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Tuesday, October 7, 2008

मेरा काव्य - " ये जिंदगी "


ये जिंदगी
मैं जी लूँ
तुझे जी भर के,
पल- पल गुजरते
लम्हों में
पूरी करूँ हसरत
अपनी
न कोई शिकवा
न कोई शिकायत हो
खुद से
कुछ ऐसी हो
ये जिंदगी,
राहें मुश्किल हो
चलूँ जिसपे
आती रहे
खुशियां और गम
साथ - साथ
पर
न हो एहसास
ये जिंदगी,
आशा और विश्वास
कायम रहे
यूँ ही
सफर लम्बा भी हो
तो क्या ?
जब साथ तू हो
ये जिंदगी ।

3 comments:

शोभा said...

ये जिंदगी
मैं जी लूँ
तुझे जी भर के,
पल- पल गुजरते
लम्हों में
पूरी करूँ हसरत
अपनी
न कोई शिकवा
न कोई शिकायत हो
वाह! बहुत बढ़िया लिखा है.

Anonymous said...

nice

poem

mehek said...

bahut sundar bhav ampurn kavita badhai