जन संदेश

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Thursday, October 23, 2008

इन दिनों लखनऊ में...........................मैं

लखनऊ में आगमन और फिर एक नयी सुबह । अच्छा मौसम होने के साथ ही साथ ट्रेन का सफर काफी सुखद अनुभूति करा रहा था । लखनऊ आगमन का प्रस्ताव मेरे मित्र और खुद की इच्छा पर हुआ। इस भागदौड़ भरी जिंदगी में आजकल समय ही नहीं बाकी सब कुछ है । तो सोचाकि इन दीवाली की छुट्टीयों को पुराने मित्रों के साथ गुराजा जाय । कई सालों के बाद जब पुराने दोस्तो से मुलाकात हुई तो कुछ पुरानी यादें ताजा हो गई । वैसे लखनऊ मैं पहली ही बार घूम रहा हूँ । आज का प्लान हजरतगंज में स्थित सहारा माल का हुआ । पूरा दिन बातों में गुजरा और कुछ समय सोने के बाद । शाम का समय ,हलकी हवा के झोंको के साथ पुरानी यादें ताजा हो रही थी । दिल को बहुत सुकून मिल रहा था ।
लखनऊ का हजरतगंज यहांकी जान कहा जा सकता है । काफी कुछ पुराने नवाबी सलीके का दर्शाता हुआ एक जीवंत तस्वीर पैदा करता है । सड़के साफ सुथरी और खाली । लोगों का आवागमन बहुत ही शान्त महौल में । हजरतगंज का इलाका मेरे लिए आकर्षण का केन्द्र रहा । चारों तरफ हरियाली और साऐ सफाई बहुत ही अच्छी लगी । कभी लखनऊ आये तो यहां हजरतगंज और सहारा माल का आनन्द जरूर लें । जो बहुत ही सस्ता और आनन्दित करने वाला है । समय कम है पर लिख रहा हूँ अब आगे का सफर इलाहाबाद का है वैसे तो इच्छा और भी जगह घूमने की है पर समय आभाव होने के कारण भविष्य पर छोड़ता हूँ ।

Tuesday, October 21, 2008

हौसला रखना

मुश्किल है हवा के विपरीत चलना

मुश्किल है रीति को बदलना


आसान नहीं होता कुछ भी जिंदगी मे

बस कदम आगे बढ़े ये हौसला रखना ।।

एक कविता -" मरा हुआ इंसान "


मरा हुआ इंसान
कितना शांत लगता है
चेहरे का पीलापन
सूरज की पहली किरण
सा दिखता है
शरीर
शांत मूरत लगता है
मृत्यु अन्त है
इंसान का
पर
एक नयी शुरूआत
सा लगता है
मुंह की स्थिरता से
एक योगी सा दिखता है
मरा हुआ इंसान
कितना सुंदर दिखता है ।

Monday, October 20, 2008

" लैम्पपोस्ट "


सड़क के किनारे का
वो लैम्पपोस्ट
कितना बेबस लगता है
आते-जाते लोगों को
चुपचाप देखता है
अपनी रोशनी से
करता है रोशन शामों-शहर को
और
खुद अंधेरा सहता है
कपकपाती ठंड
सर्द हवा
कोहरे की धुध
कुत्ते की भौंक
सोया हुआ इंसान
यही साथी है उसके
शांत ,निश्चल
पर
आत्म विश्वास से भरा हुआ
खड़ा रहता है वह हमेशा
इंसान की राहों को
रोशन करने
खुद को जलाकर
कितना निःस्वार्थ
निश्कपट
निरछल
भाव से
करता है समर्पण
दूसरों के लिए ।

Sunday, October 19, 2008

मेरा काव्य - " महसूस करता हूँ "


महसूस करता हूँ उसके
दिल का धड़कना
सांसों का बढ़ना
आखों का झुकना
हौले-हौले शर्माना
बिन बात मुस्कराना
महसूस करता हूँ
उसका दर्द
उसका स्पर्श
उसका एहसास
उसका प्यार
महसूस करता हूं
उसकी कमी
उसकी हंसी
उसकी आवाज
उसकी आहट ।

Saturday, October 18, 2008

गुरू -चेला संवाद " मैं हिन्दू हूं"


१- गुरू -चेला संवाद
चेलाः गुरूजी, क्या हमारे देश के मुसलमान विदेशी हैं ?
गुरूजीः हां,शिष्य वे विदेशी हैं ।
चेलाः वे कहां से आएं हैं?
गुरूः वे ईरान , तूरान और अरब से आए हैं।
चेलाः लेकिन अब वे कहां के नागरिक हैं ?
गुरूः भारत के ।
चेलाः वे कहां की भाषाएं बोलते हैं?
गुरूः भारत की भाषाएं बोलते हैं।
चेलाः रहन -सहन और सोच-विचार का तरीका किस देश के लोगों जैसा है ?
गुरूः भारत के लोगों जैसा है ।
चेलाः तब वे विदेशी कैसे हुए गुरू जी ?
गुरूः इसीलिए हुए कि उनका धर्म विदेशी है।
चेलाः बौद्ध धर्म कहां हा है गुरू जी?
गुरूजीः भारतीय है शिष्य ।
चेलाः तो क्या चीनी , जापानी , थाई और बर्मी बौद्धों को भारत चले आना चाहिए ?
गुरूः नहीं.........नहीं शिष्य; चीनी ,जापानी और थाई यहां आकर क्या करेगें ?
चेलाः तो भारतीय मुसलमान ईरान,तूरान और अरब जाकर क्या करेंगें?

२-गुरू-चेला संवाद
गुरूः चेला , हिन्दू-मुसलमान एक साथ नहीं रह सकते ।
चेलाः क्यों गुरूदेव?
गुरूः दोनों में बड़ा अन्तर है?
चेलाः क्या अन्तर है?
गुरूः उनकी भाषा अलग है........हमारी अलग है ।
चेलाः क्या हिन्दी ,मराठी, कश्मीरी ,सिन्धी, गुजराती ,मलयालम ,तमिल ,बंगाली आदि भाषाएं मुसलमान नहीं बोलते ....
वे सिर्फ उर्दू बोलते हैं?
गुरूः नहीं....नहीं , भाषा का अंतर नहीं है .....धर्म का अंतर है।
चेलाः मतलब दो अलग-अलग धर्मों के मानने वाले एक देश में नहीं रह सकते?
गुरूः हां........भारतवर्ष केवल हिन्दुओं का देश है।
चेलाः तब तो सिख,ईसाईयों ,जैनियों,बौद्धों ,पारसियों,यहूदियों को इस देश से निकाल देना चाहिए ।
गुरूः हां निकाल देना चाहिए।
चेलाः तब इस देश में कौन बचेगा?
गुरूः केवल हिन्दू बचेंगें.......और प्रेम से रहेंगें ।
चेलाः उसी तरह जैसे पाकिस्तान में सिर्फ मुसलमान बचे हैं और प्रेम से रहते हैं।

हिन्दी साहित्य के मशहूर कहानी कार "असगर वजाहत" की कहानी "कहानी संग्रह" ' मैं हिन्दू हूँ' से साभार

भारत के बच्चे और भिक्षावृत्ति, साकार रूप भारत का , कौन करेगा मद्द इनकी?


भारत में भीख मांगने वालों को आप हर जगह पा सकते हैं। जहां पर इंसान हो सकता है वहां आपको ये हाथ फैलाये हुए , दुआएं देते हुए मिल जाएगें । आपसे कम से कम एक रूपये या इससे अधिक जो आपकी मर्जी देने के लिए आग्रह करते हैं । मेरे साथ भी बहुत बार हुआ पर मुझे दया नहीं आती ऐसे लोगों पर और न ऐसे बच्चों पर । सवाल एक रूपये का नहीं सवाल मेहनत का है । जो बच्चे ऐसी दशा में होते हैं उनके पीछे उनके मां बाप और उनका परिवार दोषी ।और कहीं न कहीं हम भी दोषी हैं कारण यह है जो भीख मागंते है वो तो गलत है ही पर सबसे गलत बात ये कि हम उन्हें पैसे देकर इस काम को करने में उनकी मदद करते हैं।
हमारा इन गरीब बच्चों को पैसे देने की आदत निकम्मा बनाता है , किसी काम को न करने के लिए उकसाता है । दया ही मानवता नहीं । जरूरत है इनको रोजगार , शिक्षा और दो जून की रोटी की ।वैसे भीख मांग कर ये अपनी भूख मिटा लेते हैं पर जीवन की और जरूरत से वंचित रह जाते हैं । कभी मैंने टी वी पर देखा था कि नन्हें बच्चों को किराये पर लेकर भी इस काम को अंजाम दिया जाता है । एक व्यवसाय के तौर पर । इनके पीछे बड़े और दमदार लोगों को हाथ होता है , मिक्षावृत्ति को बिजनेस बना लिया है ।
भारत के नौनिहाल बच्चे जिनको भारत का कल कहते है ।अगर उनके हाथ में किताब की जगह ये कटोरा होगा तो इनके आगे आने वालों बच्चों की कल्पना करना ही भयावह है । सरकार की बात न करें तो बेहतर है क्योंकि वह ऐसी किसी काम को सिर्फ कानून या बयान तक ही रखती है । समाज से लेकर कानून तक सभी अंधे है । हम बातें तो बहुत करते है बदलने की पर किसी बुराई की तरफ कभी देखते तो हैं, पर आंख बंद करके । ऐसी समस्या और भी है । १०९८ टेलीफोन नं है जहां पर कि फोन करके ऐसे बच्चों के बारे में बताया जा सकता है जो कि इसमस्या से पीड़ित है । साथ ही साथ एन जी ओ सरकार की सहायता से कार्य कर रहें हैं वो तो मात्र पैसे कमाने के धंधे के अलावा और कुछ नहीं ।
समस्या गंभीर हल कोई नहीं । करने को बहुत कुछ है पर करे कौन । शुरूआत का दम नहीं है । पहला कदम बढ़ाये कौन ?

