जन संदेश

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Monday, August 31, 2009

" अगर तू कह दे"

मैं परछाई बन के रहूँ अगर तू कह दे


ना करु मै याद तुझे अगर तू कह दे


भेजू वफा का पैगाम सरेआम अगर तू कह दे


युं ही जमाने से गुजर जाउं अगर तू कह दे



मै ना तुझसे मिलूं अगर तू कह दे


मै तेरे ख्वाबो से मिल आउं अगर तू कह दे

खुले आम कर दू इजहार अगर तू कह दे


अजनबी बन के गुजर जाउं अगर तू कह दे


जी लुं जिन्दगी मै अपनी अगर तू कह दे



तेरी नंजरो के सामने दे जान अगर तू कह दे


गमे जुदाई सह जाउं अगर तू कह दे


ना निकलेगी आहं अगर तू कह दे।




प्रस्तुति - मिथिलेश दुबे यहां पढ़े इस नवोदित ब्लागर को और अपने विचार के माध्यम से प्रोत्साहित जरूर करें ।

Saturday, August 22, 2009

एजुकेशन इट माई राईट बट हाऊ " कानून मात्र कानून है "

एजुकेशन इज माई राइट शायद ही इस वाक्य का अर्थ गरीब , मजदूर परिवार का बच्चा समझता हो । ऐसे राइट टू एजुकेशन बिल के पास होने के बाद भी बाल मजदूर और ऐसे परिवार की सोच में कोई खास फर्क नजर नहीं आता दिख रहा है । सरकार और प्रशासन को भले ही बाल मजदूर न दिखते हो पर हमको आपको बाल मजदूर ढूढ़ने के लिए बहुत दूर जाने की आवश्यकता न होगी । पास की चायवाली दुकान पर , या साइकिल पर पंचर बनाता वह लड़का या फिर सड़क पर भीख मांगते बच्चों की सबसे बड़ी जरूरत शिक्षा नहीं लगती बल्कि सबसे जरूर है " पेट की भूख " । अब किस तरह से राइट टू एजुकेशन का वास्तविक स्वरूप इन गरीब बच्चों तक पहुंच पायेगा ।


हमारे देश में कानून बना के सरकार भूल जाती है जिससे कानून पन्नों तक ही सीमित रह जाता है । सरकार की इच्छा शक्ति का आभाव नजर आता है । कानून का क्रियान्वयन पूरी तरह से नहीं हो पाता जिसका प्रभाव ये होता कि गरीब तबके के ये बच्चे लाभ से वंचित रह जाते हैं । सरकार को सबसे पहलेये देखना जरूरी है कि बच्चे आखिर क्यों स्कूलों तक नहीं जा पा रहें हैं । इस प्रकार से जो प्रमुख बात नजर आयेगी वह भूख ही है । इसलिए पहले पेट भरा रहे तब पढ़ाई भी होगी वरना अन्य कानूनों के जैसे यह कानून ही कानून बन कर रह जायेगा ।

Thursday, August 20, 2009

भारतीय महिलाओं का दबदबा विश्व जगत में कायम - " बहन जी नाम इस बार रहा गायब "

फोर्ब्स की टाप २० नयी लिस्ट में भारतीय महिलाओं का दबदबा कायम है । कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी दुनिया की १३ वीं सबसे ताकतवर महिला है । जबकि पेप्सी को की सीईओ इंद्रा नूयी तीसरे और आईसीआईसीआई बैंक की सीईओ चंद्रा कोचर २०वें स्थान पर हैं । इस बार की फोर्ब्स सूची में बहन जी का नाम दूर दूर तक नहीं नजर आता है । जबकि पिछली सूची में बहन मायावती जी का नाम था । ये तो रही भारतीय महिलाओं की ताकत विश्व में । फोर्ब्स ने ऐंजेला मेर्केल , जर्मनी चांसलर को सबसे पावरफुल महिलाओं की सूची में पहला स्थान दिया है । इस तरह से देखा जाय तो विश्व स्तर पर भारतीय महिलाएं तेजी से आगे बढ़ रही हैं । परन्तु इसके बावजूद भी भारत में महिलाओं का विकास सभी स्तर पर नहीं हो रहा है । लेकिन फिर भी इस तरह की सूची को नकारा नहीं जा सकता है । महिलाओं को आगे बढ़ाने में हम इस तरह के उदाहरण जरूर ले सकते हैं । हमें प्रत्येक स्तर पर प्रयास कर महिलाओं को एक ठीक और सही दिशा में आगे बढ़ाने में अपनी भागीगारी तय करनी चाहिए ।

Tuesday, August 18, 2009

महिलाओं को घर की इज्जत मानकर और सामाजिक दायित्व का बोझ डालकर " विकास " से वंचित रखा जा रहा है

दिल्ली में यदि ताजा आकड़ों की बात की जाय तो यहां सेक्स रेश्यों इस बार १००० लड़कों पर १००४ लड़कियां है । जो कि बहुत ही सुखद है । परन्तु अभी बात करें देश में स्त्रियों की दशा कि तो कलावती और विद्यावती जैसी बहुत संख्या अधिकाधिक है । कहीं शिक्षा का दोष तो कहीं सामाजिक ढ़ाचा कमजोर नजर आता है । फिर भी हालात जस कर तस बने हुए हैं । सरकार की पुरजोर कोशिश चल रही कि ऐसी महिलाओं और परिवार की समाजिक एवं आर्थिक दशा में सुधार किया जाय । पर विकास निचले स्तर तक व्यापकता के साथ नहीं पहुंच पा रहा है । लूट खसोट मची है अधिकारिक स्तर पर । स्त्रियों की दुर्दशा के पीछे समाज का अभी भी बहुत बड़ा सहयोग है । घर की चहर दीवारी से आगे स्त्रियों के बाहर निकलने के सभी रास्ते बंद मिलते हैं । पर्दा प्रथा एवं परिवारिक दायित्व एवं सम्मान का सारा बोझ महिलाओं पर ही डाला जाता है । इन सभी भूमिका को महिलाएं अच्छे तरीके से निर्वहन करती है परन्तु इन सबके बीच स्त्री अपना विकास पीछे छोड़ देती है । अब यह बात तो सभी देख चुके हैं कि यदि महिलाओं को मौका दिया जाय तो वह हमारे समाज में हर तरह से अपनी भूमिका निभा सकती हैं । परन्तु कहीं न कहीं आज भी हम दकियानूसी सोच से निकल न पाये हैं । जब कोई फैसला लेने की बात आती है तो हम अपने पैर पीछे खींच लेते हैं । हमारे गांवों की दशा आज भी बहुत दयनीय है और वहां कि महिलाएं अभी भी घर की इज्जत बनीं पल्लू से मुंह छिपाये जीवन बिता रहीं हैं । हम इसे संस्कार से जोड़कर देखते हैं । और इसी में संतुष्ट भी रहते हैं ।

Tuesday, August 11, 2009

बादलों की लुका छिपी में तुम नजर आती हो - कविता

बादलों में चांद छिपता है,

निकलता है ,

कभी अपना चेहरा दिखाता है ,

कभी ढ़क लेता है ,

उसकी रोशनी कम होती जाती है

फिर अचानक वही रोशनी

एक सिरे से दूसरे सिरे तक तेज होती जाती है ।

मैं इस लुका छिपी के खेल को

देखता रहता हूँ देर तक,

जाने क्यूँ बादलों से

चांद का छिपना - छिपाना

अच्छा लग रहा है ,

खामोश रात में आकाश की तरफ देखना ,

मन को भा रहा है ,

उस चांद में झांकते हुए

न जाने क्यूँ तुम्हारा नूर नजर आ रहा है ।

ऐसे में तुम्हारी कमी का एहसास

बार - बार हो रहा है ।

तुम्हारी यादें चांद ताजा कर रहा है,

मैं तुमको भूलने की कोशिश करके भी ,

आज याद कर रहा हूँ ,

इन यादों की तड़प से

मन विचलित हो रहा है ,

शायद चांद भी ये जानता है कि-

मैं तुम्हारे बगैर कितना तन्हा हूँ ?

अधूरा हूँ ,

ये चांद तुम्हारी यादें दिलाकर

तुम्हारी कमी को पूरा कर रहा है ।।

Sunday, August 9, 2009

काहे कि चिल्लम चिल्लू रे ...........................हां

हे काहे का चिल्लम चिल्लू ????? हां किसने क्या कह दिया ? अरे ये तो रोज ही कुछ न कुछ कहते रहते हैं इनका क्या ? धरम का ठेका तो इन्हीं के हाथ है भैया .........हां बात तो आपकी ठीक है पर क्या यही सबके ठेकेदार है कि जो आया वही बक दिये और वहीं होगा भी ? बक तो दिये है और होगा कि नहीं यही देखना है ........पर इनका जो इतना प्रभाव कि जब चाहें दंगा भडका दे , जिसका चाहें रेप करावा दें ज्यादा से ज्यादा मुकदमा होगा या कुछ दिन सरकारी बिल्डिंग में ही तो बीतेगा पर इससे इनका फायदा ही भाई । अच्छा है । पर एक बात बताइये जब आप एतना जानते हैं को काहे मरे जाते इन लोगों के पीछै ? करें भी क्या धरम भी तो न बदला जाता है भईया ......ठीक कहते पर ऐसा भी क्या कि जान दे दें आंख मूंद कर । और आप ही बताइये अयोध्या काण्ड में क्या आप न गये थे ? गये तो थे ही पर आज लगता है कि नाहक ही गया .... किसी तरह से जान बच गयी मेरी तो पर भोला और काशी तो बेचारे न बच सके । आज भी उनका चेहरा आंखों के सामने वैसा ही दिखता है । मन खिन्न हो जाता है , दुख से ग्लानि होती है पर जो समय अब नहीं लौट सकता बस पर क्या पछतावा कर कुछ मिलेगा । बात तो आप भी वहीं कहते हैं जो मैं कह रहा हूँ फिर भी हम धरम के आगे आंख तो बंद नहीं कर सकते । देखिये मैं आंख मूदने की बात न कहता हूँ पर आप ही बताइये गोधरा में जो हुआ वो तो गलत था कि नहीं ? देखिये आपकी बात से मैं सहमत होते हुए भी सहमत नहीं हूँ ? अच्छा तो बताइये क्यों नहीं सहमत नहीं हैं । वो ऐसे कि जब कोई हमें गाली देगा तो हम भी भला चुप कैसे बैठ सकते हैं ? एक मिनट इसका मतलब कि यह लड़ाई जो हुयी सही थी । नहीं कतई नहीं ? आपका दोनों ओर झुकना मैं नहीं समझ पा रहा । ठीक बात कहते हो पर जब मेरी उमर के होगे तो समझ जाओगे । हूँ .........

पर मैं आपसे आज कह दे रहा हूँ कि जो सोच आज है मेरी वही आगे भी देखियेगा । मैं किसी कठमुल्ला की ऐसी तुच्ची और दकियानूसी और आग लगाने वाली बातों का समर्थन कभी न कर सकूंगा । और किसी की जान न ले सकता हूँ और न जान दे सकता हूँ चाहे मेरा धरम ही क्यों न चला जाय ।। ये तो अपनी अपनी सोच है ? ठीक कहते हैं ............... मैं भी यही मानता हूं ............अच्छा अब चलता हूँ आपक खुद ही समझदार है कि सही और गलत क्या है ? राम राम

Wednesday, August 5, 2009

घर न मिलें तो धर्म की आड़ न लेना चाहिए .........

हाल ही में एक्टर इमरान हाशमी ने पाली हिल में घर न मिलने का प्रमुख कारण मुसलमान होना बताया था । इस मामले से जोरदार बहस का नया मंच तैयार हुआ । इमरान की जंग एक तरफ तब दिखी जब बालीबुड के तमाम मुसलमान कलाकारों ने इमरान के आरोप को नकार दिया । मामले को हद से ज्यादा तूल दिया गया । मकान खरीदनें और किराये पर लेने के लिए सबसे ज्यादा दिक्कत तो मिडिल वर्ग को ही होती है । वो चाहे मुसलमान हो या न हो । हां कुछ मामले जरूर सामने आते हैं कभी कभी जहां पर जाति का मुद्दा उठाया जाता है । पर अगर इमारान की बात को सच माना जाय तो क्या वह आज फिल्म इंडस्ट्री में जिस मुकाम पर हैं वहां होते ? तो इसका जवाब है कभी नहीं । या फिर बात नामी एक्टर की बात की जाय तो ज्यादातर मुसलमान ही है । ऐसे में इन सब को सफलता नहीं मिलनी चाहिए थी ।

