जन संदेश

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Monday, March 31, 2008

वास्तविकता और ग्लैमर पत्कारिता की।

मीडिया को चौथा स्तम्भ कहा गया है लोक तंत्त का । और ये बहुत हद तक सही भी है । अगर पत्कारिता न होती तो ये लोकशाही का चोला पहने हुए नेता आजाद रहते । किसी का डर नहीं होता पर मीडिया ने इन लोगों पर जरूर लगाम लगाया है। । और बीते कुछ वर्षओं में जो स्टिंग आपरेशन हुए उससे ये नेता और भी सजग हो गये।
पत्कारिता में कैरियर बहुत ही उज्ज्वल है पर आपमें दम होना जरूरी है आपकी जड़ मजबूत होनी।चाहिए। मीडिया संस्थान की भरमार है ,अब आप को ये देखना है कि आप के लिए सबसे अच्छी शिक्षा कौन दे सकता है। ये आपको स्वयं चुनना होगा। वैसे भी चलये आपने पढ़ाई पूरी कर ली तोअब आप को आवश्यकता होती है किसी भी चैनल या फिर एन जी ओ या फिर न्यूज पेपर में जाब मिले जिससे रोजी रोटी आगे बढ़े।
बड़ी भाग-दौड़ करने के बाद जाब कहीं न कहीं तो मिल ही जाती है, कयोंकि भारत में पता नहीं कतने अखबार निकलते है , चैनल सुरू होते हैं और कब बंद हो जाते हैं ै तो इसमें आसानी से स्थान बनाया जा सकता है।चलिये जनाब नौकरीमिल गयी।।
अब प्रमुख बात कि हमने पत्रकारिता को क्यों चुना ? आखिर हम इस फील्ड में क्यों आये ? कुछ उद्देश्य होगें कुछ मन में सपना रहा होगा?इसलिए आये ।
समाज के विकार को दूर करने के लिए प्रयास कर सकें इस लिए आये।पर सच्चाई तो कुछ और ही हो जाती है । क्योंकि किसी किताब में मैने पढ़ा था कि आजादी के पहले की पत्रकारिता एक जज्बा थी ,आग थी। और एक उद्देश्य को लेकर चली थी । वैसे आज भी पत्रकारिता का उद्देश्य पर वह है खुद को लाभ पहुचाना। एक रोजगार बन गया है यह । कलम की ताकतपैसे के सामने झुकती है, कलम की धार में वो पैना पन नहीं रहा जो कि होना चाहिए ।।
मैं भी पत्रकारिता का छात्र हूँ और इस लिए अभी तक मेरे सोच के अनुसार- मैं पत्रकारिता को एक रोजगार के रूप में देखूँ तो ही अच्छा रहेगा।।
्।
समाचार ,अखबार वो माध्यम है जो कि लोकतंत्र की शक्ती हैं और इनका ये व्यवसायीपन कहां तक सही है ?आखिर आम जनता का क्या होगा ? कई अखबार ऐसे हैं ( नाम लेना उचित नही है) जिनमें खबरें कम और एडव्रटीजमेंट ज्यादा होता है । । एक पालिशी के तहत सारा काम होता है । अगर आप स्वातनत्रत लेखन को सोचके आये हैं इस फील्ड में, तो बदालिए खुद कोनहीं तो आगे बहुत मुशकिलें आने वाली हैं।।
एक पत्रकार के सारे सपनोंं को टूटता देखता ह मैं । संपादक की कुर्सी पे बैठा है व्यवसायी । खबरों की सच्चाई को कत्लेआम कर देता । ँदुख भी होता और घुटन भी पर क्या कर सकते हैं ? इसी तरह से जीना है । यही है वास्तविकता पत्रकार की......

गरीबी ही का तो दुख है


मेरा लड़का डाक्टर बनेगा , मेरालड़का इंजीनियर बनेगा ऐसा सपना हर मां बाप अपने बच्चओं के लिए देखा करते हैं । आखिर कौन नहीं चाहता कि उसके बच्चे खुशहाल रहें। बात शिक्षा की है । सपने देखना अच्छा होता है पर सपनों को सच करना तो थोड़़ा मुश्किल काम होता है हां अगर सही दिशा में प्रयास करें तो कुछ भी सम्भव है । "कौन कहता है कि आसमां में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तबियत से तो उछालों यारों " ये एक ऐसा शेर है जो जगाता है आशावादी सोच को कुछ कर गुजरने के माद्दे को।
आज की शिक्षा का स्तर बहुत अच्छा होते हुए भी अच्छा नहीं है .स्कूल के अलावा भी ट्यूशन का फैशन चल निकला है जैशे इसके बगैर शि्षा अधूरी सी हो गयी है।आम आदमी की बात की जाय तो आज के समय में आम आदमी के लिए बच्चओं को अच्छी पढ़ाई करना बहुत ही मुशकिल हो गया है। क्यों कि महगाई की रफतार से आय की रफतार कहीं ज्यादा ही धीमी है। तो ऐसे में अच्छी पढ़ाई के लिए अच्छा पैसा भी होना आवश्यक हो गया है , अगर किसी मध्यम वर्ग के परिवार में दो बच्चे हैं तो बहुत हीहठिनाई के साथ उनको पढ़या जा सकता है । वो भी इण्टर तक{12 वीं क्लास } । इसके बाद की बात की जाय तो लोग आज केवल प्रोफेशन कोर्स को पढ़ना ज्यादा अच्छा मानते है ,और बात भी सही है क्यों कि पढ़ाई कर के लड़का तुरंत हीकमायी करे यही चाहते हैंसभी । पर प्रोफेशनकोर्स कि फीस की बात ही क्या है दिन दूना रात चौगुना बढोत्तरी हो रही है तो आप बताइये कि इतना पैसा आयेगाा कहां से । अगर कहीं से आभी जाता है तो उसकी भर पाई कैसे होगी । दो जून की रोटी जिसको बमुश्किलन नसीब हो रही है वह भला ऐसा रिश्क कैसे ले सकता है।
हां सरकार के द्वारा एजुकेशलन लोन की व्यवस्था जरूर है पर ये लोन उसी को आसानी से मिलता है जिसके पास पहले से कुछ है या फिर मोटी रकम को दिया बैंक के अफसर को। तो इतना झंझट कौन करे हां ।हांपर जिन्होंने किया है वे अपने आप में मिसाल जरूर हैं । रोजगार के अवसर बहुत है पर पैसे वालों के लिए ही।
पढ़ाई का स्तर सुधरा है पर गरीब के लिए नहीं । मतलब जो अमीर हैं वो तो अमीर बनेगे ही न। भला गांव का मजदूर क्या सोचेगा ये सब बस .जिने कमाने में ही पूरा जीवन कट जाय बहुत है ।
कुछ कार्यक्रम बनाने से नही बदल सकता है गरीब घर । और इनको ही बदलना है अब कैसे ?
कोई चमत्कार तो होगा नहीं. करना तो हमको ही होगा न तो हम जो कर सकते है वो करें यह हमारे ऊपर है कि हम क्या कर सकते हैं।।।
सपने के भारत में आखिर इन लोगों का भी तो सपना जुड़ हुआ है न।तो इनके बारे में भी सोचना ही होगा??

Saturday, March 29, 2008

रिश्ते में क्यों आगयी कडुवाहट ?

जीवन की इस भाग दौड़ में रिशते कुछ धूमिल हो गये हैं, आपस में एक दूसरे पर अविश्वास की गहराई में दिन-प्रतिदिन जो फासला है वो बढ़ता ही जा रहा है।।कुछ रिश्ते टूटते हैं तो कुछ नये रिश्ते भी बनते हैं यह सिलसिला जीवन भर ऐसे ही चलता रहता।नये रिश्ते को बनाना मुश्किल नहीं पर पुराने रिश्ते को कायम रखना मुश्किल है ,जो न जाने कब से है हमारे साथ ,शायद जब हम बोलना नहीं जानते थे या फिर हम चलना नहीं जानते थै।
जिन हाथों का सहारा पकड़ के चलना सीखा . जिनके आवाज से तुतलाकर बोलना सीखा । आज उन रिश्तों को हम कहीं दूर छोड़ आये है ,आखिर में मानवता का गला हमने घो़ट दिया ,हम जब भी कुत्ते को पालते तो आमतौर पर यही सोच के कि हमारे दरवाजे पर किसी के आने पर भौकेगा जरूर.
,अपने मालिक के प्रति वफादारी निभायेगा। जब हम जानवर से ये उम्मीद लगा सकते हैं या लगाते हैं, तो हम तो मानव हैं इस सृष्टि की सबसे सुन्दर रचना,जो समझता हैदूसरे के प्रेम को उसकी भावनाओं । आज हम अपने जिगदीं को सवारने वाली कड़ी के अस्तित्व को इन्कार कर रहें , आखिर कल जब यही मेरे साथ होगा तब. वर्तमान में है हम। कितना गलत है ये हमको भी पता हम भी जानते ,पर बहाना बना कर लिया अनजान होने का , चादर ओढ़ ली है दिखावे और भूलते जा रहें नाते रिशते।
जब अपने से ज्यादा करीबी कोई पराया लगता है तो क्यों टूट जाता है इंसान इतना , वैसे समय का नजरिया यही है और माग भी यही है। इस भीड़ में भी मिल जाते है अन्जान े चेहरे कुछ पल को पर हाथ नहीं बढ़ता जिदगी भर साथ निभाने को ।
किसी को समय नहीं है , किसी के पास पैसे नहीं और किसी के पास सबकुछ है तो भी वह भूलता जा रहा है अपने अपने उस जड़ को ,उस नीव को जिस पर की आज ये आली शान इमारत बनी है । ऐसेनहीं तैयार होता है गुलशन में फूल , आखिर माली ने तो बहाये ही होगे पसीने अपने सीचा होगा अपने खून से । पर अहिमियत को भूल कर हमने दिखाया ये कि हम को नहीं खुद को भूल गये है , खुद को भूल गये हैं।
आइयेसोचे और मनन करे इस पर ।।।

