जन संदेश

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Monday, April 7, 2008

नींंम का पेड

आसमां में आग बरसा रहा है सूरज,
फैल रही है लू की लपटें
और
उठ रही है
गर्म हवा की धूल
मेघ लेकर नहीं लौटा,
आषाढ़ का पहला दिन।
तपती धरती
और
धुआं-धुआं आसमां के बीच
जीवन झुलसता
धरती भट्टी की भाति ,
धधकता प्रचंड गर्मी में जीवन,
डीहाइड्रेशन का शिकार हो रहा,
ऐसे में
गांव का नीम का पेड़ की छा़व
जो राहत दे रहा ।

Sunday, April 6, 2008

तुझसे दूर जाना चाहता हूँ.....

तुझसे दूर जाना चाहता हूँ,
अपने ही वादे से मुकरना चाहता हूँ,
जो साथ -साथ बिताये हमने पल जिंदगी के,
उनके ही सहारे जीवन बिताना चाहता हूँ,
तुमसे प्यार किया था मैनें बहुत ही,
तुमको चाहा था बहुत मैंने ही ,
और
अब दूरियों को बढ़ाना चहता हूँ ,
मेरी जिदगी से तुम चली जाओ..
और
कभी लौट के न आओं के ,
सारे रासते तलाशता हूँ।
तुम भी खुश थी उन दिनों ,
और
मैं भी खुश हुआ करता था,
बात करने के सारे जतन किया करता था ,
खत जो न आये तेरे तो ,
हर सुबह उन बेजान गलियों को तकता था,
उस दौर से निकलना चाहता हूँ ,
तुमको भुला के एक नये जीवन को पाना चाहता हूँ ,
तुम खुद हीचली जाओ तो बेहतर हो
वर्ना
मैं खुद को मिटाने के सारे कायदे जानता हूँ।
एक नया सफर चहता हूँ ,
तुमको भुला के चलना चाहता हूँ।
और अपने सारे वादे से मुकरना चाहता हूँ।
तुमसे दूर बहुत दूर जाना चाहता हूँ।

Saturday, April 5, 2008

समर्पण......

जी करता
उनमुक्त गगन में उड़ चलूँ,
तुम्हारे सुर्ख होंठों पे,
अपने होठ धरूँ।
जी करता
तुम्हें बाहों में भरू,
और मुट्ठी भीच ,
तुम्हें अपने में समेट लूँ।
जी करता
तुम्हारी सांसंो की महक,
अपने सीने में भरूं,
कुछ कदम साथ चलूँ,
और संग कुछ कदम रोक लूं।
एहसास करता हूँ-
तुम मेरी हर चाहत पर ,
एक लकीर खीच देती,
हर एक रोज,
कल का वादा कर,
कुछ बंदिशें याद दिला देती,
ये नासमझ
इतना तो समझ
प्यार समर्पण है
एक हो जाने का ,
ना ही लकीर,
ना ही बंदिशों का।

अन्तरमन

सोचता हूँ ,
क्या है अन्तरमन ?
और
क्या है बाह्यमन?
मन तो है-
केवल मन,
चंचल है,
उच्छल है,
एकाग्र है,
गंभीर है।
मेरा मन ,
तेरा मन।

Friday, April 4, 2008

आगमन बारिश का........


रिमझिम-रिमझिम
किश्तों -किश्तों में बारिश,
नई स्फूर्ति,
नया उत्साह ,
एकदम धुला-धुला सा आसमां,
एक मुट्ठी किरण,
कुछ सौधी सी ,
मिट्टी की महक,
मन जागा-जागा सा,
कुछ और नहीं ,
ये आगमन है,
बारिश का।।

बिकनी बेबी


खबर गर्म है।
भारत में गरमी पड़नी शुरू हो गई है और इस दौरान कई ऐसी फ़िल्में आ रही हैं, जिनके बारे में मीडिया में चर्चा है कि इसमें कई हॉट दृश्य हैं.यशराज फ़िल्म्स की टशन में करीना कपूर ने बिकनी पहनी है..हल्ला है कि प्रियंका चोपड़ा भी दोस्ताना में बिकनी में नज़र आएँगी...इस फ़िल्म में समुद्र तट पर कई रोमांटिक दृश्य हैं. ये सच है
वैसे ये कोई नयी बात नहीं । इसके पहले भी प्रियंका ऐसा कारनाम फिल्म अंदाज में कर चुकी हैं।और करीना में कई हाट सीन दिये हैं।
अब देखना है कि इन बिकनी बेबी के इन सीन के आजाने से फिल्म में कमायी में कितना योगदान होता है।और क्या ये बिकनी बेबी समंन्दर की ठंड से दर्शकों कोठंडक दे पाती है कि नहीं। अपने नंगेपन से,
वैसे तो बिकनी बेबी ने बिकनी पहहने वाली खबर को खारिज कर दिया है । पर कहा जाता है कि धुँआ अगर उठा है तो आग कहं न कही लगी जरूर है । अब यह तो फिल्म आने पर ही पता चल पायेगा।
वैसे भारती सिनेमा में यह नया दौर शुरू होआ है कि फिल्म आने कुछ समय पहले विवाद जरूर होता है शायद पब्लिकसिटी पाने के लिए। अगर बीते दिनों की बात करें तो फिल्म जोधा का विवाद और फिल्म धूम पार्ट-२ में ( ऐश्वार्या राय के बिकनी को लेकर) विवाद हुआ था । जगह -२ प्रदर्शन हुए और फिल्म हिट रही अब इसके पीछे क्या तर्क है देखने वाली बात होगी।।

Thursday, April 3, 2008

देखता हूँ मैं............

