जन संदेश

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Tuesday, December 23, 2008

लौट आये वो

वक्त बीतता गया उन लम्हों के साथ,
जिसमें थी मेरी तन्हाई,
अन सुलझे हुए मुद्दों पर
आज नहीं होती है लडाई,
सोचता था ,
चाहता था,
जो कुछ भी मैं,
वो सब कुछ मिल गया,
पर
अब भी कसक उठती जहन में,
किस बात से थी रूसवाई,
सब बदला नहीं आज भी,
जो साथ हम आज भी,
बुनता हूँ यादों का ताना बाना
कुछ अकेले में,
वो प्यार या थी बेवफाई,
कभी-कभी रो लेता मैं चुप होकर
आंसू जिसे मोती कहती थी वो,
अब आते नहीं क्यों ?
मालूम नहीं ,
जो कुछ हुआ अच्छा हुआ,
हम साथ अब,
शायद यह थी-
प्यार की आजमाइश,
कहना भी डर डर के,
हर लफ्ज को,
फिर से न आये ये ,
रूसवाई।,

क्या है ये जिंदगी

क्या है ये जिंदगी
चलती है कुछ यूँ ही,
सारे हैं रास्ते
जिस पर मंजिल चली,
बातें होती रही
रातें सोती रही
सामने उनके है कुछ मजबूरियां
पास हैं फिर भी कुछ दूरियां,
कुछ ऐसी है ये जिंदगी,

Saturday, December 6, 2008

आंसू

उस दिन जब मैंने तुम्हारा हाथ पकड़ा ,

तो तुमने कहा..... नही..
और चंद आंसू जो तुम्हारी आँखों से गिरे..
उन्होंने भी कुछ नही कहा... न तो नही ... न तो हाँ ..
अगर आंसुओं कि जुबान होती तो ..
सच झूठ का पता चल जाता ..
जिंदगी बड़ी है .. या प्यार ..
इसका फैसला हो जाता...


विजय जी द्वारा लिखित