जन संदेश

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Monday, January 25, 2010

वीर शहीद- कविता

"साख से टूट जायें वो पत्ते नहीं हैं हम ,
आंधियों से कह दो कि औकात में रहा करे।।"



गर्व है उन पर राष्ट्र को,
जो आज प्राप्ति हैं वीरगति को,

गूंजती है तालियां नाम पर उनके,

आखें छलकती हैं साहस पर उनके।



क्या
जोश था इन वीरों का ?
जो सामने से ये लड़े,

न खौफ था मौत का ,

न डरे लड़ते रहे ,
अन्तिम सांस तक ,
वीरता के साथ ही,
वीरगति को प्राप्ति की।।
उल्लास है, हर्ष है

खामोश सा हवाओं में
दर्द तो है हमें ,
ये शहीद
और गर्व है भारती को ,
कारनामा जो तुमने किया,

शत-शत नमन करता है भारत ,

जो ऐसे बेटों को जन्म दिया ।।



शहीदों को समर्पित

Friday, January 22, 2010

बिकनी पर राजनीति की रोटी क्यों सेकते हो नेता जी ?


समाज में संस्कृति को लेकर कसीदे हमेशा ही पढ़े जाते हैं । भारतीय होने के नाते हम भी इस पर खुली बहस कर सकते हैं (बिना राजनीति के ) । समाज की दृष्टि में सभी नागरिक समान हैं और इसलिए किसी एक ( सत्ताधारी ) को यह अधिकार नहीं कि वह अपना निर्णय सभी पर थोपे । मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री ने एक महाविद्यालय
( जिसमें उनकी लड़की पढ़ती हैं ) के सामने लगे हुए विज्ञापन को इसलिए हटाने का आदेश दिया क्योंकि उन्हें वह अश्लील लगा । साथ संस्कृति बचाओ मंच ने अन्तःवस्त्र की दुकानों पर भी तोड़ फोड़ की जिसमें सरकार की भी सहभागिता नजर आती है । इस मंच ने यह ऐलान भी किया कि ऐसे विज्ञापन से संस्कृति को खतरा है । दुकानदारों को बिकनी पहने हुए पुतलों को हटाने की भी चेतावनी दे डाली जो उत्पात मचाया सो अलग ।

भारतीय समाज में अन्तः वस्त्र को लेकर जिस तरह से बवाल हो रहा है यह कोई नयी बात नहीं । साथ ही महिलाओं को पहनावे के लिए हमेशा रोक टोक की जाती है, कि ये पहनें......वो न पहनें वर्ना इज्जत खतरे में पड़ जायेगी । लेकिन पुरूषों पर यह बात शायद इसलिए नहीं लागू होती क्योंकि सामाजिक संरचना में पुरूषवादी समाज है । कोई पुरूष यदि लगोटे में रहता है तो वह साधु , महात्मा बन जाता है और यहां पर विज्ञापन भी लग जाये तो संस्कृति को खतरा हो जाता है। हमारे यहां कई कुंभ मेले होते हैं ......जिसमें कई लोगों को नंगा देखा जा सकता है और वह भी तब जब वहां हमारी मां , बहनें , और बहुएं गयी हो । तो क्या यहां पर सब कुछ सही हो रहा है ?
अब बात बाजार की करें तो अन्तःवस्त्र की दुकानों पर भी जरूरी नहीं है कि महिलाएं ही दुकान चलाती हो ... वहां पर एक आदमी भी हो सकता है और ऐसे में एक महिला बिकनी या ....? की मांग करती है तो समाज खतरे में पड़ जाता है । एक और बात देखें कई पुरूष भी ऐसे हैं जो महिलाओं कि जरूरतों के ये कपड़े दुकान पर खरीदते मिल जायेंगें .........तो क्या यहां पर यह कहा जाय कि अब संस्कृति को खतरा है ?

इसलिए मेरा मानना है कि अन्तःवस्त्र से सजे विज्ञापनों को तोड़ने से समाज को जरूर खतरा है । न कि इनके पहनने और बेचने से ।
बिकनी पर राजनीति की रोटी क्यों सेकते हो नेता जी ?



