जन संदेश

पढ़े हिन्दी, बढ़े हिन्दी, बोले हिन्दी .......राष्ट्रभाषा हिन्दी को बढ़ावा दें। मीडिया व्यूह पर एक सामूहिक प्रयास हिन्दी उत्थान के लिए। मीडिया व्यूह पर आपका स्वागत है । आपको यहां हिन्दी साहित्य कैसा लगा ? आईये हम साथ मिल हिन्दी को बढ़ाये,,,,,, ? हमें जरूर बतायें- संचालक .. हमारा पता है - neeshooalld@gmail.com

Saturday, November 24, 2007

महसूस करती हूँ आज


इस कविता का प्रकाशन कुछ वजह से समय पर न हो सका । अतः एक नयी कवियत्री की भावना का ध्यान रख कर मैनें इसे प्रस्तुत किया है।

यह कैसा शोर है,
हर तरफ दिवाली जा जोर है,
कमबख्त आ गई फिर से,
चारों तरफ शोर ही शोर है,
सौ गलियां रोशन है,
हजारों में सिर्फ काला इंसान है,
दिवाली से नफरत है-
पहले राम आते थे,
आजकल रावण की भरमार है,
कई लुटाते हैं, कई लूटते है
बोलते नही,
सिर्फ मजबूरी बस सिर्फ ताकते हैं।
दिल्ली करोडो़ रूपये जलाती है,
दो रूपये मागों तो दनदनाती है,
छीनेगें नहीं तो क्या करेगें?
क्यों हमने काटेंदार दीवार खडी़ कराई है?
हजारों ऐब पालेगें,
मैकडोनल्ड में उडा़येगें,
किसी की मद्द करते वक्त हाथ कंपकंपाते है,
इस दि वाली न जाने कितने तरसेगें और तरसायेंगें,
क्यों न इस मुबारक दिन को इक साथ जियें।

कल्पना की प्रस्तुती

No comments: