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Tuesday, August 18, 2009

महिलाओं को घर की इज्जत मानकर और सामाजिक दायित्व का बोझ डालकर " विकास " से वंचित रखा जा रहा है

दिल्ली में यदि ताजा आकड़ों की बात की जाय तो यहां सेक्स रेश्यों इस बार १००० लड़कों पर १००४ लड़कियां है । जो कि बहुत ही सुखद है । परन्तु अभी बात करें देश में स्त्रियों की दशा कि तो कलावती और विद्यावती जैसी बहुत संख्या अधिकाधिक है । कहीं शिक्षा का दोष तो कहीं सामाजिक ढ़ाचा कमजोर नजर आता है । फिर भी हालात जस कर तस बने हुए हैं । सरकार की पुरजोर कोशिश चल रही कि ऐसी महिलाओं और परिवार की समाजिक एवं आर्थिक दशा में सुधार किया जाय । पर विकास निचले स्तर तक व्यापकता के साथ नहीं पहुंच पा रहा है । लूट खसोट मची है अधिकारिक स्तर पर । स्त्रियों की दुर्दशा के पीछे समाज का अभी भी बहुत बड़ा सहयोग है । घर की चहर दीवारी से आगे स्त्रियों के बाहर निकलने के सभी रास्ते बंद मिलते हैं । पर्दा प्रथा एवं परिवारिक दायित्व एवं सम्मान का सारा बोझ महिलाओं पर ही डाला जाता है । इन सभी भूमिका को महिलाएं अच्छे तरीके से निर्वहन करती है परन्तु इन सबके बीच स्त्री अपना विकास पीछे छोड़ देती है । अब यह बात तो सभी देख चुके हैं कि यदि महिलाओं को मौका दिया जाय तो वह हमारे समाज में हर तरह से अपनी भूमिका निभा सकती हैं । परन्तु कहीं न कहीं आज भी हम दकियानूसी सोच से निकल न पाये हैं । जब कोई फैसला लेने की बात आती है तो हम अपने पैर पीछे खींच लेते हैं । हमारे गांवों की दशा आज भी बहुत दयनीय है और वहां कि महिलाएं अभी भी घर की इज्जत बनीं पल्लू से मुंह छिपाये जीवन बिता रहीं हैं । हम इसे संस्कार से जोड़कर देखते हैं । और इसी में संतुष्ट भी रहते हैं ।

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