Friday, October 17, 2008

मेरा काव्य - "बीच सफर में "

खिलखिलाती नदियाँ , मचलते सागर ,
ऊचाँ आसमान सब कहते हैं जीवन तुम्हारा है,
जिओ इसको भरपूर ।
जीवन के सफर में कभी हार है ,तो कभी जीत,
कभी डरकर न भागो इससे दूर,
समय बदलता है, हालात बदलते हैं,
पर जीवन का मूल नहीं बदलता,
चलते जाना ही जीवन की नियती है,
इसी पर निर्भर सारी परिस्थिती है,
सम्पूर्ण आनन्द यदि लेना है इसका,
तो हालात का सामना करना ही होगा,
जीवन के संग्राम में वही है विजेता,
जिसने इस बात को समझा कि-
जीतने से ज्यादा महत्व रखता है खेल खेलने की भावना,
पूर्ण समर्पण की भावना।

छणिकाएं

१- दिल

दिल के तूफान को किसने देखा,
ये तो सिर्फ आखों का धोखा।
छूना चाहता है समुन्दर चांदको
उठती हुयी लहरों को किसने देखा है।।

२- जीवन के रंग

जीवन के होते हैं कई रंग,
बचपन ,जवानी बुढ़ापे में भी जंग।
ये जंग तो पुरानी है,
जीवन एक अधूरी सी कहानी है,
कहानी को पूरा करने में लगा है इंसान ,
ढ़ूढ रहा है अपने ही पैरों के निशान।।

३- चाहत

पाने की चाहत , खोने का गम।
दुनिया में होते है इतने ही गम।
किसी से नफरत किसी से चाहत,
तनहाई का आलम बड़ा बेरहम।।

मास्टर ब्लास्टर सचिन " सरताज" बने सबसे ज्यादा टेस्ट रन बनाने वाले

मास्टर ब्लास्टर ने आज मोहाली क्रिकेट मैदान पर जैसे ही पन्द्रहवां रन पूरा किया वैसे ही वह दुनिया के नं एक खिलाडी बन गये जिन्होंने ने टेस्ट में सबसे ज्यादा रन बनाये। सचिन को इस कामयाबी के लिए बधाई । इसके पहले यह रिकार्ड ब्रायन लारा के नाम था । वैसे एक बार फिर सचिन शतक से चूक गये ।

Thursday, October 16, 2008

मेरा काव्य - " एक नया जीवन "


खिली धूप मेरे जीवन में ,
आने से तुम्हारे ,
मैं अकेला था ,
जाने से तुम्हारे ,
खामोश थी धड़कन
उदास था ये जीवन ,
आगयी रंगत इसमें,
किया तुमने इसे रौशन ,
आसन नहीं होता खुद को पाना,
राहें थी मुश्किल ,
और था उसी पर जाना ,
हुआ ये खेल किस्मत का ,
जो मिली तुम,
आसान है कुछ भी अब ,
मुमकिन कर पाना ,
ढूढ़ता था एक अजनबी साथी मैं,
इस जमाने में
जाने कहां से आयी तुम ,
मेरे जीवन को करने रोशन ,
पाया है मैंने तुममें ही
एक नया जीवन ।

चौथी बार आया बुकर भारत में - अरविंद अडिगा के उपन्यास " द वाइट टाइगर " को


ब्लागर समूह जब किसी चर्चा के पीछे पड़ता है जो भी चिट्ठों की भीड़ सी हो जाती है । मैंने बहुत ब्लाग देखे कि कुछ इस बारे (बुकर पुरस्कार से संबधित ) पर निराशा ही हाथ लगी । कहीं कोई चर्चा नहीं । दुख हुआ तो सोचा कि मैं ही कुछ थोड़ा बहुत प्रयास करता हूँ ।
भारतीय साहित्य ने हमेशा से अपना दबदबा कायम रखा है विश्व जगत में । चाहे वो हमारे रामायण की बात हो या फिर हमारे वेदों की । साहित्य में बहुत कुछ है । जीवन में बदलाव और कुछ नया सीखने के लिए तथा जीवन को सुखमय और आनन्दमय बनाने के लिए । हिन्दी साहित्य की बात से कई महान कवियों और लेखकों की तस्वीर आखों के सामने घूम जाती है जिन्होनें हिन्दी साहित्य में अपना अहम योहदान दिया है । पर एक बात ये भी सत्य है कि धीरे- धीरे हिन्दी साहित्य के लेखम और पाठक कम हुए है । हिन्दी में एक कमी है कि वह विश्व स्तर पर पुरस्कार की दौड़ में अन्य से पीछे रह जाता है ।
अरविंद अडिगा को ' द वाइट टाइगर ' के लिए २००८ का बुकर पुरस्कार दिया गया है । हनका यह पहला उपन्यास है । चैन्नै के जन्में इस युवा की यह रच्ना पूरे देश के स्याह पहलू पर रची हई है । यह उपन्यास दिल्ली से बहुत हद तक जुड़ा हुआ है । अरविंद ने इसे दिल्ली वासियों को समर्पित किया है ।द वाइट टाइगर सपनों को हकीकत में बदलने की जद्दोजहद की कहानी है ।
मुम्बई में रहने वाले अरविंद मैन बुकर पाने वाले चौथे भारतीय है । इसके पहले सलामान रूश्दी , अंरूधती रायकिरन देसाई और अब अरविंद अडिगा । यह ऐसे तीसरे लेखक है जिनका पहला उपन्यास पुरस्कार जीता है । अरविंद अडिगा से हमें प्रेणा मिलती साहित्य को बढ़ावा देने की । हमारे देश का नाम रोशन किया है इस उपन्यास ने । अरविंद जी को बधाई ।

Wednesday, October 15, 2008

मेरा काव्य - " चौराहे पर जिंदगी उसकी "


चौराहे पर हंसती है जिंदगी,
एक बच्चे की ,
हाथों में रोटी का टुकड़ा ,
तन पर कुछ गंदे कपड़े,
और
आसपास मक्खियों का झुण्ड ,
आते जाते लोगों को देखते
ढ़लती है शाम ,
कुछ ऐसे ही चलती है
जिंदगी ,

आखों में खुशी,
मन में विश्वास ,
कुछ आगे बढ़ने का
जज्बा,
शायद यही सब है
उसके पास ,
एक छोटे से टुकड़े पर
उसकी दुकान ,
जिस पर है कुछ ही
समान ,
क्या करता होगा
कुछ कमायी ?
पर
इसी ने जिंदगी चलायी ।
मैं देखता हूँ
बड़े गौर से बच्चे को ,
उसका खिलखिलाता चेहरा ,
आस-पास कुछ कंकड़
जो खिलौने है उसके ,
और उसके मटियाये
बाल को,
और
गंदे शरीर को ,
फिर सोचता हूँ
बचपन को ,
कितना फर्क है ?
दुख होता है मुझे ,
पर
फिर भी वह खुश है
इस जिंदगी से ।

मेरा काव्य - " तुम्हारी यादें "


आज आखें छलक आयी,
जब याद तेरी आयी
बैठा अकेला मैं
दूर दुनिया से,
बीती बातें कुछ उभर आयी
तुम दूर हो मुझे
मालूम है
फिर भी दिल ने
आने की तेरे
आहट पायी ।
अच्छा हूँ मैं
अधूरा ही सही
अब ख्वाबों में भी है
तन्हाई,
सब कुछ पाया मैंने
एक सिवा तेरे,
अब चाहत थी कि
भूल जाऊं तुमको,
पर
कोशिश न मेरी रंग लायी ।
करता हूँ सवाल
खुद से मैं,
ये जिंदगी क्यूं
गम लायी ।

Tuesday, October 14, 2008

सियासी लड़ाई में जनता में की पिसाई , मात्र स्वार्थ की जमीन है रायबरेली

सियासी जंग का खेल जो रायबरेली में शुरू हुआ है वह मात्र केवल स्वार्थ को ही इंगित करता है । मुख्यमंत्री मायावती नें प्रदेश के आर्थिक विकास को दाव पर लगा दिया है । रायबरेली में प्रस्तावित रेल कोच की फैक्ट्री के लिए आवंटित जमीन वापस लेकर जनता की अपेक्षाओं को गहरा झटका दिया है । मायावती सरकार ने कोर्ट में बेअजीब तर्क दिये हैं । फिलहाल अभी कोर्ट नें स्टे कर दिया है । उनका कहना है कि किसानों ने जमीन दिये जाने का विरोध किया है ।( आखिर दो साल से क्या सो रहे थे ये किसान) अगर ग्रामीण किसानों में जमीन लिये जाने की नाराजगी होती तो भला वो याचिका क्यों दायर करतें? राज्य सरकार का कहना है कि यह जमीन अनुसूचित जातियों और भूमिहीनों को दी जानी थी। भला मायावती क्या इस सवाल का जवाब दे सकती है कि अभी तक ये कार्य क्यों पूरा नहीं हुआ जबकि दो साल होने को है ।