द्रविड़ दसहजारी

राहुल द्रविड़ ने अपने टेस्ट करियर के दस हज़ार रन पूरे किए.इसके लिए द्रविड कि बधाई
चेन्नई टेस्ट के चौथे दिन दक्षिण अफ़्रीका की टीम ने दूसरी पारी में एक विकेट के नुक़सान पर 131 रन जोड़कर भारत से 44 रन की बढ़त ले ली है. रविवार को मैच का आख़िरी दिन है.उसके पास नौ विकेट बचे हुए हैं और आख़िरी दिन ही भारत को भी दूसरी पारी खेलने का मौक़ा मिल सकता है. ऐसे में मैच के ड्रॉ होने की संभावना बढ़ गई है.पिच पर नील मैकेंज़ी और हाशिम अमला बने हुए हैं. मैकेंज़ी ने 59 रन जबकि अमला ने 35 रन बनाए हैं.इससे पहले कप्तान ग्रैम स्मिथ को दूसरी पारी की शुरुआत में ही 35 रन के स्कोर पर हरभजन ने एलबीडब्लयू आउट कर दिया था.
भारत ने पहली पारी में 627 रन बनाए हैं वहीं दक्षिण अफ़्रीका की टीम ने पहली पारी में 540 का स्कोर खड़ा किया था.
तीसरे दिन के खेल तक भारतीय टीम ने मात्र एक विकेट के नुक़सान पर 468 रन बना लिए थे लेकिन चौथे दिन 319 रन बनाकर सहवाग जैसे ही पेवेलियन लौटे, भारतीय पारी लड़खड़ा गई.दक्षिण अफ़्रीका के गेंदबाज़ों ने चौथे दिन मात्र 159 रन देकर ही भारत के नौ विकेट झटक लिए.
मैच में सहवाग के बाद अगर किसी ने कुछ ख़ास योगदान दिया तो वे राहुल द्रविड़ और वीवीएस लक्ष्मण रहे.द्रविड़ ने 111 रन बनाए और इसके साथ ही अपना नाम टेस्ट क्रिकेट में दस हज़ार बनाने वालों की सूची में शामिल करा लिया. दस हज़ार रन पूरे करने वाले वे दुनिया के छठें खिलाड़ी बन गए हैं.
सहवाग के आउट होने पर सचिन तेंदुलकर आए लेकिन वे बिना कोई रन बनाए ही पेवेलियन लौट गए.
धीरे-धीरे शतक की ओर बढ़ रहे द्रविड़ का साथ देने के लिए सौरभ गांगुली मैदान में उतरे लेकिन वे 24 रन बनाकर आउट हो गए. इसके बाद द्रविड़ को 111 रन के निजी स्कोर पर कैलिस ने लपक लिया.
इसके बाद धोनी भी 16 रन बनाकर पेवेलियन लौट गए. धोनी के बाद अनिल कुंबले, हरभजन सिंह और आरपी सिंह भी कुछ-कुछ देर के अंतराल पर लौट गए.
अंतिम विकेट के लिए पहुँचे श्रीसंत ने चार रन बनाए ही थे कि 39 के निजी स्कोर पर खेल रहे लक्ष्मण को हैरिस ने आउट कर दिया. पूरी भारतीय टीम 627 रन बनाकर आउट हो गई.

Friday, March 28, 2008

मेरे जीने का सहारा

प्रिये ,
क्यों अब आती हो इतनी देर से,
जबकि तुमको ये पता है कि -
मै कर नही पाता इंतजार,
कुछ ही पल में हो जाता हूँ बेकरार,
क्या तुम्हें कोई नया खेल सूझा है ,
मैंने तो तुम को ही पूजा है,
फिर आखिर क्यों आती हो इतनी देर से।।
जानती हो प्रिये -
अब तो करता हूँ मैं इंतजार हमेशा रात का और ,
उसमें तेरे साथ का ,
जब मिलते हैं हम दोनों कुछ पल के लिए ,
इन पलों में मैं जीता हूँ पूरी जिदगी,
पर
अब तुमने भी कम कर दिया आना ,
और
आती भी हो तो देर से,
क्या तुम भूल गयी हो मेरा प्यार ,
हम रह नही पाते थे एक दूसर के बिना,
सो नहीं पाते थे सारी - सारी रात ,
वो याद है पूनम की रात जब हम मिले थे बगीचे में ,
और पूरी रात गुजार दी थी हमने एक-दूसरे को ताकते हुए,
और फिर तुम अचानक सी जगी थी ,
आयी थी होश में जैसे,
हड़बड़ाहट में छोड़ गयी थी पाजेब निशानी अपनी,
शायद तुम तो भूल ही गयी हो ,
पर
मैं कैसे भूलूँ ,
यही तो हैं मेरे जीने का सहारा ,
मेरे जीने की ख्वाहिशें ,
हकीकत में नसही पर ख्यालों ,
ख्वाबोंें में तुम मेरी हो ,
कोई नही कर सकता जुदा हमको,
तुम भी नहीं।।

संस्कार या फिर परवारिश में आ रही है गिरावट

भारतीय समाज की अपनी अलग विशेषताहै ,जिसके कारण यह अपनने आप में विश्व के हर समाज से भिन्न है। मैंने कुछ दिनों पहले पहले धर्म और आस्था के विषय को चुना था । परआज समाज के महत्व को सामने रखने की इच्छा है। बात युवा पीढ़ी से करें तो हम आज विश्व के सबसे युवा देशमें गिने जाते हैं। और हमारे समाज के बागडोर अनुभव और समझदार बुजुर्गों के हाथ में होती है जो कि सही सलाह और सही मार्गदर्शन कराते हैं किसी भी पहलू पर ।।
जब हमारे यहां कोई बच्चा होता है तो ऊत्सव का माहौल होता है खुशियां मनायी जाती है । बच्चे को बचपन से लेकर युवा अवस्था तक पहुँचते हुऐ अनेक आचरण सिखाये जाते है। जैसे - बड़ों को सम्मान देना, माता पिता एवं अपने बुजुर्गों का आदर करना। बात संस्कार की आज मेरे मन में है जिसके लिए मैंने ये ताना बाना बुना है। हमने जिस संस्कार का विवरण ऊपर दिया है वो आज दिखते है पर ये संस्कार कुछ नकुछ धूमिल होते जा रहेंहै।। मैं ये नही कहता कि आज हमारेसंस्कार खत्म हो रहे है। पर कुछ न कुछ कमी जरूर हो रही, चाहे हो पालन-पोषण में हो या फिर परिवार के लोगों का बच्चों की परवरिश में आभाव हो।
हमारे नैतिक स्तर के स्तर में गिरावट हुई हैयह बात हम सब को माननी ही होगी।
हम अपने को बहुत पढ़ा ंलिखा होने पर बड़ों को सम्मान देना भूल जाते हैं ऐसा होते मैंने देखा है । आज के युवा का चलन आपने से बड़ों से मिलने का जो है वो है हाय, हैलोतक सीमित रह गया है।
कुछ दशक की बात करें तो हम अपने बुजुर्गों को झुककर पैर छूते थे ,यहां पर पैर छूने से जो मतलब था वो मात्र था सम्मान देने का ।
पर आज इस तरह के दृश्य हमको देखने को मिलता है कि जब बेटा बाप से मिलता है तो हाथ मिलाता है आखिर कहां गया वह भारत जहां कि हम अपने से बड़ो के लिए अपना स्थान छोड़ देते थे। । यह बदलाव विकास का है या फिर पाश्चात्य सभ्यता का है, जिसके की हम गुलाम होते जा रहें है। अच्छी बाते ं हमें हर समाज से लेनी चाहिए वो चाहे जितना बुरा कयों न हो पर बुरे समाज की बुराईयों को हम बहुत अच्छे से ले रहें है।
मुझे दुख हुआ तब जब मै आजअपने दोस्त के घर गया (जहां पर मुझे ये बताया गया था जकि हमेशा बडोंको आप सम्मान दो) वहीं मुझे उनसे हाथ मिलाना पड़ा । बहुत ही अटपटेतौर पर मैंने हाथ मिलाया और मन में यह बात बार-बार सोचता रहा कि क्याहमारे आजेहमसे दूर जा रहें है । कयों इतना बदलाव आगयाहममें । ।बाबा की बाते आज भी याद आती हैं हम को, कि भैया( साहब प्यारसे पुकारते थे) तू रोज सबेरे उठके अपने से जेतना जने बड़ा अहइ उनकै गोड़ धरा करा ( अवधी भाषा के शब्द थे ) ।
न जाने ये बात जादू जैसी लगती है।।

