जन संदेश

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Tuesday, December 18, 2007

हर २०वाँ है यौन शोषित ................................अमेरिका में

विश्व के सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका में यौन शोषण का किस्सा हर देशों की तरह ही आम न होकर सबसे अधिक है । पिछले १२ महीनों के दौरान अमेरिका की जेलों में कैद हर २०वें कैदी यौन शोषण का शिकार हुआ है । इस बात खुलासा एक रिपोर्ट में किया गया है। सरकार द्वारा ‌‌"ब्यूरो आफ जस्टिस स्टैटिस्टिक्स" की रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्य और संघीय जेलों में बंद ४.५ फीसदी कैदियों के साथ बलात्कार या फिर उनका यौन शोषण किया गया। इसमें २.1प्रतिशत कैदियों को उनके साथी कैदी ने शोषण किया, जबकि २.9 प्रतिशत कैदियों को जेल के कर्मचारियों ने अपना शिकार बनाया ।

अमेरिका की १४६ जेलों के २३ हजार से अधिक कैदियों पर यह सर्वेक्षण किया गया है। केवल छह जेल ऐसे पाए हये जहां पर ऐसा मामला नही मिला, जबकि १० जेल ऐसे थे जहां ९.3 प्रतिशत से अधिक कैदियों को यौन शोषण का शिकार बनाया गया। अमेरिका की संघीय और राज्य जेलों में करीब १६ लाख कैदी हैं। यहां आबादी के हिसाब से दुनिया में सबसे ज्यादा औसत कैदी हैं। न्यूयार्क की मानवाधिकार संस्था " ह्यूमन राइटस वाच" का कहान है कि रिपोर्ट से पता चलता है कि इस जघन्य अपराध को रोकने के लिए जेल प्रसाशन पर्याप्त कदम नहीं उठा रहा।

Friday, December 14, 2007

शब्दों की राजनीति

मैं यहाँ किसी भी जाति या सम्प्रदाय की बात नहीं कर रही हूँ। मेरा मन था कि मैं अपना कुछ विचार प्रकट करूँ इसलिए मैं बस कुछ कहना चाहती हूँ। हम हर वक्त ये चर्चा करते रहते हैं कि हमारा देश और देशों से कब और कैसे आगे बढ़ेगा। अरे जिस देश के मंत्री सिनेमा और खेल जैसे विभाग में दख़्लन्दाज़ी करेंगे वो कैसे आगे बढ़ सकता है। आजा नच ले फिल्म में एक गाने में एक शब्द के कारण इतना बवाल मचाया गया। क्या फिल्म बनाने वाले ऐसी कोई भी बात कर सकते हैं जिससे जनता आहत हो?? उन्हें भी पता है कि जो जनता उन्हें इतना दुलार करती है उनकी भावनाओं को ठेस नहीं पहुँचाना है। आखिर क्यों ये नेतागण मासूम लोगों के मन में जात-पात का ज़हर घोलते हैं। हमें तो यह ध्यान रखना चाहिए की मानवता से बड़ी कोई जाति नहीं होती है। जब आतंकवाद का हमला होता है तब जो खून बहता है उसमें जाति के हिसाब से खून नहीं बहता है। सबका खून लाल रंग का होता है। आखिर ये बातें क्यों लोगों को समझ नहीं आतीं। जैसे डॉक्टर,इंजीनियर,अध्यापक की पदवी होती है वैसे ही दुकानदार,बावर्ची,सुनार और मोची भी व्यावसायिक पदवी होती है। इसमें किसी जाति को कहाँ आहत किया गया है। दोस्तों हमें अपने विचारों में परिवर्तन लाना ही पड़ेगा तभी हम दूसरे देशों को टक्कर दे सकते हैं। ऐसे मौके पर कबीर जी का एक दोहा याद आता है : ”जे बाह्मन तू बाह्मणी का जाया और राह ते काहे न आया।“ अर्थात् प्राकृतिक नियम सबके लिए एक जैसे होते हैं। मानवता में भेदभाव करने वाले हम ख़ुद ज़िम्मेदार हैं। अपनी इस हालत के ज़िम्मेदार केवल हम हैं और कोई नहीं। और राजनीतिक लोगो6 से भी ये अनुरोध है कि मनोरंजन जगत को तो अपनी राजनीति से दूर रखें।







प्रीति मिश्रा सह संपादक

Friday, December 7, 2007

दिल्ली में ट्रैफिक पुलिस

DP यानी दिल्ली पुलिस । हाल ही के दिनों में लखनऊ , फैजाबाद और बनारस में हुऐ बम हमले की जानकारी को ई-मेल के जरिये प्रशासन को सूचित किया गया । अभी कुछ दिनों पहले ही एक ई-मेल में यह खुलासा हुआ कि बम धमाकों के ढेर पर दिल्ली दनदनाती हुई बढी चली जा रही है । तो जाहिर है कि प्रशासन के रवैये में कुछ सख्ती आयेगी ही। प्रशासन की गाज दिल्ली वासियों पर कुछ यूँ गिरी कि लोगों ने अब नियम कायदे , कानून के पालन के प्रति सचेत हो गये।
दिल्ली में जगह -२ पर वाहन चेकिगं बहुत ही सजगता के साथ हो रही है । ट्रैफिक पुलिस भी इस काम में अपने कार्य को बहुत ही नियम पूर्वक कर रही है । लोगों के द्वारा ट्रैफिक नियम के उल्लंघन ( रेड लाइट पार करने पर) पर २० रूपये का जुर्माना और फिर बाद में कोर्ट का चक्कर लगाना होगा । अतः यदि आप को रेड लाइट पार करने का शौक रखते है तो आप अपनी जेब को गर्म करके ही घर से निकलें अन्यथा आप को जनता के सामने उठक बैठक, मेढ़क चाल आदि कसरत का सामना करना पड़ सकता है। तो दिल्ली वासी होशियार । कहीं अगला शिकार आप ही न हों ।

Thursday, December 6, 2007

इंम्तहान प्यार का


इंम्तहान तेरे प्यार का अब होगा ,
तेरा यार जब तुझसे जुदा होगा,
बस बातें ही रह जायेगी यादों का पुलिन्दा बनकर,
इनके ही सहारे पर जीवन का सफर होगा ।।
जमाने से मिलकर तो चलना ही होगा ,
राहें है मुश्किल मगर मंजिल पर पहुँचना होगा,
सांसे जो कम पड़ जायें तो ले लेना मेरी,
पर जो वादा किया है तुमने उसे पूरा करना ही होगा ।।
अब वक्त का तकाजा ये होगा ,
प्यार मेरा अब तेरा होगा ,
हम पार कर गये सरहदें सारी,

उस जहां में न कोई प्यार का इंम्तहान होगा।।

Tuesday, December 4, 2007

मारो- मारो- मारो

दूर से आती आवाज मारो-मारो कानों में जब पडी़ तो मन में उत्सुकता बस मैने कमरे से बाहर निकलकर माजरा देखना ही उचित समझा । क्योंकि यदि मैं इस समय उठकर छत पर आकर गूजँती आवाज के दृश्य को न देखता तो दिमाग में ज जाने क्या - क्या प्रश्न उठते । तो मैने छत पर आना उचित समझा । दरवाजा खोल के मैं रेलिगं पर पहुचा और गली में झांककर देखा तो हर घर के दरवाजे सामने पर भीड़ थी । तो लगा कि माजरा कुछ गम्भीर है । ध्यान पूर्वक घरों के सामने खडे लोग गली के उस कोने को देख रहे थे जिस तरफ से आवाज आ रही थी । कुछ देर तक मैं भी छत पर खडा़ होकर देखता रहा । वहां पर कुछ लोगों के हाथों में लाठी और डण्डे देखे तो झगडा़ होने की शंका हुई। और कुछ घबराहट कारण था कि गली के जिस कोने से मारो मारो की आवाज आ रही थी लोग इधर उधर भाग रहे थे। मन में कल्पनाएं तो उत्पन्न होने लगी उसी तरफ घर की एक महिला ने एक पुरूष के हाथ में लाठी दी तो मैंने सोचा जरूर किसी से झगडा़ हो रहा है। पर कुछ ही देर में एक सफेद सांड को गली से भागते हुए देखा तो और दूर से आ रही आवाज करीब आ गई तो समझ में आया कि बात कुछ और ही है । धत तेरी कि खोदा पहाड़ निकला चूहा , यह तो साड़ निकला । फिर भी पूरे मोहल्ले वालों के लिए यह घटना कौतूहल और मनोरंजन का केन्द्र जरूर बन गया। इस घटना को देखकर सभी के चेहरे पर मुस्कान और शंका समाधान । वाह रे भारत एक जान के पीछे इतनी भीड़ ?

Monday, December 3, 2007

शंहशाह बन क्रिकेट की बंशी बजायेंगें मुरली


श्रीलंका के स्टार स्पिनर मुथैया मुरलीधरन ने इंग्लैण्ड के खिलाफ पहले टेस्ट क्रिकेट मैच में कैरियर का ७०८वां टेस्ट विकेट लेकर आस्ट्रेलिया के शेन वार्न के विश्व रिकार्ड की बराबरी कर ली। मुरली धरन ने पहला टेस्ट मैच खेल रहे रवि बोपरा को विकेट कीपर प्रसन्ना जयबर्धने के हाथों कैच कराकर यह उपलब्धि हासिल की। उन्हें अब दुनिया का सबसे सफल गेंदबाज बनने के लिए मात्र एक विकेट की दरकार है । यह आफ स्पिनर ११६वें टेस्ट मैच में ७०८ विकेट तक पहुचा। जबकि वार्न ने इस साल जनवरी में सन्यास लेने से पहले इतने विकेट के लिए १४५ मैच खेले । इस लिहाज से मुरली के रिकार्ड का महत्तव बढ़ जाता है। मुरली के विकेटों में १५३ खिलाडि़यों को बोल्ड आउट तथा ३१० को कैच आउट , ३० को कट एण्ड बोल्ड , ३९ खिलाडियों को स्टम्प आउट ,एलबीडब्लू १३५ खिलाडियों को तथा हिट विकेट १ खिलाडी को आउट किया । यह कुल ७०८ विकेट का आकडा़ है।
मुरली ने ५ विकेट ६० बार लिया है और १० विकेट २० बार लिया है । जबकि शेन वार्न ने ३७ बार ५ विकेट लिये और १० विकेट १० बार लिया है। जिससे यह बात साफ नजर आती है कि शेन वार्न के मुकाबले मुरली का औसत बेहतर है।

Sunday, December 2, 2007

अब तो जागो


"इंतहा हो गई इंतजार की , आयी ना कुछ खबर इंसाफ की"......... यही दास्तां है भोपाल गैस त्रासदी के पीडितो की। २ दिसम्बर १९८४ की उस काली रात की यादें भले ही भोपाल के पाँश इलाकों में रहने वाले नागरिकों के जहन में धुधंली हो गई हो परन्तु जो लोग इस त्रासदी से प्रभावित हुए वे उसे भूल जाना चाहते हैं। २३ साल पहले की त्रासदी के एक ख्याल से लोगों की रूह कांप जाती है। यूनियन कारबाइड के कारखाने से हुई उस जहरीली गैस के रिसाव ने लोगों को ताउम्र ग्रसित कर दिया है। सरकार ने मुआवजा तो बाटां पर उसमें भी उचें कद के लोग मलाई खा गये।
सरकारी आकडों के मुताविक अभी तक मात्र दो किश्त मुआवजे की अदा की गई है। वह भी अभी तक मुआवजे का ब्याज मात्र ही वितरीत हुआ है। असल तो अभी सरकार के अधीकार में है। तथा जो लोग भीषण रूप से पीडित हैं वह तो आज भी इंसाफ मिलने का इंतजार कर रहें है। गैस पीडितों के स्वास्थ्य हेतु निर्मित चिकित्सालय भी शहर से इतना दूर है कि मरीज जिनके पास और कोई साधन नहीं हैवज जाते-जाते ही दम तोडंते है। सरकार को यह बात समझनी होगी कीपराए धन को सम्मान वितरण कर देना चाहिए अन्यथा इतने गरीबों की हाय ले डूबेगी।


मोनिका के द्वारा

आजा नच लै सरकार को मंजूर नही


एक दो तीन चार यह तेजाब वह गाना है जिसकी धुन ने सब को दीवाना कर दिया था।और साथ में माधुरी दीक्षित की लचकती कमर का जादू दर्शकों के सर चढ़कर बोलता था। जब ५ साल बाद इस अभिनेत्री ने अपने फिल्मी कैरियर में पुनः प्रवेश फिल्म " आजा नच लै" से किया तो दर्शको को वही पुरानी अपनी चहेती माधुरी की फिल्म का बेसब्री से इंतजार रहा लेकिन दर्शकों को सरकार ने मायूस किया । सिनेमा हाल के सामने दर्शको का जमवाडा़ देखने को मिला।
हुआ कुछ यूं कि इस फिल्म के एक गाने में " मोची " शब्द का प्रयोग किया गया है और लोगों में इसी का विरोध है कि यह किसी जाति विशेष को आहत करता है। जिसके चलते उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री ने फिल्म को प्रतिबंधित कर दिया। पर जब यह बात यश राज फिल्मस के अध्यक्ष यश चोपडा़ को पता चला तो उन्होंने कहा कि फिल्म में किसी जाति विशेष को नीचा दिखने का कोई उद्देश्य न था यह मात्र गलती थी । जिसकी मैं माफी मागंता हूँ। इस वक्तब्य के आने के बाद मायावती ने फिल्म से प्रतिबधं हटा लिया। लेकिन दूसरी तरफ एक नया संकट इस फिल्म पर आगया । हरियाणा और पंजाब सरकार ने भी फिल्म को अपने प्रदेशों में प्रतिबंधित किया हुआ है। अब देखना है कि कब यह प्रतिबंध कब हटेगा।
वैसे फिल्मों में यह कोई पहली फिल्म नहीं है जिस पर प्रतिबंध लगा हो। पर इससे फिल्म कंम्पनी को जरूर आर्थिक हानि उठानी पडी है।और साथ ही साथ सिनेमा के मालिकों को भी। अब देखना है कि राजनीति के जाल से यह फिल्म कब निकल पाती है। तब फिर से दर्शक माधुरी संग कह सकेंगें कि " आजा नच लै "।

Saturday, December 1, 2007

मिस यूनिवर्स २००७


चीन की २३ वर्षीय झांग जिलिन ने दुनिया भर की सुंदरियों को पीछे छोडते हुए मिस वलर्ड २००७ का खिताब जीत लिया है। झांग अपने ही देश में हो रही देश प्रतियोगिता की शुरूआत से ही फेवरिट मानी जा रही थी। मिस अंगोला और मिस मैक्सिको तीसरे स्थान पर रही।
इस बार मिस इंडिया साराह जेन डायस को अंतिम पांच मे जगह नही मिल पायी। लेकिन भारतीय मूल की सुदंरी वेलेनी महराज ने मिस वलर्ड के अंतिम पांच में जगह बनाने मे सफल रही। स्पर्धा में में वेलेनी ने ट्रिनिडाड एंड टोबैको का प्रतिनिधित्व किया।
१९९४ में मिस वलर्ड चुनी हई ऐश्वर्या राय को सन २००० में वोटिंग के आधार पर मिस यूनिवर्स प्रतियोगिता के इतिहास की सर्वाधिक खूबसूरत विश्व सुदंरी चुना गया।सुदंरता के अतर्राष्टीय खिताब के मामले में भारत विशव के किसी भी अन्य देश से आगे है। सबसे ज्यादा विश्व सुंदरी के मा,ले में भी भारत वेनेजुएला के साथ दुनिया में अव्वल है। भारत और वेनेजुएला ने पांच- पांच बार यह खिताब जीता है।
भारत इकलौता ऐसा देश है जिसकी झोली में दो बार एक ही वर्ष में मिस वलर्ड और मिस यूनिवर्स का खिताब जीता हो।

भारत में महिलाओं की शिक्षा


महिलाओं का समाज में जो स्थान हम वैदिक सभ्यता में पढ़ते आये है वो स्थान आज के विकासशील भारत में नजर नहीं आती है। वैसे तो भारत के कुछ प्रमुख शहरों महिलाओं की दशा बहुत ही अच्छी है। पर यदि हम भारत के ग्रामीण इलाकों की बात करें तो आकडों में अत्यधिक असमानता देखने को मिलती है। उत्तर प्रदेश , बिहार , झारखण्ड, छत्तीसगढ़ आदि ऐसे प्रदेशों में शुमार किये जा सकते हैं। जहां पर आज भी महिलाओं का सामाजिक जीवन बहुत ही कष्टदायी हैं। बात यदि शिक्षा की करें तो सुधार हुए हैं पर अभी भी बहुत कुछ करना बाकी है। गावों में बसने वाला भारत की यह दयनीय दशा को हम छिपाकर अपने आप को धोखा मात्र ही देते हैं।
भारत के गावों की सोच अभी वही पुरानी है ।जो १०० वर्षों पहले थी। कि आखिर महिलाओं को शिक्षा की भला क्या आवश्यकता ? इस शिक्षा में खासकर पिछडी जातियां , अनुसूचित जाति और अनुसूचित जातियां बहुत ही पीछें हैं। शिक्षा का प्राथमिक चरण भी न पार कर पाना इस समाज की मजबूरी भी लगता है । कारण स्पष्ट नजर आता है बेरोजगारी और जनसंख्या वृद्धि। लडकियां आज हमें सरकारी विद्यालय में उस समय नजर आती है जब या तो छात्रवृत्ति या खाने के लिए चलने वाला भारत सरकार का 'मीड डे मील' कार्यक्रम होता है। यहां पर सरकार की एक बडी़ उपलब्धि यही है कि कम से कम ये लडकियां आज अपने घर से कम से कम बाहर तो आयी है। वैसे कुछ न कुछ तो फर्क होता ही है भले कोई भी बहाना हो। भारत में सक्षारता दर बढाना ही बडी़ बात लगती है क्योंकि आज देश की आबादी लगभग १ अरब २५ करोड़ के पास है।वैसे अगर इन पिछडे़ राज्यों पर सरकार यदि नियंत्रण पा लती है तो भारत में महिला शिक्षा का स्तर जरूर सुधर जायेगा। और फिर शहरों की तुलना हम गावों मे बसने वाले भारत से गर्व से कर सकेंगे।

Friday, November 30, 2007

विश्व एडस दिवस


विश्व एडस दिवस पर हम सभी को यह समस्या याद सी आ जाती है । भारत में एडस रोगियों की समस्या में बढोत्तरी हो रही हैं । एडस फैलने का मुख्य कारण है इस बीमारी के प्रति लोगों में जानकारी का आभाव। जिसका परिणाम एडस के रूप में हमारे सामने आती है। ग्रामीण इलाकों में शिक्षा का आभाव होना इसका प्रमुख कारण है। जब की भारत जैसे विशाल देश में यह आसान काम नही हैं कि स्वास्थ्य के प्रति लोगों घर -घर जाकर समझाया जा सके। सरकार का प्रयास भी काम चलाऊ लगता है। विकास भारत में भौगिलिक स्थिती ऐसी है जिस वजह से हर स्थान पर सूचनाएं देना संम्भव नही ।
यदि भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय के सर्वेक्षण को देखे तो आने वाले दिन में इन एडस रोगियों की संख्या में कुछ सुधार के आसार हैं। पर क्या इस तरह की सरकारी बातों को माना जा सकता है। ये तो आने वाले दिन ही बतायेंगे। फिर भी एडस से पीडित रोगियों के लिए पर्याप्त संशाधन की व्यावस्था न होने के कारण इन रोगियों की बची हुई जिंदगी आसान नही रह जाती है। तो क्या इस तरह से जीवन के एक पल को घुट -२ कर जी रहें लोगों को हम लोगों को मदद नही करनी चाहिए। वैसे तो भारत में कई गैर सरकारी संगठन इन रोगियों के लिए काम कर रहें पर ये संगठन मात्र दिखावा ही लगते है। आइये हम मिलकर इस एडस दिवस पर ये संकल्प ले की हम इन रोगियों को प्यार एवं आर्थिक मजबूती देगें। इस बीमारी को खत्म करने के लिए प्रयास करेगें।।

Thursday, November 29, 2007

तो हम जाने

इन आसुओं को सब सिखाओ तो हम जानें,
गैरों के लिए इनको बहाओ तो हम जानें,
जो दे गया था ऑंख में रखने के लिए ये मोती,
कुछ उसके लिए भी बचाओ तो जानें,
जलतें हैं दिल जो यहाँ नफरत के तेल सेउस
लौ को प्रेम से बुझाओ तो हम जाने
जो रोशनी की चाह में अब तक बुझे रहे,
के लिए खुद को जलाओ तो हम जाने,
मिट्टी पर बनाये गये हैं आशिया बहुत,
तुम रेत पर महलों को बनाओ तो हम जाने,
आये हो जो हर बार तो आये हो पूछ कर,
पूछें बगैर दिन में जो आओ तो हम जानें।

सोचो मत खाये जाओ।

सोचो मत खाये जाओ।क्या आप को मालूम है कि भारत में ५० प्रतिशत लोग दिन में चार बार अस्वास्थ्यप्रद भोजन लेते हैं। जिसमें बिस्कुठ,चिप्स की भरमार होती है।इससे लगता है कि देश पेटू होता जा रहा है।६२ प्रति लोगों ने अस्वास्थ्य भोजन को 'आदर्श' नाश्ता बताया' ऐसे ज्यादा लोग बंगलूरू , चेन्नै , कोलकाता में हैं।७२ फीसदी लोगों ने फलों को सर्वश्रेष्ठ बताया ।लेकिन ११ फीसदी को बिस्कुट पसंद है ,और सिर्फ ६ फीसदी को फल।ऐसे तो लगता है कि लोग को बिस्कुट के कहर में आ गये हैं। दिल्ली और मुम्बई के ९० फीसदी लोग पौष्टिक खाना खाते है। बगलूरू, कोलकाता, चेन्नै में यह औसत २३ फीसदी का है।
हम परिवार और दोस्तों से बोर होने पर या पैकेट, प्लेट ,आकार और गंध के आकर्षण में ज्यादा खाते हैं ।खाना खतरा बनता जा रहा है।कोलकाता चिप्स की राजधानी है। तो बगलूरू नूडल्स में सबसे आगे है और चैन्नै बिस्कुट मामले में।५० फीसदी लोग अनियमित समय में चार बार खाते है इनमें सेहत के लिए हानिकारक नमकीन वगैरह की मात्रा ज्यादा होती है। दिल्ली में ६२ फीसदी लोग डिनर के बाद जंक फूड और कोलकाता में ९८ फीशदी उससे पहले जंक फूड का प्रयोग करते है।

Tuesday, November 27, 2007

उफ ये लोग़!

आज एक अज़ब बात हुई,
जो कट कर निकल जाते थे उन से बात हुई,
निकले तो थे अपने काम से,
और हमसे कटते-कटते टकरा गए,
जिन्हें न थी फरसत दिवाली तक की बधाई देने की,
आज हमारी दिनचर्या में शामिल हुए,
बस यूँ ही बाजार से लौटते वो हमसे टकरा गयें।
हमारा हाल तो छोडों सीधे मुद्दे पर आ गये,
इधर - उधर की बातों की फुरसत कहां,
वो तो बस अपनी कम्पनी की बुक पकडा़ गये।
अब क्या कहें इन बड़े घर के लोगों को ,
हर जगह अपना काम निकाल लेते हैं,
जरूरत पड़ने पर ये क्या नहीं कर गुजरते ,
हम जैसे गंधों को भी खास बना लेते हैं।

मोनिका की कलम से

एक और नया दिन


आज फिर एक नया दिन शुरु हुआ,
नई चुनौतियों का सिलसिला शुरु हुआ,
बहुत कुछ है जो घट रहा है, किसे तवज्जो दें इस बात पर सिर खप रहा है,
एक तरफ देश की नयी मिसाईल है,
तो दूसरी ओर बिपाशा का छोङा जातिय बम,
शरीफ जी कहीं घर लौट रहे हैं,
तो कहीं तस्लीमा खुद के घर से तंग,
ये सब हलचल कुछ थमी ही थी कि नई शुरु हो गई,
आज सुबह-सुबह ही धरती के प्रकोप से मुलाकात हो गई,
जो भी हो अब शाम हो चुकी है,
दिमाग की बत्ती भी अब गुल सी हो चुकी है,
कल की कल देखेंगे जो होगा,
अभी तो बस ये गरम रजाई दिख रही है..........

मोनिका कि कलम से.......

Monday, November 26, 2007

कोटला में धुनाई


भारत के नवनियुक्त टेस्ट कप्तान अनिल कुम्बले के नेतृत्व में भारतीय टीम ने शानदार प्रदर्शन करते हुए पहले टेस्ट में पाकिस्तान को ६ विकेट से करारी शिकश्त दी। फिरोज शाह कोटला के मैदान में चले रहे उठा पटक की समाप्ति भारत के पक्ष में रहा। अनिल कुम्बले भारत के सातवें ऐसे कप्तान है जो अपने पहले ही टेस्ट में जीत दिलाई हो। साथ ही साथ मैन आफ द मैच का खिताब भी अपनी शानदार गेदबाजी और बल्लेबाजी से हासिल किया।
इस समय भारतीय टीम में सभी खिलाडी़ अपना अच्छा प्रदर्शन कर रहें हैं। बात यदि सचिन कि की जाय तो उन्होंने मैच में मैदान के हर क्षेत्र मरं रन बटोरे और अपना पचासा पूरा किया। हमारे महराज ने शानदार गेदबाजीं कर अपने एक ओवर में पाकिस्तान के दो विकेट ले कर विपक्षी टीम को हार का रास्ता दिखाया। गागुली ने अपनी बल्लेबाजी में ४८ रन की बेहतरीन पारी खेली। भारतीय टीम में लक्ष्मण और धोनी के बीच हुई ६वें विकेट के लिए ११५ रन साझेदारी का इस टेस्ट में अहम रोल रहा। कुल मिला कर भारत ने टीम का मिलाजुला प्रदर्शन ही टीम हो जीत तक ले गया।

बस यूँ ही


क्यों कोई दिल को छू जाता है,

क्यों कोई अपनेपन का एहसास दे जाता है।
छूना जो चाहो बढा़कर हाथ,

क्यों कोई साये सा दूर चला जाता है।

सब बहुत अपनापन जताते है,

खुद को हमारा मीत बताते है,

पर जब छाते है काले बादल,

क्यों वे धूप से छावँ हो जाते हैं।
कोई बता दे उन नाम के अपनों को,
ये दिल दिखने में श्याम ही सही,