मायावती का निजी स्वार्थ प्रदेश के आर्थिक विकास में रोड़ा अटका रहा है । वैसे जब जब राहुल राज्य दौरौ पर आते रहें है मायावती का विरोधी बयान आता रहा है । मायावती का संशय है कि शायद यह कारखाना अगर लग जाता है तो इसका चुनावी फायदा काग्रेस को हो सकता है ।फिर भी राज्य और केन्द्र में इस तरह का असमान्जस्य होगा तो कार्य कैसे आगे बढेगा । केन्द्रीय परियोजना तो ऐसी अटकी पड़ी रहेगी ।मायावती ने फैक्ट्री की जमीन वापस लेकर गलत पंरपरा की नीव डाली है । इसका खामियाजा राज्य की जनता को भुगतना पड़ेगा । संवैधानिक जिम्मेदारी को लाघंकर राज्य को निजी जागीर समझने की प्रवृत्ति महंगी पड़ सकती है ।

मेरा काव्य - " कुछ पल और रूक जाती "


आज तुम न जाओ
मुझे छोड़ कर
इतनी जल्दी क्या जाना जरूरी है ,?
अच्छा जाना ही है ,
तो कुछ ही पल रूक जाओ ,
वैसे भी अब हम कम मिलते है
बस यादों से ही जिया करते है,
आज तुम आयी ,
जिंदगी में नयी रंगत लायी है,
अब इन यादों का पुलिंदा बना लूँ मैं
जो कुछ पल का साथ दो ,
तुम कब आती रहोगी यूँ ही
कब यूँ तड़पाती रहोगी ?
तुम जानती हो न ?
मैं कितना अकेला हूँ तुम्हारे बिना ,
फिर भी तुम न ,
अब मैं कहूँगा तुमसे कुछ ।
तुम तो बदल गयी हो ,
क्या ?
न तुम ऐसी थी
और न मैं ऐसा था
तुम मुझे देखती
और मै तुम्हे देखता
तुम जाने की जिद करती
और
न मैं रोकता
पर ठीक है
जाना है तो जाओ
हां ये वादा करके कि
जल्दी आओगी ,
मेरा साथ देने तुम।

एक व्यक्तित्व कुछ ऐसा - अलफोंसा

किसी उँची इमारत को देखने के बाद ये पता चलती है उसकी इमारत की गहराई और उसकी मजबूती ।महसूस होता है इमारत के खड़े होने तक का संघर्ष । एक व्यक्तित्व और उसकी उपलब्धिया भी बयां करती है उसके साहस को , मेहनत को लगन को और उसके जज्बे को । कैथोलिक नन सिस्टर अलफोंसा एक ऐसा ही नाम है जिसने भारत के लिए एक बड़ी उपलब्धी हासिल की है । वो भी ऐसे समय जब देश में एक तबका ईसाईयों के खिलाफ नफरत और उन्माद भड़काने में लगा है । भारत के लिए यह दूसरी बड़ी उपलब्धी है क्यों कि मदर टेरेसा एक ऐसा नाम है जिसे हम भूल नहीं सकते हैं । वैसे ये सम्मान उस जमीन का है जहां वो जन्म ली और जहां मानव सेवा की रोशनी जलायी । भारत भूमि में शुरू से संतों और महापुरूषों ने जन्म लिया है । उनका धर्म और मत चाहे जि भी रहा हो , उनका लक्ष्य एक ही रहा - मानव कल्याण दीन दुखियों की सेवा में अपना जीवन होम कर दिया । समाज में ऐसे लोगों की बातें ध्यान से सुनी और प्रतिष्ठा दी । अलफोंसा भी उसी पंरपरा में हैं ।

अल्फोंसा त्यागमय जीवन किसी भी धर्म के मतावमंबी के लिए प्ररेणा का कार्य कर सकती है । कम उम्र में ही आध्यात्म की शरण ली, और सांसरिक मोह माया और बंधन को त्याग दिया । अलफोंसा ने जाति ,धर्म और मजह को न देखते हुए गरीब है असहाय लोगों की सेवा कि और अपना दायित्व निर्वहन किया ।जो लोग आज धार्मिक भेदभाव फैलाने में लगे हैं उन्हे समझना चाहिए कि धर्म का मूल्याकंन उसके श्रेष्ठ रूप केआधार पर होता है ।और अल्फोंसा ने किसी धर्म का उपहास करके यहां तक नहीं पहुँची है बल्कि सर्व धर्म दंभाव से यहां तक का सफर किया । एक दूसे धर्म का सम्मान ही भारतीय संस्कृति का मूल है ।

Monday, October 13, 2008

मेरा काव्य - " ये पल "


खुशियों का ये पल,
यूं ही गुजार दे,
इतना तुमको प्यार दें,

जाने क्या होगा कल ,
कैसे होगें आने वाले पल
जी ले इनको जी भरके ,
गम का न साया हो
खुशियों की छाया हो
चले साथ ये हवायें
ऐसा लगै जैसे कि
बिन बुलाये कोई आया हो,
हम तुम हो केवल
और
हो बातें अपनी
सोचें क्या - क्या हम तुम ,
बीते यूँ रातें अपनी ।
खुशियों का ये पल
यूँ ही गुजार दे।

मेरा काव्य - " एक नजर से "


एक नजर से दिखता है आतंक ,
एक नजर से दिखता है आंसू ,
एक नजर से दिखता है सच,
एक नजर से दिखती है बुराई,
एक नजर से दिखता है प्यार,
एक नजर से दिखती है मासूमियत,
एक नजर से दिखती है दरार,
एक नजर से दिखता है संसार,
एक नजर से दिखती है आशा,
एक नजर से दिखती है उम्मीद,
एक नजर से दिखती है राह,
एक नजर से दिखती है जिंदगी,
एक नजर से ही दिखती है नजर,
ये तो एक नजरिया है देखने का
कि
एक नजर क्या देखती है ?

Sunday, October 12, 2008

अब तो कुछ ऐसी है जिंदगी अपनी


दिल्ली की लाइफ भी अन्य मेट्रो सिटी जैसी ही है , इंसान भागमभाग में हैरान परेशान है , हाल बेहाल है फिर भी दौड़ भाग नियमित है अरे भई भागना ही है तो किसी प्रतियोगिता में भाग लो तो कुछ परिणाम भी आये यहां तो बस लगे रहो " इण्डिया का नारा " है । फुरसत नहीं सांस लेने की कहते हैं बहुत से लोग तो फिर भई जिंदा भी नहीं होगे मतलब कि भूत जैसे तो कुछ नहीं । वैसे भी कहां रही आज मानवता । शायद कभी रही होगी । इंसान क्या हकीकत में इंसान है ? शक की सुई घूमती है इस प्रश्न पर जेहन में।

जब विश्वास खत्म होता है सब नाते रिश्ते , भाईचारा , प्यार सभी कुछ खत्म हो गया है , विकास में इंसान भी विकास ही कर रहा है मानव से मशीन बन गया है तो विकास ही तो हुआ न । पैसा आज ही नहीं हमेशा से जीवन के लिए आवश्यक रहा पर एक बात कि सब कुछ नहीं रहा है । हमारे विचार , हमारी सोच और हमारे जीवन जीने का ढ़ग एक रास्ता तय करता है भविष्य का पर आज की पालिशी हम सबको पता है । विश्वास का आता पता नहीं , प्रेम क्या है शायद किसी का नाम और रिश्ते वो तो मोबाइल नें जब्त कर लिये हैं । सुविधायें बनी है आराम मिला आराम हराम हो गया कब पता भी नहीं चला । खुदगर्ज होना स्वार्थी होना , चापलूसी करना ये सब आज के नये तरीके है आगे बढ़ने के।
सफलता का मापक है कमायी यानी पैसा तो ठीक है भईया करिये कमायी वो पता नहीं कहा कहां से आयी । सब समझना और फिर सब समझते हुए भी न समझना ही समझना है । देखिये सब पर ऐसा लगे कि आपने कुछ नहीं देखा आंखे है पर वही देखने के लिये जो आपको दिखाया जाय। चलो अच्छा कुछ नया नहीं करना होगा जियों ऐसे ही वैसे भी जी क्या रहे हो बस जीने का दिखावा ही है । कहते है कि बोलिये पर किसी को सुनाई न दे । सही भी है सुनना कौन चाहता ही है ।

मेरा काव्य - " आज तुम्हारा जवाब आया "


आज तुम्हारा जवाब आया
जिंदगी की उदासी को
खत्म पाया
ये सिलसिला कायम है
और रहेगा
मेरे महबूब
यूँ ही हमेशा
प्यार मेरा रंग लाया,


उम्मीद के दामन में
मैं हूँ पला
तुम्हारे बिन हूँ अकेला
राहे रौशन नहीं बिन तेरे
है
दिल में यादों का मेला

खुश होना
क्या है
मालूम हुआ
जब आज तुम्हारा जवाब आया

Saturday, October 11, 2008

समीर लाल जी का निवेदन हम सब के लिए , टिपिया के चलते न बने ।

इन दिनों मैंने समीर लाल जी और कुछ लोगों के इस बात पर ध्यान दिया कि आप भी लोगों को पढ़े और अपनी टिप्पणी दें । मैंने सोचा कि बात सही है और हिन्दी ब्लाग का लेखन में रूचि का ही विषय है । पर मेरी मजबूरी एक तो समय कम मिलता है अध्ययन से ही दूसरे मेरा कम्प्यूटर इन दिनों साथ नहीं दे रहा है पर फिर भी मैंने समय निकाल कर और कैफे मे जाकर कोशिश की कि जितने समय मैं कैफे मे रहूँ अधिक से अधिक लोगों को पढ़ सकूँ ।

