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Monday, August 31, 2009

" अगर तू कह दे"

मैं परछाई बन के रहूँ अगर तू कह दे


ना करु मै याद तुझे अगर तू कह दे


भेजू वफा का पैगाम सरेआम अगर तू कह दे


युं ही जमाने से गुजर जाउं अगर तू कह दे



मै ना तुझसे मिलूं अगर तू कह दे


मै तेरे ख्वाबो से मिल आउं अगर तू कह दे

खुले आम कर दू इजहार अगर तू कह दे


अजनबी बन के गुजर जाउं अगर तू कह दे


जी लुं जिन्दगी मै अपनी अगर तू कह दे



तेरी नंजरो के सामने दे जान अगर तू कह दे


गमे जुदाई सह जाउं अगर तू कह दे


ना निकलेगी आहं अगर तू कह दे।




प्रस्तुति - मिथिलेश दुबे यहां पढ़े इस नवोदित ब्लागर को और अपने विचार के माध्यम से प्रोत्साहित जरूर करें ।

4 comments:

Unknown said...

उम्दा...........
बहुत ख़ूब !
बधाई !

mehek said...

sunder abhivyakti.

Udan Tashtari said...

गमे जुदाई सह जाउं अगर तू कह दे
ना निकलेगी आहं अगर तू कह दे।

-क्या बात है, बहुत खूब!

राज भाटिय़ा said...

बहुत प्यारी लगी आप की यह रचना