जन संदेश

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Friday, November 30, 2007

विश्व एडस दिवस


विश्व एडस दिवस पर हम सभी को यह समस्या याद सी आ जाती है । भारत में एडस रोगियों की समस्या में बढोत्तरी हो रही हैं । एडस फैलने का मुख्य कारण है इस बीमारी के प्रति लोगों में जानकारी का आभाव। जिसका परिणाम एडस के रूप में हमारे सामने आती है। ग्रामीण इलाकों में शिक्षा का आभाव होना इसका प्रमुख कारण है। जब की भारत जैसे विशाल देश में यह आसान काम नही हैं कि स्वास्थ्य के प्रति लोगों घर -घर जाकर समझाया जा सके। सरकार का प्रयास भी काम चलाऊ लगता है। विकास भारत में भौगिलिक स्थिती ऐसी है जिस वजह से हर स्थान पर सूचनाएं देना संम्भव नही ।
यदि भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय के सर्वेक्षण को देखे तो आने वाले दिन में इन एडस रोगियों की संख्या में कुछ सुधार के आसार हैं। पर क्या इस तरह की सरकारी बातों को माना जा सकता है। ये तो आने वाले दिन ही बतायेंगे। फिर भी एडस से पीडित रोगियों के लिए पर्याप्त संशाधन की व्यावस्था न होने के कारण इन रोगियों की बची हुई जिंदगी आसान नही रह जाती है। तो क्या इस तरह से जीवन के एक पल को घुट -२ कर जी रहें लोगों को हम लोगों को मदद नही करनी चाहिए। वैसे तो भारत में कई गैर सरकारी संगठन इन रोगियों के लिए काम कर रहें पर ये संगठन मात्र दिखावा ही लगते है। आइये हम मिलकर इस एडस दिवस पर ये संकल्प ले की हम इन रोगियों को प्यार एवं आर्थिक मजबूती देगें। इस बीमारी को खत्म करने के लिए प्रयास करेगें।।

Thursday, November 29, 2007

तो हम जाने

इन आसुओं को सब सिखाओ तो हम जानें,
गैरों के लिए इनको बहाओ तो हम जानें,
जो दे गया था ऑंख में रखने के लिए ये मोती,
कुछ उसके लिए भी बचाओ तो जानें,
जलतें हैं दिल जो यहाँ नफरत के तेल सेउस
लौ को प्रेम से बुझाओ तो हम जाने
जो रोशनी की चाह में अब तक बुझे रहे,
के लिए खुद को जलाओ तो हम जाने,
मिट्टी पर बनाये गये हैं आशिया बहुत,
तुम रेत पर महलों को बनाओ तो हम जाने,
आये हो जो हर बार तो आये हो पूछ कर,
पूछें बगैर दिन में जो आओ तो हम जानें।

सोचो मत खाये जाओ।

सोचो मत खाये जाओ।क्या आप को मालूम है कि भारत में ५० प्रतिशत लोग दिन में चार बार अस्वास्थ्यप्रद भोजन लेते हैं। जिसमें बिस्कुठ,चिप्स की भरमार होती है।इससे लगता है कि देश पेटू होता जा रहा है।६२ प्रति लोगों ने अस्वास्थ्य भोजन को 'आदर्श' नाश्ता बताया' ऐसे ज्यादा लोग बंगलूरू , चेन्नै , कोलकाता में हैं।७२ फीसदी लोगों ने फलों को सर्वश्रेष्ठ बताया ।लेकिन ११ फीसदी को बिस्कुट पसंद है ,और सिर्फ ६ फीसदी को फल।ऐसे तो लगता है कि लोग को बिस्कुट के कहर में आ गये हैं। दिल्ली और मुम्बई के ९० फीसदी लोग पौष्टिक खाना खाते है। बगलूरू, कोलकाता, चेन्नै में यह औसत २३ फीसदी का है।
हम परिवार और दोस्तों से बोर होने पर या पैकेट, प्लेट ,आकार और गंध के आकर्षण में ज्यादा खाते हैं ।खाना खतरा बनता जा रहा है।कोलकाता चिप्स की राजधानी है। तो बगलूरू नूडल्स में सबसे आगे है और चैन्नै बिस्कुट मामले में।५० फीसदी लोग अनियमित समय में चार बार खाते है इनमें सेहत के लिए हानिकारक नमकीन वगैरह की मात्रा ज्यादा होती है। दिल्ली में ६२ फीसदी लोग डिनर के बाद जंक फूड और कोलकाता में ९८ फीशदी उससे पहले जंक फूड का प्रयोग करते है।

Tuesday, November 27, 2007

उफ ये लोग़!

आज एक अज़ब बात हुई,
जो कट कर निकल जाते थे उन से बात हुई,
निकले तो थे अपने काम से,
और हमसे कटते-कटते टकरा गए,
जिन्हें न थी फरसत दिवाली तक की बधाई देने की,
आज हमारी दिनचर्या में शामिल हुए,
बस यूँ ही बाजार से लौटते वो हमसे टकरा गयें।
हमारा हाल तो छोडों सीधे मुद्दे पर आ गये,
इधर - उधर की बातों की फुरसत कहां,
वो तो बस अपनी कम्पनी की बुक पकडा़ गये।
अब क्या कहें इन बड़े घर के लोगों को ,
हर जगह अपना काम निकाल लेते हैं,
जरूरत पड़ने पर ये क्या नहीं कर गुजरते ,
हम जैसे गंधों को भी खास बना लेते हैं।

मोनिका की कलम से

एक और नया दिन


आज फिर एक नया दिन शुरु हुआ,
नई चुनौतियों का सिलसिला शुरु हुआ,
बहुत कुछ है जो घट रहा है, किसे तवज्जो दें इस बात पर सिर खप रहा है,
एक तरफ देश की नयी मिसाईल है,
तो दूसरी ओर बिपाशा का छोङा जातिय बम,
शरीफ जी कहीं घर लौट रहे हैं,
तो कहीं तस्लीमा खुद के घर से तंग,
ये सब हलचल कुछ थमी ही थी कि नई शुरु हो गई,
आज सुबह-सुबह ही धरती के प्रकोप से मुलाकात हो गई,
जो भी हो अब शाम हो चुकी है,
दिमाग की बत्ती भी अब गुल सी हो चुकी है,
कल की कल देखेंगे जो होगा,
अभी तो बस ये गरम रजाई दिख रही है..........

मोनिका कि कलम से.......

Monday, November 26, 2007

कोटला में धुनाई


भारत के नवनियुक्त टेस्ट कप्तान अनिल कुम्बले के नेतृत्व में भारतीय टीम ने शानदार प्रदर्शन करते हुए पहले टेस्ट में पाकिस्तान को ६ विकेट से करारी शिकश्त दी। फिरोज शाह कोटला के मैदान में चले रहे उठा पटक की समाप्ति भारत के पक्ष में रहा। अनिल कुम्बले भारत के सातवें ऐसे कप्तान है जो अपने पहले ही टेस्ट में जीत दिलाई हो। साथ ही साथ मैन आफ द मैच का खिताब भी अपनी शानदार गेदबाजी और बल्लेबाजी से हासिल किया।
इस समय भारतीय टीम में सभी खिलाडी़ अपना अच्छा प्रदर्शन कर रहें हैं। बात यदि सचिन कि की जाय तो उन्होंने मैच में मैदान के हर क्षेत्र मरं रन बटोरे और अपना पचासा पूरा किया। हमारे महराज ने शानदार गेदबाजीं कर अपने एक ओवर में पाकिस्तान के दो विकेट ले कर विपक्षी टीम को हार का रास्ता दिखाया। गागुली ने अपनी बल्लेबाजी में ४८ रन की बेहतरीन पारी खेली। भारतीय टीम में लक्ष्मण और धोनी के बीच हुई ६वें विकेट के लिए ११५ रन साझेदारी का इस टेस्ट में अहम रोल रहा। कुल मिला कर भारत ने टीम का मिलाजुला प्रदर्शन ही टीम हो जीत तक ले गया।

बस यूँ ही


क्यों कोई दिल को छू जाता है,

क्यों कोई अपनेपन का एहसास दे जाता है।
छूना जो चाहो बढा़कर हाथ,

क्यों कोई साये सा दूर चला जाता है।

सब बहुत अपनापन जताते है,

खुद को हमारा मीत बताते है,

पर जब छाते है काले बादल,

क्यों वे धूप से छावँ हो जाते हैं।
कोई बता दे उन नाम के अपनों को,
ये दिल दिखने में श्याम ही सही,

पर दुखता तो है,

हम औरों की तरह ना सही,

पर बनाया तो उसने आप सा ही है ।




मोनिका सुना रही है

भारत में सेक्स शिक्षा


बदलते भारत के साथ ही कई क्षेत्रों में परिवर्तन हो रहें कुछ सही दिशा में और तो कुछ गलत दिशा में । ऐसे में जररूत है जागरूकता की। भारत विश्व का सबसे युवा देश होने का दावा करता है । पर इन युवा को यदि सही मार्गदर्शन न मिलें तो यह हमारे देश और समाज के लिए खतरा बन जाते है। सरकार ने हाल ही के दिनों शिक्षा में अमूल - चूल परिर्वतन करने की कोशिश करी है जिससे यह बात तो साफ हो जाती है कि भारतीय भविष्य पर सरकार का ध्यान है। शिक्षा में सरकार ने ६वीं कक्षा से सेक्स शिक्षा देने वाली है। जो कि एक बहुत ही सराहनीय कार्य है। पर राजनीतिक पार्टियां अपने लाभ के लिए किसी भी हद तक गिरने के लिए तैयार हैं। जब बात देश के विकास की रफ्तार को तीव्र करने वाले युवा के हितों के लिए हो तो फिर क्या इस तरह के प्रदर्शन देश हित में हैं?
पर कुछ लोग देश की सभ्यता और संस्कृति का रोना रोते है पर अगर यही सोच के हम कोई परिवर्तन न करं तो क्या ये सब विकास सम्भव होता तो मेरा मानना है कि नहीं। समाज में बिना व्याह की मां की संख्या में बढोत्तरी हो रही है यह दुखद बात है। इस तरह यदि यह समाज इसी पथ अग्रसर रहा तो वह दिन दूर नहीं होगा जब भारत की तुलना अमेरिका जैसे देशों से होने लगेगीं । क्या हम सब ऐसा होते देखें या फिर कोई प्रयास कर इस समस्या के समाधान ढूढ़े। सेक्स की शिक्षा का भारत में बहुत दिनों छोटी कक्षाओं में चलाये जाने की कोशिश होती रही है पर उस प्रयास का जीवतं रूप हमारे आने वाला है। आज की मीडिया और टेलीविजन ने अपने बदलते स्वरूप में समाज को गिरावट का रास्ता पकडा दिया है। सेक्स की बात को बच्चे यदि सही तरह से नहीं जान पाते है तो हो सकता है कि वह गलत तरीके से जाने और जिसका वच्चों पर गलत प्रभाव हो इस लिए शिक्षा के माध्यम से सरकार इस सेक्स की जानकारी का वीणा उठाया है।