पर दुखता तो है,

हम औरों की तरह ना सही,

पर बनाया तो उसने आप सा ही है ।




मोनिका सुना रही है

भारत में सेक्स शिक्षा


बदलते भारत के साथ ही कई क्षेत्रों में परिवर्तन हो रहें कुछ सही दिशा में और तो कुछ गलत दिशा में । ऐसे में जररूत है जागरूकता की। भारत विश्व का सबसे युवा देश होने का दावा करता है । पर इन युवा को यदि सही मार्गदर्शन न मिलें तो यह हमारे देश और समाज के लिए खतरा बन जाते है। सरकार ने हाल ही के दिनों शिक्षा में अमूल - चूल परिर्वतन करने की कोशिश करी है जिससे यह बात तो साफ हो जाती है कि भारतीय भविष्य पर सरकार का ध्यान है। शिक्षा में सरकार ने ६वीं कक्षा से सेक्स शिक्षा देने वाली है। जो कि एक बहुत ही सराहनीय कार्य है। पर राजनीतिक पार्टियां अपने लाभ के लिए किसी भी हद तक गिरने के लिए तैयार हैं। जब बात देश के विकास की रफ्तार को तीव्र करने वाले युवा के हितों के लिए हो तो फिर क्या इस तरह के प्रदर्शन देश हित में हैं?
पर कुछ लोग देश की सभ्यता और संस्कृति का रोना रोते है पर अगर यही सोच के हम कोई परिवर्तन न करं तो क्या ये सब विकास सम्भव होता तो मेरा मानना है कि नहीं। समाज में बिना व्याह की मां की संख्या में बढोत्तरी हो रही है यह दुखद बात है। इस तरह यदि यह समाज इसी पथ अग्रसर रहा तो वह दिन दूर नहीं होगा जब भारत की तुलना अमेरिका जैसे देशों से होने लगेगीं । क्या हम सब ऐसा होते देखें या फिर कोई प्रयास कर इस समस्या के समाधान ढूढ़े। सेक्स की शिक्षा का भारत में बहुत दिनों छोटी कक्षाओं में चलाये जाने की कोशिश होती रही है पर उस प्रयास का जीवतं रूप हमारे आने वाला है। आज की मीडिया और टेलीविजन ने अपने बदलते स्वरूप में समाज को गिरावट का रास्ता पकडा दिया है। सेक्स की बात को बच्चे यदि सही तरह से नहीं जान पाते है तो हो सकता है कि वह गलत तरीके से जाने और जिसका वच्चों पर गलत प्रभाव हो इस लिए शिक्षा के माध्यम से सरकार इस सेक्स की जानकारी का वीणा उठाया है।

Saturday, November 24, 2007

खामियां ही खामियां


हाल ही के बम विस्फोट इस बात के प्रत्यक्ष प्रमाण हैं कि विश्व के साथ ही साथ भारत भी आतंकी कार्यवाही का केन्द्र भारत बनता जा रहा है। सप्ताह भर पहले लखनऊ में जैश-ए-मोहम्मद के तीन आतंकवादी यदि न धरे गये होते तो हमारे सामने एक बडी़ घटना की पुनरावृत्ति अवश्य ही देखने को मिलती।परन्तु इतनी कडी़ सुरक्षा होते हुए भी शुक्रवार को दोपहर बाद जिस तरह से क्रमिक विस्फोट हुए उससे यह बात साबित हो जाती है कि हमारी सुरक्षा व्यवस्था को और चुस्त दुरूस्त करने की आवश्यकता है। उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री सुश्री मायावती ने केन्द्र को दोषी ठहराया तथा संसद में श्री शिवराज पाटिल द्वारा आतंकवाद के विस्तार को स्वीकार करना इस समस्या का समाधान नही हैं। सरकार के द्वारा हमारी गुप्तचर एजेंसी को दोष देने के अलावा कोई और विकल्प नजर नहीं आता है। पर क्या जो ये बयान जनता के सामने आते है। उससे जो निर्दोष लोगो की जानें गयी है क्या वापस आ जायेगी ,पर मजबूरी है कि और कर भी क्या सकते हैं।
काग्रेंस के महासचिव श्री राहुल गांधी जो को निशाना बनाये जाने की बात का खुलाशा होते की प्रशासन के पैरों तले जमीन ही खिसक गई पर कहां ऐसी क्या कमी हो जाती है कि ये आतकी चूहे हमारे घरों में बिल करके घुस जाते है शक की सुई सरकार और प्रशासन दोनों पर ही घूम जाती है।कही न कही तो चूक है । अन्यथा इतनी तादात में आतंकी संगठनों का देश में प्रवेश सम्भव नही हो सकता । हमारी गुप्त एजेंसी भी नाकाम हो जाती हैं कारं है देश का विस्तार। जहां तक अगर देश को आतंकी हमलों से बचाना है तो सतर्कता को और बढ़ाना ही होगा अन्यथआ ऐसे ही परिणाम सामने आते रहेगें।

महसूस करती हूँ आज


इस कविता का प्रकाशन कुछ वजह से समय पर न हो सका । अतः एक नयी कवियत्री की भावना का ध्यान रख कर मैनें इसे प्रस्तुत किया है।

यह कैसा शोर है,
हर तरफ दिवाली जा जोर है,
कमबख्त आ गई फिर से,
चारों तरफ शोर ही शोर है,
सौ गलियां रोशन है,
हजारों में सिर्फ काला इंसान है,
दिवाली से नफरत है-
पहले राम आते थे,
आजकल रावण की भरमार है,
कई लुटाते हैं, कई लूटते है
बोलते नही,
सिर्फ मजबूरी बस सिर्फ ताकते हैं।
दिल्ली करोडो़ रूपये जलाती है,
दो रूपये मागों तो दनदनाती है,
छीनेगें नहीं तो क्या करेगें?
क्यों हमने काटेंदार दीवार खडी़ कराई है?
हजारों ऐब पालेगें,
मैकडोनल्ड में उडा़येगें,
किसी की मद्द करते वक्त हाथ कंपकंपाते है,
इस दि वाली न जाने कितने तरसेगें और तरसायेंगें,
क्यों न इस मुबारक दिन को इक साथ जियें।

कल्पना की प्रस्तुती

Friday, November 23, 2007

सेक्स सर्वेक्षण नैतिक या अनैतिक


पिछले दिनों मैने इण्डिया टुडे पत्रिका का अध्ययन किया जो कि सेक्स विशेषांक था। सेक्स विशेषांक पढ़कर थोड़ा आश्चर्य हुआ। लेकिन सरसरी नजर से पूरे अंक को पढ़ा।इण्डिया टुडे अपनी विविधता , खोजपूर्ण शोध, विवेचना, कला-साहित्य, मनोरंजन से परिपूर्ण है जिस वजह से मैं इसका नियमित पाठक रहा हूँ।सेक्स विशेष सर्वेक्षण के परिणाम कुछ भी बयां कर रहें हो। नैतिक यौन सम्बन्ध आज भी भारतीयों की संम्पदा है यौन सम्बन्धों की खुली चर्चा हो, सेक्स को पाठ्यक्रम का अंग भी बनाया जाय लेकिन उसकी आत्मा"नैतिकता" पर आंच न आने पाये। इसका समाजशास्त्रियों, मनोचिकित्सक, सामाजिक शोधार्थी तथा मीडिया को पूरा ध्यान देना चाहिए।
यदि इण्डिया टुडे के सर्वेक्षण को माने तो सेक्स को लेकर महिलाओं की चुप्पी टूट रही है । वे बिस्तर पर भी उतना ही अधिकार चाह रही हैं जितना पुरूष। इस चुप्पी के टूटने का मतलब यह नहीं है जि स्त्रियां विरोध कर रही हैं बल्कि वे भी सेक्स का भरपूर लाभ उठाना चाहती हैं।विशेष सर्वेक्षण 'विवाह का काम' अश्लील ही कहलाएगा। सेक्स को इतने भद्दे ढ़ग से दिखाया गया था इसकी आशा न थी। पत्रिका को घर में लाने लायक नहीं था। सेक्स क्रियाएं इस तरह घर पर खुलेआम तो नही होती हैं।यहां पर यह बात सोवने योग्य है कि क्या ये विशेषांक हमारे समाज का सही आइना हैं और इससे समाज में परिवर्तन होगा? वैसे ये विशेषांक कुछ नही तो पत्रिका की पाठक संख्या तो अवश्य ही बढ़ाते हैं। इसके अलावा कुछ भी नहीं।

Sunday, November 4, 2007

बीच सफर में

आने का समय न मिला,
या
बहाना था न मिलने का,
जब दूर रहना ही था
तो पास आना ही न था,
आखिर क्यों?
करते हो ये झूठी बातें ,
तुम भी समझते होअपने इरादे,
आज बोल ही दो सच्चाई को तुम,
कब तक करते रहोगे ये झूठे वादे,
पता है मुझको कि जाना चाहते हो दूर मुझसे,
ये,,,,,समय -समय का बदलाव ही तो है ,
कभी हम अन्जान न हुआ करते थे ऐसे,
वो दिन याद आता है
आखों आसूँ से छलक जाते है खुद-ब-खुद
कम से कम कोई तो साथ है मेरे।
ये तुम्हारी तरह नही हैं जो कि साथ छोड़ जायेगे, बीच सफर में।

Friday, November 2, 2007

सफर जीवन का


खिलखिलाती नदियाँ , मचलते सागर ,

ऊचाँ आसमान सब कहते हैं जीवन तुम्हारा है,

जिओ इसको भरपूर ।

जीवन के सफर में कभी हार है ,तो कभी जीत,

कभी डरकर न भागो इससे दूर,

समय बदलता है, हालात बदलते हैं,

पर जीवन का मूल नहीं बदलता,

चलते जाना ही जीवन की नियती है,

इसी पर निर्भर सारी परिस्थिती है,

सम्पूर्ण आनन्द यदि लेना है इसका,

तो हालात का सामना करना ही होगा,

जीवन के संग्राम में वही है विजेता,

जिसने इस बात को समझा कि-

जीतने से ज्यादा महत्व रखता है खेल खेलने की भावना,

पूर्ण समर्पण की भावना।




मीनाक्षी प्रकाश

Thursday, November 1, 2007

बदलते चेहरे

हर चेहरे के पीछे कई चेहरे नजर आते हैं,
ज़रा ये नकाब उठाकर तो देखो।
कितना मुश्किल है सब के लिए अलग सा हो पाना,
पर इन्सान है की फितरत है बदलने की।
आखिर हैरान होता हूँ देखकर मैं इन लोगों को, कोशिश
करता हूँ समझने की इसके अस्तित्व को ।
पर हमेशा ही नाकाम रहा हूँ। आसान नहीं होता,
ये दिखावे भरी दोहरी जिन्दगी जीना ,
पर कुछ है जिन्हें अच्छा लगता है इस तरह बदलना,
मानव की प्रकृति रही है ,हमेशा से शिखर तक पहुचने की ,
मुश्किल रास्ते को आसानी से पाने की तो
, कपट ,द्वेश कर ही मानव पहुच पाता है आज अपनी मंजिल पर
स्वार्थ में सब बदले है ऐसे की मानवता का अस्तित्वखो सा गया है,
मैं सोचता हूँ कि बचा लूँ अपने को ,
कि कही एक दिन खुद ही न शिकार हो जाऊ ।

Wednesday, October 31, 2007

तेरे आने की उम्मीद

रात की तन्हाइयों में जब भी ख्याल आता है,
कि इस जहां में कितने अकेले है हम,
याद आता है तुम्हारा वो वादा,
जब तुमने कहा था कि साथ हम रहेंगे सदा,
कहां गये वो वादे,
वो कसमें, वो इरादे,
जाने से पहले कम से कम कह कर तो जाते,
तुम्हें क्या मालूम नहीं था कि तुम्हारा रस्ता मैं कभी न रोकूगीं।
क्या यही तुम्हारा यकीं था।
बस इसी भरोसे के दम पर ,
हम साथ चले थे, एक दूजे का हाथ थाम कर ।
सोचती हूँ शायद वो दिन फिर से वापस आ जायें ।
इसी उम्मीद में जी रही हूँ कि शायद तुम लौट आओ।


मीनाक्षी प्रकाश की कलम से

Tuesday, October 30, 2007

मुकेश शीर्ष पर

यह तो कमाल हो गया । रिलायंस इंडस्ट्रीज के प्रबंध निदेशक मुकेश अबानी ने पूरी दुनिया में भारत का डंका बजा दिया।तारीख २९ अक्टूबर दिन सोमवार भारत के लिए कई मायनों में आश्चर्य जनक रहा । बीएसई सेंसेक्स ने सारे रिकार्ड तोडकर २०००० का आंकडा छुआ। तो एक ओर इससे बडी खुशी यह रही कि मुकेश अंबानी ने दुनिया के सबसे अमीर होने का ताज पहन लिया। मुकेश ने बिल गेट्स तथा कार्लोस हेलू को पछाडकर यह गौरव हासिल किया .
शेयर मार्केट के ताजा उछाल से मुकेश अबांनी की कुल सम्पति ६३;२ बिलियन डालर(करीब २४४,१०८ करोड रूपये) पर पहुच गयी
मैक्सिकोके उद्योगपति कार्लोस हेलू की कुल सम्पति फिलहाल ६२;२९९३ बिलियन डालर
बिल गेटस साफ्टवेयर सम्राट अब तीसरे नं पर है इस सूची में गेटस की कुल सम्पति ६२;२९ बिलियन डालर है।२०वां देश भारत बन गया है जहां शेयर सूचकांक ने २०००० का आंकडा छुआ है।
अब तक १९ देशों के ३२ सूचकांक ने यह उपलब्धि हासिल की है।एशियाई देश में भारत से पहले हांगकांग का शेयर सूचकांक है जबकि चीन और जापान अभी इसमें बहुत पीछे हैं।

Sunday, October 28, 2007

नक्सल हमलों से जूझता भारत


झारखण्ड में हुए नक्सली हमले में १८ लोगों को जान से हाथ धोना पडा़ ।वैसे यह कोई पहली घटना नही है। इस तरह के विस्फोट करना इन नक्सलियों का उद्देश्य सा होगा है। पर क्या हिंसा के बल पर आज तक कुछ प्राप्त किया जा सका है। तो जवाब है नहीं और न ही इस तरह की कार्यवाही करके ये सफल ही हो घटना में झारखण्ड प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मराडी के बेटे और भाई शिकार हुए। वर्तमान मुख्यमंत्री मधु कोडा ने इस कार्यवाही की भर्त्सना की है। तथा मृतको के प्रति शोक प्रकट किया है। पर यहां पर जो बात सामने आयी है वो है कि सारे आम इस तरह की की आतंकी घटना को अन्जाम देकर भी आज ये लोग खुले समाज में घूम रहें है। और सरकार तथा केन्द्र सरकार हाथ पर हाथ धर कर बैठी है। आखिर कब तक इस तरह के कुकृत्यों को झेलना होगा आम जनता को ।

कुछ ही महीने हुए है कि सांसद सुनील महतो जो झारखण्ड से सांसद थे। उनको भी एक ऐसी ही नक्सली घटना का शिकार होना पडा था। और इस कार्यवाही पर सरकार का वही घिसा पिटा रवैया । केवल संत्वना ही मिलती है घटनाओं से पीडित लोगों को। पर क्या यही समाधान है इस समस्या का । केन्द्र का निराशा जनक प्रयास हमें दुखी करता है । और यदि आज के समय में देखें तो भारत के १८ जिलों में यह बीमारी फैल चुकी है । पं बगाल के नक्सलवाडी गांव से शुरू हुआ प्रयास एक जन आनदोलन के रूप में था ।जो कि जमीदारों के खिलाफ था। जिसका एक सकारात्मक उद्देश्य था। पर आज हम इस आन्दोलन को एक विकृत रूप में पाते है । इसे दुर्भाग्य ही माना जाय की जिस आन्दोलन का कभी दूसरा उद्देश्य था वह आज लोगों के जान का दुश्मन बना है।

Saturday, October 27, 2007

सच्चाई हकीकत और ये मौतें


भारत एक तरफ तो अपने को विकास से विकसित तक मान रहा है ।कभी -२ हमारे सामने ऐसी घटनाएं सामने आ जाती है, जिससे हमें संदेह भरी नजरों से देखा जाता है। हाल ही भारत के कुछ शहरों में हुई किसानों के द्वारा आत्म हत्याएं और कल हुई भूख से मौत । क्या यह घटनायें प्रश्न चिन्ह नही खडा़ करती हैं। एक तरफ तो हम विदेशों में यह ढिढोरा पीटते है कि हमारे यहां पर इतना अन्न उत्पादन होता है कि हम बाहर के देशों को भी अनाज भेजते है परन्तु जो भूख से मौतें हो रही है इसका क्या मतलब समझा जाय ।कल देश की राजधानी नई दिल्ली के ग्रेटर कैलाश इलाके में एक ४५ वर्षीय व्यक्ति की भूख से मृत्यु हो गयी । और इसके दो महीने पहले दिल्ली में भूख से तीन बहनों की हालात इस कदर हो गयी थी जिससे एक जो जान से हाथ धोना पडा ।और दो को गम्भीर हालात में अस्पताल में भर्ती कराया गया । ये हाल है राजधानी के जहां पर की केन्द्र और दिल्ली सरकार दोनों है और ऐसी घटनाओं की अनदेखी कर रही है। तो भला देश के अन्य जगहों का तो हाल क्या होगा यह समझना बहुत कठिन न होगा। आये दिन हमारे बीच इस तरह की घटनाएम हो रही है जिसको की नजरअंदाज नही किया जा सकता है। बल्कि जरूरत है इस परिस्थति से छुटकारा पाने की इस समस्या का हल ढूढने की।क्यों कि कब तक भला सच्चाई से मुह चुराते रहे गे।

Thursday, October 25, 2007

ब्लागर समूह से निवेदन

आज मेरा ब्लागर समूह से मेरा ये निवेदन है कि किसी भी लेख या कविता पर जब हममें से कोई बंधुजन अपनी राय दें तो वहां पर ये ख्याल अवश्य रखें कि जिस लेख या पोस्ट पर टिप्पणी कर रहें हो तो उस लेख या पोस्ट को पूरा अवश्य पढें या पूरा नही पढ पायें हो तो कोई टिप्पणी न करें। नही तो यह लिखने वाले के लिए बेमानी सा होगा। इस तरह से अपनी राय हम आधी अधूरी या फिर यदि कोई और अपनी राय दिया होता है। तो उसको देख कर करते है ,जो कि बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है।वैसे ये बात मेरे एक निकट सहयोगी जी के आग्रह पर, मै पर आप सब के समक्ष इस निवेदन को प्रस्तुत कर रहा हूँ। अगर ऐसी कोई बात कभी हममें से किसी से हो गयी हो, तो दुबारा यह दोहराव न हो यही निवेदन है। वैसे ब्लागर समूह का कोई नियम कानून नही है ।पर यह स्व अभिव्यक्ति ही कही जायेगी और हमारी यही आचार संघिता होगी।

Wednesday, October 24, 2007

विकलांगता एक चुनौती और अभिशाप


भारत में विकलागों की पेशानियों को हम काफी हद तक नजरअंदाज कर जाते है? जबकि यह हमारे समाज की बुराई में बढावा देती है । साथ ही साथ मानवता के नाते हमारा कुछ सामाजिक दायित्व होता है। पर हम इस सामाजिक दायित्व से मुह मोड लेते है ,जो की शिक्षित समाज के लिए एक दुखद बात है। आज भारत में विकलागंता को दूर करने के लिए सरकार द्वारा कई महत्तवपूर्ण कदम उठाये गये है पर फिर भी क्या कारण है कि इस रोग में कमी होने बजाय बढोत्तरी हो रही है। अगर हम भारत के प्रदेशों के नजरिये से देखे ,तो उत्तर प्रदेश में आज सबसे ज्यादा लोग विकलांग हैदूसरे नं पर बिहार और फिर और कई राज्य इस श्रेंणी में अपनी पहचान बनाने में आगे है । जहां तक यदि बात किया कि क्या मूल कारण है कि इतने प्रयास के वावजूद भी भारत इस रोग से छुटकारा नही पा पा रहा है? भारत की पूरी आबादी आज के समय में विश्व में दूसरे स्थान पर है । यह पूरे विश्व की लगभग १६ प्रतिशत आबादी है और आज भारत दिन ब दिन बढती जनसख्या का शिकार हो रहा है ,जिससे भारत में वर्तमान जनसंख्या १अरब १६ करोड के पास पहुचती है। और सरकार के अभियान पूरे देश में एक साथ चलाना एक बहुत बडी चुनौती है पर मैं यह नहीं कहता कि सरकार के ये प्रयास पूरी तरह विफल है पर जरूरत है अभी भी लोगों को जागरूकता की , ग्रामीण क्षेत्रों में अभी लोग अनजान से है। विकलागों की संख्या में और अधिक बढोत्तरी न हो ,यह भी काफी हद तक हमारे प्रयासों को दर्शाता है ।जो लोग इस विकलांगता के दुष्प्रभाव से पीडित है उनको भी नजर से हम नहीं हटा सकते है। तथा हम सब को मिलकर इस समस्या का हल निकालना चाहिए ।जहां तक हो सके सब को इन विकलांग व्यक्तियों की मदद् कर इन्हें समाज की मुख्य धारा में शामिल करना होगा। और सरकार की तरफ से जो प्रयास होगें वो तो अलग बात है ।पर हमारा कर्तव्य यह है कि हम आगे बढ़के इनके भविष्य के लिए कुछ मजबूत रास्तों का निर्माण करें जिसे इन लोगों को यह न लगे कि यह समाज से अलग हट के है ।और भारत के विकास में इनके योगदान को भी शामिल करें।कई गैरसरकारी संस्थान विकलागों के सहयोग के लिए है ,पर ये संस्थान ज्यादा तर स्वहित में ही रह जाते है ।तथा अपने मूल उद्देश्य को भूल जाते है। हम यह प्रयास स्वयं से करना है नकि इस गैरसरकारी संगठन या फिर सरकार के ऊपर निर्भर हो के । क्यों कि इनके जो काम है वो अपना कार्य करगें पर ,हम को अपना काम करना होगा इन लोगों की सहायता करके । वैसे" पहल" नाम का एक युवा संगठन इस क्षेत्र में अपनी भूमिका निभा रहा है ।यह कुछ छात्रों द्वारा चलाया जा रहा है। यह किसी भी विकलाग की हर तरह से मद् द के लिए आगे आ रहा है। हमको ऐसे ही साक्क्षों से सीख लेने की जरूरत है। आइये योगदान करें कुछ काम करें इनके लिए भी। और इस विकलांगता रूपी अभिशाप के मिथक को तोडने की कोशिश करें।क्यों कि भारत विश्व का सबसे युवा देश है और हम विश्व के सबसे ज्यादा उम्मीद रखने वाले लोगों देशों में गिने जाने वाले तथ्य को सत्य सिद्ध करें।

Monday, October 22, 2007

बुराई पर अच्छाई की विजय


बचपन से ही भारतीय संस्कृति के बारे में सुनती चली आई हूँ। किस्से कहानियों के माध्यम से और टेलीविज़न पर धार्मिक नाटकों के माध्यम से रामायण, महाभारत जैसे पौराणिक गाथाओं को सुना, देखा लेकिन कभी महसूस नहीं कर पाती थी। धीरे-धीरे जैसे बड़े होते गए उनके मूल्यों और महत्वों को भी समझते गए। कॉलेज में जब अपने प्रोफ़ेसर से उनके दूसरे पक्षों को सुनती थी तो सोच कर आश्चर्यचकित हो जाती थी कि सत्य क्या है जो बचपन से सुना और देखा या जो कॉलेज में किताबों मे पढ़ कर जानकारी हासिल की।
एक ओर जहाँ राम, कृष्ण, भीष्म पितामह, पाण्डव का नाम सुनते ही एक विनम्र भाव मन में जागृत होती है वहीं रावण, दुर्योधन का नाम सुनते ही मन में एक ख़ीज उत्पन्न होती है।
लेकिन सोचा जाए तो ये भेदभाव आखिर क्यों है? मुख्य कारण है धर्म-अधर्म, नैतिकता और अनैतिकता। शायद इन्हीं कारणों के कारण इन महापुरुषों में भिन्नता देखी जाती है। जहाँ एक वर्ग ने धर्म और नैतिकता का मार्ग अपनाया वहीं दूसरे वर्ग ने अधर्म और अनैतिकता का मार्ग अपनाया।
कल दशहरा था बुराई पर अच्छाई की विजय। जहाँ राम रावण का नाश करते हैं। न जाने कहाँ से मेरे मन में एक सवाल आया रावण का विनाश तो सदियों पहले हो गया था, फिर क्यों इतने लंबे अर्से के बाद भी रावण को जलाया जाता है? आख़िर एक मरे हुए को कब तक मारा जाएगा। और वो वैहशी (आतंकवादी,लुटेरे) जो रावण के भेष में सरेआम आज़ादी की सांस ले रहे हैं उनका नाश कब होगा। लोग उन लोगों को कैसे माफ़ कर देते हैं? क्यों छोड़ दिया जाता है उन्हें ऐसे जो हमारे आस-पास मौजूद हैं। देखा जाए तो रावण मरा नहीं है, वह हर घर में भेस बदल कर रह रहा है। हमें उसे ख़त्म करने की आवश्यकता है। एक पुतले को जलाने से कुछ हासिल नहीं होगा।
प्रीती मिश्रा की कलम से

Sunday, October 21, 2007

युवाओं ने दिखा दिया कगारूओं को


T-२० की बादशाहत को साबित करना बहुत आसान नहीं था भारत के लिए। और वो भी उस समय जब की अभी चंद दिनों पहले जिस टीम से एकदिवसीय श्रृखला में ४-२ से शिकस्त खायी हो। पर शाबाशी देनी होगी हमारे गेदबाज, और बल्लेबाजों को। की उन्होंने कंगारूओं को यह बता दिया की अगर तुम एक दिवसीय के बादशाह हो तो हम भी T-20 के बादशाह है। मैंच के एक दिन पहले रिकीं पोटिग ने अपने वाकयुद्ध में कहा कि" भारत ने T-20 विश्वकप जीता है। पर अब यह बीती बात हो चुकी है यह इतिहास हो चुका है। अर्थात भारत को यह खिताब महज एक तुक्का था कुल मिलाकर भारतीयों की जीत पर संदेह जैसा प्रकट करना था। पर हमारे युवाओं ने यह दिखा दिया कि हम अपने अच्छे खेल के बदौलत जीतते है, न की संयोग वश।
भारत ने अब तक खेले में लगातार ५ मैच जीत कर साउथ अफ्रीका के रिकार्ड की भी बराबरी कर ली है भारत ने अब तक T-20 मैचों ५ जीता, १ हारा १ टाई और १ रद्द रहा है। तो ये रिकार्ड भारत की कहानी कहते है। बादशाहत पर प्रश्नचिन्ह लगाना काम है विदेशियों का।
कल हुए मुकाबले में सब कुछ भारत के हक में ही रहा ।आस्ट्रेलिया ने निर्धारित २० ओवरों में १६६ रन ही बनाने दिया भारतीय गेदबाजों ने ।जिसमे कप्तान रिकी पोंटिग के तेज ( ५२ गेदों पर ७२ रन) शामिल है । भारत ने पारी की शुरूआत करने के लिए सहवाग और गौतम गम्भीर को भेजा पर सहवाज ने पुराने रैवये को अपनाते हुए जल्दी ही अपने घर यानी पैवेलियन की राह पकडी । तब फिर गम्भीर और उथ्प्पा ने अच्छी तरह से खेलते हुए रन गित को गोलओ की रफ्तार से तेज करते हुए ११ रन की दर से रन बनाने शुरू किये और ब्रेट ली और बेन के गेदों को सीमा पार पहुचाया तथा मैच हो १७ओवर और १ गेद में ही भारत ने जीत लिया। गम्भीर को मैन आफ द मैव का खिताब मिला और हरभजन को सबसे अच्छी गेदबाज के लिए तथा युवराज को ज्यादा छक्के मारने और अच्छी फिल्डिग के लिए पुरस्कार मिला । और भारतीयों की बादशाहत का एक और अध्याय जुड गया।

Friday, October 19, 2007

टी आर पी

टी आर पी को बढ़ाने का सपना जैसे सभी चनैलों को लग गया है। और इस काम को लेकर किसी भी हद को पार कर गये हैं ये टी वी चैनल वाले। सभी आगे बढ़ना अच्छा लगता है पर जो तरीका अपनाया जा रहा है वो पूर्णः गलत है। आपने अभी हाल ही की घटना को देखा कि कितनी दुर्भाग्यपूर्ण थी ये(उमा खुराना मामला)। टी आर पी यानी टेलीविजन रेटिंग प्वाइंट । वैसे माना जाता है कि जिस चैनल की टी आर पी जितनी ज्यादा होती है और उसकी दर्शक संख्या उतनी ही अधिक होती है ।आमदनी भी अधिक होती है। पर क्या टी आर पी को सही मान लेना चाहिए? वैसे ये चैनल भला कितने जगह पर ये मशीनों का प्रयोग करते है ?तो आप को ये बताना चाहूगा कि मात्र कुछ ही शहरों के कुछ ही घरों में ।तो भला कैसे सही मान लिया जाय की किस टी वी की लोक प्रियता अधिक है पर हमारे सामने मजबूरी यही है कि हमारे पास वर्तमान समय में और कोई मानदण्ड नही है किसी चैनल की लोकप्रियता को मापने के, तो यहां ये विवशता है कि चाहे जो भी कहें ये चैनल वाले मानना होता है। आज सभी ये दावा करते है कि हम सर्वश्रेष्ठ है? पर क्या आधार इस बात के ये समझने वाली है तो उत्तर जो मिलता वह कुछ संमझ से परे होता है।यहां पर सरकार को कुछ मानक तय करने चाहिए।

