जन संदेश

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Tuesday, August 10, 2010

मैं तो बस ....(कविता)........neeshoo tiwari

न कोई मजहब है मेरा 
न कोई भगवान है
मैं तो बस इन्सान हूँ 
इंसानियत मेरी पहचान है..
न कभी मंदिर गया मैं
न कभी गुरूद्वारे में 
मैं तो बस देखता हूँ 
सबमें ही भगवान है .
न किसी से इर्ष्या हो 
न किसी से बैर हो 
मैं तो बस ये चाहता हूँ 
सबमें ख़ुशी और प्रेम हो 
पढता हूँ मैं खबर 
शहर कत्लेआम की 
हो दुखी नम आँखों से
क्या खुदा , क्या राम है..
आज मैं मैं कर रहा 
कल खाक में मिल जाऊंगा 
सांसे टूट जाएगी एक दिन
क्या साथ मेरे जायेगा ...
आओ हम ये दूरी मिटा दें 
न कोई हो दुर्भावना 
राम पूजे मुसलमान 
हिन्दू खुदा के साथ हो 
मैं किसी को न कहूँगा 
तुम कभी न छोडो धरम 
राम , रहमत के नाम पर 
तुम मिटा दो फासला ..

Sunday, August 8, 2010

मैं तो हिन्दू हूँ .....तुम क्या हो ?


मैं तो हिन्दू हूँ .....तुम क्या हो ? पूछना अच्छा लगता है क्या ? जवाब है पर देना नहीं चाहता ...सोचिये आपने कभी इस तरह के सवाल का जवाब दिया है या फिर किसी से पुछा क्या ? कैसा लगा ? वैसे खबर है की 
ॉलीवुड की सुपरस्टार जूलिया रॉबर्ट्स ने हिंदू धर्म स्वीकार कर लिया है अगर हम  डेली टेलिग्राफ की रिपोर्ट को माने तो ....वैसे जूलिया पिछले साल सितंबर में भारत में विवादों में आ गईं थीं. नई दिल्ली के एक मंदिर में उनकी फ़िल्म की शूटिंग के दौरान स्थानीय लोगों को नवरात्रि के मौके पर मंदिर जाने से रोक दिया गया था......लेकिन अब कौन रोकेगा .....
हिंदी गीत की कुछ पंक्तियाँ 
न हिन्दू बनेगा 
न मुसलमान बनेगा
इंसान की औलाद है
इंसान बनेगा 
 वर्तमान में ये पंक्तियाँ 
हाँ हिन्दू ही  बनेगा 
हाँ मुसलमान ही बनेगा 
इंसान की औलाद 
हाँ कत्ले आम करेगा ....
तो क्या बनोगे आप ....हिन्दू या मुसलमान .........दोनों में जो फायदा देता हो सोच लो ...

Tuesday, August 3, 2010

छिनाल शब्द और ब्लॉग जगत की महिलाएं..... क्या कहती हैं .....? क्या सही क्या गलत ....? आपकी सोच (पुरुषवादी )...बहस होना चाहिए ?

"छिनाल" शब्द का निकलना ही राय साहब को हिंदी साहित्य से जुडी महिलाओं और लेखिकाओं की नजरों में विलेन बना दिया ...लेकिन आज जयादातर  लोग जो भी विभूति नारायण जी को गाली और गोली मारना या देना चाह रहें होगें उनको चाहे पूरे मामले के बारे में पूरी जानकारी ही न हो ...खुद को प्रगतिशील समझने वाले बिना बोले रहेगें कैसे ? वरना प्रगतिशीलता पर प्रशन खडा हो जायेगा ? 
सभी को अपनी बात कहने का आधिकार है......वो कोई भी हो सकता है ...बिस्तर की बातों को पन्नों पर सजाना ही साहित्य और प्रगतिशीलता की निशानी होता जा रहा हऔर इसी का विरोध राय साहब ने किया ....अब इसको किस तरह से पेश किया जाता यह देखने वाली बात होगी ...
वी यन राय का साछात्कार नया ज्ञानोदय में आया ... जिस पर  केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल का बयान आ गया . उन्होंने कहा है कि अगर टिप्पणी की गई है तो यह संपूर्ण नारी समाज का अपमान है. महिलाओं के खिलाफ ऐसी टिप्पणी उनके सम्मान को आहत करने वाली और मर्यादा के प्रतिकूल है. इस संबंध में आई खबरों का पता लगा रहा हूं. अगर यह सही हुआ तो कार्रवाई होगी....अब क्या करवाई होगी ये तो आने वाला समय ही बताएगा ...?
हिंदी साहित्य जगत में सबसे जायद परेशान हुआ तो वो हैं मैत्रयी पुष्पा ज जिनका कहना है की  'छिनाल', 'वेश्या' जैसे शब्द मर्दों के बनाये हुए हैं, हम इनकों ठेंगे पर रखते हैं....
फिलहाल ब्लॉगजगत की प्रगतिशील महिलाएं ...इस प्रकरण पर कई ब्लॉग पर अपनी बात लिखी है,,देखते हैं वो क्या सोचती हैं और समझती हैं ?....
mukti said: 