Saturday, November 24, 2007

खामियां ही खामियां


हाल ही के बम विस्फोट इस बात के प्रत्यक्ष प्रमाण हैं कि विश्व के साथ ही साथ भारत भी आतंकी कार्यवाही का केन्द्र भारत बनता जा रहा है। सप्ताह भर पहले लखनऊ में जैश-ए-मोहम्मद के तीन आतंकवादी यदि न धरे गये होते तो हमारे सामने एक बडी़ घटना की पुनरावृत्ति अवश्य ही देखने को मिलती।परन्तु इतनी कडी़ सुरक्षा होते हुए भी शुक्रवार को दोपहर बाद जिस तरह से क्रमिक विस्फोट हुए उससे यह बात साबित हो जाती है कि हमारी सुरक्षा व्यवस्था को और चुस्त दुरूस्त करने की आवश्यकता है। उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री सुश्री मायावती ने केन्द्र को दोषी ठहराया तथा संसद में श्री शिवराज पाटिल द्वारा आतंकवाद के विस्तार को स्वीकार करना इस समस्या का समाधान नही हैं। सरकार के द्वारा हमारी गुप्तचर एजेंसी को दोष देने के अलावा कोई और विकल्प नजर नहीं आता है। पर क्या जो ये बयान जनता के सामने आते है। उससे जो निर्दोष लोगो की जानें गयी है क्या वापस आ जायेगी ,पर मजबूरी है कि और कर भी क्या सकते हैं।
काग्रेंस के महासचिव श्री राहुल गांधी जो को निशाना बनाये जाने की बात का खुलाशा होते की प्रशासन के पैरों तले जमीन ही खिसक गई पर कहां ऐसी क्या कमी हो जाती है कि ये आतकी चूहे हमारे घरों में बिल करके घुस जाते है शक की सुई सरकार और प्रशासन दोनों पर ही घूम जाती है।कही न कही तो चूक है । अन्यथा इतनी तादात में आतंकी संगठनों का देश में प्रवेश सम्भव नही हो सकता । हमारी गुप्त एजेंसी भी नाकाम हो जाती हैं कारं है देश का विस्तार। जहां तक अगर देश को आतंकी हमलों से बचाना है तो सतर्कता को और बढ़ाना ही होगा अन्यथआ ऐसे ही परिणाम सामने आते रहेगें।

महसूस करती हूँ आज


इस कविता का प्रकाशन कुछ वजह से समय पर न हो सका । अतः एक नयी कवियत्री की भावना का ध्यान रख कर मैनें इसे प्रस्तुत किया है।

यह कैसा शोर है,
हर तरफ दिवाली जा जोर है,
कमबख्त आ गई फिर से,
चारों तरफ शोर ही शोर है,
सौ गलियां रोशन है,
हजारों में सिर्फ काला इंसान है,
दिवाली से नफरत है-
पहले राम आते थे,
आजकल रावण की भरमार है,
कई लुटाते हैं, कई लूटते है
बोलते नही,
सिर्फ मजबूरी बस सिर्फ ताकते हैं।
दिल्ली करोडो़ रूपये जलाती है,
दो रूपये मागों तो दनदनाती है,
छीनेगें नहीं तो क्या करेगें?
क्यों हमने काटेंदार दीवार खडी़ कराई है?
हजारों ऐब पालेगें,
मैकडोनल्ड में उडा़येगें,
किसी की मद्द करते वक्त हाथ कंपकंपाते है,
इस दि वाली न जाने कितने तरसेगें और तरसायेंगें,
क्यों न इस मुबारक दिन को इक साथ जियें।

कल्पना की प्रस्तुती

Friday, November 23, 2007

सेक्स सर्वेक्षण नैतिक या अनैतिक


पिछले दिनों मैने इण्डिया टुडे पत्रिका का अध्ययन किया जो कि सेक्स विशेषांक था। सेक्स विशेषांक पढ़कर थोड़ा आश्चर्य हुआ। लेकिन सरसरी नजर से पूरे अंक को पढ़ा।इण्डिया टुडे अपनी विविधता , खोजपूर्ण शोध, विवेचना, कला-साहित्य, मनोरंजन से परिपूर्ण है जिस वजह से मैं इसका नियमित पाठक रहा हूँ।सेक्स विशेष सर्वेक्षण के परिणाम कुछ भी बयां कर रहें हो। नैतिक यौन सम्बन्ध आज भी भारतीयों की संम्पदा है यौन सम्बन्धों की खुली चर्चा हो, सेक्स को पाठ्यक्रम का अंग भी बनाया जाय लेकिन उसकी आत्मा"नैतिकता" पर आंच न आने पाये। इसका समाजशास्त्रियों, मनोचिकित्सक, सामाजिक शोधार्थी तथा मीडिया को पूरा ध्यान देना चाहिए।
यदि इण्डिया टुडे के सर्वेक्षण को माने तो सेक्स को लेकर महिलाओं की चुप्पी टूट रही है । वे बिस्तर पर भी उतना ही अधिकार चाह रही हैं जितना पुरूष। इस चुप्पी के टूटने का मतलब यह नहीं है जि स्त्रियां विरोध कर रही हैं बल्कि वे भी सेक्स का भरपूर लाभ उठाना चाहती हैं।विशेष सर्वेक्षण 'विवाह का काम' अश्लील ही कहलाएगा। सेक्स को इतने भद्दे ढ़ग से दिखाया गया था इसकी आशा न थी। पत्रिका को घर में लाने लायक नहीं था। सेक्स क्रियाएं इस तरह घर पर खुलेआम तो नही होती हैं।यहां पर यह बात सोवने योग्य है कि क्या ये विशेषांक हमारे समाज का सही आइना हैं और इससे समाज में परिवर्तन होगा? वैसे ये विशेषांक कुछ नही तो पत्रिका की पाठक संख्या तो अवश्य ही बढ़ाते हैं। इसके अलावा कुछ भी नहीं।