थैला थामे , बाजार जाते समय देखता,
पांचवी तक पढ़ी पिकी को,
शाम के वक्त,
शायद उसकी मां ने ,
पिंकी के बालों को
हरे रंग क फीते से बांधी होगी,
और
आखों में काजल की हो।
सड़क के किनारे ,
लकड़ी के सहारे लगी दुकान,
जिसे कुछ ईटों ने सहारा दे रखा थआ।
वह
कपड़ों की गठरी खोलती ,
कमीज की बांह को पलटती,
पानी छ़िडकती ,
जलती लकड़ी की धीमी आँच,
और धुआँ देती इर्त्री से,
चुमड़ी कमीज को सीधा करती।
शायद उसकी भी सिकुड़ती जिंदगी को कोई ऐसे ही सवारे।

देखता
यादव की चाय की दुकान को,
जहां बिखरी है ,
३-४ प्लास्टिक के स्टूल ,
और एक बोरा बेंच पर बिछा हुआ,
कुछ किशोर, कुछयुवा लड़को को,
जो सिगरेट के धुएं
और गुटके के पीक के बीच
बहस करते नौकरी, पैसा और
देश की हालत पर,
और बीच-बीच में नजर गड़ाये पिंकी के उभार पर
शायद
चाय के साथ
जरूरत पींकी की भी हो।


सूर्य प्रकाश जी की कलम से।

चाय की दुकान पर .................

चाय की दुकान पर सिर्फ चाय ही नहीं मिलती ,
बल्कि
मिलता है सच सोलह आने ।
अखबार के बंड़ल में बंधी ,
समाज की दशा ,
सुबह-सुबह चाय की चुस्कियों के साथ,
चटपटी खबरों के बीच होती है खबर-
बहू को जलाने की,
एक विधवा की अस्मत लूटने की
और
हत्या के हत्यारों की।
शुरूआत होती है दिन की।
दिल दहलता है,
अफशोश भी होता है,
चर्चा भी होती है,
दुख भी होता है ,
चाय की दुकान पर.
हर रोज ही जाता हूँ -आता हूँ दुकान पर,
और देखता हूँ , सोलह आने सच।।

Wednesday, April 2, 2008

ऊटपटांग ऊटों की सुन्दरता प्तियोगिता

बाप रे बाप कितनी प्रतियोगिता , विश्व सुंन्दरी , ब्रम्हाण्ड सुन्दरी इस तरह की प्रतियोगिता के बारे में जरूर सुना होगा पर ऊटों की भी सौन्दर्य प्रतियोगिता हो रहीं है।
कहा जाता है कि सुंदरता देखने वालों की आँखों में होती है, आम तौर पर बदसूरत माने जाने वाले जानवर ऊँट की सुंदरता को संयुक्त अरब अमीरात में परखा जाएगा.दस हज़ार ऊँट अंतरराष्ट्रीय सौंदर्य प्रतियोगिता में हिस्सा लेने के लिए अबूधाबी पहुँच रहे हैं.
अबूधाबी की यह प्रतियोगिता अपनी तरह की बहुत बड़ी अंतरराष्ट्रीय स्पर्धा है जिसमें 90 लाख डॉलर के इनाम बाँटे जाएँगे और सौ बेहतरीन ऊँटों के मालिकों को इनाम में कार दिए जाएँगे.रेगिस्तान का जहाज़ कहे जाने वाले ऊँट बहरीन, कुवैत, ओमान, क़तर और सऊदी अरब से इस बड़े आयोजन में हिस्सा लेने के लिए बन-ठनकर पहुँच रहे हैं.
यह सौंदर्य प्रतियोगिता मज़ायिन दाफ़रा उत्सव का हिस्सा है जो बुधवार से शुरू हो रहा है और आयोजकों का कहना है कि यह खाड़ी क्षेत्र में अपनी तरह का सबसे बड़ा आयोजन है.
ऊँटों के विशेषज्ञों का पैनल अलग-अलग आयु वर्ग से विजेता ऊँटों का चुनाव करेगा.
यह प्रतियोगिता हर उस ऊँट के लिए खुली है जो अच्छी नस्ल का हो, संक्रामक रोगों से मुक्त हो और उसमें किसी तरह की विकलांगता न हो.इस ऊँट सौंदर्य प्रतियोगिता के प्रायोजक अबूधाबी के शेख़ ख़लीफ़ा बिन ज़ायद हैं. अरब संस्कृति के केंद्र में रहे ऊँट के प्रति सम्मान प्रकट करते हुए इस आयोजन के ज़रिए राष्ट्रीय पहचान को कायम रखने की कोशिश .
संयुक्त अरब अमीरात में छह वर्ष पहले ऊँटों की सौंदर्य प्रतियोगिता पहली बार आयोजित की गई थी.
खाड़ी के देशों में ऊँटों की दौड़ एक लोकप्रिय खेल है जिसमें लोग लाखों डॉलर दाँव पर लगाते हैं.
सदियों से अरब जगत में संपत्ति का मुख्य पैमाना यही रहा है कि किस शेख़ के पास ऊँटों का कितना बड़ा काफ़िला है.