सही है ये पुरुषों की उस मानसिकता का साक्षात उदाहरण है, जिसमें औरतों को एक शरीर से अधिक कुछ नहीं समझा जाता है. अधिकतर पुरुषों के लिए ये बेहद आम बात है कि तेजी से आगे बढती औरत को नीचा दिखाना हो तो या तो उसकी सुंदरता में कमी निकाल दो, या उसके बारे में ऐसी अश्लील बातें फैला दो कि लोग उसे बस सर्वसुलभ समझ लें. और इन सब से भी कुछ न बने तो उसके व्यक्तिगत जीवन को सरेराह खींच लाओ... और सबको बता दो कि ये औरत या फिर बहुतों के साथ सम्बन्ध बना चुकी है या इस काबिल ही नहीं कि कोई इसके साथ सम्बन्ध बनाए.
ये सोचने की बात है कि यह सब औरतों के लिए ही क्यों? रचनाजी ने सही कहा कि यह सब ब्लॉगजगत में भी हो सकता है. क्योंकि यहाँ भी तो वही मानसिकता है. 
ये हमारे समाज का दोगलापन नहीं तो और क्या है? जहाँ गिल जैसे लोगों पर एक महिला आई.ए.एस.अधिकारी द्वारा छेडछाड का आरोप लगाने के बाद भी उसका कुछ नहीं बिगड़ता, चौदह साल की बच्ची के साथ यौन दुर्व्यवहार करने वाला पुलिस अधिकारी हँसते-हँसते कोर्ट से बाहर निकलता है. वहीं यदि एक महिला अपने जीवन के कुछ अनुभव साहित्य में लिख रही है, तो उसके लिए ऐसा शब्द इस्तेमाल किया जा रहा है.
पंकज की बात से सहमत हूँ इस समाज को तहस-नहस किये जाने की ही ज़रूरत है. भले इसके लिए एक पीढ़ी बर्बाद हो जाए, आने वाली पीढियाँ तो इस सड़ान्ध से दूर रहेंगी.
August 02, 2010 3:57 PM
वाणी गीत said: 

आदमी की सोच का दायरा अभी भी जिस्म ही है...दुखद सच्चाई है 
रचना जी की चिंता भी कुछ हद तक सही है ...यह आंच उड़ते उड़ते ब्लॉग तक भी आएगी ही ...!
संगीता स्वरुप ( गीत ) said: 

किसी की सोच का दायरा जितना है उससे आगे कैसे सोच सकता है ....शर्म आती है ऐसी पुरुष मानसिकता पर .....
रचना said: 

अब आप ने पूछा हैं क्या सोचते हैं हम श्री विभूति नारायण के "छिनालपने" पर { कल बहस के दौरान उन्होने यही कहा हैं कि छिनाल परवर्ती हैं जो पुरुषो मे ख़ास कर पूरब के पाई जाती हैं ।

जल्दी ही ब्लॉग लिखती महिला पर वक्तव्य आ जायेगा क्युकी अगली ब्लॉग प्रयोग शाला इनके सौजन्य से ही करवायी जायेगी । ब्लॉग लिखती कोई ना कोई महिला तो उस दयास पर खड़ी होगी ही जहाँ ये प्रयोग शाला होगी अब वो वहाँ तक कैसे पहुची ये शायद वो नहीं बता पायेगी हां कोई ना कोई आयोजक जरुर बता सकेगा ।
अल्पना वर्मा said: 

