अपने लिए तो सब जीते हैं।
आओं जियें उनके लिए जो जी कर भी मरें से हैं।
जाओ पास उनके दो सहारा,
दो पग चलने का।
दो विश्वास ,
दो बात बोलने का।
और
बाटों प्रेम भाई चारे को।
माना कि कठिन है ,
हवा के विपरीत चलना,
मुश्किल है रीति को बदलना,
पर
कब तक धरे रहोगे हाथ पे हाथ,
अरे देखो वह- सडक पर जो जा रहा है छोटा सा लडका।
दो लाठियों हे सहारे,
अपनी मंजिल की तरफ।
क्या हार मानी उसने?
नही न।
तोफिर तुम कैसे हार गये?
अरे जागृत करो सोये हुए मानव को
और
जागृत करो मानवता को,
जो कि सो रही है न जाने कब से?
अस्तित्व को पहचनों अपने।
और जियों उनके लिए जो जी कर भी मरे से है।
जरूरत है तुम्हारी उनको,
जागो और जियो उनके लिए।
क्योंकि अपने लिए तो सब ही जीते है तुम जियों उनके लिए।
2 comments:
सुन्दर भाव और प्रेरणादायक रचना. बधाई.
अच्छी रचना है नीशू जी।
आप तो मशीन की तरह :) हर दिन कुछ न कुछ नया लिखते रहते हैं। इतनी ऊर्जा। आखिर यह ऊर्जास्रोत है कहाँ ? :)
एक सुंदर और प्रेरणादायक रचना के लिए बधाई स्वीकारें।
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