Thursday, October 18, 2007

आइये कोशिश करें


क्या हम लोगों को यह बात मान लेनी चाहिए कि केवल कानून बनाने मात्र से ही लोगों के सोच में परिवर्तन नहीं आने वाला है। तो मेरे विचारों मे यह बात सही है । जरूरत है लोगों को जागरूक करने की । पर इस तरह की जागरूकता लाने के पीछे किस तरह की पहल की आवश्कता की होगी। अगर हम बात शिक्षित समाज की करें तो हम पातें है कि यह शिक्षित समाज ही इस बात के लिए कुछ ज्यादा ही जिम्मेदार है। मैं आज बात करना चाह रहा हूँ धूम्रपान की। आपने देखा होगा कि आमतौर पर खुली जगह जहां पर हर तरह के लोग होते है और वहां पर यदि कोई एक व्यक्ति इस तरह की हरकत करता है तथा उसके इस तरह के कृत्य से आप को या सभी को कोई दिक्कत होती है तो यहां पर हम लोगों का ये दायित्व हो जाता है कि उस अकेले व्यक्ति को धूम्रपान करने के लिए मना कें आम तौर पर हमारे अन्दर यह बात आ जाती है कि भला हम क्यों फालतू का टेंशन ले पर आप को यह जान कर शायद परेशानी हो को आजकल जिस तरह से बीमारियां फैल रही है धूम्रपान से , उसमें सबसे जयादा जो प्रभावित होता है वह है जो कि कभी भी धूम्रपान नहीं करता है। इस लिए आप को यहां पर एक समझदार नागरिक के कर्तव्य का निर्वहन करना चाहिए ।सरकार की मानें तो उसने सभी तम्बाकू के सामान बनाने वाली कम्पनियों को यह निर्देश दिया है कि कम्पनी को अपने उत्पाद को बेचते समय इस बात को लिखना होगा कि यह धूम्रपान सेहत के लिए हानिकारक है। पर इससे क्या कोई फर्क पडता है ?मुझे तो आज तक यह बात समझ में नही आयी और नहीं इस लिखने के पीछे का कोई उद्देश्य ही समझ में आया पर हां एक बात यह जरूर देखने को मिली कि इस उद्योग से सरकार को एक मोटी रकम अवश्य ही प्राप्त होती है। मैनें कई दुकानों पर देखा है कि वहां पर साफ और सुन्दर अक्षरों में यह लिखा हुआ मिल जाता है कि १८ वर्ष से कम उम्र के लोगों के लिए धूम्रपान निषेध है पर वास्तविकता ये है कि यह मात्र हाथी का दांत दिखावा मात्र है और खाने का अलग ही है ।कुल मिलाकर मेरे कहने का जो मतलब है वह है कि एस प्रकार से क्या हम लोगों को यह संदेश देने में सफल होते है कि आप तम्बाकू का सेवन न करें तो मेरा यही मानना है कि आज कि युवा पीढी बहुत ही मस्त अन्दाज में धुएं की गिरफ्त में फसती जा रही है। खुले तौर पर सब कुछ हमारे समाने है पर हम कोई प्रयास नहीं करते है।आप को यह बात अवश्य ही मालूम होगी की सरकार नें धूम्रपान रोकने के लिए एक विधेयक भी पारित किया और इस विधेयक में यह बात साफ तौर पर कही गई है की सार्वजनिक स्थलों पर धूम्रपान करना कानूनी जुर्म है । और जो भी इसका उलल्घन करेगा उस पर ५०० का जुर्माना होगा। पर क्या आप ने आज तक किसी को यह जुर्माना होते देखा है या फिर कहीं पर पढा़ शायद आप जवाब होगा नहीं। जी सही भी है कि भला कैसे यह हो ? तो जनाब मेरा सभी से यही अनुरोध है कि हम केवल इतना करें कि जब भी हमारे साथ ऐसी को बात हो तो हम उसका विरोध करें । तो बात कुछ बन सकती है। क्यों कि " कौन कहता कि आसमां में शुराख नहीं हो सकता, अरे तबियत से एक पत्थर तो उछालों यारों। कोशिश करना हमारी आदत है।

Monday, October 15, 2007

वो फिर नहीं आते


सम्मोहित कर देने वाली आवाज से सबके दिलों को सदियों तक सुकन देने का दम रखने वाला अदाकारी और गायकी की दुनिया का जो दमकता सितारा २० साल पहले १३ अक्तूबर के दिन इस जहान को अलविदा कह गया था । वह 'है' मनमौजी हरफन मौला फनकार किशोर कुमार।
४ अगस्त ९२९ को खांडवा (सेट्रल प्राविस एंड बेरार) में अजूबों से भरी इस दुनिया को देखने के लिए पहली बार आंखे खोलने वाले फनकार ने खुद को अभिनय, गायन, संगीत , निर्देशन, शास्त्रीय विधाओं की साधना , स्कीन राइटर , स्क्रिप्ट राइटर, कंपोजर के रूप में मील के पत्थर के तौर पर स्थापित करने के बाद १३ अक्तूबर १९८७ को आखें बंद कर ली।हिन्दी ,मराठी, बंगाली असमी ,गुजराती , कन्नड, भोजपुरी , मलयालम और उडिया भाषा में हजारों गीत गाने वाले किशोर दा ने १९५० से १९७० के दशक में भारतीय फिल्म जगत के क्षितिज पर सुनहरे हर्फों में कामयाबी की जो दास्तान लिखी । उसकी छाप करोडों दिलों पर आज भी देखी जा सकती है।बेरार के जाने- बारे वकील कुंजलाल गांगुली और गौरी देवी की चौथी संतान आभाष कुमार गांगुली ने बचपन में ही उस दौर के सबसे बडें गायक कुदंन लाल सहगल की आवाज की नकल करते हुए गाना शुरू कर दिया था । तब तक उनके बडें भाई अशोक कुमार हिन्दी सिनेमा में स्थापित हो चुके थे।बडे होकर बालीबुड का स्टार बनने का सपना संजोए दादा के पासआने परआभाष कुमार से नाम बदल कर किशोर कुमार रख लिया और बाम्बें टाकीज में कोरस के सिंगर के तौर पर कैरियर शुरू किया।

Thursday, October 11, 2007

वाटर

भारतीय सभ्यता और संस्कृति जिस पर की नाज है सभी भारतीयों के इस भ्रम को तोडती एक फिल्म जिसका नाम है वाटर। फिल्म का निर्देशन दीपा मेहता ने कया और अभिनय की कमान सीमा विश्वास , जान अब्राहम और लीजा रे जैसे चुनिन्दा कलाकारों के हाथ में सौपा गया है । यह फिल्म १९३८ के समय भारतीय सामाजिक व्यवस्था को दिखाती है । बाल विवाह और विधवाओं के रहन - सहन को बहुत बिन्दुवत दिखाती है। भारत के आजादी के पहले की विधवाओं की जीवन शैली , रहन सहन और उसके साथ जो समाज का व्यवहार था । उसको बहुत ही भली प्रकार से दिखाया गया है वैसे तो वाटर फिल्म को भारत में नहीं फिल्माया जा सका इसका स्पष्ट है आर एस एस और अनेक हिन्दू धार्मिक संस्थान । इस फिल्म की शूटिंग श्रीलंका में की गयी है तथा कनाडा की तरफ से आस्कर के लिए भेजा गया था परन्तु दुर्भाग्यवंश इस को आस्कर नहीं मिला परन्तु वाटर जैसी फिल्मों आज भी हमारे समाज के लिए प्रेरणा स्रोत है क्योंकि समय जरूर बदला है पर अभी भी लोगों में इन समाजिक कुरीतियों को लेकर अनेकों भ्रम है इस प्रकार से वाटर एक सामाजिक व्यंग्य है।

Tuesday, October 9, 2007

आखिर मैं क्या समझूँ इसे?

कभी गुस्सा ,तो कभी प्यार
आखिर मैं क्या समझूँ इसे?
कभी खुद ही न बात करना
और फिर
कभी मेरा किसी के साथ बात करने पर नाराज होना,
कभी मेरे साथ रहना,
और
कभी न मेरे पास आना,
कभी मुझको अपने हाथों खिलाना,
और
कभी न मेरे साथ खाना।
आखिर मैं क्या समझूँ इसे?
कभी मेरे साथ चलती हो दूर तक ,
और फिर
कभी देती नहीं हो दो कदमों का साथ।
आखिर मैं क्या समझूँ इसे?

" नहीं कुछ बोलकर बोलती हो तुम सबकुछ,
क्या समझ रखा है मुझे नादां इतना।
तुम भी बडी नटखट हो ये जानता हूँ मैं,
मगर तुम भी हो चुप और मैं भी हूँ चुप।।"

Monday, October 8, 2007

ट्रैक सुपर स्टार का दुखद अन्त




अमेरिका की ट्रैक सुपर स्टार मरियन जोंस ने प्रतिबन्धित दवा लेने का गुनाह कबूल करते हुए अपने रिटायर मेंट की घोषणा कर दी है। ३१ साल की जोंस ने मीडिया के सामने यह बात स्वीकार की । कि उन्होंने अपना प्रदर्शन सुधारने के लिए प्रतिबन्धित दवा का सहारा लिया था।
जोंस की आखें भरी हुई थी।और अपने प्रशंसको और परिजनों के सामने रूधे हुए गले से यह कहा कि " मैने आप सबका विश्वास तोडा है ।,और मेरा सिर शर्म से झुका हुआ है। जोंस ने कहा कि आपके साथ बेईमानी की और आपको नाराज होने का पूरा हक है।।
जोंस से ओलम्पिक पदक वापस करने को कहा गया है। जोंस ने टेट्रा हाइड्रो जेस्ट्राइनोन(टी एच जी) का सेवन किया था। सिडनी ओलम्पिक में जोंस ने १००, २०० चार गुणा ४०० मीटर में स्वर्ण और लम्बी कूद व चार गुणा १०० मीटर में कास्य पदक जीता था।
वैसे तो देखा जाय मरियन जोंस एक प्रतिभावान जैसी धावक तो थी। ही पर इस स्तर पर पहुच कर प्रतिबन्धित दवा लेना बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण बात है। यहां ओलम्पिक संघ को यह बात ध्यान देनी चाहिए कि ऐसी घटनाएं दुबारा न हों। तथा खेल में शामिल होने वाले खिलाडियों की चिकित्सा जाँच हो जिससे प्रतिबन्धित दवाओं के सेवन पस रोक लगाया जा सके।

Sunday, October 7, 2007

उल्टा पुल्टा

१-
मालिक; (ड्राइवरसे) अरे भई; गाड़ी जरा धीरे चलाओ। इतनी तेज रफ्तार देखकर डर लग रहा है।
ड्राइवर ; डर तो मुझे भी लग रहा है । पर क्या करूँ गाडी के ब्रेक फेल हो गये हैं।
२-
मीनाः डाक्टर साहब। मुझे घुडसवारी का शौक है, इस कारण मेरे पति मुझे पागल समझते है। क्या घुडसवारी पागलपन है?
डाक्टरः बिलकुल नहीं। ऐसा कहने वाला स्वयं पागल होगा।
मीनाः सच , डाक्टर साहब। चलिए, अब आप घोडा बनिये।
३-
एक कंजूसः(मेहमान से)कहिए जनाब क्या लेगें, ठण्डा या गरम?
मेहमानः (नौकर से) राजू। पहले ठंडा पानी ले आओ फिर गरम पानी ले आना।
४-
साधूः बेटा, बाबा को कुछ दक्षिणा दो। प्रभु की लीला देखना, तुम पे उनकी अपार कृपा होगी।
रमेशः माफ करें बाबा। एक लीला(पत्नी) से तो पहले ही परेशान हूँ।
५-
शिक्षकः (छात्रों से) बच्चों, बर्फ का प्रयोग करते हुए वाक्य बनाओ।
छात्रः- पानी बहुत ठंडा है।
शिक्षकः इस वाक्य में बर्फ शब्द कहां पर है?
छात्रः सर । वह तो पिघल गयी है , तो देखेगी कैसे?
६-
पायलट की ट्रेनिंग के लिए इंटरव्यू के दौरान अधिकारी ने रोहित से पूछाः-
" अगर तुम्हारा विमान आकाश में उड़ने के दौरान अचानक रूक जाए तो तुम क्या करोगे?"
रोहितः करना क्या है सर, सभी यात्रियों को उतार कर धक्के लगवा दूगां।
७-
मां ने अपने बेटे से पूछा, तुमने पापा को बताया, कि तुम्हें भाषण -कला में पहला ईनाम मिला है।
" हां मम्मी। बताया"
" तो वो क्या बोले?"
" कहने लगे कि तुम में अपनी मां के गुण पैदा होते जारहे हैं"
८-
एक पहलवान ने वकील से पूछा , " आप मेरा केस लड़ सकते है?"
,"केस तो लड़ सकता हूँ, लेकिन फीस के लिए तुमसे कौन लडेगा?"