ये बात अच्छी भी लगी केवल लिखके रफूचक्कर होना मेरे नजरिये से गलत है । पर सबसे जरूरी बात ये कि कई ऐसे लोग है जो कि टिप्पणी तो करते हैं पर जो लिखा गया है या तो उसे सही से पढ़ते नहीं या फिर बिना पढ़ ही सभी टिप्पणियोंका मूल्याकंन कर के टिपिया कर चलते बनते हैं । मैं मानता हूँ कि टिप्पणीयों से मार्गदर्शन होता लेखक का । अगर कुछ गलत है तो बेबाक तौर पर कहिये आपका स्वागत है । चाहे वो अच्छा लगे या फिर बुरा पर लेखक के लिए यह आगे के लिए अच्छा होगा। मैं यहां पर अपनी राय व्यक्त कर रहा हूँ आपकी क्या राय है बातइये।

मेरा काव्य- " लिख रहा हूँ बिना कुछ सोचे "


पता नहीं है क्या लिख रहा हूँ
पर
फिर भी लिख रहा हूँ।
देखता हूँ हमेशा
आस पास बड़े ही गौर से
होती एक उम्मीद
खुद से ही कुछ न कुछ
मिल ही जयेगा
जो सबके मन को भायेगा
कलम तो यो ही उठा ली थी मन बहलाने के लिए
अब पाता हुआ है मोल इसका
है ये वो तलवार जो
करती है चुपके से सब पर वार
थकता कभी -कभी खुद से
पर हार नहीं मानता हूँ
लिखना है तो लिख रहा हूँ
आज भी सब कुछ भूल के ही।
बिना कुछ सोचे
बिना कुछ विचार किये हुए।

मेरा काव्य - " आज तुम फिर देर से आयी हो "


आज तुम फिर देर से
आयी हो
बुलाने पर मेरे
करती हो वादा
यूँ
हरदम ही आने का
पर
आदत है तुमको
देर से आने की
वक्त का एक-एक लम्हा
सताता है मुझे
झांकता हूँ
बार-बार गली को
देखता हूँ तुम्हारी राह
कि शायद तुम आ रही हो,
सोचता हूँ तुमको
देखता हूँ तुमको
चाहता हूँ तुमको
हरपल ही
जानता हूँ आओगी तुम
पर
देर से ही
ये दिल है कि
बेकरार रहता है
तुम्हारे लिए।
देर से आओगी
तो करूंगा शिकायत
तुमसे ही
और तुम फिर हंस दोगी
मुस्कुराकर
मैं फिर से
हो जाऊंगा लाचार
हमेशा की तरह ।
क्योंकि मुझे
अच्छा लगता है
यूँ
मुस्कुराना तुम्हारा
शिकायत तो एक बहाना है मेरा
तुम्हें हंसाने का ।

Friday, October 10, 2008

मेरा काव्य - " आहिस्ता- आहिस्ता"


दायरा बढ़ता है प्यार का
दूरियों से
आहिस्ता-आहिस्ता ,
चाहत भी हुई
दिल से
आहिस्ता- आहिस्ता,
यूँ ही बातें बढी
खुद आपसे
आहिस्ता- आहिस्ता ,
महफिलें भी जबां हुई
खामोश ही
आहिस्ता- आहिस्ता ,
कलियां थी बनी फूल
बाग में
आहिस्ता- आहिस्ता ,
होती है खबर
दुनिया को
आहिस्ता - आहिस्ता ।

लिव-इन से बढ़ेगा महिला सशक्तिकरण और बदलाव आयेगा समाज में


महाराष्ट्र सरकार ने अपराध प्रक्रिया संहिता की धारा १२५ में संशोधन का फैसला किया है , इस संशोधन से भारतीय समाज में पत्नी की परिभाषा बदल जायेगी। लिव- इन रिलेशन का कानून जब बन जायेगा तब उन्हें कानूनी तौर पर पत्नी के ही समान माना जायेगा जो एक समय सीमा तक साथ रह चुकी हैं। पर अभी यह तय नहीं हो सका है कि यह समय सीमा क्या होगी। वैसे यह कानून महिलाओं के सशक्तिकरण में अहम भूमिका निभायेगा । जो कि लिव-इन रिलेशन में रह चुकी है ।
वैस भी भारतीय महानगरों और बीपीओ इंडस्ट्री से जुडे लोगों में यह चलन तेजी से फैला है । यह युवाओं को फैशन की तरह लग रहा है। इसे आधुनिकता का भी परिचायक माना जा रहा है। पर कुछ लोगों की यह मजबूरी है । मतलब जो लड़कियां आर्थिक रूप से कमजोर हैं और कैरियर को लेकर मेट्रों सिटी में रहने के लिए संघर्ष कर रही है । और अपने घर परिवार कर दूर रहती है । उनके लिए अकेलापन , सुरक्षा और खर्च जैसे लिहाज ये इंतजाम सुविधाजनक है । पर लिव -इन रिलेशन में ज्यादा नुकसान महिलाओं को ही उठाना पड़ता है । क्यों पुरूष अपने साथ रहने वाली महिलाओं को कब छोड़ कर चले जाये पता नहीं। और फिर परिणाम लडकियां ही भुगतती है ।
यह कानून आने से ऐसी लड़किया जो लिव-इन में रहती है उनके लिए अच्छा होगा । जिसमें पुरूष ऐसी महिलाओं को आसनी से नहीं छोड़ सकेगा । व्यवस्था टूटने या खत्म होने पर मुवावजे और जीवन यापन का अधिकार महिलाओं के पास होगा। इस तरह से यह महिलाओं के कल्याण में ही है जो कि ऐसी स्थति में जीवन यापन कर रही है।
वैसे हमारे यहां पुराने समय से ही बिना शादी के स्त्री रखने का पुराना रिवाज है तो यह नहीं कहा जा सकता है कि यह कोई नयी पंरपरा है । गांवों के लोग शहर में आकर झूठी शादियां करते है और फिर कुछ समय बाद छोड़ कर चल देते है । समाज में रखैल भी स्त्रीयों को बनाया जाता है जबकि यह संविधान के अनुसार गलत है । पुरूष द्वारा महिलाओं को भोग्या बनाया जाता रहा है । वो कभी झासे देकर तो कभी झूठ बोलकर। और कभी दबाव में तो ऐसे में जो लोग इस तरह की विचार धारा के है उनको गहरा आघात लग सकता है । । अब लिव-इन रिलेशन से एक पुख्ता प्रमाण होगा । और देश में कोई इसका दुरूपयोग न कर सके। और महिलाएं अपना हक पा सकें जो शिकार होती हैं।

Thursday, October 9, 2008

मेरा काव्य - " तो अच्छा है "


"यूँ जाम न लूँ तो अच्छा है
यूँ नाम न लूँ तो अच्छा है
यूँ जान न लूँ तो अच्छा है
यूँ पहचान न लूँ तो अच्छा है "

"यूँ याद न करूं तो अच्छा है
यूँ बात न करूं तो अच्छा है
यूँ प्यार न करूं तो अच्छा है
यूँ रार न करूँ तो अच्छा है"

ब्लागर रहें तैयार , क्योंकि अब आयी बारी लाइव ब्लागिंग की


ब्लाग युवा वर्ग को अपनी तरफ खूब आकर्षित कर रहें हैं । ऐसे अब ब्लाग केवल अपने विचारों को ही व्यक्त करने का माध्यम नहीं रह गया है । बलकि ब्लाग पर आज रिसर्च , इंजीनियरिंग एवं एमबीए जैसे स्टूडेंट के लिए काफी कुछ जानकारी है । इसलिए गूगल ने ब्लाग को और आधुनिक बनाने का काम शुरू कर दिया है । जिससे अब ब्लाग पर संदेश को किसी भी भाषा में बदला जा सकेगा साथ ही साथ ब्लाग पर लाइव ब्राडकास्टिंग भी हो सकेंगी जो कि पहले केवल रिकार्डेड ही होती है ।
गूगल के अनुसार दुनिया में अभी १ अरब ब्लागर है और उनमें से १ करोड़ ऐसे हैं जो कि सक्रिय है । ब्लाग पर आये बदलाव से अब यहां अनेक विषयों की जानकरी मिल सकेगी वो याहू और जी-मेल की तरह लाइव ब्राडकास्टिंग के जरिये । अब यह बदलाव हमारे सभी के लिए बहुत हद तक फायदेमंद होगा । करिये इंतजार ।बदलाव जल्द ही होगा ।

नजर - ए - गजल

जलता है एक दिया रोशनी के लिए
प्यासी हो जमीं जैसे पानी के लिए
आती है जब याद दिल से उनकी
बहता है एक आसूँ आंखो से मेरी,
उनका न मिलना तो दस्तूर होगया
क्या उनका प्यार यूँ ही मजबूर हो गया
चाहत अभी भी दबी है दिल में उनके
एतबार तो है उनपे , अभी इजहार है बाकी ।।

Wednesday, October 8, 2008

मेरा काव्य - " चल साथ मेरे दो पल तू जरा "


चल साथ मेरे दो पल तू जरा
मंजिल की तरफ है ये रास्ता
दिल की बातें जो माने तू
आजा मेरे पास तू जरा ,

हम थे अजनबी पर
प्यार हो ही गया
नजरों से नजर का
इजहार हो ही गया

अभी तक तो तन्हा थे हम
करते थे दिल का भरम
मिलता न साथी कोई
पास तू जो आती नहीं

चल साथ मेरे , दो पल तू जरा।



मीडिया व्यूह की तरफ से दशहरा की आपको हार्दिक बधाई ।

सारी अटकलें खत्म कर " दादा" ने कहा अलविदा क्रिकेट .........