चित्रः गूगल से आभार

Tuesday, January 19, 2010

प्रतियोगिता आयोजित

हिन्दी साहित्य मंच "चतुर्थ कविता प्रतियोगिता" मार्च माह में आयोजित कर रहा है। इस कविता प्रतियोगिता के लिए किसी विषय का निर्धारण नहीं किया गया है अतः साहित्यप्रेमी स्वइच्छा से किसी भी विषय पर अपनी रचना भेज सकते हैं । रचना आपकी स्वरचित होना अनिवार्य है । आपकी रचना हमें फरवरी माह के अन्तिम दिन तक मिल जानी चाहिए । इसके बाद आयी हुई रचना स्वीकार नहीं की जायेगी ।आप अपनी रचना हमें " यूनिकोड या क्रूर्तिदेव " फांट में ही भेंजें । आप सभी से यह अनुरोध है कि मात्र एक ही रचना हमें कविता प्रतियोगिता हेतु भेजें ।

प्रथम द्वितीय एवं तृतीय स्थान पर आने वाली रचना को पुरस्कृत किया जायेगा । दो रचना को सांत्वना पुरस्कार दिया जायेगा ।प्रथम पुरस्कार - रूपये एक हजार , द्वितीय पुरस्कार - रूपये पांच सौ , तृतीय पुरस्कार - रूपये तीन सौ । साथ ही दो कविता को हिन्दी साहित्य मंच की तरफ से सांत्वना पुरस्कार दिया जायेगा । हिन्दी साहित्य मंच की तरफ से एक
प्रशस्ति पत्र भी प्रदान किया जायेगा


सर्वश्रेष्ठ कविता का चयन हमारे निर्णायक मण्डल द्वारा किया जायेगा । जो सभी को मान्य होगा ।
आइये इस प्रयास को सफल बनायें । हमारे इस पते पर अपनी रचना भेजें -
hindisahityamanch@gmail.com .आप हमारे इस नं पर संपर्क कर सकते हैं-
09818837469, 09891584813,

हिन्दी साहित्य मंच एक प्रयास कर रहा है राष्ट्रभाषा " हिन्दी " के लिए । आप सब इस प्रयास में अपनी भागीगारी कर इस प्रयास को सफल बनायें । आइये हमारे साथ हिन्दी साहित्य मंच पर । हिन्दी का एक विरवा लगाये जिससे आने वाले समय में एक हिन्दीभाषी राष्ट्र की कल्पना को साकार रूप दे सकें ।

Saturday, January 16, 2010

अतुल्य भारत से सेक्स टूरिजम तक


देश से गायब होने वाले नाबालिक बच्चों के खरीदफरोख्त की समस्या बहुत ही विकराल है इन बच्चों को राज्य से दूसरे राज्य अथवा पड़ोसी देशों में बेच दिया जाता है इन बच्चों को सेक्स वर्कर के रूप में इस्तेमाल किया जाता है आकड़ों की माने तो ७० फीसदी से अधिक सेक्स वर्कर बच्चे ही है बच्चों को अगवा होने की घटनाएं तेजी से अपना पैर पसार रही हैं। जिससे वेश्यावृत्ति और सेक्स टूरिजम का व्यापार व्यापक हुआ है

कानूनी दांव पेच की बात की जाय तो आईपीसी की धारा ३७६ ( ब्लात्कार ) के तहत इनके आरोपियों को सबक मिल सकता है जबकि ऐसा होता बहुत ही कम है किसी भी बच्चे से सेक्स करने वाले तथा वेश्यावृत्ति की तरफ ढ़केलने वालों को ऊपर धारा ३७६ के अन्तर्गत मामला दर्ज होना चाहिए

सामाजिक रूप से इस विषय को देखा जाय तो सभ्य समाज में अवैध व्यापार और वेश्यावृत्ति किसी प्रकार से स्वीकार्य नहीं है पर फिर भी देश में सेक्स वर्कर और वेश्यावृत्ति का बाजार बढ़ा है इस समस्या का कोई हल हो सकता है क्या ? वेश्यावृत्ति के मामले का जब कभी खुलासा होता है तो सामाजिक दबाव के चलते पारिवारिक लोग अपने बच्चे को स्वीकार नहीं करते हैं ऐसी समस्या को मात्र कानून से नहीं बल्कि सामाजिक ढ़ाचे के अनुसार स्वीकार करना होगा