चौराहे पर जिंदगी

चौराहे के किनारे बिखरी है जिंदगी,
देखता हूँ तीन-चार बंजारन बढ़ी औरत,
जिनके चेहरे पर,
बिखरी हैं झुर्रियां,
रोड डिवाइडर पर बैठ बिस्कुट खाती ,
और
मैंउनके चेहरे की उभरी लकीरों को पढ़ने की कोशिश करता,
कुछ दूर आगे देखता,
कुछ काली, कुछ सांवली,
जवान होती लड़कियां,
छीटदार घाघरा ,बड़ी कमीज पहने,
अपनी लज्जा अखबार से छुपाये,
अखबार ही बेचती,
देखता बारीक नजरों से,
सड़क से गुजरते उन राहगीरों को ,
जिनकी नजर अखबार पर कम
और उनके कमीज के टूटे बटन के बीच झांकते नाभि पर ज्यादा रहती ।



सूर्य प्रकाश जी की कलम से

मुझे पहचानो मैं हूं कौन???


यातायात पुलिसकर्मी और बसपा कार्यकर्ता में भेद करना मुश्किल हो गया है
उत्तर प्रदेश सरकार के एक फ़ैसले से यातायात पुलिसकर्मी और सत्तारूढ़ बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के कार्यकर्ताओं के बीच अंतर करना मुश्किल हो गया है. ऐसा वर्दी बदलने से हुआ है.
राज्य के पुलिस महानिदेशक विक्रम सिंह ने पुलिस वर्दी विनियम 1986 के तहत अपने अधिकारों का उपयोग करते हुए एक अप्रैल से यातायात पुलिस के सिपाहियों की वर्दी बदल दी है.
नए आदेश के तहत यातायात पुलिसकर्मियों को सफ़ेद कमीज़ और नीली पैंट पहननी होगी. साथ ही टोपी का रंग भी नीला होगा.संयोग से यही ड्रेस बसपा कार्यकर्ता दस्ते का है जो रैली या पार्टी के अन्य कार्यक्रमों के दौरान व्यवस्था देखते हैं.दस जनवरी 2008 को जारी इस आदेश में यह भी कहा गया है कि सर्दियों में यातायात सिपाही खाकी ऊनी कपड़े के बजाए हल्का नीला स्वेटर और भूरे कोट की जगह हल्की नीली जैकेट पहनेंगे.
बहुत ख़राब लग रहा है. पहले सफ़ेद ड्रेस काफी अच्छी थी. इस समय बिल्कुल मायावती सरकार जैसी ड्रेस हो गई ह.नई वर्दी में जब आज यातायात सिपाही सड़कों पर उतरे तो रास्ते से गुजरने वाले बहुत से लोग भौंचक रह गए.
पुलिसकर्मियों का कहना है कि ये ठीक नहीं किया गया है जबकि कुछ का कहना है कि वे पुलिस बल का हिस्सा हैं और अधिकारी जो आदेश देते हैं, उनका वो पालन करेंगे.हालाँकि इस फ़ैसले से सिविल पुलिस महकमे में भी चर्चा का बाज़ार गर्म है. ऐसा अंदेशा जताया जा रहा है कि कहीं उनकी वर्दी का रंग भी न बदल दिया जाए.
पुलिस महानिदेशक ने वर्दी बदलने के फ़ैसले को सही ठहराया है. वो कहते हैं, “अभी जो वर्दी थी वो जल्दी गंदी हो जाती थी. महाराष्ट्र और दिल्ली में पहले से ही ये ड्रेस है. वर्दी बदलने की प्रक्रिया पहले से चल रही थी. अब इसे सिर्फ़ अमल में.

Tuesday, April 1, 2008

तुम्हारी बातें , तुम्हारी यादें

तुम्हारी बातें मुझको सता रहीं हैं,
तुम्हारी यादें दिल को रूला रहीं हैं।
तुम्हारी वो हर एक अदा जिस पे मरते थे हम,
गम में भी मुझको हंसा रही है।।
अब तो यादें ही हैं-
तुम्हारा वो मुझसे झगड़ना,
तुम्हारा वो मुझसे रूठना ,
तुम्हार वो बिन मनाये मान जाना ,
और फिर
तुम्हारा वो मझको मनाना,
तुम्हारा वो मझको हंसाना बिन बातों के,
अब तो बस बातें ही है तुम्हारी
और
यादें हैं तुम्हारी ।
चाहें ये सतायें ,
चाहे ये रूलाये
और
मुझको ये ही हंसाये ।
तुम्हारी ये बातें।।