पूर्व भारतीय क्रिकेट कप्तान सौरभ गांगुली ने मीडिया के सामने ये ऐलान कर दिया है कि "दादा" यानी कि सौरभ गांगुली आस्ट्रेलिया सीरीज के बाद टेस्ट क्रिकेट से हमेशा के लिए अलविदा कह देंगे । सौरभ के इस बयान से उनके खलने और न खलने के सारे बयान पर विराम लग गया है । दादा का प्रदर्शन न होने पर जब नयी चयन समीति ने उनका चयन किया गया था तभी से ये बातें सामने आने लगी थी कि गांगुली और चयन समीति में कोई समझौता हुआ है । और सौरभ का बयान आने से सारी बात साफ हो गई । वैसे सौरभ के आस्ट्रेलिया टीम के खिलाफ चुने जाने पर पूर्व खिलाड़ियों का अलग-२ बयान आये थे। सौरभ के सन्यास की घोषणा के बाद अब अन्त पूर्व खिलाड़यों पर सन्यास का दबाव बढ़ेगा ।
दादा का टेस्ट कैरियर १९९६ में पाकिस्तान के खिलाफ शुरू हुआ था। लगभग १ साल तक दादा ने भारतीय टेस्ट टीम में अपना योगदान दिया । वैसे ऐसा नहीं कि दादा का कैरियर बहुत ही आसान रहा हो । गांगुली ने अपने टीम में बहुत उतार चढ़ाव भी देखे । वैसे हां एक बात मैं कहूँगा कि सौरभ की ही देन है जो भारतीय क्रिकेट टीम आज इस स्तर पर पहुची है। सौरभ अपने आक्रमकता के लिए जाने जाते रहें है । गांगुली ने आस्ट्रेलिया की आक्रमकता को भी चुनौती देकर भारतीय मिजाज को बदला । गांगुली ने ४९ मैच में कप्तानी की और २१ में जीत दिलाकर अभी तक के सबसे अच्छे भारतीत कप्तान बने । दादा ने कुल १२१ टेस्ट मैच खेले ।
एकदिवसीय मैच में ३११ मैंच दादा ने खेले । इग्लैण्ड के खिलाफ लार्डस पर दादा ने नेटवेस्ट सिरीज पर कब्जा जमा कर अपनी टी शर्ट लहरायी थी तो सभी क्रिकेट प्रेमी का दिक खुशी से झूम उठा था। वनडे मैंचों में दादा ने दस हजार रन पूरा करने वालों बल्लेबाजों में अपना शुमार कराया ।
सौरभ गांगुली का सन्यास लेना नये चेहरों के लिए एक अच्छा मौका होगा । इस पूर्व कप्तान का ये फैसला सम्मान जनक है ।

Tuesday, October 7, 2008

मौत

लगाना चाहता हूँ गले
ये मौत तुझे
आओ कभी बिन बताये
भर लो आगोश में
अपने मुझे,
अब और नहीं
चाहता रहना इस जहां में
न कोई ख्वाहिश रही
न कोई चाहत रही
अब तो बस
इंतजार है तेरा
मिल जाऊ तुझमें ही
इस जहां से अलग
हो जाये खत्म
नामों - निशां मेरा ,
होती है घुटन खुद
आप ही
आओ कभी तुम
चुपचाप ही
और
चलूँ मैं
साथ तेरे ।

धर्म के नाम पर बंटता भारत , खतरे की घंटी । संप्रदायिकता का खेल महंगा पड़ सकता है देश लिए


"न हिन्दू बनेगा , न मुसलमान बनेगा, इंसान कि औलाद है इंसान बनेगा "। बचपन में स्कूल जाते तो वहां यह सिखाया गया कि " हिन्दू , मुस्लिम ,सिख ईसाई आपस में हैं सब भाई- भाई । आज जब अखबार पलटता हूँ या रेडियो पर समाचार सुनता हूँ । तो देश में हो रही हिंसा और मारकाट से दिल दहल जाता है । कल्पना करते हुए रोंगटे खड़े हो जाते हैं । तब अपने बचपन की वो स्कूल की लाइन बेहूदा लगती है । शायद हम जैसे बच्चों को ये रटाया जाता था । दोहे या फिर पहाड़े की तरह । पर हमारी सोच में ये बात केवल परीक्षा पास करके भूलजाने जैसा ही है । उसके सिवा और कुछ भी नहीं । वास्तविकता कहीं बहुत दूर है ।आज जब सोचता हूँ कि क्या सचमुच में " हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई" ये बात कभी हकीकत में स्वीकार की गई होगी । तो मुझे नहीं लगता कि यह सच में केवल कहने में सुनने में ही अच्छा लगता है ।
आज देश में सम्प्रदायिकता को लेकर के घमासान मचा है । हम एक दूसरे के खून के प्यासे बने हुए है । सबसे पहले तो यह धर्म निर्पेक्ष राष्ट्र है यहां धर्म की स्वतन्त्रता है । इंसान जिस धर्म को चाहे अपना सकता है । पर हाल की कुछ घटनाओं ने देश को जाति के नाम पर अलग कर रहा है। विश्व पटल पर हमारी छवि धूमिल तो हो ही रही है साथ ही साथ देश विभाजित हो रहा है संप्रदाय के अनुसार । उडिसा और कर्नाटक में जो हिंसा हुई उससे देश में गुटबाजी हुई । सभी अपने पराये को जाति के अनुसार देश रहें है कि कौन हिन्दू है ?और कौन ईसाई है ? इसमें किसको सही कहें किसे गलत । सभी अपने भाई ही है । सरकार का जातिवादी रूख देख कर और भी दुख होता है । आम आदमी की सुरक्षा आज खतरे में है। रक्षक ही भक्षक बन गये हैं । हिंसा पर न तो राज्य ने कुछ किया ( वो इसलिए क्यों कि यहां भाजपा समर्थित सरकार है ) नहीं । बजरंग दल और हिन्दू वादी संगठन ने खुले आम मौत का नंगा नाच किया । केन्द्र बाद में जागी जब लोग मौत की नीमद सो चुके थे । अभी भी हालात बद से बदतर ही है । आगे क्या होगा यह देखना अभी बाकी है । कोरी धमकी दी गई राष्ट्रपति शासन की । इससे कुछ नहीं होने वाला।
दूसरा मुद्दा आतंकवाद से जुड़ा है । दिल्ली सहित भारत के कुछ प्रमुख शहरों में हाल के हमले ने मुस्लिम कौम को कटघरे में ला खड़ा किया है । सवाल लोगों के उठे मैं ये सवाल जवाब मे नहीं जाना चाहता हूँ । पर कितनी गलत बात लगती है मुझे जब ये कहा जाता है कि हर मुस्लिम आतंकवादी है क्या आपको लगता है । पर मैं तो उन सबसे बहुत दूर रहता हूँ । सभी अपने भाई ही है । ऐसी नजर (आतंकवाद से प्रेरित) एक दिली आग को जन्म दे सकती है । जिसका गम्भीर परिणाम हो सकता है । ऐसे में देश में भाईचार कहां होगा । जब हम एक दूसरे को शक के घेरे में रखकर देखेंगे । देश में संप्रदायिक विभाजन ना हो इसके लिए । धर्म को निशाना न बनाया जाय तो ही बेहतर होगा । वरना परिणाम के लिए तैयार रहना होगा जो कि बेहद भयानक होगें ।

मेरा काव्य - " ये जिंदगी "


ये जिंदगी
मैं जी लूँ
तुझे जी भर के,
पल- पल गुजरते
लम्हों में
पूरी करूँ हसरत
अपनी
न कोई शिकवा
न कोई शिकायत हो
खुद से
कुछ ऐसी हो
ये जिंदगी,
राहें मुश्किल हो
चलूँ जिसपे
आती रहे
खुशियां और गम
साथ - साथ
पर
न हो एहसास
ये जिंदगी,
आशा और विश्वास
कायम रहे
यूँ ही
सफर लम्बा भी हो
तो क्या ?
जब साथ तू हो
ये जिंदगी ।

Monday, October 6, 2008

अनोखा एक प्रेम पत्र ........ साइंस की भाषा में । पढ़े और मजे लें........