आतंक की घटनाओं को अगर हम छोड़ दे तो भारत में मुसलमान हमारे सामाजिक ढ़ाचे का एक अहम हिस्सा है जिसके बिना भारतीय समाज अकाल्पनिक सा है । समाज में अगर जाति से जुड़ी हुई ऐसी कोई प्रतिक्रिया होती है तो वहां पर एक आम मुसलमान को भी परंपरा से अर्जित और शिक्षा से परिमार्जित अपने कला - कौशल के जरिये अपने प्रति बाकी समाज का नजरिया बदलना होगा ।

Tuesday, August 4, 2009

समाज के वास्तविक चित्र को बहुत ही सरलता से प्रस्तुत किया - कलम के सिपाही ने

मुंशी प्रेमचंद का वास्तविक नाम धनपत राय था । उनका जन्म ३१ जुलाई १८८० को बनारस शहर से करीब चार मील दूर लमही गांव में हुआ । उनके पिता का नाम मुंसी अजायब लाल था , जो डाक मुंसी के पद पर नौकरी करते थे । उस मध्यम वर्गीय परिवार में साधारण तौर पर खाने - पीने , पहनने- ओढ़ने की तंगी तो न थी, परन्तु शायद इतना कभी न हो पाया कि उच्च स्तर का खान-पान अथवा रहन सहन मिल सके । इसी आर्थिक समस्या से मुंशी प्रेमचंद की पूरी उम्र जूझते रहे । तंगी में ही उन्होंने इस नश्वर संसार को छोड़ा ।

थोड़ी सी पढ़ाई और ढ़रों खिलवाड़ तथा गांव की जिंदगी के साथ साथ मां और दादी के लाड़-प्यार में लिपटे हुए बालक धनपत के दिन बड़े मस्ती में व्यतीत हो रहे थे कि उनकी मां बीमार पड़ गयी। ऐसी गंभीर रूप से बीमार पड़ी कि बालक धनपत को इस भरे संसार में अकेला छोड़ चली । तब मुंशी जी सात साल के थे । मां के निधन के बाद, मां जैसा कुछ कुछ प्यार धनपत को बड़ी बहन से मिला । पर कुछ ही समय के पश्चात शादी होने पर वह भी अपने घर चली गयी । अब इस प्रकार से मुंशी जी की दुनिया सूनी हो गयी । उनके लिए यह कमी इतनी गहरी और इतनी तड़पाने वाली थी कि उन्होंने अपने उपन्यास और कहानियों में बार बार ऐसे पात्रों की रचना की - जिनकी मां बचपने में ही मर गयी ।

मातृत्व स्नेह से वंचित हो चुके , और पिता की देख रेख से दूर रहने चाले बालक धनपत ने अपने लिए कुछ ऐसा रास्ता चुना जिस पर आगे चलकर वे ' उपन्यास सम्राट ' और ' महान कथाकार' , कलम का सिपाही' जैसी उपाधियों से विभूषित हुए । मुंशी ने १३ साल की उम्र में ही । ' तिलिस्म होशरूबा, रेनाल्ड की ' मिस्ट्रीज आफ द कोर्ट आफ लंदन, मौलाना सज्जाद हुसैन की हास्य कृतियां पढ़ डाली ।मुंशी जी अभी १४ साल के ही हुए थे कि पिता का देहांत हो गया। घर में पहले से ही गरीबी थी । पिता का साथ छूटने के बाद मानों मुशीबतों का पहाड़ टूट पड़ा । रोजी रोटी की चिंता तो थी ही इसके लिए ट्यूशन करके किसी तरह मैट्रिक की परीक्षा द्वितीय श्रेणी में पास की । जल्द ही उनकी शादी भी हो गयी इसी दौरान मुंशी जी को एक मास्टरी मिल गयी । लंबे समय तक अध्यापन का कार्य मुंशी जी ने किया ।
गुजरे हुए जीवन का कटु सत्य और गहन अनुभव संपदा , आगे चलकर उनके जीवन के लिए अत्यन्त मूल्यवान साबितर हुआ । मुंशी जी आज भी हिन्दी साहित्य के ध्रव तारे के सामन हैं ।। मुंशी जी की करीब तीन सौ कहानियां और सर्वश्रष्ठ १४ उपन्यास हैं ।