मुल्तान का सुल्तान आज चेन्नई में आग उगालता हुआ।।।


क्षिण अफ़्रीका के ख़िलाफ़ चेन्नई टेस्ट में वीरेंदर सहवाग के धमाकेदार दोहरे शतक की बदौलत भारत ने अपनी स्थिति मज़बूत कर ली है .दक्षिण अफ़्रीका ने अपनी पहली पारी में 540 रन बनाए हैं.
वीरेंदर सहवाग के धमाकेदार बल्लेबाज़ी से दक्षिण अफ़्रीकी गेंदबाज़ों के छक्के छुड़ा दिए. उनकी आक्रमक शैली का आलम ये था कि उन्होंने किसी भी गेंदबाज़ को नहीं बक्शा चौकों की तो उन्होंने बरसात कर दी. उन्होंने दोहरा शतक केवल 195 गेंदों पर 32 चौके और 2 छक्के लगा कर पूरे किए.वसीम जाफ़र ने भी अच्छी पारी खेली
तीसरे दिन के खेल में सहवाग ने अपना वही खेल दिखाया, जिसके लिए वे जाने जाते हैं. सहवाग के टेस्ट करियर का ये तीसरा दोहरा शतक है.सहवाग अपने टेस्ट करियर में तिहरा शतक भी लगा चुके हैं. ऐसा करने वाले वे भारत के पहले खिलाड़ी बने थे. सलामी बल्लेबाज़ के रूप में वसीम जाफ़र ने सहवाग का अच्छा साथ निभाया.जाफ़र ने 73 रन बनाए और पॉल हैरिस की गेंद पर कैलिस के हाथों कैच आउट हुए. .
लेकिन वे शतक लगाने से चूक गए और लंच के बाद 73 रन बनाकर आउट हुए. उनके आउट होने के बाद राहुल द्रविड़ पिच पर पहुँचे. लेकिन एक बार फिर वे काफ़ी धीमी पारी खेल रहे हैं.
दक्षिण अफ़्रीका की ओर से हाशिम अमला ने सर्वाधिक 159 रन बनाये।
सहवाग ने अभी तक २८१ रन बना लिया है । और जिसमें ४१ चौके और४ छक्के शामिल हैॅ आश्चर्य नहीं होगा जो सहवाग यहां पर आपना तीसरा शतक ब्नाते हैं ।।

Thursday, March 27, 2008

गजलः बने तो मौत बने

जब लगा खत्म हुई अब तलाश मंजिल की,
धोखा था नजरों का वो इसके सिवा कुछ भी नहीं।

समझा था कैद है तकदीर मेरी मुट्ठी में,
रेत के दाने थे वे इसके सिवा कुछ भी नहीं।

मैं समझता रहा एहसास जिसे महका सा,
एक झोका था हवा का वो इसके सिवा कुछ भी नहीं।

मैं समझता रहा हूँ जिसे जान, जिगर , दिल अपना,
मुझे दीवाना वो कहते हैं और इसके सिवा कुछभी नहीं।

आजकल प्यार मेैं अपने से बहुत करता हूँ,
हो ये ख्वाब इसके सिवा कुछ भी नहीं।

लगा था रोशनी है दर ये मेरा रोशन है,
थी आग दिल में लगी इसके सिवा कुछ भी नहीं।

तेरे सिवाय जो कोई बने महबूब मेरी,
बने तो मौत बने इसके सिवा कुछ भी नहीं।

क्या सामाजिक सोच में ही है बुराई?

समाजसेवा की बात आते ही ही हम अपने पैर पीछे खींच लेते है। अनेक बुराई होने पर भी हम विश्व में अभी भी सबसे अच्छे है। बात बाल विवाह की करें या फिर दहेज प्रथा की ।इन बुराइयों को हम हमेशा ही देखते है और देख कर आंख मूद लेते हैं।अपने आप में इतना स्वारथी होना कभी -कभी खुद के लिए बहुत ही घुटन भरा होता है। समाज को पढ़ा-लिखा करने की बात होती है हमेशा ही ,पर मेरा ये मानना अभी भी है कि जो जितना पढ़ा-लिखा होता या जितनी ऊँची पोस्ट पर होता है ,उसको उतना ही दहेज मिलता है वह आराम से लेता भी है ।
मैं मानता हूँ कि अगर मेरे बहन होति और जब हम उसकी शादी कहीं करते तो हमें दहेज जरूर देना होता कयों कि दहेज आज के समाज में मानव मुल्यों और उनके स्तर को नापने का तरीका है। यहां पर क्या पढ़ाई का कोई योगदान है इस बुराई को हटाने में। नहीं बिल्कुल भी नही। हमसे कुछ साल पहले मां ने पूछआथा कि तुम क्या दहेज लोगे तो मैने कहा था कि हां लूँगा कयोनंकि शादी एक ही बार होती है और इस मौके को कैसे जाने दूँगा। मेरी सोच अपरिपक्कव थी । पर जब दुनिया में कदम रखा तो यहसंकल्प किया कि कम से कम में इस बुराई को तो स्वयं में नही आने दूगा। समाज को नहीं बदल सकता पर खुद को बदलूँगा।। वैसे भी एक -एक के परिवर्तन से ही समाज बदलता है।
हां तो बात यह थी जो अपनी बहन के लिए दहेज देता है वह अगर चाहे तो दहेज न ले और इसके लिए उसे कोई भी मजबूर नही कर सकता है हां ये जरूर हो सकता है कि परिवार के कुछ लोगो के आशाओं पर प्रभाव पड़े जिन्होंने कुछ सपने पाल रखे होगे दहेज से।।
वैसे भी कुछ अच्छा करने के लिए हमेशा ही विरोध हुआ है और होता ही रहेगा । स्वयं से यह बात लानी होगी किसी के कहने से नही । खुद प्रयास करना होगा।।

Wednesday, March 26, 2008

ख्वाब में ...........प्यार में .......

ख्वाब में ...........

इस ख्वाब की दुनिया से निकालो हमको,
हक तुम जो समझती हो तो अपना बना लो हमको।
वैसे भी बदनाम है हम इस जमाने में,
चाहो तो डूबो दो या तो बचा लो हमको।।



प्यार में .......
सारी-सारी रात जागता हूँ तुम्हारे प्यार में,
जिंदगी का हरपल काटता हूँ इंतजार मे।
आखिर बात तो होती है अब हर रोज ही,
फिर क्यों डरता हूँ तुमसे इजहार में।।

धर्म और आस्था

धर्म और संस्कृति हमेशा मेरे लिए विषमय की स्थिति पैदा करती रही है।साथ में धर्म के साथ ही आसथा को जुड़ते हुए सुनता हूँ । कई सवाल मन को कुरेदते हैं । और कोई ऐसा अवसर नही मिला या आया कि मेरे प्रशनों सही सही जवाब मिल सके। धर्म तो समझना आसान है कयों कि ये हमारे समाज के कुछ लोगो में पुराने समय में कार्य के अुनुसार ही बना दिये थे । जिसका बिगड़ा हुआ रूप आज हम समाज में ऊच-नीच एवं भेदभाव के रूप में पाते हैं।
धर्म से जुढ़ा हुआ शब्द आस्था है, जिसका कि समाज के कुछ विशेष वर्ग लोग अपनी आवश्यकता और इच्छा के अनुसार लाभ उठाते हैं। भारतीय लोग धर्म को बहुत ज्यादा महत्व देते हैं जिससे उनकी आस्था का भी प्रश्न आता है ,तो ऐसे ईश्वर और भगवान को सामाजिक स्तर पर गुरूओं औरमठाधीशों ने अपने अनुसार अल्लेख किया है। मै इस बात पर नहीं जाना चाहता कि ईश्वर हैकि नहीं अन्यथा विषय बदल जायेगा।
भारतीय लोग बहुत भोले है यह बात सिध्ध है , किसी भी बात को बहुत जल्दी मान लेते हैं विश्वास कर लेते हैं। पर इस धर्म और आस्था के पीछे जो खेल होता है उससे वे अन्जान होते है। महागुरू, सतगुरू ,आचार्य इत्यादि पदवी धारक हमारे बीच है, हो सकता है आपमें कुछ उनके मानने वाले हो तो उनसे माफी चाहूँगा । कुछ समय पहले इलाहाबाद से बनारस जा रहे स्वामी जी को गोलियों सेभूना गया, वजह का पता अब तक न चल सका। और स्वामी जी के कार में केवल १९ वर्ष से २१ वर्षकी लड़कियां थी । जो नेपाल की थी।
ये संत , महात्मा समाज में ईश्वर को सहारा बना कर समाज में अनेक अपराध कर रहें है, और करते रहेगें क्यों कि हम इतने भोले जो है।
बाबा जी का शिविर लगता है तो इंटृी फीस तय की जाती है .आखिर बाबा जी को मोह माया से क्या मतलब ? लेकिन मतलब है, नहीं तो बाबा को महगी कार कहां से आयेगी?ऐशोआराम कहां से होगा? तमाम तरह के ऐसे मादक पदार्थ का सेवन होता है इन मठों में जो कि अववैध है पर कोई कुछ नही कर सकता । हम तो बस आखं मूद कर चलते हैं।। बाबा बनकर लोगो को लूटों कयोकि हम लुटाने को तैयार जो है।।।।

