि इसे बच्चों तक पहुँचाने का यथासंभव प्रयत्न कीजिये।

भविष्य में भी बाल रचनाओं की प्रतिक्षा रहेगी।

सस्नेह,

गिरिराज जोशी "कविराज"