Sunday, November 4, 2007

बीच सफर में

आने का समय न मिला,
या
बहाना था न मिलने का,
जब दूर रहना ही था
तो पास आना ही न था,
आखिर क्यों?
करते हो ये झूठी बातें ,
तुम भी समझते होअपने इरादे,
आज बोल ही दो सच्चाई को तुम,
कब तक करते रहोगे ये झूठे वादे,
पता है मुझको कि जाना चाहते हो दूर मुझसे,
ये,,,,,समय -समय का बदलाव ही तो है ,
कभी हम अन्जान न हुआ करते थे ऐसे,
वो दिन याद आता है
आखों आसूँ से छलक जाते है खुद-ब-खुद
कम से कम कोई तो साथ है मेरे।
ये तुम्हारी तरह नही हैं जो कि साथ छोड़ जायेगे, बीच सफर में।

Friday, November 2, 2007

सफर जीवन का


खिलखिलाती नदियाँ , मचलते सागर ,

ऊचाँ आसमान सब कहते हैं जीवन तुम्हारा है,

जिओ इसको भरपूर ।

जीवन के सफर में कभी हार है ,तो कभी जीत,

कभी डरकर न भागो इससे दूर,

समय बदलता है, हालात बदलते हैं,

पर जीवन का मूल नहीं बदलता,

चलते जाना ही जीवन की नियती है,

इसी पर निर्भर सारी परिस्थिती है,

सम्पूर्ण आनन्द यदि लेना है इसका,

तो हालात का सामना करना ही होगा,

जीवन के संग्राम में वही है विजेता,

जिसने इस बात को समझा कि-

जीतने से ज्यादा महत्व रखता है खेल खेलने की भावना,

पूर्ण समर्पण की भावना।




मीनाक्षी प्रकाश

Thursday, November 1, 2007

बदलते चेहरे

हर चेहरे के पीछे कई चेहरे नजर आते हैं,
ज़रा ये नकाब उठाकर तो देखो।
कितना मुश्किल है सब के लिए अलग सा हो पाना,
पर इन्सान है की फितरत है बदलने की।
आखिर हैरान होता हूँ देखकर मैं इन लोगों को, कोशिश
करता हूँ समझने की इसके अस्तित्व को ।
पर हमेशा ही नाकाम रहा हूँ। आसान नहीं होता,
ये दिखावे भरी दोहरी जिन्दगी जीना ,
पर कुछ है जिन्हें अच्छा लगता है इस तरह बदलना,
मानव की प्रकृति रही है ,हमेशा से शिखर तक पहुचने की ,
मुश्किल रास्ते को आसानी से पाने की तो
, कपट ,द्वेश कर ही मानव पहुच पाता है आज अपनी मंजिल पर
स्वार्थ में सब बदले है ऐसे की मानवता का अस्तित्वखो सा गया है,
मैं सोचता हूँ कि बचा लूँ अपने को ,
कि कही एक दिन खुद ही न शिकार हो जाऊ ।