क्यों आती है तुम्हारी याद
मैं तो भूलना चाहा था हमेशा तुमको,
कोशिश भी की
थी पर भूल ना पाया
कोई दिन ,कोई रात नहीं ऐसी कि
याद ना आयी हो तुम्हारी।
तुम्हारे साथ बीते वो लम्हें,
और उन लम्हों की यादें आज भी ताजा है मेरे मस्तिष्क पटल पर,
कैसी मुस्कराती थी तुम,
कैसी इठलाती थी तुम,
वो खिलखिलाकर हंसना, और फिर झट से किसी बात को लेकर रूठ जाना,
और मेरे एक बार मनाने पर झट से मान जाना।
तुम्हारी वो नशीली नजरों से मुझे निहारना और मेरे एक बार तुम्हारी तरफ देखने पर,
वो शर्माकर नजेरें हटा लेना।
कितनी माशूमियत थी उन आखों में,
कितना प्यार था।
जब मिले थे आखिरी बार हम दोनों कुछ पल के लिए , और
खायी थी साथ कसमें साथ जीने -मरने की,
तुम्हारा वो मुझसे लिपटना और फिर बिछड़ना
न जाने कब तक के लिए ?
वो मुझे दिखाने के लिए होठों पर झूठी मुस्कान लिए मुस्कराने की कोशिश करती रही थी तुम;;;;;;;;;;;
पर कामयाब न हो सकी थी,
मैने जाना था तुमको,
जानता था तुम्हारी भावनाएं, तुम्हारी इच्छाएं,
पर मजबूर था उसकी कसमों के आगे जो दिया था तुमने।
अब भूलना चाहता हूँ,
पूछता हूँ अपने आप से ही कि
क्यों याद आती है तुम्हारी याद ?
5 comments:
भाव बहुत बेहतरीन हैं, कोई शक नहीं.
बस, जरा शिल्प पर गौर करें अगर अन्यथा न लें:
पहले आपने हमसे बात की...फिर उससे करने लगे और फिर हमसे....समरुपता आवश्यक है वरना बिखराव आ जाता है.
वैसे तो आप अच्छा लिखते हैं शायद मैं ही गलत समझा हूँ मगर फिर भी अपनी समझ लिख दी. पढ़कर मिटा दिजियेगा मेरी टिप्पणी. मुझे बुरा नहीं लगेगा,,,बस अपना समझा तो कह दिया.
लिखते रहें, हम इन्तजार करेंगे. आपके भावों में दम है, दाद देता हूँ.
अच्छा प्रयास है, किन्तु शब्दों के संयोजन पर ध्यान नही है। भटकाव से बचें।
बढ़िया हो गई, चाहो तो पहली टिप्पणी मिटा दो.
बहुत सुन्दर !
घुघूती बासूती
please yaar change the pic its a request please dont mind ok
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