Tuesday, March 25, 2008

चोरी की सजा

बात कल शाम की करना चाहता हूँ. समय ७ बजे मार्केट में सामान लेने निकला था ,साथ में चाय की चुस्कियां भी लेनी भी वापस लौट रहा था तो गली से एक बच्चे के पीछे तीन बच्चे भाग रहे थे । मैने सोचा कि खेल रहे होगे क्योंकि बहुत ही गन्दे कपड़े थे .जिसके देख कर यही लगता था कि बहुत ही नीचे तबके के है । मैं जल्द ही वहां से अपने रूम पर आगया।
बाहर बालकनी में खड़ा था मैं और सड़क पर आते जाते लोगों को देख रहा था । जिस लड़के को मैंने गली में देखा था उसको पकड़ कर एक अंटी मार रही थी , मुझे देख कर यही समझ में आ रहा था कि वे सब लोग उस लड़के पर चोरी का इल्जाम लगा रही थी । कुछ चार पांच लोग काजमवाड़ा था, तभी एक अकल जी आये और बिना कुछ पूछे ही उस बच्चे को कई थप्पड़ जड दिये और वह फिर भाग गया। उसने चोरी की थी कि नही ये पता नहीं चला ?पर ये बात जरूर थी कि वह गरीब था ,यही उसकी लाचारी थी।
किसी को मारने का हक किसने दिया है उन महाशय को । अगर उसने चोरी की भी है तो यह सजा देने कौन होते है ? और क्या वह बच्चा इससे सुधर जायेगा ?।

एनकाउंटर

दिल्ली पुलिस के 'एनकांउटर विशेषज्ञ' माने जानेवाले एसीपी राजबीर सिंह की सोमवार रात दिल्ली से सटे हरियाणा के गुड़गाँव इलाक़े में गोली मारकर हत्या कर दी गई.वो दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा की स्पेशल ऑपरेशन टीम के प्रमुख थे.
राजबीर सिंह को एनकाउंटर विशेषज्ञों के रूप में जाना जाता था. उन्हें जेड प्लस सुरक्षा मिली हुई थी.
राजबीर सिंह गुडगाँव के एक प्रॉपर्टी डीलर के दफ़्तर में आए थे जहाँ उनकी गोली मार कर हत्या कर दी गई.
राजबीर सिंह 1982 में दिल्ली पुलिस में भर्ती हुए थे. उनका करियर उतार चढ़ाव भरा रहा.
उन्हें अनेक बार सम्मानित किया गया .
मुठभेड़ विशेषज्ञ राजबीर सिंह संसद और लाल किले पर हुए हमले की जाँच में भी शामिल थे
राजबीर सिंह अब तक 50 से अधिक मुठभेड़ों में शामिल रहे हैं.

कहानी कमली की ................

कमली आज बिल्कुल भी बोल नही रही थी कयों कि उसे मार पड़ी थी ,उसने घर का काम जो पूरा नही किया था।कमली के लिए ये कोई नयी बात नही थी , दिन या दो दिन में मार पड़ ही जाती थी बेचारी अपना गुस्सा चुप रहकर ही निकालती थी बिना किसी से बात किये हुए।
बचपन से ही अभागी रही थी , पैदा होते ही मां चल बसी और बाप का कुछ पता ही नही बचपन क्या होता है पता ही नही? रहने के लिए उसेमिला विशाल आकाश और खेलने के लिए प्रकृति की गोद। दुखमय जीवन में खुश रहने के सारे तरीके सीख लिये थे कमली ने।
हमेशा छोटी-२ बातों पर मुस्कुराती , सब की चहेती थी, पास की बुआ जी बहुत मानती थी कमली को। वैसे तो कपड़े और खाने की दिक्कत नही हुई पर प्यार नही मिला। इन सब बातों से परे हटकर कमली खुश थी। पढ़ाई का शौक था, पर उसकी चाची उसकी सबसे बड़ी दुश्मन थी, जानवरों जैसा वर्ताव था कमली के साथ, बात-बात पर पिटाई कर देती थी उसकी. इसीलिए आज भी घर का सारा काम न होने पर पिटाई की थी।
कमली को देखा नही था मैने ,केवल सुना था।
कमली को आज देखा मैने पर बात नहीं कर सकता था, वह सोचुकी थी गहरी नींद में हमेशा के लिएचल दी थीअनन्त यात्रा पर। मानों उपहास कर रही हो जमाने का किअब कौन छीन सकता है मेरी खुशी और मेरी हसी को?वह आजाद हो गई थी अपनी बेड़ियों कोतोड़ के वैसे भी उसकि हक नही था इस जहां में रहने का। जीवन के असीम आनंनद में कुछ भी नही था उसके लिए।
सफेद कफन सेढ़का उसका शरीर, और कफन के उपर कुछ गुड़हल और गेदें के फूलथे. शायद जिसके साथ वो कभी खेला करती रहीहोगी। वही साथ है उसके। पास बैठी कुछ औरतें और दूर पर शोर करते बच्चे।
कुछ देर तक मैं ररूका रहा उसके चेहरे को दखने के लिए। उसकी एक झलक पाने के लिए। काश कोई आये और उसके चेहरे से सफेद कफन को हटाये पर ऐसा नही हो रहा था। पेड़ की पत्तियों के बीच से सूरज की किरणें भी आज कमली को देखने के लिए व्याकुल थी. परेशान थी .पर वह तो चुपचाप सो रही थी किसी की परवाह किये बिना। ऐसे में हवा के एक झोके ने उसे जगाने का प्रयास किया था ,पर कमली तो न उठी पर उसके चेहरे से कफन जरूर हट गया था। कुछ देर तक मैं एकटक देखता रहाथा कमली को। कितनी मासूम ,कितनी भोली सूरत ।एकाएक मै उठकर चल दिया था वहां से दुख और ग्लानि लिये हुए मन में । मन में यही प्रश्न लिए कि उसने अपने को खत्म कयों किया ? आखिर क्यों?

Monday, March 24, 2008

सपुरस्टार बनना है क्या?


आप को सुपरस्टार बनना है ,तो चलिये मुम्बई चलते है। फिल्मों के बाजार मे कुढ ऐसी गरम खबरे हैं आज का चमकता सितारा सैफ अली खान है , हालिया रिलीज फिल्म रेस में अपने कम डायलाग और चहरे के बदलते भावों से दर्शकों पर जादू किया है।
फिल्म ओमकारा का बाहुबली वाला किरदार और रेस का यह किरदार एकदम अलग है, पर दोनों का अभिनय जबरदस्त है। चर्चा गरम है कि सुपरस्टार की मण्डी में सैफ का रेट हाई है, कभी अमिताभ ,तो कभी शहरूख , तो कभी आमिर खान सुपरस्टार की रेस में आगे पीछे होते रहते हैं पर अभी जो सितारा मुम्बई का चांद बन गया है वहहै सैफ अली खान ही है।
बीते दिनों में फिल्म ओम शांति ओम में शहरूख और फिल्म तारे जमीन पर में आमिर ने सुपर स्टार की पदवी के लिए दावे दारी पैश किये हुए है वैसे तो माया नगरी मुम्बई है कब क्या होजाये पता नही। पर उगते सूरज को सभी सलाम करते हैं। अब देखना है कि सूरज की गरमी कब तक रहती है।

गिलानी बने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री

पाकिस्तान की संसद ने सोमवार को देश का अगला प्रधानमंत्री चुन लिया है संसद ने पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के यूसुफ़ रज़ा गीलानी के नाम पर मुहर लगाई.प्रधानमंत्री चुने जाने के साथ ही उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ़ के आदेश पर आपातकाल के दौरान जिन जजों को हिरासत में लिया गया था वे उन्हें रिहा करने का आदेश देंगे.पुलिस ने पाकिस्तान के पूर्व मुख्य न्यायाधीश इफ़्तिखार चौधरी के घर के बाहर कटीली तार हटा दी है और उन्होंने बाहर आकर लोगों का अभिनंदन स्वीकार किया है
प्रधानमंत्री पद की दौड़ में गीलानी के ख़िलाफ़ राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ़ के समर्थक चौधरी परवेज़ इलाही ने भी पर्चा भरा था. परवेज़ इलाही को 42 वोट मिले जबकि गीलानी के खाते में 264 वोट गए.
पाकिस्तान में फ़रवरी में आम चुनाव हुए थे और पीपीपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी. अब एक महीने से भी ज़्यादा समय के बाद प्रधानमंत्री का चुनाव हो पाया है.
चुनाव में किसी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलने के कारण बेनज़ीर भुट्टो की पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी और नवाज़ शरीफ़ की पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज़) ने कुछ अन्य छोटे दलों के साथ मिलकर गठबंधन सरकार बनाने का फ़ैसला किया .
गठबंधन का सबसे बड़ा दल होने के नाते प्रधानमंत्री का पद पीपीपी को मिला है और उसने इस पद के लिए यूसुफ़ रज़ा गीलानी को मैदान में उतारा.
बेनज़ीर भुट्टो की पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी को क़रीब 12 साल बाद सरकार में आने का मौक़ा मिला है
पीपीपी एक ऐसे गठबंधन सरकार की अगुवाई करेगी जिसके पास नेशनल असेंबली में स्पष्ट बहुमत है.