माई डियर N2O ,
जब तुम मुस्कुराती हो तो ऐसा लगता है कि जैसे टेस्ट ट्यूब आपस में टकरा रही हो। तुम्हारी मुस्कुराहट मेरी दिल की धड़कन के लिए उत्प्रेरक का कार्य करती है । मेरा दिल तुम्हारी मुस्कुराहट देखकर मरकरी की तरह तड़पने लगता है । तुम जब देखकर मुस्कुराती हो तो कसम रदरफोर्ड की मुझे ऐसा महसूस होता है कि मेरा दिल फास्फोरस का टुकड़ा हो जो ३४ डिग्री सेल्सियस पर स्वयं जम रहा हो। वो तो शुक्र है तुम्हारे पापा O2 और जुड़वा भाई हाइड्रोजन का जो मुझ पर इस तरह से बरसते है कि मैं ठ़डा हो जाता हूँ। वरना मेरी अवस्थाओं परिवर्तन हो जाये । तुम्हार बिना मेरा अष्टक अधूरा है। और यह तब तक अधूरा रहेगा जब तक तुम मुझसे संयोग करके एक स्थायी अणु न बना लेती हो।
तुम्हारे बिना ये जिंदगी H2 से भी ज्यादा हल्की है । तुम्हारी मुहब्बत ने मुझे co2 की तरह बेइज्जत कर दिया है। तुम्हारी जुदाई में मैं गंधक की तरह पीला हो गया हूँ। वो तो भला है ब्लीचिंग पाउडर का जिसकी वजह से मेरा रंग घर वालों को साफ नजर आता है । वरना पापा तो मेरा रोज आश्वन करते ।
आखिर कब तक धुँआ देने वाली गैस की तरह जलता रहूँगा । काश कोई ऐसा लिटमस पेपर हो जिसकी वजह से तुम्हें मेरे दिल का रंग साफ नजर आये।
प्लीज तुम मेरे प्यार को समझो कहीं ऐसा न हो कि मेरे में जंग लग जाए और तुम्हारी नफरत का सल्फर एसिड मुझ पर गिर पडे और मेरी जिन्दगी हाइड्रोजन बनकर उड़ जाये ।
तुम्हारा ...................

मेरा काव्य - " सिगरेट "


जलता है खुद
दूसरों के लिए
करता है
समपर्ण अपना
निःस्वार्थ,

घटता है
तड़पता है
आखिरी दम तक
फिर भी
हारना नहीं जानता
मौत से अपनी,

पाता है
विजय
खुद पर
दूसरों से,
क्योंकि
मालूम है उसे
हस्ती अपनी
जलना है
इसलिए
जलता है ।

मेरा काव्य- "मेरे कमरे की खिड़की से "


मेरे कमरे की खिड़की
से
झाकती है रोशनी
प्रकाशमय करती है
मेरे जीवन को
हर रोज,

आती है चुपके से
बिना आहट दिये
दस्तक देती है
मेरी चौखट पर,

खुलती है आखें
उजली किरण के साथ
चका-चौंध
दुनिया में
मिलता है
इसका साथ
उठता हूँ
देखता हूँ
नित्य ही
उस खिड़की से
बाहर,

एक खामोश ,
सुहानी सुबह को
चिड़ियों की
चह चहाहट को
आते जाते
लोगों को,
शुकून मिलता है
ताजगी मिलती है,
ठंड हवा के
झोंकों से,
होती है
दिन की शुरूआत
कुछ ऐसे ही।

Sunday, October 5, 2008

दहेज प्रथा सामाजिक बुराई पर युवाओं का बदलता नजारिया क्या कम कर सकेगा इस बुराई को ? ब्लागर समूह क्या सोचता है ?


यूँ मैं कुछ न कुछ लिखता हूँ रोज ही । कभी राह चलते कुछ दिख जाता है जो कि बहुत दुखद होता या फिर कुछ अजीब होता या फिर किसी सामाजिक सरोकार से जुड़ा होता है या फिर हास्य होता है। अब लिखना जैसे मेरी जरूरत ही बन गयी है, आदत बन गयी है ।
आज चाय की दुकान पर चाय वाले से ही बहुत सी हो रही थी । सामाजिक मुद्दो पर तो बीच में बात से बात निकलती गयी और समाज में दहेज प्रथा तक आ पहुँची। मुझे भी अच्छा लग रहा था चाय वाले अंकल से बात करते हुए । उन्होंने कऐ अच्छे तर्क भी दिये जो कि लाजवाब थे। उनका जीवन अनुभव भी बहुत पसंद आया हुझे। वैसे वो बोले कि चाय मेरा पेशा नहीं मजबूरी है । पर चलिये मुद्दे पर आते हैं ।
समाज में दहेज बहुत ही विकराल स्वरूप धारण कर चुका है । लोगों को अपने स्तर पर दहेज के रूप में अनेक चीजें भाती है जैसे - मोटर , गाड़ी और एक मोटी रकम । छोटी चीजें जो दैनिक जीवन की है आप तो उनसे वाकिफ ही है । उसे क्या बताना । लड़कियां कम हो रही है ऐसा आकड़े कहते पर दूसरी ओर दहेज का फैलता दायरा मां बाप के लिए बेदह समस्या का विषय बना हुआ है । आजकल का जो ट्रेंड है वह यही की लड़का यदि इंजीनियर या डाक्टर है तो कैश के रूप में लड़की वालों को २५ लाख का एक छोटा सा दान करना है और कुछ ज्यादा नहीं बाकी तो शादी में देखा जायेगा । हां कहीं आप किसी प्रशासनिक अधिकारी से अपने लड़की की शादी की बात सोच रहें है तो फिर डिमांण्ड कुछ भी हो सकती है । आप इसके लिए तैयार रहें ।और अगर बेरोजगार लड़के के तलाश में है तो हो सकता हे कि से लाख में आप लिपट सकते है । कुछ ऐसी बोली लग रही है ब्याह बाजार में। जैसी औकात हो वैसी ही मण्डी में आप जा सकते हैं। ये रही मोल भाव की बात कि आप कितने में सौदा तय कर सकते है यह आपके ऊपर भी निर्भर करता है।
दहेज़ का बढ़ता हुआ जाल आज किसी भी परिवार के लिए चिन्ता का विषय है । इसका उपचार कहीं दिखता हुआ नजर नहीं आता है ।पहले तो शायद यह कहा जाता रहा होगा कि शायद अभी लोग कम जागरूक है इसलिए दहेज लिया जाता है और जब शिक्षत लोग समाज में ज्यादा होगें तब यह प्रथा समाप्त हो जायेगी । पर हुआ एकदम उल्टा पढ़ लिखे लोगों के लिए दहेज एक स्टैण्डर्ड तय करता है । लोगों कि सोच में दहेज एक अच्छा माध्यम बन गया है अमीर बनने का । हमारे समाज में प्यार करना भी गुनाह है तो भला प्यार के बाद शादी को कैसे स्वीकर किया जा सकता है ? हाल की घटना (ग्रेटर नोएडा) से हम रू-ब-रू है जहां पर प्रेमी युगल को जिंदा जला दिया गया। मेरे अनुसार यदि युवा पहल करें तो सम्भव है कि कुछ हद तक दहेज में कंी आ सकती है।
दहेज प्रथा का विरोध मेरे भैया द्वारा कुछ इस तरह-

(नाम - पंकज तिवारी ,व्यवसाय-टीसीएस में साफ्टवेयर इंजीनियर उम्र- २७ साल , स्थान- मुम्बई)


दहेज के प्रति हम जो भी बोलते है वह कभी करते नहीं ।ऐसा होता है । पर मेरे भैया ने एक ऐसा ही उदाहरण दिया जो मेरे सामने पहला है । शादी के लिए उनका साफ तौर पर यह कहना है कि " मैं दहेज को समाज की बुराई के रूप में देखता हूँ , और इसे रोकने के लिए मैं खुद तो दहेज नहीं लूगा। बहुत लोगों ने विरोध किया । घर में , नातेदार रिश्तेदार और साथ ही मेरे पिता जी ने भी "। पर भैया अपने फैसले पर आज भी अडिग है । और गत २२ नवम्बर को शादी होगी। जो कि मुझे बहुत ही अच्छा लगा।
हमारे कोई बहन नहीं है इसलिए हम दोनें भाईयों ने यह बात सोची है कि हमें कोई मजबूर नहीं कर सकता दहेज के लिए । आइये आप सभी इस सामाजिक बुराई को खत्म करने का प्रयास करें।

हंसना हो तो पढ़ो ...........नहीं तो भईया आगे बढ़ो समझे .........

१-
क्या आप पेड़ पर चढ़ सकते हो?
क्या आप संजीवनी बूटी ला सकते हो ?
क्या सीना चीर के दिखा सकते हो ?
नहीं ना ।
बेटा बंदर जैसी शक्ल होने से
कोई हनुमान नहीं होता । समझे
२-
खामोश रात ,
नदी का किनारा ,
प्रेमी ने प्रेमिका से
प्यार से,
हौले से,
मुस्कुराते हुए ,
पूछा
डार्लिंग - बीड़ी पिओगी?

Saturday, October 4, 2008

मैं भी हूँ " दादा " का दीवाना ..........


