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Saturday, October 18, 2008

गुरू -चेला संवाद " मैं हिन्दू हूं"


१- गुरू -चेला संवाद
चेलाः गुरूजी, क्या हमारे देश के मुसलमान विदेशी हैं ?
गुरूजीः हां,शिष्य वे विदेशी हैं ।
चेलाः वे कहां से आएं हैं?
गुरूः वे ईरान , तूरान और अरब से आए हैं।
चेलाः लेकिन अब वे कहां के नागरिक हैं ?
गुरूः भारत के ।
चेलाः वे कहां की भाषाएं बोलते हैं?
गुरूः भारत की भाषाएं बोलते हैं।
चेलाः रहन -सहन और सोच-विचार का तरीका किस देश के लोगों जैसा है ?
गुरूः भारत के लोगों जैसा है ।
चेलाः तब वे विदेशी कैसे हुए गुरू जी ?
गुरूः इसीलिए हुए कि उनका धर्म विदेशी है।
चेलाः बौद्ध धर्म कहां हा है गुरू जी?
गुरूजीः भारतीय है शिष्य ।
चेलाः तो क्या चीनी , जापानी , थाई और बर्मी बौद्धों को भारत चले आना चाहिए ?
गुरूः नहीं.........नहीं शिष्य; चीनी ,जापानी और थाई यहां आकर क्या करेगें ?
चेलाः तो भारतीय मुसलमान ईरान,तूरान और अरब जाकर क्या करेंगें?

२-गुरू-चेला संवाद
गुरूः चेला , हिन्दू-मुसलमान एक साथ नहीं रह सकते ।
चेलाः क्यों गुरूदेव?
गुरूः दोनों में बड़ा अन्तर है?
चेलाः क्या अन्तर है?
गुरूः उनकी भाषा अलग है........हमारी अलग है ।
चेलाः क्या हिन्दी ,मराठी, कश्मीरी ,सिन्धी, गुजराती ,मलयालम ,तमिल ,बंगाली आदि भाषाएं मुसलमान नहीं बोलते ....
वे सिर्फ उर्दू बोलते हैं?
गुरूः नहीं....नहीं , भाषा का अंतर नहीं है .....धर्म का अंतर है।
चेलाः मतलब दो अलग-अलग धर्मों के मानने वाले एक देश में नहीं रह सकते?
गुरूः हां........भारतवर्ष केवल हिन्दुओं का देश है।
चेलाः तब तो सिख,ईसाईयों ,जैनियों,बौद्धों ,पारसियों,यहूदियों को इस देश से निकाल देना चाहिए ।
गुरूः हां निकाल देना चाहिए।
चेलाः तब इस देश में कौन बचेगा?
गुरूः केवल हिन्दू बचेंगें.......और प्रेम से रहेंगें ।
चेलाः उसी तरह जैसे पाकिस्तान में सिर्फ मुसलमान बचे हैं और प्रेम से रहते हैं।

हिन्दी साहित्य के मशहूर कहानी कार "असगर वजाहत" की कहानी "कहानी संग्रह" ' मैं हिन्दू हूँ' से साभार

8 comments:

योगेन्द्र मौदगिल said...

भई वाह
शानदार व सामयिक प्रस्तुति
असगर वजाहत साहब को बधाई
आपको साधुवाद

अविनाश वाचस्पति said...

बेहतरीन लघु व्‍यंग्‍य कथाएं
प्रस्‍तुत करने के लिए बधाई।

Gyan Darpan said...

शानदार प्रस्तुति

अनुनाद सिंह said...

उल्टा चोर कोतवाल को डांटे?

असगर साहब ऐसा ही कुछ आज तक जेहादियों के लिये क्यों नहीं लिख पाये?

जेहादियों और उनके समर्थकों को यह समझाना बहुत जरूरी है कि दुनिया में अब गोला-बारूद के सहारे इस्लाम फ़ैलाने के दिन लद चुके हैं।

राज भाटिय़ा said...

चेलाः उसी तरह जैसे पाकिस्तान में सिर्फ मुसलमान बचे हैं और प्रेम से रहते हैं। :) :) :)
झुठ बोले कोवा काटे.... भाई पकिस्तान मे तो मुस्लिम ओर भी दुखी है, एक जगह है जहां सब सुखी है, लेकिन वहा कोई रहना नही चाहता, वह जगह है इंसानिस्स्थान, जहां किसी भी धर्म का आदमी नही, सिर्फ़ इंसान ही रहते है

Unknown said...

इस संवाद में असगर वजाहत शायद गुरु हैं, पर चेला कौन है? आज कल शायद एक तरफा लिखने वाले ही हिन्दी साहित्य के मशहूर कहानीकार कहे जाते हैं.

अनुराग गौतम said...

जनाब सिर्फ़ इतना सा कहना है....
कोई भी नफरत न फैलाए,,,,
जिसे हिंदुस्तान पसंद हो, वहां रहे...
जिसे पाकिस्तान, चीन, भूटान, बांग्लादेश या कोई भी मुल्क पसंद हो...
वहां रहे... बस इतना रहम करे, जिस मुल्क में रहे उसी से गद्दारी न करे.....
गद्धारी न करे....
और अगर गद्दारी करे, तो उस के लिए सिर्फ़ एक सज़ा हो...
उसे सरे बाज़ार, फांसी पे लटका दिया जाए....

prakharhindutva said...

सेक्युलर लेखों से हिन्दुत्व की क्रान्ति नहीं रुकेगी। चेले को बताओ चाहे कोई भी भाषा भाषी क्यों न हो इन मुसलमानों की तरह सऊदी अरब की और झुक कर पूजा नहीं करते। भारत के विरोध में यहाँ असला इकट्ठा नहीं करते। देश से ग़द्दारी और मज़हब से वफ़ा केवल मुसलमान करता है। देश को दो ही विचारधाराओं से ख़तरा है मार्क्सवाद और इस्लाम। सही बात तो यही है कि 1965, 71 और 99 की लड़ाइयाँ हमने मुसलमानों के विरुद्ध ही लड़ीं और 1962 की मार्क्सवादियों से। मुंबई में हुए आतंकवादी हमलों में जो बारूद इस्ेमाल हुआ वो भी देश के मुसलमानों ने ही पाकिस्तानी आतंकवादियों को मुहैया करवाया था।

हर बार मुसलमान ही ग़द्दार। ये सच्चे मुसलमान ही सच्चे राष्ट्रद्रोही हैं।

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सच्चाई तो यह है कि अल्लाह के बन्दे एक बार फिर हँसे है और क़ुरआन के अनुसार उन्हें जन्नत मिलना तय है। आख़िर 186 काफ़िरों को मौत के घाट उतारने के बाद तो अल्लाह ने इन्हें इतना सबाब दिया होगा कि इनकी आने वाली पीढ़ियों को भी जन्नत का पासपोर्ट मिल जाएगा।....

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