Sunday, March 23, 2008

मझमे है दम


शीर्ष वरीयता प्राप्त सर्बिया की एना इवानोविच ने रूस की स्वेतलाना कुज़नेत्सोवा को सीधे सेटों में हराकर पैसिफ़िक लाइफ़ ओपन टेनिस प्रतियोगिता जीत ली है.
इवानोविच ने कुज़नेत्सोवा को सीधे सेटों में 6-4, 6-3 से मात दी. कैलिफ़ोर्निया के इंडियन वेल्स में हुई इस प्रतियोगिता का फ़ाइनल एक घंटे 21 मिनट तक चला.
पहले सेट में मुक़ाबला काँटे का था लेकिन ऐन मौक़े पर इवानोविच ने संयम दिखाते हुए जीत हासिल की और पहला सेट 6-4 से जीत लिया.
दूसरे सेट में तो इवानोविच ने पीछे मुड़कर ही नहीं देखा. उन्होंने तीन बार कुज़नेत्सोवा की सर्विस तोड़ी और 6-3 से सेट जीतकर ख़िताब अपने नाम किया.
इस प्रतियोगिता में कुज़नेत्सोवा को दूसरी वरीयता दी गई थी. ऑस्ट्रेलियाई ओपन की उप विजेता रहीं इवानोविच ने फ़ाइनल में शानदार खेल दिखाया और अपने करियर का छठा ख़िताब जीता.
पिछले 11 महीने में यह उनका चौथा ख़िताब है. 20 वर्षीय इवानोविच और कुज़नेत्सोवा को बीच छह बार मुक़ाबला हो चुका है और इवानोविच पाँच बार विजयी रही हैं.
दूसरी ओर कुज़नेत्सोवा को इस साल ये तीसरा फ़ाइनल था और तीनों बार उन्हें हार का मुँह देखना पड़ा. 22 वर्षीय कुज़नेत्सोवा वर्ष 2004 में अमरीकी ओपन चैम्पियन रही हैं.

अब तेरा फैसला

न ये दिन अब कटे,
न ही कटती हैं रातें,
बीते कुछ लम्हों की,
पास हैं सौगातें,
साथ तुम थी जब मेरे,
होश में न थे हम,
आगोश में आ गये ,
हम तो तेरे सनम।
न ये दिन अब कटे,
न ही कटती है रातें....2
प्यार ये है तेरा,
जादू मुझ पे हुआ,
जिंदगी का मेरे कर तू अब फैसला,
मुझको ये है यकीन,
मुझको है हौसला,
तू है मेरी
और
मै हूँ तेरा,
और
मै हूँ तेरा।
न ये दिन अब कटे..

Tuesday, March 18, 2008

धोखा तो खाना था

पल भर में सब सपने बिखर गये ,
वादे से वो अपने मुकर गये.
जो साथ निभाने की करते थे बातें,
कुछ पल में ही बिछ़ड गये।।
क्यों आश बधाई जीने,
क्यों साथ दिया कुछ पल का.
अब आश जगी जब जीने की,
तो बाीच राह में ही छोड़ दिया ।
आखिर ये नया जमान था ,
अनका ये खेल पुराना था,
हम राही थे अनजानें,
हर मोड़ पे धोखा खाना था।
मैनें समझा था जिसको अपना,
वो तो बेगाना निकला,
और की बात क्या करते,
जब मैने न खुद कोजाना,
अब चाह नहीं मुझको जीने की ,
बस बात यही अब करता हूँ,
अपनों ने ही जब दगा दिया ,
तो गैरों की खता कहां ?

Sunday, March 16, 2008

जो आज उनसे मुलाकात हुई

जो आज उनसे मुलाकात हुई,
आखों से ही दिल बात हुई।
सब सपने सच हो रहे थे
कुछ पल में,
ऐसा लगा -
जिदगीं की अभी शुरूआत हुई।।
हर पल जिक्र-ए-बयां करता रहा दिल ,
प्यार से प्यार करता रहा दिल.
बिन बातों में कह गये सब,
खुदा जाने -शायद पहली और आखिरी मुलाकात में ..
जो आज उनसे मुलाकात हुई............

अरे आइये फोटोग्राफी करें ...........

बात फोटोग्राफी की आते ही हम खुश हो जाते हैं, उछल पड़ते हैं। अपने चेहरे को (थोबड़े) को शीशे के सामने कई बार अलग-अलग कोण से निहारते हैं .आखिर भई जैसे हो वैसे ही तो दिखोगे ना। और एक बात आखिर अपने पूर्वज को देख कर तो संतोष कर ही सकते हो (बंदरों) , काफी कुछ सुधर गया है, और कुछ आगे भी सुधर जायेगा पर अफसोस कि तुम नही होगे देखने के लिए , हां अगर तुम्हारी आत्मा भटकती रही तो और बात है।
अच्छा एक बात जो मुझे हंसने पर हमेशा मजबूर करती है वो में आज आप लोगों के सामने कहना चाहूगा । आप ने शादी की फोटो देखी होगी और वीडियो सी डी भी।दुल्हन बेचारी इसमें बली का बकरा बनती है , एक तो शादी का हौवा और दूसरी तहफ व्यूटीशियन के खास लगने के खास टिप्स- हंसना नहीं , इधर-उधर घूमना नही पसीना होने से मेकअप खराब होगा ,हाथ नहीं हिलाना , पानी पीना पर ज्याद होठ को नही खोलना नहीं तो लिपिस्टिक खराब होगी इत्यादि।
ऐसा पूरा दिन मेकअप होगा बिना कुछ खाये पिये, ऐसा मानों कि किसी को प्रसन्न करने के लिए तपस्या कर रही हों । चलिएबारात आने से दो घण्टे पहले पूरा मेकअप हो गया अबदुल्हन के साथ स्टेज पर जो साथ ें लड़किया(चमची)जाती हैं ,को सजाया जाता है ।अब सब तैयार होती है युद्ध के लिए स्टेज पर जाने के लिको।
घर से दुल्हन लेकर निकली धीरे-२ कदमों बढ़ती हुई, दुल्हन को कसकर जकड़े हुए ,ऐसा जैसे की कोई छीनकर न ले जायेगा । दुल्हन तो दुल्हन साथ जो लड़कियं चलती है बलखाके ,वो तो ऐसे घूरती हैं जैसे कि कोई गुनाह किसी ने कर दिया हो, फिर धीरे-से मुस्कुरायेगीं कैमरे की तरफ देख कर , अगर गलती से कैमरा उनकी तरफहोगा तो ठीक है नही तो फिर कोई ऐेसी नटखट हरकत जिससे वो कैद हो सके कैमरे में।
बात-बात पर हंसी जैसे की पैसे देकर बुलाया गया हो हंसने के लिए। पूरा समय यही होगा स्टेजपर उसके बाद कैमरा हटा काम खत्म। जल्दी -जल्दी घर में और फिर खूब सारे खाने की चीजें लेकर पूरे दिन का हिसाब बराबर कर अब राहत की सांस। फिर सारा काम खत्म और फोटो और सी डी का बेसब्री से इंतजार।