वी एन राय उस दोगले और कुंठित समाज के प्रतिनिधि हैं जिनके सोचने का दायरा संकुचित ही रहेगा,जिस्म से आगे ये अपने किसी विचार को बढ़ने ही नहीं देते .एक महिला अगर समाज का घिनौना सच सामने लाती है तो उसे छिनाल कहा जाता है.जो उसे ऐसा करने पर बाध्य करते हैं /जबरदस्ती करते हैं ,उन पुरुषों को क्या नाम देंगे?
थोडा भी बोल्ड लिखने वाली महिला या खुद पर हो रहे जुल्मों के खिलाफ आवाज़ उठाने वाली महिला पर इसी समाज की उँगलियाँ भी बहुत जल्दी उठने लगती हैं.
इनकी सोच में बदलाव न जाने कब आएगा.
संगीता स्वरुप ( गीत ) said... 

बहुत संयमित हो कर आपने इस विषय पर लिखा है....
अब छिनाल शब्द का अर्थ अपनी दृष्टि से कुछ भी लगाएं पर शब्दकोष में तो इसका अर्थ वैश्या या व्यभिचारिणी ही है...और ऐसे शब्दों के प्रयोग पर आपत्ति उठना स्वाभाविक है .. 
3 August 2010 11:41
वाणी गीत said... 

कई बार पढ़ा आपके इस लेख को ...

औरतें भी वही गलतियाँ कर रही हैं जो पुरुषों ने कीं...देह से परे भी ऐसा बहुत कुछ घटता है जो हमारे जीवन को अधिक सुन्दर और जीने योग्य बनाता है।"...

पुरुषों की गलती को मानते हुए स्त्रियों से इसे नहीं अपनाने की अपील ही लगी इसमें ...

लेकिन छिनाल शब्द का अर्थ जो भी हो , किसी भी स्त्री के लिए इसका प्रयोग तो अनुचित ही माना जाएगा ...
आपने पूरे वाकये को संतुलित और निरपेक्ष होकर समझाने की कोशिश की है मगर ...
लेख के शीर्षक पर मुझे आपत्ति है...शीर्षक के लिए सभ्य भाषा का प्रयोग किया जाता तो इसकी उपयोगिता बढती ...! 
3 August 2010 13:14
Akanksha~आकांक्षा said... 

छिनाल शब्द का प्रयोग...कहीं से उचित नहीं. दुर्भाग्य से जब तथाकथित साहित्यकारों की दुकान उठने लगती है तो वे ऐसे ही शब्दों का प्रयोग कर चर्चा में आना चाहते हैं... 
3 August 2010 14:07
रंजना said... 

किसी व्यक्ति/हस्ती ने ऐसा कुछ कहा ,जो कि कहीं से भी कुछ सकारात्मक प्रभाव छोड़ने लायक न हो...तो मेरे समझ से उस प्रसंग को ही छोड़ देना चाहिए...मटिया देना चाहिए...नहीं तो नीचे उतरने की कोई हद नहीं है....
ऐसी बातों को टूल दे हम बस वहीँ करेंगे जो आज के न्यूज चैनल कर रहे हैं...अश्लीलता का बाजार ज्यादा बड़ा और व्यापक हुआ करता है सदा ही...अच्छा कुछ करने में बड़ी मेहनत जो लगती है,सो कोई इसमें जुटना नहीं चाहता..... 
3 August 2010 19:07
mukti said... 