Saturday, October 6, 2007

टी वी चैनलों का उद्देश्य और पत्रकारिता


टी वी चैनलों की दिनों दिन लगातार तीव्रगति से बढोत्तरी हो रही है, जिस वजह से सूचना के क्षेत्र में क्रान्ति आ गयी है ।और रोजगार के अवसर में वृद्धि हो रही है। पत्रकारिता के छात्रों के लिए यह बहुत ही सुखद बात है। और साथ ही साथ आम जनता के लिए भी खुशी की बात है क्योंकि जनता को अब कई विकल्प मिल गया है समाचार एवं जानकारियों को प्राप्त करने के लिए। परन्तु इस भाग दौड़ और प्रतियोगिता के दौर में टी वी वैनलों का अस्तित्व खतरे में है ।और अस्तित्व बचाना मुश्किल हो गया है। क्योंकि सूचना को सही और वास्तविक तौर से प्रस्तुत करना और दर्शकदीर्धा को अपनी ओर आकर्षित करना कोई आसान बात नहीं है। तो इसलिए टीवी चैनलों को सारी बातों को ध्यान में रखकर चलना पड़ता है। परन्तु आजकल के टी वी चैनलों में जो होड़ देखने को मिल रही है वो है स्टिगं आपरेशन की । तथा परदे के पीछे के सत्य को आगे लाने की। पर यहां पर एक बात यह गौर करने की है कि सत्य को सत्यता से हासिल किया जाय तो सही होगा। परन्तु हो क्या रहा है ? पत्रकार अपनी हर तरह की तकनीक का प्रयोग करता है ,नाम पाने के लिए और पैसा कमाने के लिए। जो कि एक गलत संकेत है हमारे लिए। टी आर पी (टेलीविजन रेटिगं प्वाइटं) भी एक बड़ी समस्या है इसके बढा़ने के प्रलोभन में आकर टीवी चैनल गलत हथकड़े अपना रहें है । यहां पर व्यवसायिकता का बोलबाला देखने को मिल रहा है ।अगर बात टीवी चैनल के उद्देश्य की की जाय तो केवल पैसा कमाना ही लक्ष्य नजर आ रहा है। वैसे जीविकोपार्जन करना गलत नहीं है, परन्तु गलत उद्देश्यों को लेकर क्या ये टी वी चैनल अपनी इमारत की नीव को नहीं कमजोर कर रहें है ।जिसका परिणाम यह है कि कभी सरकार तो ,कभी निजी करणों से ही ये टी वी चैनल बंद हो रहें है । वैसे एक सर्वे से पता चला है कि दुनिया में लगभग प्रतिदिन १० चैनल बंद हो जातें है। तो यहां कारण स्पष्ट है आगे बढ़ने की होड़। जो बात ध्यान देने की है कि पत्रकार भी अपने दायित्वों का निर्वहन पूर्ण सत्यता के साथ नहीं करते है। पत्रकार भी टी वी चैनलों के जाल में फंस जाते है और उनके ही बताये रास्ते पर चलते है। और जिस कारण इस स्थिती को पहुँच जाते हैं । यदि बात टी वी चैनलों में प्रसारित होने वाले कार्यक्रम की बात की जाय, तो हम यह पायेंगें कि कुछ चैनल तो इस हद तक नंगेपन को परोशने पर ऊतारू हो गयें है। कि हम परिवार के साथ समाचार चैनलों को नहीं देख सकते है। इस पर टीवी चैनलों की प्रतिक्रया होती है कि " जनता जो मांग करती है ।हम वही दिखाते है " जबकि बात उलटी होती है। ये चैनल जो दिखाते है वही हम देखते है। कुल मिला कर निष्कर्षतः यही बात निकलकर सामने आती है कि इस तरह के चैनलों को प्रतिबन्धित किया जाना चाहिये जो समाज की बुराईयों को और बढा़ रहे हैं और अपने उद्देश्यों से भटक गये हैं।

Friday, October 5, 2007

बस यात्रा का सच


वैसे तो बहुत से मुददे हैं लिखने को। पर कुछ बातें आप को प्रेरित करती है कि उस पर लिखा जाय तो एक ऐसी ही बात मुझे आज ये कुछ बातें लिखने को मजबूर कर रहीं है। शायद आपके साथ भी कभी हो सकता है अगर आप यात्रा करने में विश्वास करते होगें या फिर मजबूरी में करना पडता है तो आप ध्यान दे इस बात को । वैसे जो बात मैं आप सभी के सामने रखने जा रहा हूँ वो एक आम बात ही है । मैं तो रोज ही लगभग ५ घटें का सफर दिल्ली से नोएडा के लिए करता हूँ। (आने और जाने में) और आज कल मैं हिन्दी का उपन्यास "कितने पाकिस्तान" कमलेश्वरजी का पढ़ रहा हूँ तो सफर आसानी से कट जाता है ।पर आज मेरा कुछ खास पढ़ने का नहीं हुआ तो मैं बस पर बैठे -२ ही बाहर आती जाती सवारियों को निहार रहा था। साथ ही साथ जो पेड़ और बड़ी इमारतें (जो कि मैं रोज ही देखता था) थी उनको भी देखता जा रहा था । समय नहीं कट रहा था तो ऊबन हो रही थी बैठे - बैठे। तभी एक महिला जिसके साथ दो छोटे-छोटे बच्चे थे वो बस पर चढ़ी। और वो महिला सीट की तरफ बढ़ी। जिस सीट की तरफ वो महिला बढी थीं उस पर एक युवा पुरूष बैठे थे । तो महिला ने उन महाशय जो उठने का निवेदन किया तो महाशय ने न उठने का इशारा किया। तो महिला ने दुबारा आग्रह किया और अपने बच्चों को दिखाते हुए अपनी परेशानी को बताने का प्रयास किया ।परन्तु उन महाशय पर कोई असर नहीं हुआ, तो फिर उस महिला ने महापुरूष को बुरी तरह से लताड़ा ।और कहा कि क्या आप को ये नहीं दिख रहा है कि मेरे पास दो बच्चे है और वैसे भी शायद आप ये अच्छे कपडे पहन कर ये सोच रहें है कि आप हो गये एजुकेटेड हैं ।पर आप पहले अपने अन्दर की गन्दगी को साफ करिये ।और लगता है आप के यहाँ मां या बहन नहीं है इसी लिए ये संस्कार नहीं मिला है आप को। और मैं वैसे भी नहीं बठैती पर मेरे पास दो ब्च्चे हैं तो मै आपसे कह रही हूँ। अगर आप महिला है तो बैठिये?अब मामला गरम हो चुका था, ये देखते हुए पीछे बैठे एक महाशय ने अपनी सीट छोड़ कर महिला को बैठने का आग्रह किया ।पर महिला ने कहा कि देखती हूँ कि कैसे नहीं उठते हैं। तभी महिला सीट पर बैसे महाशय ने निर्लज्जता से कहा कि क्या आप मुझको थप्पड़ मारेगी? फिर तो महिला ने एकदम से उन महाशय को धो दिया और फिर वो महिला सही थी तो कुछ लोगों ने महिला का समर्थन किया और महिला सीट पर बैठे पुरूष को आखिर में उठना पड़ा ।और जब तक पुरूष महाशय यात्रा करे वो किसी से नजर नहीं मिला पायें और न जाने कहां पर उतर भी गयें । तो मेरा बस इतना कहना है कि यदि आप कभी महिला सीट पर बैठे तो जब कोई महिला आपके पास आकर खड़ी हो जाये तो आप बिना कुछ कहे ही सीट दें तो अच्छा होगा । क्योंकि हम खड़े हो कर जा सकते है पर महिलाओं को हमसे ज्यादा परेशानी होगी। इसलिए यहां पर शिष्टाचार का परिचय दें।
वैसे भी मेरा ये अनुभव रहा है कि जब हम अपने से बड़े लोगों के सामने सीट पर बैठे रहते तो कुछ अजीब सा लगता है क्योंकि हमारे संस्कार में ही बड़ो को सम्मान देना सिखाया जाता है।यही हमारी संस्कृति है परम्परा हैजिसपर हम गर्व करते है। तो भला कैसे हम ये बात भूल जाते हैं?

Thursday, October 4, 2007

फिर भी करता हूँ इंतजार


करता हूँ तेरा इंतजार आज भी,
उसी पीपल के पेड़ के नीचे,
जहां वादा किया था तुमने मिलने का।
मद्धम - मद्धम हवाओं से लहराती जुल्फों से
तुम्हारे चेहरे को परेशान करते कुछ बाल।
चिडियों की चहचहाहट ,
और
मेरा एक टक तुमको निहारना,
तुम्हारा पास की घास को बेवजह ही उखाडना,
और
फिर न जाने क्यूँ एक लम्बी सांस लेना,
फिर अनन्त आकाश की ओर दूर तक कुछ खोजना ,
न जाने क्या?
वैसे अक्सर तुम ही पहले आया करती थी मिलने के लिए मुझसे,
और
मैं तुम्हें तड़पाने के लिए कुछ देर बाद ही जाता था।
जबकि मैं खुद भी जानता था
इंतजार की लम्बी घडियों को,
जिसमें समय ठहर सा जाता है।
एक -एक पल बिताना ,
कितना मुश्किल हो जाता है,
कितना असहय हो जाता है,
पर फिर भी मैं शरारत करता था तुम्हारे साथ ।
जानबूझ कर गुस्सा दिलाता था तुमको,
मुझे अच्छा लगता था तुम्हारा गुस्सा होना।
तुम्हारा यूँ परेशान होना,
तब तुम रो भी देती थी,
और मैं इसी अदा पर मरता था तुमपे।
कितनी मसूमियत,
कितना भोलापन था तुम्हारे चेहरे में,
वही ढूढ़ता हूँ मैं हमेशा पर,
नहीं दिखता वैसा कोई,
इसी इंतजार में आज भी जाता हूँ,
उसी जगह पर जहां मिलते थे हम दोनों।
और करता हूँ घंटों तक कि शायद आओगी तुम?
पर नहीं आओगी तुम जानता हूँ
फिर भी दिल नहीं मानता हैं,
और
बार- बार देखता है तुम्हारी वो राह जिधर से आती थी तुम।।।।।।।

Wednesday, October 3, 2007

वोडाफोन भारत में


आर्थिक वैश्विकरण के दौडं में अधिग्रहण तथा विलय एक यथार्थ बन चुकी है, इस तर्ज एवं में वोडाफोन ने १२ फरवरी २००७ को हचिसन-एस्सर का अधिग्रहण कर भारतीय संचार क्षेत्र में अपना रास्ता प्रशस्त किया। हचिसन-एस्सार में हांगकांग की हचिसन टेलीकाम इन्टरनेशनल की ६७ प्रतिशत हिस्सेदारी थी।
वोडाफोन विश्व में अपनी पहुचं बनाने के बाद भारत में कदम सही समय पर रखा है । हचिसन के २;३६ करोड़ टेलीकाम उपभोक्ता के साथ ही १५ प्रतिशत टेलि घनत्व वाला भारत मिला अर्थात बाजार विस्तार की पर्याप्त सम्भावना है।यह अधिग्रहण विश्व के इस महारथी टेलीकाम कंपनी के लिए इसिए भी महत्व पूर्ण है कि भारत में २००८ से ऊर्जा की शुरूआत होने वाली है। मोबाइल, टी वी, वीडियो और आडियो डाउनलोड की ओर दुनिया भाग रही है, भारत भी पीछे नही हैं, इसका मतलब है कि वोडाफोन सोने की खान पर बैठा है।
अन्ततः विलय एवं अधिग्रहण की बिसात ने यह स्पष्ट कर दिया है कि भूमंडलीकरण का कोई विकल्कप नहीं है और संदेश साफ है जो जीता नही सिकन्दर।

Tuesday, October 2, 2007

हमारे बापू जी और विश्न अहिंसा दिवस


बापू के १३८वें जन्मदिन पर शत शत नमन।
दो पग चले तो कारवां ही चल दिया। आज पूरा जगत प्रथम "विश्व अहिंसा दिवस" के रूप में मना रहा है २ अक्तूबर को। गांधी जी की विचार धार का प्रवाह समस्त मानव समाज में कण-२ में विद्यमान है। सत्य अहिंसा का जो हथियार गाधी जी ने दिया वह अदभुत था ।भारत में ब्रिटिश हुकूमत के विरूद्ध स्वतन्त्रता प्राप्ति आन्दोलन को चरम सीमा पर लाने में गाधी जी का योगदान महत्तवपूर्ण था।
गांधी जी को सारा देश बापू के नाम से पुकार करता था । भाईचारा और देशप्रेम के संदेश को जन-जन तक पहुचा पाना सम्भव नहीं था पर बापू के अथक प्रयासो से यह सम्भव हो सका । डाण्डी मार्च या फिर असहयोग आन्दोलन आदि में गाधी जी ने सम्पूर्ण भारत को एकता के सूत्र में पिरो कर सम्पूर्ण शक्ति को एकत्रित कर यह दिखाया कि हम अलग जाति ,धर्म एवं समप्रदाय के भले ही है। परन्तु हम सब भारतवासी है उसके बाद कुछ और । अनेक आन्दोलनों के दौरान जेल जाना पडा था बापू को। और अपनी जिद और भूख हडताल से ब्रिटिश शासन को झकझोर दिया था। और अन्तत बापू ने " अग्रेजो भारत छोडो" के साथ भारत की आजादी के द्वार को खोल दिया। बापू का एक और सम्बोधन था "महात्मा" का। यह सम्बोधन रवीन्द्र नाथ टैगोर ने दिया था।
एक ऐसा व्यक्तित्व इस दुनिया में आया था जिसने न धर्म, न जाति , न सम्प्रदाय और न रंगभेद, न क्षेत्रियता बल्कि मानवता का पाठ सम्पूर्ण विश्व को पढाया । एक बार गांधी जी को साउथ अफ्रीका में रंगभेद को लेकर ट्रेन में चढ़ने नहीं दिया गया। तब उस समय गांधी जी वकालत कर रहे थे।तभी से गांधी जी समाज में व्याप्त बुराईयों केखिलाफ लड़ने संकल्प किया।
आज हम सभी ने बापू के विचारों से भटक गये । सत्य और अहिंसा के रास्ते को छोड़ असत्य और हिंसा के रास्ते का रास्ता पकड कर चल रहें हैं। न भाई चारा और न बन्धुत्व कुछ भी देखने को नहीं मिल रहा है , सब कुछ स्वार्थ पर आकर खत्म हो चुका है। निर्धन असहाय को शोषित किया जा रहा है ।
भष्टाचार अपने चरम सीमा पर है , किसी को कोसी से कोई मतलब नहीं । सब स्वहित के भावना से प्रेरित है। यदि आप हम इसी तरह के कार्य में लिप्त होकर बापू को याद करते है तो यह धोखा देना है स्वयं को। अगर बापू को याद करना है तो उनके दिखाये सत्य मार्ग का पालन करो। मानवता को मत भूलो।
२अक्तूबर को हम पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के जन्मदिन भी मनाते है। परन्तु एक दुखद बात यहहैकि सारा देश शास्त्री को उपेक्षित करता है ।

Monday, October 1, 2007

रामू की सोच

एक दिन सोचा रामू ने,
मैं भी पंक्षी होता।
पंख कोलकर दूर गगन में,
मैं भी उडता होता।।

जहां चाहता वहाँ को जाता ,
उडता झूम-झूम कर।
नदी,पहाड,समुद्र और झीलें,
देखता घूम-घूमकर।।

फिर मैं देखता पंख मोर के,
कितने होते हैं।
शेर ,हिरन,भालू जंगल में ,
कहां-कहां सोते हैं।।

बागों में जाकर फल,
अच्छे-अच्छे खाता ।
और शाम होते ही वापस,
घर को आता।।

लेखक-
शशि श्रीवास्तव
मो- ९९६८१५१४०५
email-para_shashi@yahoo.com

Sunday, September 30, 2007

क्या पत्रकारिता के उद्देश्य मेंभटकाव आया है?