Saturday, March 15, 2008

बीत गये दिन


पिछले दिनों मार्च की आठ तारीख को विश्व महिला दिवस के रूप में मनाया गया है आखिर क्या यह कोई त्यौहार हैजो कि हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाय। " हम किसलिए खुश होते हैं? वो इसलिए की महिलाएं अभी भी घुट-घुटकर जी रही है। जो स्थान एवं सम्मान इनको मिलना चाहिए वह नही मिला है"।दयनीय दशा में आज भी है स्त्री समाज।
बड़ी-बड़ी बातों से कुछ काम बनने वाला नही।और औरत ही औरत की दुश्मन बनी हुई है, वैसे इस वाक्य में मतभेद हो सकता है पर मेरा मानना यही है। कहींमां के सहयोग से बहू को प्रताड़ित किया जाता है , तो कहीं पर ननद के सहयोग से बहू को जलाया जाता है । ये घटनाएं आप को कहीं न कहीं से प्रत्क्ष या अप्रत्यक्ष रूप में दिख जायेगीं। ऐसे आठ मार्च पर कोई कार्यक्रम बनाकर या फूलमाला पहलाकर कुछ महिलाओं का फोटो में दिखाकर समाज में भला बदलाव होता तो अबतक हम ऐसी दयनीय स्थिती में नहीं होते।
संस्था या सरकार द्वारा महिला उत्थान को लेकर एक दिन को विशेष घोषित कर दिया । आखिर सवाल यही आता है कि हम उस विशेष दिन बहुत उत्साह में होते हैं परन्तु हमारा जोश और जज्बा कुछ ही समय में ठंडआ कयों पड़ जाता ह?ै?
सोडा वाटर की बोतल जैसा उत्साह कुछ ही दिन में समाप्त हो जाता है और स्थिति जस की तस बनी रहती है।
आखिर कितनी महिलाों को यह पता होता है कि महिाल दिवस का सही मायने में अर्थ क्या है .हां अगर किसी के मुह से कहीं सुन भी लिया तो इसका मतलब क्या होता है? यह पता नहीं होता है। बातें तो बातें है बहुत है पर एक बात निषकर्षतः है .वह यह कि सामाजिक स्थिती में परिवर्तन और बदलाव एक दिन में नहीं होता है इसके लिए निरन्तर प्रयास करना होता है और यही किया भी जाना चहाहिए तभी सही मायने में महिला उत्थान होगा।।

हाकी अब हांफी


हम आह भी भरते हैं तो हो जाते हैं बदनाम,
वो कतल भी करते हैं तो चरचा नहीं होती।
चरचा होगी जरूर होगी ,चर्चा तभी होती है जब कुछ अलग हो या कुछ अलग कर जायें .तो आजकल कुछ ऐसा ही हो रहा है भारत में। किर्केट बनाम हाकी ।एक तरफ खुशी तो दूसरी तरफ गम ही गम।
क्रिकेट टीम ने विश्व चैम्पियन को उसके घर में घुसकर लताड़ा है और घमण्ड को चकनाचूर कर दिया और अपनी बादशाहत की दिशा में एक ठोस कदम बढ़ा दिया है।
युवा बरिगेड ने कंगारूओं को चारों खाने चित्त कर दिया , कंगारू कप्तान की बोलती बंद कर दी और इतिहास में एक और सुखद पन्ना जोड़ दिया।
दूसरी तरफ आठ ओलम्पिक स्वर्ण पदक जीत चुकी भारतीय हाकी टीम को अपने काले दिनों में लिपीपुती है.
हाकी टीम के हार का सारा गुस्सा कोच पर उतारा और उन्हें अपना पद छोड़ना पड़ा भारतीय हाकी संघ के अध्यक्ष के . पी. यस .गिल भी कटधरे में है।
परन्तु यहां बात यह है कि क्या कोच के पद छोड़ने से हाकी खेल में सुधार होगा? हमेशा प्रश्न उठता है कि सरकार खेलों में भेदभाव करती है। मूलभूत आवश्कता सुविधाएं नही उपलब्ध हैं, आखिर कब तक ऐसे प्रशन आते रहेंगें?ब्चाव के लिए तो हम इन प्रशनों से संतुष्ट हो सकते हैं. पर सुधार अगर करना है तो खेल के प्रदर्शन को बेहतर करना होगा । अपनी कमियों को सुधारना होगा। न कि आरोप लगाकर बचाव करना।
ओलम्पिक में जो टीम प्रवेश नहीं कर सकी भविष्य में भला उससे क्या उम्मीद किया जाय? आरोप प्रत्यारोप को खत्म कर एक उद्देशय लेकर सही दिशा में आगे बढ़ना होगा तभी कुछ उम्मीद की जा सकती है।

Friday, March 14, 2008

भईया राजीति का बाजार गरम है यू पी में

उत्तर प्रदेश के इटावा ज़िले में बुधवार को पाँच दलितों की हत्या को कांग्रेस प्रदेश की मायावती सरकार के ख़िलाफ़ एक मुद्दे के रूप में इस्तेमाल करने जा रही है.
इसी सिलसिले में कांग्रेस के महासचिव राहुल गांधी शनिवार को इस स्थान का दौरा करने जा रहे हैं.
ससे घबराकर उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती शुक्रवार की शाम इटावा ज़िले के अमीनाबाद गाँव पहुँचीं.
हालांकि ये हत्या जमीन विवाद के कारण बताई जा रही है. लेकिन इस घटना की ओर उत्तर प्रदेश सरकार का ध्यान राहुल गांधी का दौरा घोषित होने के बाद गया.
मुख्यमंत्री मायावती वाराणसी में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अगवानी के बाद आला अधिकारियों के साथ सीधे इटावा पहुँचीं.
उन्होंने पीड़ित परिवारों के लोगों से मुलाक़ात की और सहायता का ऐलान किया.
मायावती ने घोषणा की कि हत्याकांड से अनाथ हुई चारों बच्चियों की परवरिश और शादी तक का इंतज़ाम प्रदेश सरकार करेगी.
मुख्यमंत्री ने माना कि सरकारी अधिकारियों ने समय रहते कार्रवाई की होती तो हत्याकांड टाला जा सकता था. उन्होंने लापरवाही के आरोप में वहाँ के थाना प्रभारी को निलंबित कर दिया.
इटावा समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह का गृह जनपद है लेकिन उनकी पार्टी का भी कोई नेता सांत्वना देने नहीं पहुँचा था.
कांग्रेस नेता राहुल गांधी घटनास्थल पर जा रहे हैं
लेकिन राहुल का दौरा घोषित होते ही सपा महासचिव रामगोपाल यादव तत्काल मायावती के बाद वहाँ पहुँच गए.
दरअसल मायावती पिछले कुछ महीनों में रैलियाँ और सभाएँ करके कांग्रेस पर दलित विरोधी होने का आरोप लगाती रही हैं.
उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की पिछले विधानसभा चुनावों में ख़राब स्थिति की वजह दलित वोट बैंक का मायावती के साथ जाना माना जाता है.

फिसलती बदशाहत


विश्व चैम्पियन ऑस्ट्रेलिया को पछाड़ते हुए दक्षिण अफ़्रीका ने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद की वनडे रैंकिंग में शीर्ष स्थान हासिल कर लिया है.
बांग्लादेश के ख़िलाफ़ सिरीज़ में 3-0 से जीत हासिल करने के बाद दक्षिण अफ़्रीका ने यह सम्मान हासिल किया है.
इस सिरीज़ से पहले भी ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण अफ़्रीका की टीमें 127-127 अंक की बराबरी पर थी, लेकिन ऑस्ट्रेलिया 0.529 रेटिंग प्वाइंट से आगे था.
लेकिन बांग्लादेश के ख़िलाफ़ सिरीज़ में जीत के बाद अब दक्षिण अफ़्रीका ऑस्ट्रेलिया से 0.191 रेटिंग प्वाइंट से आगे हो गया है.
ऑस्ट्रेलिया को ये झटका इसलिए भी लगा है क्योंकि हाल ही में वह भारत से त्रिकोणीय सिरीज़ का फ़ाइनल हार गया था. भारतीय टीम वनडे रैंकिंग में न्यूज़ीलैंड के बाद चौथे स्थान पर है. अगर इस साल एक अप्रैल तक दक्षिण अफ़्रीका की टीम नंबर वन स्थान पर बनी रहती है तो उसे ईनाम में 1,75,000 अमरीकी डॉलर मिलेंगे. जबकि ऑस्ट्रेलिया को 75000 अमरीकी डॉलर से ही संतोष करना पड़ेगा.
पिछले साल भी ऐन वक़्त पर दक्षिण अफ़्रीका ने ऑस्ट्रेलिया को वनडे रैंकिंग में पीछे छोड़ते हुए नंबर वन स्थान की ईनामी राशि हासिल की थी.
टेस्ट टीमों की रैंकिंग में ऑस्ट्रेलिया की टीम पहले स्थान पर बनी हुई है जबकि भारतीय टीम दूसरे स्थान पर है. इस रैंकिंग में दक्षिण अफ़्रीका की टीम चौथे स्थान पर है, जबकि श्रीलंका को तीसरा स्थान मिला है.
बांग्लादेश के ख़िलाफ़ वनडे सिरीज़ के बाद दक्षिण अफ़्रीका की टीम भारत दौरे पर जाएगी जहाँ उसे तीन टेस्ट मैचों की सिरीज़ खेलनी है.