बात कर्मभूमि की करें या फिर निर्मला या गोदान की सबकी पृष्ठभूमि समाज के आम इंसान की थी । मुंशी जी ने अपनी लेखनी से समाज के दर्द को सबके सामने मार्मिक रूप से प्रस्तुत किया । मुंशी जी ने ८ अक्तूबर , १९३६ को इस दुनिया को अलविदा कहा । शायद ही कोई ऐसा साहित्यकार इस धरती पर जन्म ले जिसने समाज के वास्तविक स्वरूप को अपने कलम के माध्यम से जीवंत कर दिया ।

Sunday, August 2, 2009

हिन्दी साहित्य मंच पर दूसरी कविता प्रतियोगिता सूचना ( लिखें हिन्दी और जीतें इनाम )

हिन्दी साहित्य मंच द्वारा आयोजित होने वाली कविता प्रतियोगिता में शामिल होकर जीतें इनाम । हिन्दी साहित्य मंच की दूसरी कविता प्रातियोगिता सितंबर माह में होने वाली है । इस प्रतियोगिता में हिस्सा लेने के लिए आप सभी अपनी कविताएं अगस्त माह की आखिरी तारीख तक भेज सकते हैं । कविता के लिए कोई विषय निर्धारण नहीं है । कविता भेजने के लिए ईमेल- hindisahityamanch@gmail.com है ।

आप अपनी रचना हमें " यूनिकोड या क्रूर्तिदेव " फांट में ही भेंजें । आप सभी से यह अनुरोध है कि मात्र एक ही रचना हमें कविता प्रतियोगिता हेतु भेजें ।प्रथम द्वितीय एवं तृतीय स्थान पर आने वाली रचना को पुरस्कृत किया जायेगा । दो रचना को सांत्वना पुरस्कार दिया जायेगा । सर्वश्रेष्ठ कविता का चयन हमारे निर्णायक मण्डल द्वारा किया जायेगा । जो सभी को मान्य होगा । आइये इस प्रयास को सफल बनायें ।

हिन्दी साहित्य मंच कविता प्रतियोगिता के माध्यम से हिन्दी के विकास हेतु एक छोटी सी पहल कर रहा है । आप इस इस आयोजन में अपनी भागीदारी सुनिश्चित कर अपना योगदान दें । भारत जैसे देश में हिन्दी भाषा के गिरते हुए स्तर को बनाये रखने हेतु इस तरह के प्रयास आवश्यक हो गये हैं । एक तरफ तो यह कहते सुनते हुए गर्व जरूर होता है कि हिन्दी विश्व में सबसे ज्यादा बोली वाली भाषाओं में एक है , साथ ही दूसरा पहलू बहुत ही सोचनीय है कि आज हिन्दी बोलने , लिखने और पढ़ने वालों की संख्या दिनों दिन कम हो रही है । ऐसे में अन्तरजाल ( इंटरनेट) की उपयोगिता को ध्यान में रखकर इस माध्यम से हिन्दी साहित्य को एक नया मुकाम अवश्य ही मिलता दिख रहा है ।

संचालक ( हिन्दी साहित्य मंच )
hindisahityamanch.blogspot.com

Saturday, August 1, 2009

आज भी तुमसे प्यार करता हूँ मैं................( यादों में )

यादें कितनी हैं , जो आज भी ताजा है जेहन में , किसी भी बात पर न जाने क्यूँ तुम ही याद आती हो, भूलना तो हुआ नहीं कभी , बहाना भले ही कितना किया हो तुमसे , आज

देखता हूँ मोबाइल पर लिखे हुए मैसेज को , तो प्यार के दिन बयां करते हैं है तुमको , जिससे मैंने वादा किया था साथ जीने मरने का , हर पल साथ देने का , शायद यह सब एक दिखावा ही था जो आज नहीं है , तुम ने मुझको भुलाया और मैंने तुमको ,
पर हकीकत में शायद आज भी एक दूसरे के बेहद करीब हैं । यह देखकर तुम खुश हो यही अच्छा लगता है मुझे । मैं पागल हूँ , मैं बदल गया हूँ , आज ये सारी बातें याद हैं पर क्या करूँ मैं मजबूर कर दिया है तुमने कसम देकर अपनी , उतना ही प्यार आज भी मैं करता हूँ तुमसे ,
पर कैसे बता पाऊंगा ? दिल में दबकर ही रह जायेगी यह सब बातें फिर भी मैं खुश हूँ कि - मैं तुमसे आज भी प्यार करता हूँ , तुम्हारे बगैर अधूरा हूँ , सोचता हूँ तुमको और खुश हो जाता हूँ अपने आप में