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Saturday, March 15, 2008

बीत गये दिन


पिछले दिनों मार्च की आठ तारीख को विश्व महिला दिवस के रूप में मनाया गया है आखिर क्या यह कोई त्यौहार हैजो कि हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाय। " हम किसलिए खुश होते हैं? वो इसलिए की महिलाएं अभी भी घुट-घुटकर जी रही है। जो स्थान एवं सम्मान इनको मिलना चाहिए वह नही मिला है"।दयनीय दशा में आज भी है स्त्री समाज।
बड़ी-बड़ी बातों से कुछ काम बनने वाला नही।और औरत ही औरत की दुश्मन बनी हुई है, वैसे इस वाक्य में मतभेद हो सकता है पर मेरा मानना यही है। कहींमां के सहयोग से बहू को प्रताड़ित किया जाता है , तो कहीं पर ननद के सहयोग से बहू को जलाया जाता है । ये घटनाएं आप को कहीं न कहीं से प्रत्क्ष या अप्रत्यक्ष रूप में दिख जायेगीं। ऐसे आठ मार्च पर कोई कार्यक्रम बनाकर या फूलमाला पहलाकर कुछ महिलाओं का फोटो में दिखाकर समाज में भला बदलाव होता तो अबतक हम ऐसी दयनीय स्थिती में नहीं होते।
संस्था या सरकार द्वारा महिला उत्थान को लेकर एक दिन को विशेष घोषित कर दिया । आखिर सवाल यही आता है कि हम उस विशेष दिन बहुत उत्साह में होते हैं परन्तु हमारा जोश और जज्बा कुछ ही समय में ठंडआ कयों पड़ जाता ह?ै?
सोडा वाटर की बोतल जैसा उत्साह कुछ ही दिन में समाप्त हो जाता है और स्थिति जस की तस बनी रहती है।
आखिर कितनी महिलाों को यह पता होता है कि महिाल दिवस का सही मायने में अर्थ क्या है .हां अगर किसी के मुह से कहीं सुन भी लिया तो इसका मतलब क्या होता है? यह पता नहीं होता है। बातें तो बातें है बहुत है पर एक बात निषकर्षतः है .वह यह कि सामाजिक स्थिती में परिवर्तन और बदलाव एक दिन में नहीं होता है इसके लिए निरन्तर प्रयास करना होता है और यही किया भी जाना चहाहिए तभी सही मायने में महिला उत्थान होगा।।

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