देश की समस्याओं और पेशानियों को सामने लाना मीडिया का कर्तव्य होता है और इस कार्य के लिए सबसे अहम भूमिका पत्रकार निभाता है । जब एक साधारण व्यक्ति समाज में फैली बुराईयों को देखता है और फिर उस बुराई के प्रति वह संघर्ष करना चाहता है । तो उस व्यक्ति को माध्यम की आवश्यकता पड़ती है। ऐसे में मीडिया एक सशक्त माध्यम के रूप में होता है और पत्रकार उसका वाहक।
यदि हम स्वतन्त्रता के पहले की बात करें, तो पत्रकारिता नें स्वतन्त्रता आन्दोलनों में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी । स्वतन्त्रता के समय कि जो पत्रकारिता थी वह एक उद्देश्य को लेकर थी । और वह उद्देश्य था भारत की स्वतन्त्रता।
जन जागरण कार्य किया था स्वतन्त्रता प्राप्ति में पत्रकारिता ने । पत्रकार निस्वार्थ भाव से कार्य करते थे । देश की उन्नति, विकास ही लक्ष्य हुआ करता था।
बात स्वतन्त्रता के बाद की पत्रकारिता पर यदि करें तो देश नये-२ आजादी की खुली हवा में सांसे ले रहा था । अब पत्रकारिता ने यहां पर देश के प्रगति में भूमिका निभाई। तथा देश को गावों से जोडा तथा गावों के रहन -सहन की दशा को पूरे देश तक पहुचाया ।
धीरे-धीरे भारत विकास के पथ पर बढ़ रहा था अर्थव्यवस्था, अन्तरराष्टीय मंच एवं युद्धों में पत्रकारिता का बहुत ही अहम योगदान रहा था । यह कहा जा सकता है कि समाज के दर्पण के रूप में थी उस समय की पत्रकारिता ।और पत्रकार भी अपनी बात स्वतन्त्रतापूर्वक रखते थे । तथा समाज कल्याण की भावना से प्रेरित थे।
अब बात विकासशील भारत की जहां पत्रकारिता एक व्यवसाय के रूप में स्थापित हो गयी। पत्रकारिता एवं पत्रकार के उद्देश्य बदल गये, मायने बदल गये। निस्वार्थ भावना की जगह, स्वार्थी भावनाओं ने जगह ले ली।सम्पादक की जगह पर मैनेजर और सामाजिकता की जगह पर भौतिकता की भावना जागृत हो गयी।
आज पत्रकार यदि कुछ अच्छे कार्य भी करना चाहता है, तो उसके ऊपर बैठा मैनेजर पहले उस खबर को आर्थिक नजर से देखकर तब उसको प्रसारित करता है क्योंकि कहीं ऐसा न हो जायेकि उस खबर से उसे आर्थिक हानि न उठानी पड़े । जब इस तरह की भावनाएं होगी तो स्वतन्त्र पत्रकारिता की कल्पना करना व्यर्थ है। और बेचारा पत्रकार भी अपनी रोजी रोटी भला क्यों दावं पर लगाये । वह भी अपने ऊपर हो रहे अत्याचार को खून का घूट पीकर सहन करता है ।कारण बेरोजगारी से अच्छा है यह जीविकोपार्जन। कम से कम दो रोटी तो मिल रही है।

जियो उनके लिए

अपने लिए तो सब जीते हैं।
आओं जियें उनके लिए जो जी कर भी मरें से हैं।
जाओ पास उनके दो सहारा,
दो पग चलने का।
दो विश्वास ,
दो बात बोलने का।
और
बाटों प्रेम भाई चारे को।
माना कि कठिन है ,
हवा के विपरीत चलना,
मुश्किल है रीति को बदलना,
पर
कब तक धरे रहोगे हाथ पे हाथ,
अरे देखो वह- सडक पर जो जा रहा है छोटा सा लडका।
दो लाठियों हे सहारे,
अपनी मंजिल की तरफ।
क्या हार मानी उसने?
नही न।
तोफिर तुम कैसे हार गये?
अरे जागृत करो सोये हुए मानव को
और
जागृत करो मानवता को,
जो कि सो रही है न जाने कब से?
अस्तित्व को पहचनों अपने।
और जियों उनके लिए जो जी कर भी मरे से है।
जरूरत है तुम्हारी उनको,
जागो और जियो उनके लिए।
क्योंकि अपने लिए तो सब ही जीते है तुम जियों उनके लिए।

Saturday, September 29, 2007

हसगुल्ले

१-
मेंटल हास्पिटल में पागलों की संख्या काफी बढ़ती ही जा रही थी।
डाक्टर साहब ने कहा- आज एक टेस्ट लेते है और देखते हैं कि कितने मरीज ठीक हो गए है और कितने को छुट्टी दी जा सकती है। डाक्टरसाहब ने सभी मरीजों को क्लास रूम में बुलाया और चाँक लेकर ब्लैकबोर्ड पर एक बंद दरवाजा बनाया।
डाक्टर ने कहा - जो भी इसे खोल देगा, उसे एक आइसक्रीम दी जाएगी।
सारे एक साथ ब्लैकबोर्डपर झपट पडें। केवल एक मरीज चुपचाप बैठ कर उन्हें देखता रहाथा।
डाक्टर सोच में पड़ गया और कहने लगा कि आह सिर्फ एक ही मरीज डिस्चार्ज होगा।
चुपचाप बैठे मरीज से डाक्टर ने कहा कि तुम चुपचाप क्यों बैठे हो?
मरीज बोला- चुप हो जाओ, वरना सब के सब मुझ पर झपट पडेगें।
डाक्टर - पर क्यों?
मरीज बोला- कयोंकि इस दरवाजें की चाबी मेरे पास है।
२-
बच्चा अपने पिता से- डैडी आपने रेडियो को फ्रिज में क्यों रख दिया ?
पिता- अरे मैं कूल म्यूजिक सुनना चाहता हूँ।
३-
पिता बेटी से- मुझे तुम्हारी पसंद अच्छी नहीं लगी, इससे कहीं अच्छामिल सकता है।
मां पति से- आपको अपनी बेटी कीपसंद अच्छी क्यों नही लगी?
पति- नहीं लगी, क्योंकि इससे कहीं अच्छा लड़का उसे मिल सकता था।
पत्नी गुस्से में- हां , मेरे पिताजी भी तुम्हारे बारे में यही कहते थे कि तुमसे अच्छा लड़का मिल सकता था।

Friday, September 28, 2007

पाकिस्तानी हिन्दुओं की दशा




भारत और पाकिस्तान आज़ादी के साठ साल पूरे होने पर तरह-तरह के समारोह गये लेकिन कराची के हिंदू के लिए इन समारोहों का कोई मतलब नहीं . बल्कि उनके सामने ज़िंदगी और मौत का सवाल खड़ा है.
कराची की एक ऐसी बस्ती में रहते हैं जो चारों तरफ़ से मुसलमानों से घिरी हुई है और उनके लिए हर दिन यह ख़तरा लेकर आता है कि आज जाने क्या होगा. उनका दिन जब सही सलामत गुज़र जाता है तो बड़ी राहत की साँस लेते हैं.
बुजुर्ग कहते हैं, “हमने तो जैसे-तैसे वक़्त गुज़ार लिया लेकिन हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए पाकिस्तान में हालात अच्छे नहीं हैं. हम बहुत डर में ज़िंदगी गुज़ार रहे हैं. हमारे बुज़ुर्गों ने पाकिस्तान में रहने का फ़ैसला करके बहुत बड़ा ख़तरा मोल लिया था.”
पाकिस्तान में रहने वाले 25 लाख हिंदुओं हैं जिन्हें संविधान में तो बराबरी का दर्जा हासिल है लेकिन हक़ीक़त कुछ और ही है.
बहुत सारे हिंदुओं का यह भी कहना है कि आम ज़िंदगी में उन्हें कोई ख़ास परेशानी नहीं है लेकिन बहुत सारे ऐसे मुद्दे भी हैं जिनमें उन्हें अहसास होता है कि वे एक मुसलिम देश में रहते हैं जहाँ कभी-कभी कट्टरपंथियों का दबदबा उन्हें यह सोचने को मजबूर कर देता है कि पाकिस्तान में हिंदुओं का भविष्य क्या है?
अगस्त 1947 में पाकिस्तान बनते समय उम्मीद की गई थी कि वो मुसलमानों के लिए एक आदर्श देश साबित होगा लेकिन मोहम्मद अली जिन्ना ने कहा था कि पाकिस्तान एक मुस्लिम देश ज़रूर होगा मगर सभी आस्थाओं वाले लोगों को पूरी धार्मिक आज़ादी होगी.
पाकिस्तान के संविधान में ग़ैर मुसलमानों की धार्मिक आज़ादी के बारे में कहा भी गया है, “देश के हर नागरिक को यह आज़ादी होगी कि वह अपने धर्म की अस्थाओं में विश्वास करते हुए उसका पालन और प्रचार कर सके और इसके साथ ही हर धार्मिक आस्था वाले समुदाय को अपनी धार्मिक संस्थाएँ बनाने और उनका रखरखाव और प्रबंधन करने की इजाज़त होगी.”
मगर आज के हालात पर ग़ौर करें तो पाकिस्तान में ग़ैर मुसलमानों की परिस्थितियाँ ख़ासी चिंताजनक हैं. उनकी पहचान पाकिस्तानी पहचान में खो सी गई है, बोलचाल और पहनावा भी मुसलमानों की ही तरह होता है, वे अभिवादन के लिए
पाकिस्तान में हिंदुओं की ज़्यादातर अबादी सिंध में है. सिंध और पंजाब में रहने वाले हिंदुओं के हालात में भी ख़ासा फ़र्क नज़र आता है. सिंध में हिंदू अपने अधिकारों के लिए संघर्ष भी करते नज़र आते हैं लेकिन लाहौर में रहने वाले हिंदू जैसे पूरे तौर पर सरकार पर निर्भर हैं और उन पर सरकार की निगरानी भी है.
कराची के स्वामीनारायण मंदिर परिसर में आस पास रहने वाले हिन्दू कहते है कि उन्हें वहाँ कोई परेशानी नहीं है और हिंदू अपने त्यौहार – होली, दीवाली, रामलीला वग़ैरा भारत में हिंदुओं की ही तरह पूरी आजादी और उत्साह से मनाते हैं.
स्वानारायण मंदिर कराची महानगर पालिका के दफ़्तर के बिल्कुल सामने है और मंदिर परिसर में ही अनेक हिंदुओं के घर भी हैं और वहीं आसपास कुछ दुकानें भी. और उस परिसर में ऐसा ही माहौल रहता है जैसाकि भारत के किसी हिंदू बहुल इलाक़े में.
वैसे तो कराची में अनेक इलाक़ों में हिंदू मंदिर और घर नज़र आते हैं लेकिन एक ऐसी भी बस्ती है जिसमें हिंदू, सिख और ईसाई रहते हैं और वहाँ अनेक मंदिरों के अलावा चर्च और एक छोटा सा गुरुद्वारा भी है. नारायणपुरा नामक यह बस्ती भी बदहाली की वही कहानी कहती है जो भारत के किसी बेहद पिछड़े इलाक़े में होती है यानी भारी गंदगी, कुपोषित बच्चे और बेकार घूमते युवक
हमारे पूर्वजों ने वापिस पाकिस्तान आने का फ़ैसला करके बहुत बड़ी ग़लती की थी लेकिन हमारी मजबूरी ये है कि भारत सरकार भी हमें स्वीकार करने को तैयार नहीं है और पाकिस्तान में हम डर की ज़िंदगी जीने के लिए मजबूर हैं मुसलमानों की ही तरह अस्सलामुअलैकुम और माशाअल्लाह, इंशाअल्लाह जैसे शब्दों का इस्तेमाल करते हैं. इन बस्तियों में बातचीत से ऐसा आभास होता है कि वहाँ ग़ैरमुसलमानों को कोई परेशानी ही नहीं है लेकिन सच जानने की कोशिश करें तो कुछ हिंदुओं के अनुसार एक मौलवी ने एक मंदिर पर क़ब्ज़ा करके वहाँ पीर की दरगाह बना ली है.उस बस्ती में रहने वाले बताते हैं कि उनके पूर्वज 1950 के दौर में भारत के कच्छ इलाक़े में पहुँचे थे लेकिन वहाँ उन्हें समाज और सरकार का कोई सहयोग नहीं मिला और फिर वे मजबूर होकर पाकिस्तान ही लौट आये भारत में तथाकथित उच्च जाति के हिंदुओं ने उन्हें स्वीकार करने से इनकार कर दिया और छुआछूत की समस्या की वजह से उनके पूर्वज भारत से एक बार फिर पाकिस्तान लौट आए.

