जन संदेश

पढ़े हिन्दी, बढ़े हिन्दी, बोले हिन्दी .......राष्ट्रभाषा हिन्दी को बढ़ावा दें। मीडिया व्यूह पर एक सामूहिक प्रयास हिन्दी उत्थान के लिए। मीडिया व्यूह पर आपका स्वागत है । आपको यहां हिन्दी साहित्य कैसा लगा ? आईये हम साथ मिल हिन्दी को बढ़ाये,,,,,, ? हमें जरूर बतायें- संचालक .. हमारा पता है - neeshooalld@gmail.com

Thursday, September 27, 2007

जरा याद इन्हें भी कर लो ।भगत सिह


शहीदों की चिताओं पर लगेगें हर बरस मेले,
वतन पर मरनें वालों का यही बाकी निशा होगा।
भारत उस समय ब्रिटिश हुकूमत के आधीन हुआ करता था । जब एक ऐसे व्यक्तित्व का जन्म पंजाब के लायलपुर जिले के बंग गांव में २७ सितम्बर १९०७ में हुआ। परवरिश स्वतन्त्रता संग्रामियों के बीच हुई तो सम्भव था कि भगत सिह भला कैसे अछूते रह जाते ।भगत सिह के पिता सरदार किशन सिहं जी खुद एक स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी थे और कई बार वो जेल भी गये। भगत सिह ने अपने २४ साल के जीवन काल में ब्रिटिश हुकूमत की दीवारें दहला दी। शुरू से ही क्रान्तिकारी विचार धारा के थे ।और स्वतन्त्रता के लिए हो रहे आन्दोलन ने भगत सिह को
इस के लिए प्रेरित किया। १३ अप्रैल १९१९ जलिया वाला बाग काण्ड एक ऐसी ही घटना थी।
भगत सिहं का युवा व्यक्तित्व हमेशा इस बात के लिए उन्हें प्रेरित करता कि हमें स्वतन्त्रता मिलनी चाहिए और हम इसको हासिल करके रहेंगे।अग्रेजो के द्वारा किये जा रहे अत्याचार ने उन्हें स्वतन्त्रता आन्दोलन में उतरने को मजबूर किया । भगत सिहं ने उस समय के क्रान्तकारियों चन्द्रशेखर आजादकी हिन्दुस्तान रिपब्लिक आर्मी में शामिल हो गये और नियमित रूप से अपने आप को झोक दिया।१९२९ में भगत सिहं ने और राजगुरू ने जनरल असेम्बली के बीचों बीच बम फेंक कर अपनी स्वातन्त्रता के इरादे स्पष्ट कर दिये तब फिर भगत सिह को गिरफ्तार कर लिया गया और उनके खिलाफ ब्रिटिश सरकार ने आतंकवादी गतिविधियों में संलिप्त होने काआरोप लगा कर मुकदमा चलाया और अततः फासी देने का आदेश दिया जिसे भगत सिह जी ने फुलों कि माला समझ कर गले में डाल लिया।भगत सिह सुखदेव और राजगुरू को भले ही फासी मिली पर क्या जो उनकी जो भावनाए थी व जो सोच थी उसको दबा सके । नही कभी भी नही बल्कि भगत सिह ने जान बूझकर ही खुद बम फेकने का फैसला किया था जिससे उनकी बात पूरे भारत में फैल सके। ।
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,
देखना है जोर कितना बाजू -ए- कातिल में है,
इन्कलाब जिन्दाबाद।
यही रहें थे आखिरी इस वीर जवान के।
शत-शत नमन

1 comment:

Udan Tashtari said...

शत शत नमन!!!