मैं भी आम भारतीय की तरह क्रिकेट का दीवाना हूँ। भारतीय टीम में "दादा" का मैं प्रशंसक रहा हूँ । सौरभ गागुली की टीम नेतृत्व क्षमता लाजवाब थी । आज तक के सबसे सफल कप्तान का सेहरा दादा के माथे पर ही है । वैसे देखा जाय तो गांगुली प्रदर्शन पहले की तुलना में कुछ जरूर ही गिरा है । पर अभी भी सौरभ के क्रिकेट खेलने का दम खत्म नहीं हुआ है । हाल ही में नयी चयन समिति ने गांगुली का चयन करके उन पर भरोसा जताया है । आस्ट्रेलिया के खिलाफ दो टेस्ट के लिए गांगुली टीम में जगह बना पाये हैं । वैसे आश्चर्य ही लगता है कि गांगुली को 'ईरानी ट्राफी' में जगह न देकर टेस्ट टीम में जगह दिया गया । वैसे पुरानी चयन समिति यदि चयन का जिम्मा लेती तो गांगुली का चयन मुश्किल ही था ।
भारतीय टीम में " फेब फोर " के नाम से चार खिलाड़ियों - सचिन , सौरभ , द्रविड और लक्ष्मण पर यह आरोप आने लगे है कि इन लोगों का प्रदर्शन न अच्छा होते हुए भी टीम में खिलाया जाता हे जिससे नये चेहरों को मौका नहीं मिलता । अगर इन चारों खिलाड़ियों को अगर टीम से निकाल दिया जाय तो क्या भारतीय टीम में इतना दम है कि वह आस्ट्रेलिया जैसी टीम को मात दे पायेगी । वैसे मीडिया में ये सारी अटकलें श्री लंका में असफल होने के बाद आयी है । यदि हम आमित मिश्रा , रोहित शर्मा , युवराज और बद्रीनाथ को हम इन 'फेब फोर' की जगह शामिल कर लें तो क्या यह आस्ट्रलिया को कड़ी टक्कर दे पायेगें । वैसे इन खिलाडियों में अच्छा क्रिकेट खेलने का दम है । पर एक पारी का खेल टेस्ट में जगह नहीं दिला सकता है । वैसे भविष्य के नये चेहरे इन्ही में से होगे ।इसमें कोई शक नहीं है ।
बात दादा की तो यह माना जा रहा है कि यदि दादा अबकि फ्लाफ हुए तो सन्यास ही आखिरी विकल्प होगा । वैसे उम्मीद यही है कि दादा का बल्ला चले और सभी का मुंह बन्द हो जाये पर ९ अक्तूबर को ही पता चलेगा कि क्या होगा है ।

दिल्ली की नाइट लाइफ अब सुरक्षित नहीं , खासकर महिलाएं रहें सावधान । प्रशासन के भरोसे न रहें


दिल्ली उन मेट्रों सिटी में शुमार की जाती है जहां नाइट लाइफ भी एक अहम हिस्सा है जिंदगी का। हाल ही में एक महिला पत्रकार की हत्या ने तमाम सवालों को जन्म दिया है । देर रात तक काम करके महिलाएं अपने घर आती है । और रास्ते में उनके साथ कोई घटना घटित हो तो ऐसे क्या दिल्ली की महिलाएं जान हथेली पर लिए अपनी जीविका कैसे चला पायेगीं ? दूसरा प्रश्न यह आता है कि आज कई ऐसे प्रोफेशन है ( मीडिया , बीपीओ )जहां पर देर रात तक काम करना मजबूरी है तो ऐसे में महिलाओं की सुरक्षा का जिम्मेदार कौन होगा ? वैसे दिल्ली जैसे शहरों की अपनी नाइट लाइफ भी है। मेट्रों ने इस तरह के कामों में इजाफा भी किया है । पर लोगों को रात में सुरक्षा दे पाने में पुलिस प्रशासन की नाकामी सब पर बुरा असर डाल रही है । पुलिस की अपराध पर काबू पाने के लिए जरूरी कि वह हर जगह मौजूद न हो पर उसकी छवि ऐसी होनी चाहिए कि वह अपराधियों को हर हाल में पकड़ सके।
कहने को तो प्रशासन का कहना है कि उसके पास मुहैया कराये गये संसाधन पूर्ण नहीं है । एक तरफ तो पुलिस का मानना है कि वह रात को गश्त करती है अगर यह सही है, तो यह हादसे कैसे हो रहें है? कहीं पर पुलिस ने यह कह कर छुटकारा पाया कि हमारे पास सीसी टी वी कैमरा नहीं है । और लड़कियों को खुद ही अपनी सुरक्षा के बारे में सोचना चाहिए। ऐसे तरह के बयान दिल्ली की महिलाओं में कहीं न कहीं दहशत फैला रहें है । पर मजबूर लोग तो अपनी रोजी रोटी तो नहीं छोड़ सकते हैं । ऐसे हादसे होते रहेगें और पुलिस तथा सरकार हाथ पर हाथ रखे रहेगी।

मेरा काव्य- " नकाबी चेहरा "


कभी ये नकाबी चेहरा
हटाओ तो जरा
अपनी हकीकत दुनिया
को बताओ तो जरा,
यूँ ही छलते रहोगे
जमाने को तुम
कब तक?
माना कि-
है हुस्न का गुरूर
ये जालिम
तुझको
पर
खुद से ही
खुद को
बचाओगे
कैसे?
आ जाते हैं
गिरफ्त में तेरी
कुछ अनजान हसरतें
हरदम ही,
इस बार नहीं
बच पाओगे मुझसे
तुम भी,
क्योंकि मैं हूँ
खुद तुम्हारे
जैसा
मुझको हटाओगे
तो
खुद को ही
पाओगे।
ये वक्त का
तकाजा कहें
या
खेल किस्मत
का
जो दूर जाकर
भी
पास ही आओगे
मेरे।
क्या नहीं
पहचाना मुझको ?
मैं हूँ तुम्हारा
ही
नाकाबी चेहरा ।

Friday, October 3, 2008

कंधमाल में नन के साथ बलात्कार और ३९ दिन तक सोती रही पुलिस ? क्या होगा


कंधमाल इन दिनों अराजकता का केन्द्र बना हुआ है । कंधमाल में जो संप्रदायिक हिंसा फैली है इस पर नवीन पटनायक सरकार बिल्कुल ही असफल साबित हुई है । उड़ीसा के कंधमाल जिले में दंगों के दौरान एक नन के साथ बलात्कार किया गया । और पुलिस ने कोई भी कार्यवाही नहीं की। लेकिन जब गृह मंत्रालय से चिट्ठी आथी है तब जाकर ३९ वे दिन पुलिस के द्वारा कार्यवाही की जाती है । मुख्यमंत्री ने ने जांच को क्राइम ब्रांच को सौपं दी है । बलात्कार के मामले में चार लोगों को गिरफ्तार किया गया है । और एक एसआई को सस्पेड़ किया गया है। पहले पुलिस के द्वारा मामले को हल्के में लिया जा रहा था । लेकिन मेडिकल रिपोर्ट और केन्द्र के दवाब में पुलिस को मजबूरन कार्यवाही करनी पड़ी।

नन के साथ रेप की जांच को यदि महीनों लग रहें हैं तो इसका मतलब हुआ कि पुलिस भी ऐसे अमानवीय और जघन्य कुकृत्य में अपराधियों का साथ दे रही है । और आरोपियों को बचाने का पूरा प्रयास किया। भारत में बलात्कार के बहुत से मामले सामने आते हैं जिसमें अपराधियों को बचाने का प्रयास किया जाता है । और कुछ मामलों में तो केस को पुलिस खुद ही रफा दफा कर देती है । और कभी तो पुलिस द्वारा प्राथमिक रिपोर्ट तक दर्ज नहीं की जाती है । इस गैर जिम्मेदाराना हरकत के लिए कुछ लोगों को सस्पेड़ कर दिया जाता है दिखावे के लिए । पर मेरे हिसाब से तो ऐसे लोग जो अपराधी को बाचाने का प्रयास करते है वो भी अपराध के ही श्रेणी आते है और बराबर सजा के भागी दार हैं।

हमारे कानून में बलात्कार जैसे जघन्य अपराध के लिए फांसी तक की सजा मुकर्र की है पर किसी प्रकार की कमी आती नहीं दिख रही है ऐसे अपराधों में । देश में ज्यादातर जो बलात्कार होते हैं उसमें लोगों को यही समझ आती है कि कानून हमारा क्या कर लेगा । कई केस ऐसे है जिसमें अपराधी को सजा उसके मरने के बाद होती है । हमारी न्यायपालिका में सुधार की जरूरत है । साथ ही साथ फास्ट ट्रैक कोर्ट को भी बढाया जाना चाहिए जिससे पीड़ित को जलदी रहत मिल सके और लोगों मे डर और भय बना रहे तो शायद बलात्कार के मामले कम सामने आये।

"एक अर्सा गुजरा है " -मेरा काव्य


एक अर्सा गुजरा है
तुम्हारे बिन,
हाथों की लकीरों
पर
सपने बुने थे हम-दोनों
अब तो आदत न रही
यूँ ख्वाब में जीने की ।।
" इश्क की दास्तां
को बयां करता है,
वो सूखा गुलाब
जो कभी यूँ ही
डायरी में मिला
करता है।
मैं देखता हूँ
जब भी
उस गुलाब को
उसमें तेरा ही
नूर झलकता है ,
एक आह भी निलकती है
और
दिल भी धड़कता है
आखें खुद-ब-खुद
बंद हो जाती है ,
फिर
एक आंसू ढ़लकता है
बंद मुट्ठी को खोलता हूँ,
और
देखता हूँ
उन लकीरों को
जो अब
धुधली सी
नजर आती हैं "।

