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Tuesday, October 14, 2008

मेरा काव्य - " कुछ पल और रूक जाती "


आज तुम न जाओ
मुझे छोड़ कर
इतनी जल्दी क्या जाना जरूरी है ,?
अच्छा जाना ही है ,
तो कुछ ही पल रूक जाओ ,
वैसे भी अब हम कम मिलते है
बस यादों से ही जिया करते है,
आज तुम आयी ,
जिंदगी में नयी रंगत लायी है,
अब इन यादों का पुलिंदा बना लूँ मैं
जो कुछ पल का साथ दो ,
तुम कब आती रहोगी यूँ ही
कब यूँ तड़पाती रहोगी ?
तुम जानती हो न ?
मैं कितना अकेला हूँ तुम्हारे बिना ,
फिर भी तुम न ,
अब मैं कहूँगा तुमसे कुछ ।
तुम तो बदल गयी हो ,
क्या ?
न तुम ऐसी थी
और न मैं ऐसा था
तुम मुझे देखती
और मै तुम्हे देखता
तुम जाने की जिद करती
और
न मैं रोकता
पर ठीक है
जाना है तो जाओ
हां ये वादा करके कि
जल्दी आओगी ,
मेरा साथ देने तुम।

4 comments:

राज भाटिय़ा said...

बहुत ही सुन्दर कविता है.
धन्यवाद

श्यामल सुमन said...

आपकी यह कविता पढकर मेहदी हसन साहब द्वारा गायी हुई प्रसिद्ध गजल की याद आ गयी-

रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ।
आ फिर से मुझे छोड के जाने के लिए आ।।
शुभकामना।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com

Udan Tashtari said...

बहुत ही सुन्दर!!!

seema gupta said...

और
न मैं रोकता
पर ठीक है
जाना है तो जाओ
हां ये वादा करके कि
जल्दी आओगी ,
मेरा साथ देने तुम।

' very emotional touch in this words, liked it"

regards