" अतुल्य भारत " से भारतीय टूरिजम को बहुत फायदा हुआ है साथ ही साथ सेक्स टूरिजम के माध्यम से ऐसे नाबालिक बच्चों का शोषण भी हुआ है जिसका वर्तमान में हल नहीं नजर आता है इस बुराई के पीछे क्या समाज को दोषी करना गलत है ? जिसमें परिजनों को अपने बच्चे को स्वीकार करना भी एक गुनाह है आखिर इन बुराईयों से कैसे निपटा जाय जब अपने ही हाथ पीछे खींच लेते हैं ।।

चित्रः गूगल से आभार

Friday, January 15, 2010

संस्कृति के बहाने राजनीति में तानाशाही कितनी जायज ?

राजनीति के बल पर कुछ भी किया जा सकता है क्या ? और वह भी तब जब सत्ता आपके हाथ में हो । भारतीय परिपेक्ष में यह बात तो हम सभी को आये दिन देखने , सुनने और पढ़ने को मिल ही जाती है । लोकतंत्र में तानाशाही का समावेश देखना हो तो हमें भारत से कहीं बाहर जाने की जरूरत ही क्या है ? अब आते हैं मुख्य मुद्दे पर ......भारतीय संस्कृति विश्व भर में अपनी विविधता के लिए जानी जाती है । और इसी संस्कृति पर हमें गर्व भी होता है जो हमें दुनिया के सभी देशों से भिन्न बनाती है । संस्कृति और धर्म को परस्पर एक दूसरे से जोड़कर देखा जाता है । भारतीय संस्कृति को बचाये रखने के लिए देश में कई नामी-गिरामी संगठन भी काम कर रहे हैं । ये संगठन संस्कृति को बचाने को लेकर कुछ भी नष्ट करने पर भी उतारू हो जाते हैं । जैसा कि अभी मध्य प्रदेश में हुआ है । संस्कृति बचाओ संगठन ने खूब जी भरकर तोड़ फोड़ की और सरकार हाथ पर हाथ धरे हुए मूक बनी रही । कई बार आम जनता को अपनी जान भी गंवानी पड़ती इन संस्कृति के चक्कर में । कोई भी हादसा होने बाद कितना भी पश्चाताप क्यों न कर लिया पर जो घटित हो चुका होता है उसे वापस नहीं लाया जा सकता । अगर पहले ही पहल की जाय तो ऐसे किसी भी संभावित घटना को रोका जा सकता है ।
सरकार को जनता चुनती है अपना प्रतिनिधत्व करने के लिए परन्तु दुख इस बात का होता है कि जन प्रतिनिधि सत्ता को अपने बाप की बपौती समझते हैं । संस्कृति को बचाना और बढ़ाना हम सभी का दायित्व है लेकिन किसी की जान लेकर नहीं और बिना कुछ तहस-नहस किये हुए । कुछ संगठन संस्कृति के बचाव हेतु किये लगे ऐसे कार्य को सही मान सकते है मगर यह पूर्णतः गलत है । भारतीय संस्कृति में पहनावे और दिनचर्या को लेकर सदैव लड़कियों और महिलाओं को दोषी करार दिया जाता है । सभी अपने अपने तर्क देते हैं लेकिन इनको ही दोष देकर हम संस्कृति को बचा लेगें क्या? बदलाव को स्वीकार करना होगा और समय की गतिशीलता के अनुसार कार्य करना ही हमारा सर्वोच्च प्रयास हो सकता है । किसी को प्रताड़ित और डरा धमका कर बदलाव नहीं किया जा सकता है । सरकार अपनी जिम्मेदारियों से किसी प्रकार अपना मुंह नहीं मोड़ सकती है । जनता की सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी होगी । समाज में किसी तरह के उपद्रवियों बक्शा नहीं जाना चाहिए

Thursday, January 14, 2010

देश अहम है या पैसा ?

