वक्त बीतता गया उन लम्हों के साथ,
जिसमें थी मेरी तन्हाई,
अन सुलझे हुए मुद्दों पर
आज नहीं होती है लडाई,
सोचता था ,
चाहता था,
जो कुछ भी मैं,
वो सब कुछ मिल गया,
पर
अब भी कसक उठती जहन में,
किस बात से थी रूसवाई,
सब बदला नहीं आज भी,
जो साथ हम आज भी,
बुनता हूँ यादों का ताना बाना
कुछ अकेले में,
वो प्यार या थी बेवफाई,
कभी-कभी रो लेता मैं चुप होकर
आंसू जिसे मोती कहती थी वो,
अब आते नहीं क्यों ?
मालूम नहीं ,
जो कुछ हुआ अच्छा हुआ,
हम साथ अब,
शायद यह थी-
प्यार की आजमाइश,
कहना भी डर डर के,
हर लफ्ज को,
फिर से न आये ये ,
रूसवाई।,
1 comment:
वाह ! कोमल भावों को सहजता और सुन्दरता से अभिव्यक्त किया है आपने.
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