वनडे रैंकिंग
1. दक्षिण अफ़्रीका
2. ऑस्ट्रेलिया
3. न्यूज़ीलैंड
4. भारत
5. पाकिस्तान
6. श्रीलंका
7. इंग्लैंड
8. वेस्टइंडीज़
9. बांग्लादेश
10. आयरलैंड
11. ज़िम्बाब्वे
12. कीनिया

सबसे ताकतवर है सोनिया जी

अमरीकी पत्रिका फ़ोर्ब्स ने 100 प्रभावशाली महिलाओं की सूची में भारत की कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी को विश्व की छठी ताक़तवर महिला का दर्जा दिया है.
सूची में शीतल पेय कंपनी पेप्सीको की मुख्य कार्यकारी इंदिरा नूई को पाँचवाँ स्थान दिया गया है.
जर्मनी की चांसलर एंगेला मर्केल लगातार दूसरे साल भी फ़ोर्ब्स सूची में नंबर एक पर काबिज़ रहने में क़ामयाब रहीं.
पत्रिका के मुताबिक़ जर्मनी के इतिहास में पहली महिला राष्ट्रपति होने का गौरव हासिल करने वाली मर्केल ने अपनी शानदार नेतृत्व क्षमता की बदौलत लगातार दूसरी बार शीर्ष पर रहने में कामयाबी पाई है

सूची में चीन की उपप्रधानमंत्री वू यी दूसरे स्थान पर हैं, जबकि सिंगापुर की तेमसेक होल्डिंग कंपनी की मुख्य कार्यकारी अधिकारी 'हो चिंग' को तीसरी और अमरीकी विदेश मंत्री कोंडोलीज़ा राइस को दुनिया की चौथी सर्वाधिक ताक़तवर महिला माना गया है.
इटली में जन्मी और सत्तारूढ़ संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने 1990 में राजनीति में प्रवेश के बाद से एक लंबा सफ़र तय किया है, और वह भारतीय राजनीति का एक प्रभावशाली चेहरा हैं
फ़ोर्ब्स पत्रिका
फ़ोर्ब्स के अनुसार, "इटली में जन्मी और सत्तारूढ़ संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने 1990 में राजनीति में प्रवेश के बाद से एक लंबा सफ़र तय किया है, और वह भारतीय राजनीति का एक प्रभावशाली चेहरा हैं."
फ़ोर्ब्स ने भारत में प्रतिभा पाटिल को राष्ट्रपति चुने जाने को देश की महिलाओं के लिए भी ऐतिहासिक बताते हुए कहा कि इससे महिलाओं की राजनीतिक स्थिति बेहतर होने में मदद मिलेगी.
सूची में शामिल अन्य प्रभावशाली महिलाओं में ब्रिटेन की महारानी एलिज़ाबेथ को 23वें, न्यूयॉर्क की सीनेटर हिलरी क्लिंटन को 25वें, फिलीपींस की राष्ट्रपति ग्लोरिया अरोयो को 51वें स्थान पर रखा गया है.
अमरीकी राष्ट्रपित जार्ज डब्लू बुश की पत्नी लौरा बुश को दुनिया की 60वीं और म्यामांर में नज़रबंद लोकतंत्र समर्थक नेता आंग सान सू की को 71वीं प्रभावशाली महिला का दर्जा दिया गया है.


बीबीसी

Thursday, March 13, 2008

क्यों बदल गया ?

क्यों चमन में बहार का आना बंद हो गया ,
क्यों फूल से खुशबू अलग हो गई,
खिलते थे फूल जहाँ,
क्यों काँटों का आशियाना हो गया ,
बस एक बार तो उठाया था
गलत राहे शौक से,
फिर जिंदगी आजमाने लगी मुझे हर कदम पर,
चाहता बहुत हूँ तुम तक पहुँचना
पर दूर बहुत दूर तेरा आशियाना हो गया .

बस यूँ ही ...................?

क्यों कोई दिल को छू जाता है,
क्यों कोई अपनेपन का अहसास दे जाता है,
छूना जो चाहो बढ़ाकर हाथ ,
क्यों कोई साये सा दूर चला जाता है ै।
सब बहुत अपना पन जताते हैं,
खुद को हमारा मीत बताते हैं।
पर जब छाते हैं काले बादल,
क्यों वे धूप से छाँव हो जाते हैं।
कोई बता दे उन नाम के अपनों को,
ये दिल दिखने में श्याम ही सही ,
पर दुखता तो है,
हम औरों की तरह ना सही
पर बनाया तो उसने आप सा ही है।।

बेबी अब सेक्सी है-३

यार ओम शांति ओम में शहरूख की सिक्स पैक बाडी कितनी सेक्सी दिखती है। नहीं बाडी तो सलमान की सबसे सेक्सी है। यह लड़कियों की बातें हैं।बुजुर्ग हैरान हैं कि क्या यह वही देश है जहां तुलसीदास ने सवा चार सौ साल पहले लिखाथा-
त्ृणधरि ओट कहत बैदेही,
सुमिरि अवधपति परम स्नेही,
तब पराए मर्द की ओर देखना भी असंस्कारी कृत्य माना जाता था इसीलिए रावण से बात करते हुए सीता जी एक तिनके की ओट लेती हैं।
आज लड़कियां मर्दों की मसल्स का ऐसे वर्णन करती हैं जैसे कोई फिटनेस एक्सपर्ट हो।
हालीवुड अभीनेता रिचर्ड गेरे ने शिल्पा को सरेआम चूमा तो बवल मच गया ,जबकि गेरे काा कहनाथा कि वे तो लोगों को यहसंदेश देना चहाते थे कि चुम्बन से एडस नहीं होता ।बदलाव की यह आंधी सबकुछ बहा ले जाना चाहती है,लेकिन पंरपरावादी भारतीय मानस अभी भी कभी-कभी प्रतिवाद कर बैठता है।रिचर्ड गेरे पर मुकादमा इसी प्रतिवाद की झलक थी। चीनी कम में बेटी से कम उम्र की महिला सेप्यार करने वाले और पोती की उम्र की बच्ची को सेकसी बोलने वाले बिग बी को अपनी बहू के चुंबन बुरा लगा। (धूम-२ में ऐश्वर्या और रितिक किस सीन को लेकर)।
यही तो भारतीय संस्कारो का जोर है।

कैनवस

हम प्रकृति से चित्र लेकर
जिंदगी के कैनवस में उतार लेते हैंः
रंग भरते हैं, सुविधानुसार
चित्र की खूबसूरती के लिए आवश्यक है
रंगों का समुचित समावेश
इन्हें फिर टांग देते हैं
अपने चित्र के बगल
ताकि जब हम मरें
तब कम से कम
उन पर भी
कुछ श्रद्धा सुमन अर्पित किए जा सके।

Wednesday, March 12, 2008

भीड़

हम इससे पहले भ ी मिले हैं
और अक्सर मिलते रहते हैं
लोकल बसों,ट्रनों ,ट्ृामों
में
एक सामान्य मुलाकात
वह कल फिर मिली थी
किसी राह पर
मैंने हाथ बढाया
उसने भी,
अकस्मात रेला आया
बहा ले गया उसे----
हाथ उठा रह गया।।

शब्द

तुम्हारी खामोशी
मुझे
मौन देती है
तुम्हारे दुख में
भागीदार होने का ।
तुम्हारी उदासी
हमेशा मुझमें रिक्तता छोडँ
जाती है,
में पूरी कोशिश करता हूँ,
उस सूनेपन को भरने का।
मैंने जब भी कुछ
माँगा है,
तुमने दिए हैं
शब्द,
खुद को अभिव्यक्त करने
के लिए।

Tuesday, March 11, 2008

बेबी अब सेक्सी है-२

जिस संस्कृति में पति-पत्नी अपने शयन कक्ष में भी दिया बुझा कर प्रेम करते थे, उसने क्या यूँ ही सेक्स-बाजार के सामने आत्मसमर्पण कर दिा? प्रतिरोध हुआ है पर बदलाव की लहर इतनी तेज थी कि तटबंध भी साथ में बह गये।

प्रथम विशेषांक में दादी मां वाला जो किस्सा बतायाबाताया है, भारत में उसी समय सेक्स बूम की सुरृआत हुई उस समय फिल्म में लडकियों को काम करने की खुली छूट नही थी पर उस समय फिल्म का गीत था " सेक्सी-सेक्सी लोउ मुझे बोले। इस गाने से हडंकंप मच गया तो गाने के बोल बदल कर "बेबी-बेबी लोग मुझे बोले कर दिया गया।
हालांकि सेक्सी-सेक्सी वर्जन सुनने को मिलता रहता है किसी की शर्ट सेकसी तो किसी की पैंट सेकए्सी। इसके बाद जो आंधी चली उसमें प्रतिरोध के दरख्त दखडँ गये। चौदह साल कि बेबी(कसिश्मा) जो आज बेबी को सेक्सी बना दिया गया। बात की जाय हिन्दी फिल्म "चीनी कम " की जिसमें एक आठ साल की चानी बच्ची का नाम ही सेक्सी रख दिया गया जो कि खैरा थी। आज सेक्सी होना एक खिताब हो गया है। हाल ही के बीते दिनों में बिपाशा बसु को एशिया की सबसे सेक्सी महिला का खिताब मिला और शहरुख खआन को सबसे सेक्सी पुरूष का दर्जा मिला तो इनके भआव बढँ गये।