Thursday, October 2, 2008

सामाजिक न्याय के लिए संघर्ष को बड़ा सम्मान" ' ऐसे जज्बे को सलाम,


अगर कुछ कर गुजरने का जज्बा दिल में हो तो न कोई उम्र ,और न ही कोई समाज पाबंदी लगा सकता है । कार्य बहुत से है जिसे करके हम समाज को और अधिक सुन्दर और सभ्य बना सकते हैं। कहते है कि किसी कार्य की शुरूआत बहुत ही कठिन होती है । पर एक बार जो मन रमा तो फिर कोई भी बंदिशें रोक नहीं सकती है । ऐसे एक भारतीय जज्बा इन दिनों सुर्खियों में छाया हुआ है ।
हमारे समाज में कई प्रकार की असमानताएं है । जिसे हम सामाजिक बुराई के रूप में देखते हैं । तमिलनाडु में सामाजिक न्याय के क्षेत्र में महत्तपूर्ण योगदान के लिए' कृष्णामल और शंकरलिंगम जगन्नाथ' को इस वर्ष के ' राइट लाइवलिहुड अवार्ड ' से सम्मानित किये जाने की घोषणा की गयी है । जगन्नाथन दंपत्ति गन पांच लोगों में शामिल हैं ,जिन्हें यह पुरस्कार दिया जाएगा । इस पुरस्कार को अल्टरनेटिव नोबेल यानी नोबेल के बराबर का पुरस्कार माना जाता है । इस पुरस्कार की घोषणा के बाद कृष्णामल की प्रतिक्रिया मे कहा- झोपड़ियों में रहने वाले,विशेषकर दलितों का जीवन स्तर सुधारने के लिए मैं अपना सर्वस्व न्योछावर करना चाहती हूँ। यह दंपत्ति तमिलनाडु में "लैंड फार द टिलर्स फ्रीडम " नामक संस्था चलाते है । जिसका मकसद देश में दलितों का सामाजिक स्तर बेहतर करना है । यह अवार्ड कठिन मेहनत का सम्मान है ।
इस तरह की खबरें एक नया उत्साह भरती है जो कि देश और समाज के लिए कुछ करना चाहते हैं । हौसले बुंलद हो तो कोई भी सफर लम्बा नहीं होता है । कुछ ऐसा ही कर दिखाया है इस दंपत्ति ने। सलाम है ऐसी प्रतिभा और ऐसे जज्बें को जिसमें देश का नाम रोशन किया है । यह दंपत्ति ने सभी के सामने एक उदाहरण पेश किया है ।

मोहल्ला में नहीं है हल्ला ,अविनाश जी का किया धरा आपके सामने ? अविनाश जी की तरह हम क्यों नहीं बनते ?


मोहल्ला में नहीं हुआ हल्ला और अविनाश जी ने ही लगायी मेरी नैया पार । हम सभी बलाँग पर कुछ न कुछ प्रतिदिन लिखते हैं। और उम्मीद यही करते हैं कि हमारे लेख , कविता ,व्यंग या जो भी विधा हमने लिखी हो उसे अधिक से अधिक लोग पढ़े और अपनी टिप्पणी भी दें ।जिससे यह पता चल सके कि जो कुछ भी ब्लाग पर लिखा जा रहा है । वह कितना प्रभावशाली और कितना पंदस किया जा रहा है । आज सुबह मैं भी देर से सो कर उठा । जल्दी-जल्दी नित्य क्रिया से फुरसत लें अंतरजाल(इण्टरनेट) की दुकान के खोज में बाहर निकला । उम्मीद थी कि दुकानें ज्यादातर या तो बंद होगी या फिर देर से खुलेंगी । पर मंजिल मिल गयी एक दुकान खुली थी ,कुछ देर इंतजार के बाद मेरा नंबर भी आया । २ अक्तूबर होने के नाते आज गांधी जी और शास्त्री का जन्म दिवस और साथ ही साथ ईद होने के नाते एक ऐसी ही पोस्ट लिखने की सोची जिसमें सब कुछ एक साथ सभी विषय आ जायें। और मैंने जो कुछ लिखना था वह लिख कर चला गया। पर पढ़ नहीं सका ।
अभी शाम को फिर दुबारा जब ब्लाँग पर कुछ नया लिखने के लिए आया तो अपना अकाउंट खोला । अविनाश जी की चैट की कुछ बातें मेरे मेल में पडी थी । मैंने मेल को खोला और पढ़ा तो उसमें सुबह की पोस्ट की एक गलती जो कि बहुत ही छोटी थी पर अर्थ का अनर्थ करने के लिए पर्याप्त थी। अविनाश जी ने तुरंत ही बताया था सुबह ही पर मैं नेट से जा चुका था । मुझे अपने आप पर गुस्सा भी आया । अविनाश जी यदि मुझे न बताते तो शायद मैं भी न जान पाता कि मैंने क्या गलती थी। ऐसे में मैं अविनाश जी को तहे दिल से शुक्रिया अदा करना चाहूँगा । आज ईद के मौके पर अविनाश जी नें भाईचारे की असीम मिशाल दी है ।
मेरा यहां पर ब्लागर समूह से निवेदन है कि हम जब भी कोई ऐसी गलती देखे तो अवश्य उस बलाग को सूचित करें जैसा कि अविनाश जी ने किया । गलती सभी से हो सकती है जिसका की माखौल न बनाते हुए सुधार करायें। अविनाश जी चाहते तो कुछ व्यंग्य भी कर सकते थे । औरौं ने शायद ध्यान न दिया हो या फिर यह सोच के छोड़ दिया हो कि जाने दो । हम टिप्पणी करें और साथ ही सही और शुद्ध हिन्दी को पढ़ तो बेहतर होगा ।

Wednesday, October 1, 2008

गांधीगीरी , प्रेमभाव बाटता ईद का त्यौहार(मुबारकबाद) , भूल रहे शास्त्री को ? साथ ही रहें सावधान


२ अक्तूबर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी का जन्म दिवस । संपूर्ण विश्व इस दिवस को 'विश्व शांति दिवस ' के रूप में मना रहा है । अहिंसा और सत्य के इस पुजारी को शत-शत नमन ।

२ अक्तूबर को ही हमारे पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी का भी जन्म दिवस है । शास्त्री जी अपने मूल्यों और कार्यों के लिए हमेशा याद किये जायेगें । जो एक सामान्य परिवार के थे। मुझे लगता है कि ब्लागर समूह आज इस व्यक्तित्व को भूल रहा है। कई लेख आज गांधी जी से जुड़ा हुआ दिखा पर शास्त्री जी पर कहीं कुछ भी नहीं । ऐसा क्यों?

आपस में भाई-चारे और प्रेम का परिचायक ईद का त्यौहार इस बार २ अक्तूबर को ही है । देश वासियों को ईद की ढ़ेर सारी बधाई ।आपस में बैर भाव को खत्म करता यह त्यौहार हिन्द की एकता की मिसाल कायम करता है । सभी धर्म एवं जाति के लोग मिलकर आपस में यह त्यौहार मना रहें है।

चौथी बात जो कि मुझे बहुत ही अच्छी लगी वह है । स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा आज से सार्वजनिक स्थलों पर धूम्रपान निषेध कर दिया है । अब इस कानून को हमें अमल में लाना है । अन्यथा २०० का चूना लग सकता है ।
चेतावनी-
भारत को हाल ही में कई बम हमले झेलने पड़े है । हमारा यह त्यौहार खुशियों भरा और सौहार्द्रपूर्ण महौल में इसके लिए सभी सतर्क रहें । कहीं कोई अप्रिय घटना न हो ऐसा सभी लोग प्रयास करे ।

लेस्बियन यानी "समलैंगिकता " बनाम भारत ? ये संबध भारतीय संस्कृति के लिए खतरा


विश्व पटल पर कोई आवाज अगर बुलंद होती है तो इसका असर दुनिया के कर कोने पर होता हैं। हाल में ही भारत सहित विश्व के कई देशों में लेस्बियन यानी " समलैंगिता" का हो हल्ला रहा । दिल्ली , मुम्बई सहित विश्व के कई शहरों में कदम ताल हुआ। भारत में भी लोगों ने अपनी बुलंद आवाज में समलैंगिकता को सही ठहराते हुए इसे संवैधानिक दर्जा देने की हिमाकत की।
भारत में समलौंगिक सम्बंध को जुर्म करार दिया गया है । दो एक ही सेक्स के लोगों के बीच का संबध कानूनी तौर गलत होगा। और इस तरह के कार्य पर कानूनी दाव पेंच में फंस जायेगें। पर इसके ठीक विपरीत केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री अंबुमणि रामदौस ने समलैगिकता को उचित ठहराया है । पर कोर्ट ने स्वास्थ्य मंत्रालय की अर्जी को खारिज कर दिया । और रामदौस के बयान को भी अंदेखा कर दिया । साथ ही साथ गृह मंत्रालय भी लेस्बियन संबध को नकार दिया है । जबकि राम दास का कहना है इस तरह के बालिग जोड़ों के खिलाफ धारा ३७७ के तहत मुकदमा दर्ज नहीं किया जाना चाहिए। रामदास ने कहा कि लेस्बियन संबध से एडस जैसे रोगों मे कमी आयेगी । पर क्या भारत में समलैगिकता को स्वीकार करना उचित होगा ? मेरे अनुसार तो नहीं ? आप की क्या राय है ? जरूर बतायें?
ब्रिटेन में एक महिला मंत्री ने अपनी समलैंगिक पार्टनर से शादी रचा ली । कोषागार मंत्री ऐंजला ईगल हाउस आफ कामंस की इकलौती घोषित सदस्य है।पर वहां की सभ्यता अलग है हमारे देश से। अब भारत में इस तरह के संबध को मंजूरी कब मिलेगी। पर यह समलैगिक संबध हमारे समाज के रीति रिवाज के बिल्कुल परे हैं । यदि भारत में लेस्बियन संबधों को मंजूरी मिल जाती है। तो हमारे समाज में उथल पुथल सम्भव है ।
भारत विश्व के समस्त देशों के अलग हैं। यहां की पंरम्पराये, संस्कृति और रीति रिवाज विश्व के अलग करती है । समलैंगिक क्रांति को भारत अगर स्वीकृति देता है तो यह हमारे समाज में इसका बुरा असर पड़ सकता है । वैसे मेरे अनुसार लेस्बियन संबध भारत जैसे देश के लिए नहीं है । हमारे युवाओं के बेहतरी के लिए समलैंगिकता एक खतरा मात्र है और कुछ नहीं ।