देश के राष्ट्रीय खेल हाकी की दुर्दशा से सभी वाकिफ और हताहत है । ऐसे में खिलाड़ियों और हाकी इण्डिया का विवाद उत्पन्न होना वाकई बहुत ही दुखद है । और वह भी तब जब कि हाकी विश्व कप शुरू होने में कुछ ही महीने बचे हैं । खिलाड़ियों द्वारा पैसा न मिलने पर पुणे कैंप से बहिष्कार करना बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है । ऐसे में कई सवाल का उठना स्वाभाविक है । भारतीय हाकी अपने स्वर्णिम इतिहास के आज आस पास भी नजर नही आती ऐसे में अभ्यास का बहिष्कार करना कितना जायज है ?


दूसरा अहम सवाल यह है कि देश अहम है या पैसा ?

तीसरा सबसे मुख्य सवाल यह कि आखिर जब पेट भूखा हो तो देशभक्ति कैसे आ सकती है ? यानि हाकी इण्डिया ने ऐसी स्थिति ही क्यों उत्पन्न होने दी? जबकि हम खुद ही विश्व कप के आयोजक हैं । बागी हाकी खिलाड़ी ने मौके की नजाकत को देखते हुए बगावत के लिए अपनी आवाज बुलंद की , जबकि ऐसे मामलों को अभ्यास सत्र के दौरान उठाना किसी भी तरह से ठीक तो नहीं कहा जा सकता है ? खिलाड़ियों की मांग को देखा जाय.... यह गलत नहीं कहा जा सकता है पर यह मांग गलत समय पर जरूर उठायी जा रही है । आपसी बातचीत से भी यह मसला सुलझाया जा सकता था , जबकि हमारे पास समय कम है हाकी विश्व कप को देखते हुए ।


दूसरे अहम सवाल को देखा जाय कि देश अहम या पैसा ? इसमें किसी को जरा भी शक नहीं होगा कि देश ही सर्वोच्च है और पैसा द्वितीयक है । हाकी टीम के सदस्य निचले तबके से आये हैं ऐसे में पैसा भी बहुत अहम है पर यहां प्राथमिकता देश को देने की जरूरत थी जबकि ऐसा नहीं हुआ । खिलाड़ियों का प्रदर्शन मात्र उनका खुद का प्रदर्शन न होकर उस देश का भी प्रदर्शन होता है । ऐसे में अरबों भारतीयों के लिए यह विश्व कप सम्मान और प्रतिष्ठा का विषय है । जबकि हाकी इण्डिया ने यह कहा कि खिलाड़ी अभ्यास सत्र में हिस्सा लें ७ फरवरी को होने वाले चुनाव के बाद हम खिलाड़ियों की मांग मान लेंगें


तीसरा सवाल - जब पेट भूखा हो तो देशभक्ति क्या खाक करेंगें ? खिलाड़ियों की दैनिक दिनचर्या का भी पैसा यदि हाकी इंडिया न दे और यह कहे कि अभी हमारे पास पैसा नहीं है तो यह तर्क संगत नहीं कहा जा सकता है । खिलाड़ियों को मूलभूत सुविधाएं यदि न दी जाय तो उनसे किसी चमत्कार की उम्मीद भला किस आधार पर कर सकते हैं। इस समय तो जरूरत इस बात की थी कि खिलाड़ियों को उनकी सभी जरूरतों को बिना कहें ही उपलब्ध करा कर उनके मनोबल को बढ़ाना था.... जैसा कि नहीं हो रहा है । अन्तःकलह की स्थिति में हाकी टीम से भला पदक की उम्मीद कैसे की जा सकती है ?जबकि खिलड़ियों का आत्म विश्वास खुद अपनी व्यवस्था ही गिरा रहा है ।हाकी इंडिया की प्रतिक्रया भी सकारात्मक नहीं कहा जा सकती है । अन्ततः मामला सुलझना सुखद है उम्मीद करें की ऐसी स्थिति भविष्य में न आये । और हमारे खिलाड़ी अपने खेलका बेहतर प्रदर्शन करें ।