Monday, March 10, 2008

मुझको ये क्या हो गया है,

मुझको ये क्या हो गया है,
क्यूँ मैं खो गया हूँ,
ये तेरा असर है,
न जाने ये दिल को क्या हो गया है।
रातें तो कट रही हैं इंतजार मे ं ,
तेरी की गयी बातों में ,
और
तकरार में ।
मुझको ये क्या हो गया है .............
यादों में तू ही,
सांसों में तू ही,
ख्यालों में तू ही,
मेरे हर रग रग में तू ही,
ये है तेरा असर ............
न है मुझको पता...??????
ये मुझको क्या हो गया
क्यूँ मै खो गया हूँ।।।

आल इण्िडया रेडियो


प्रसारण भवन का माडल नई दिल्ली

आल इण्िडया रेडियो का सफर फोटो में कैद



यह उपकरण जिससे रिकार्डिंग की जाती ५० वर्ष पहले सामने

Sunday, March 9, 2008

फौजियों कि बातें

जंग के मैदान में एक देश के सैनिक ने दूसरे देश के सैनिक से कहा," मैं तुम्हें मार डालूँ तो?
'तो में देश के लिए मर मिटने वाला शहीद कहलाऊगा।"
अगर तुम मुझे मौत के घाट उतार दो तो?
' तो तुम देश पर जान लुटाने वाला शहीद कहलाओगे।;
' औे अगर हम दोनों एक दूसरे को मौत के घाट उतार दें तो?'
' तो हम दोनों अपने- अपने देश के पर कुर्बान हो जाने वाले शहीद कहलायेंगे।
'परन्तु अगर हम दोनों मानवता दिखाइएं और एक दूसरे के दोस्त बन जाएं तो?
' तो हम दोनों देशद्रोही कहलाएंगे'।

बेबी सेक्सी है

बात कारीब १५ साल पहले की करें तो टी वी पर परिवार एक साथ कमरे में बैठकर मनोरन्जन करता था । कार्यक्रम के बीच में पन ैर वह भी परिवार नियोजन का हो तो तो मां एवं दादी को कमरे से उठकर पानी पीने के बहाने बाहर जाना पडँता था।

एडस से बचाव ले लिए सरक्षित सेक्स कितना आवश्यक है साथ ही साथ परिवर्तन से ज सेक्स शब्द हमारे दैनिक जीवन एवं बातचीत का हिस्सा है। इंटरनेट तथा टी वी पर सजीव कार्यक्रम प्रसारित हो रहे हैं । जिससे सेक्स संम्बन्धित समस्या का समाधान आसानी से प्राप्त किया जाता है।

सेक्स की चर्चा खुली तरह से वर्जित रही होगी पर अब ईसा बिल्कुल भी नहीं है। डाक्टर एवं सेक्सोलावजिस्ट बैगर संकोच के बात करते है लोगों से। सेक्स चर्चा ब ओफन है ।

सेक्स संचार क्रान्ति-
एक के साथ एक मुफ्त की संचार क्रान्ति के साथ ही साथ सेकस क्रान्ति भारत को मुफ्त में मिली । लडँके औे लडँकियाँ आपस में सेक्स चर्चा ाकरते हैं पे आज बिना हिचक नानवेज जोक्स एसएमएस करने लगे हें। रह
ी सही कसर इंटरनेट ने पूरी कर दी है।

एमएमएस में तो थोडँा संकोच रहता हैपर इंटरनेट ने ईसा माधऽयम दिया जहां आफ अपनी पहचान ढुपाकर आसानी से सेक्सी चैट कर सकते हैं। इसी लिए बातें खुल्लम-खुल्ला होती हैं
१- पर ध्यान रहें इंटरनेट पर कई बार लडँके लडँकियां बनकर साथ ही साथ लडँकियां लडँके बनकर चैट करते हैं। पर ये दुनिया फैटेसी है यहां बात इस बाात से उपर है कि इन लडँके-लडकियों से परे हैं।

२- अबार में रसीली बातें, मजेदार बातें शीर्षक तमाम प्रचार छपते हैं जिस पर नम्बर होते है और नम्बर डायल कर आप अपने मन तथा जेब दोनों हल्का कर सकते हें।
३- जमाना विजुअल का है इसीलिए केवल आडियो से ही काम नही चलता इस बात को बाजार जानता है। ब्लू फिल्मों का ट्रड काफी पुराना है इसके लिए आपको वीडियो पार्लर जाना होता है जो संकोच वाला काम है। लिहाजा इंटरनेट पर इस संकोच की भी दवा है अनगिनत पोर्न साइट है अपना कम्प्यूटर आन करिये तथा सेक्सी दुनिया आपका मनोरंजन करने को हाजिर है।

Friday, March 7, 2008

परीक्छा काभूत


मार्च आते ही बच्चों के चहरे पर चहरे पर एक सिकन सी दिखने लगती है। परीक्छ की टेंशन ैर साथ में ंाता की उम्मीदओं पर खरा उतरने की समस्या साथ ही साथ भविष्य की चिंता। एक साथ अनेक तनाव तनाव तन युवा के मष्तिस्क में आ जाते ह?ैं।
पेपर से पहले यदि किसी छात्रया छात्रा से बात की जाय तो आत्म संतुष्टी वाली बात बहुत हू कम नजर आती है। ऐसे मेंबच्चों के आत्मविश्वास को बढाने में माता-पिता एं बडेँ बुजर्गों को इनका बच्चों का साथ देना चाहिए। और इनकी इच्छा शक्ति को बढाना चाहिए।

फोटो से कुछऐसा हीद्रश्य प्रस्तुत हो रहा है। यह छात्राएं परीक्छ सेकुछ देर तक इस त''रह पढँने में व्यस्त ती कि न जाने क्या-क्या पढँ लें। ये केनद्रीय विद्यालय की छात्राएं है इनसे बात करने पर ऐसा लगा जैसे कि किसी योद्धा को बिना शस्त्र के युद्ध क्ढेत्र में उतार दिया जाय। आखिर क्यों ऐसा होता है? ये छातराएं कयों घबराती है? परीक्ढ के भूत से।
कहीं न कहीं एक बात सामने यही देखने को मिलती है कि पूरे परिवार की इन बच्चों से उम्मीदें हैं जोकि इन्हें एक बोझ के तले दबा देती हें। जिससे ये छात्राएं परेशान रहती हैं। तो यहां ोपर देखने वाली बात यह होगी की इन बच्चों को फ्री छूट देनी चाहिए जिससे आत्म हत्या की घटनाएं कम हो सकें।

Thursday, March 6, 2008

blogger story

Blogger को 1999 के अगस्त में सैन फ्रांसिस्को की एक छोटी सी कंपनी जिसका नाम Pyra Labs था ने आरंभ किया था. यह वह समय था जब डॉट-कॉम अपने चरम पर था. पर हम एक वीसी-निधि प्राप्त, पार्टी देने वालेस लॉबी में खेलने वाले, मुफ्त बीयर पिलाने वाले लोग नहीं थे. (जब तक कि वह दूसरों की मुफ्त बीयर न हो.)

हम तीन मित्र थे, जो बड़ी कंपनियों के लिए अजीब अनुबंध वेब प्रोजेक्ट कर धन इकट्ठा कर रहे थे, इंटरनेट के भूदृष्य पर अपने स्वयं का प्रवेश दर्ज करने का प्रयास करते हुए. हम मूलत: क्या करने की कोशिश कर रहे थे वह अब अधिक मायने नहीं रखता. पर ऐसा करते हुए, हमने Blogger बनाया, कमोबेश एक लहर में, और हमने सोचा हूँ... यह तो बहुत मज़ेदार है.

Blogger एक छोटे रूप में आरंभ हुआ, और अंतत: कुछ वर्षों के बाद बड़े रूप में. हमने कुछ पैसे इकट्ठे किए (पर छोटे बने रहे). और उसके बाद बबूला फूटा, और हमारे पैसे खत्म हो गए, और हमारी छोटी मजेदार यात्रा में मजा और कम हो गया. हम बाल बाल बचे, साबूत भी नहीं थे, पर पूरे समय (अधिकतर दिन) सेवा चलाते रहे और बैक अप बनाते रहे.

स्थिति 2002 में फिर से अच्छी हो गई थी. हमारे लाखों उपयोगकर्ता थे, फिर भी हम कुछ लोग ही थे. और उसके बाद कुछ ऐसा हुआ जिसका किसी को अनुमान नहीं था: Google हमें खरीदना चाहते थे. हाँ, वह Google

हमें Google बहुत पसंद आया. और उन्हे ब्लॉग अच्छे लगे. इसलिए हम इस विचार से सहमत थे. और यह अच्छी तरह हुआ भी.

Now we're a small (but slightly bigger than before) team in Google में हम एक छोटी (पर पहले से थोड़ी सी बड़ी) टीम हैं जो वेब पर अपनी आवाज़ उठाने में लोगों की मदद कर रहे हैं और व्यक्तिगत परिप्रेक्ष्य में दुनिया की जानकारी को व्यवस्थित कर रहे हैं. जो काफी कुछ हमारा हमेशा से लक्ष्य रहा है.

Google पर अधिक जानकारी के लिए, google.com देखें. (खोज के लिए भी अच्छा है.)