आपने जहाँ तक हो सकता है, तठस्थ रहकर यह लेख लिखा है....वी.एन. राय को मैंने इलाहाबाद में सुना है और मुझे उनके विचार उस समय अच्छे लगे थे. वे वामपंथी हैं या नहीं, नहीं जानती.जहाँ तक बात इस स्टेटमेंट की है " दरअसल इससे स्त्री मुक्ति के बड़े मुद्दे पीछे चले गए हैं .........औरतें भी वही गलतियाँ कर रही हैं जो पुरुषों ने कीं। देह का विमर्श करने वाली स्त्रियाँ भी आस्था, प्रेम और आकर्षण के खूबसूरत सम्बन्ध को शरीर तक केन्द्रित कर रचनात्मकता की उस सम्भावना को बाधित कर रही हैं जिसके त...हत देह से परे भी ऐसा बहुत कुछ घटता है जो हमारे जीवन को अधिक सुन्दर और जीने योग्य बनाता है।"
मैं सहमत हूँ, पर फिर भी औरतों के लिए ऐसी भाषा के सख्त खिलाफ हूँ, चाहे वह दक्षिणपंथी हो या वामपंथी.इस तरह की भाषा ही औरतों को सिर्फ एक आब्जेक्ट के रूप में प्रस्तुत करती है, जिसके बारे में कोई भी अपने विचार प्रस्तुत कर सकता है, उसके लिए आदर्श की स्थापना कर सकता है और ये अपेक्षा करता है कि औरतें उसी पर चलें. मैं ये कहती हूँ कि अगर औरतें ऐसी बातें लिख भी रही हैं, तो समय उन्हें देखेगा. आप कौन होते हैं कहने वाले?
और ये जो आपने प्रगतिशील और नारीवादी आंदोलन के अंतर्विरोधों की बात कर रहे हैं, ये मुद्दा खुद नारीवाद के समक्ष एक बहुत बड़े विमर्श का मुद्दा रहा है. नारीवादियों ने वामपंथी दलों में ही औरतों को उचित प्रतिनिधित्व ना प्रदान करने के लिए समय-समय पर प्रश्न उठाया है.
इन सारी बातों में मुझे दुःख इस बात का होता है कि नारीवाद की सबसे अधिक आलोचना वे करते हैं, जिन्हें उसकी बारहखड़ी तक नहीं आती. 
3 August 2010 02:19

Sunday, August 1, 2010

क्या स्त्रीमुक्ति मात्र देह मुक्ति है? ................हिन्दी लेखिकाओं को 'छिनाल' कहने पर विवाद .....आपकी राय क्या है? neeshoo tiwari

"शहर में कर्फ्यू " पुस्तक से हुए विख्यात विभूति नारायण राय के द्वारा दो अखबारों में हिन्दी लेखिकाओं को 'छिनाल' कहने पर विवाद को नया रंग मिल गया है........'छिनाल' शब्द का अर्थ  चरित्रहीन होता है.......विभूति राय ने अपनी बात को और आगे बढाया की देह मुक्ति ही स्त्री मुक्ति जो भी मान रही हैं वह भ्रम में जी रहीं हैं .......जिस पर मैत्रेयी पुष्पा ने विरोध दर्ज कराया है.....उनका कहना है ......महिला लेखन में देह के विमर्श के खुलकर सामने आने को स्त्री मुक्ति की संकीर्ण परिभाषा नहीं मानती हैं.  "इसमें क्या संकीर्ण है कि अगर वो (महिलाएं )अपनी ज़िन्दगी अपने मुताबिक जीना चाहती हैं, घर से बाहर निकलना चाहती हैं. आपसे बर्दाश्त नहीं होता तो हम क्या करें, पर आप क्या गाली देंगे?"
इसके उलट राय साहब कहते हैं की " महिला विमर्श में बृहत्तर संदर्भ जुड़े हुए हैं तो सिर्फ शरीर की बात करना उन्हें सही नहीं लगता...........बल्कि और भी मुद्दों पर बात होनी चाहिए ....
इस पर आपकी क्या राय है? क्या स्त्रीमुक्ति मात्र देह मुक्ति है? 
जहाँ तक महिलाओं की बात है तो चोखेरबाली ब्लॉग पर सुजाता जी का लिखा पोस्ट "धर्म से टकराए बिना स्त्री मुक्ति सम्भव नही" आज की विचारधारा " स्त्रीमुक्ति" को देखा जा सकता है.....वास्तव में 'महिला मुक्ति " शब्द है क्या ? आधुनिक नारीवादी " फेमेनिस्ट " महिलाएं आखिर कैसी मुक्ति का राग अलाप्ती हैं ? कोई तो धर्म , कोई तो देह और कोई कर्म की बात करता है........आखिर आधुनिक जीवन शैली में किसे मुक्ति माना जाना चाहिए ? ये तो आधिनुकतावादी   महिलाएं ही दे सकती हैं ..........पर इस सब पर विचारों की मुक्ति ज्यादा महत्व रखती है.......देह दिखाना न दिखाना ये महिलायों पर है( उनकी मर्जी ) लेकिन कम कपडे या पार्टी और मस्ती( खुलेपन )  को कभी भी महिला मुक्ति नहीं माना जा सकता .......
आपकी राय क्या है????????