तथ्य बी बी सी से----

मुश्किल में सरकार


सेतुसमुद्रम कनाल प्रोजेक्ट को भाजपा ने धर्म से जोडकर राष्टीय मुद्दा के रूप में प्रस्तुत कर दिया । सोयी हुई राजनीति में गरमाहट आ गयी और फिर तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम करूणानिधि के बयान " जब राम ही नहीं तो राम सेतु कैसा" को लेकर पक्ष और विपक्ष में जबरदस्त टक्कर देखने को मिली। पक्ष की मुश्किलों को संस्कृति मंत्री अम्बिका सोनी और जहाज रानी मंत्री टी आर बालू और कानून मंत्री हंसराज के सुप्रीमकोर्ट में राम सेतु मुद्दे पर दाखिल हलफनामें ने और बढ़ा दिया। तथा सरकार दबाव में आगयी ।और इसके चलते अन्ततः काग्रेस को विपक्ष के विरोध के चलते अपने हलफनामें वापस लेने पड़े।
अमेरिका भारत परमाणु समझौते को लेकर पहले से ही लेफ्ट और भाजपा सरकार पर दबाव बनाये हुए है ।तथा कुछ ऐसी परिस्थितियां बनती जा रही है जिससे की मध्यावधि चुनाव के संकट मडराने लगा है । हाल के दिनों में काग्रेस ने पार्टी में कई बदलाव किये है। जिसको की भाजपा चुनाव की तैयारी के रूप में देख रही है।
भाजपा ने सेतुसमुद्रम प्रोजेक्ट के तहत एडम्स ब्रिज को तोड़ने (भाजपा जिसे राम सेतु का नाम दे रही हैऔर भगवान राम द्वारा निर्मित मानती है) का विरोध कर ही है। और इसे देश की धार्मिक आस्था से जोड़ रही है । हाल के दिनो़ में भाजपा के कार्यकारिणी की बैठक भोपाल में हुई। जहां विश्व हिन्दू परिषद तथा भाजपा ने राम सेतु मुद्दे को भावी चुनावी मुद्दे के रूप में रखेगें।
फिलहाल जो स्थितियाँ बन रही है उसे देखते हुए काग्रेस की मुश्किल बढ़ती ही दिख रही है।अभी ६ महीने बाद परुमाणु मुद्दे पर जो समिति गठित की है उसकी भी रिपोर्ट आयेगी ।जिस पर काग्रेस को पहले से ही लेफ्ट से घिरा है
।अब कैसे छुटकार पाती है काग्रेस यह देखने की बात होगी । या फिर सरकार गिरती है और चुनाव होतें है। ये तो आने वाला समय ही बतायेगा?

Thursday, September 27, 2007

'जग मामा'

मोटा चश्मा, कमर है टेढी
टुक-टुक करके चलते हैं।
हाथ में हरदम छडी है रहती
उन्हें 'जग मामा' कहते है।।
भेशभूषे पर ध्यान न देना,
ऐसा उनका कहना है।
जोकर जैसी लम्बी टोपी,
लम्बा कुर्ता पहना है।।
मुहँ है दातों से खाली,
और सुनाई नहीं देता।
जब भी उनसे बात करों,
सिर 'हां' मे हिलता रहता ।।
चाटे जब भी मुह कुत्ता,
उनको पता नही होता ।
बकरी आ कर कुर्ता खा जाती,
उनको खबर नही हो पाती।।
ऐसे है अपने 'जग मामा'
रहते हैं हमेशा हँसते ।
बच्चों से उनको बहुत प्यार,
रोज नई कहानी कहते ।।

लेखक-

शशि श्रीवास्तव
मो-९९६८१५१४०५
ईमेल-para_shashi@yahoo.com

जरा याद इन्हें भी कर लो ।भगत सिह


शहीदों की चिताओं पर लगेगें हर बरस मेले,
वतन पर मरनें वालों का यही बाकी निशा होगा।
भारत उस समय ब्रिटिश हुकूमत के आधीन हुआ करता था । जब एक ऐसे व्यक्तित्व का जन्म पंजाब के लायलपुर जिले के बंग गांव में २७ सितम्बर १९०७ में हुआ। परवरिश स्वतन्त्रता संग्रामियों के बीच हुई तो सम्भव था कि भगत सिह भला कैसे अछूते रह जाते ।भगत सिह के पिता सरदार किशन सिहं जी खुद एक स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी थे और कई बार वो जेल भी गये। भगत सिह ने अपने २४ साल के जीवन काल में ब्रिटिश हुकूमत की दीवारें दहला दी। शुरू से ही क्रान्तिकारी विचार धारा के थे ।और स्वतन्त्रता के लिए हो रहे आन्दोलन ने भगत सिह को
इस के लिए प्रेरित किया। १३ अप्रैल १९१९ जलिया वाला बाग काण्ड एक ऐसी ही घटना थी।
भगत सिहं का युवा व्यक्तित्व हमेशा इस बात के लिए उन्हें प्रेरित करता कि हमें स्वतन्त्रता मिलनी चाहिए और हम इसको हासिल करके रहेंगे।अग्रेजो के द्वारा किये जा रहे अत्याचार ने उन्हें स्वतन्त्रता आन्दोलन में उतरने को मजबूर किया । भगत सिहं ने उस समय के क्रान्तकारियों चन्द्रशेखर आजादकी हिन्दुस्तान रिपब्लिक आर्मी में शामिल हो गये और नियमित रूप से अपने आप को झोक दिया।१९२९ में भगत सिहं ने और राजगुरू ने जनरल असेम्बली के बीचों बीच बम फेंक कर अपनी स्वातन्त्रता के इरादे स्पष्ट कर दिये तब फिर भगत सिह को गिरफ्तार कर लिया गया और उनके खिलाफ ब्रिटिश सरकार ने आतंकवादी गतिविधियों में संलिप्त होने काआरोप लगा कर मुकदमा चलाया और अततः फासी देने का आदेश दिया जिसे भगत सिह जी ने फुलों कि माला समझ कर गले में डाल लिया।भगत सिह सुखदेव और राजगुरू को भले ही फासी मिली पर क्या जो उनकी जो भावनाए थी व जो सोच थी उसको दबा सके । नही कभी भी नही बल्कि भगत सिह ने जान बूझकर ही खुद बम फेकने का फैसला किया था जिससे उनकी बात पूरे भारत में फैल सके। ।
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,
देखना है जोर कितना बाजू -ए- कातिल में है,
इन्कलाब जिन्दाबाद।
यही रहें थे आखिरी इस वीर जवान के।
शत-शत नमन

Wednesday, September 26, 2007

दिल के जज्बात।


सामने वाली खडकी में एक चादँ है,
वैसे तो चांद रात में ही निकलता है,
पर
ये चांद वक्त बे वक्त निकल आता है।
इस तरह से निकलना और फिर छिप जाना,
बहुत ही तडपाता है।
न जाने कितनी बार कई-२ घण्टे गुजारे हैं मैनें,
उसके दीदार के लिए?
न जाने कितनी ही रातें काटी है,
एक झलक पाने के लिए?

वैसे तो पता है उसको भी,
कि
कोई अपना है जो नजरें बिछाये राह तकता रहता है
उसकी,
पर वह करे भी तो क्या?
उसकी भी तो है कुछ मजबूरी,
उसकी भी तो है कुछ परिधि,
कुछ सीमाएं,
कुछ सरहदें।

वह भी जगमगाना चाहती है,
हमको बताना चाहती है, कि
जो तुम्हारे रास्ते है,
जो तुम्हारी मजिंले है,
मै भी तो उस पर चलना चाहती हूँ,
उसको पाना चाहती हूँ।

पर कह नहीं पाती कुछ भी,
क्या कहना ही जरूरी है हर बात को?
नहीं।
वह तो कहती है सब कुछ अपनी झुकी नजरों से,
अपनी खामोशियों से,
मैं महसूस करता है इस अनकहे जज्बात को,
उसके प्यार को।
बस एक बार सुनना चाहता हूँ तुमसे।
मुझे यकीन है तुम तोडं दोगी,
सारी बंदिशें , सारी सरहदें,
और
आओगी मेरे पास।
कहोगी अपने दिल के जज्बात।

Tuesday, September 25, 2007

हम ही है बादशाह T-20 के


हौशले गर बुलंद हो तो मंजिल मिल ही जाती है के वाक्य को सत्यार्थ कर भारतीय टीम T-20 विश्व कप का शहरा अपने सर पर आखिरकार सजा ही लिया। पाकिस्तान से हुए मुकाबले में मैच समाप्त होने के पहले एक बार फिर हमेशा की तरह ही सांसे थम गयी थी। आखिरी समय तक कोई नहीं कह सकता था कि मैच किसके पक्ष में जायेगा ? पर अन्तत; भारत ने पाकिस्तान की टीम को जीत के लिए निर्धारित १५८ रन के ५ रन पहले ही रोक दिया और पहले वर्ल्ड कप अपनी झोली में कर लिया। भारतीय गेंदबाजों ने जो लाजवाब गेदबाजी की और पाकिस्तान के किसी बल्लेबाज कोई टिक नहीं सके बेशक पाकिस्तान ने शुरूआत में बेहतरीन शुरूआत की पर आरपी सिहं , इरफान पठान और जोगिन्दर शर्मा ने मिलकर सभी पाकिस्तानी बललेबाजों को पवेलियन का रास्ता दिखा दिया। फाइनल मैच में मैन आफ द मैच का पुरस्कार इरफान पठान और मैन आफ द सिरीज का पुरस्कार का पाकिस्तान के शाहिद आफरीदी को मिला।भारत ने वेस्टन्डीज में हुए विश्वकप के पहले दौर से बाहर हो जाने का दर्द काफी हद तक कम कर दिया और २४ साल बाद एक बार फिर हम विश्व विजेता बन गये।

Monday, September 24, 2007

बने तो मौत बने

जब लगा खत्म हुई अब तलाश मंज़िल की।
धोका था नज़रों का वो इसके सिवा कुछ भी नहीं।।

समझा था क़ैद है तक़दीर मेरी मुट्ठी में;
रेत के दाने थे वे इसके सिवा कुछ भी नहीं।

मैं समझता रहा एहसास जिसे महका सा;
एक झोंका था हवा का वो और कुछ भी नहीं।

मैं समझता हूँ जिसे जान,जिगर,दिल अपना;
मुझे दिवाना वो कहते हैं और कुछ भी नहीं।

आजकल प्यार मैं अपने से बहुत करता हूँ;
होगा ये ख़्वाब और इसके सिवा कुछ भी नहीं।

लगा था रोशनी है दर ये मेरा रोशन है;
थी आग दिल में लगी इसके सिवा कुछ भी नहीं।

तेरे सिवाय जो कोई बने महबूब मेरी ;
बने तो मौत बने इसके सिवा कुछ भी नहीं।।

Sunday, September 23, 2007

एक रोचक मुकाबला और अब फाइनल


भारतीय क्रिकेट प्रेमियों को सेमी फाइनल मुकाबला शायद ही भूले । मैने भी I I T दिल्ली के नीलगिरी हास्टल में इस सेमी फाइनल का मुकाबले का लुत्फ उठाया। T-20 का यह सबसे रोमांचक मुकाबला था। भारतीय क्रिकेट प्रेमी भारतीय टीम के जीतते ही प्रशंसक अपने कपडें उतार ऊपर उछाल के डांस करके खुशी का इजहार कर रहें थे। मैने भी अपने ४ घंटे का पूरा पैसा वसूल किया। पूरे IIT में जश्न का महौल जैसा था ।जीत की खुशी में खूब आतिशबाजी हुई मानो ऐसा लग रहा था कि मानों दीपावली का त्यौहार हो।
भारत और आस्ट्रेलिया के बीच डरबन में खेला गया T-२० का दूसरा सेमीफाइनल मुकाबला भारत के पक्ष में रहा। भारत पहले खेलते हुए २० ओवरों में ५ विकेट के नुकसान पर १८८ रन बनायें। इस १८८ रनों में युवराज सिहं की ३० गेदों पर ७० रन की धुआंधार पारी जिसमें ५ छक्के और इतने ही चौके लगायें ।युवराज नें विश्व कप का सबसे लम्बा छक्का (११९ मीटर)भीलगाया ।और साथ में धोनी ३६ रन और उथप्पा की ३४ रन की तेज पारियो का योगदान रहा।जिसकी सहायता से भारत यहाँ तक आसानी से पहुच सका।
आस्ट्रेलिया जब अपनी पारी की शुरूआत करने मैदान पर उतरा तो उसने धीमी शुरूआत की अर्थात आरपी सिहं और श्री संत ने गेदबाजी आक्रमण को और पैना कर दिया । गिलक्रिस्ट ने आरपी सिहं पर जरूर कुछ शानदार स्ट्रोक लगाये पर जलद ही श्री संत ने उनके विकेट उखाड़ दिये। फर हेडेन और सायमण्ड ने मिलकर आस्ट्रेलिया की पारी में रनों की गति को बढा़ना शुरू किया और सफल भी रहे । दोनों ने जोगिन्दर शर्मा और सहवाग की खूब धुलाई करी। परन्तु धोनी ने गेदबाजी में परिवर्तन कर श्री संत को मोर्चे पर ला दिया और श्री संत ने हेडेन को शुरू में ही खूब परेशान किया था और अन्ततः हेडेन की भी वही हालात हुई जो गिलक्रिस्ट की हई थी ।श्री संत ने हेडेन को बोल्ड आउट किया। हेडेन ने अर्द्धशतकीय पारी खेली। इसके बाद पठान ने सायमण्ड को आउट कर पैवेलियन की राह पकडाई और इस आस्ट्रेलिया को जीत के लिए १८ गेदों पर ३० रन की जरूरत थी। हरभजन और आरपी सिहं ने अपनी बढिया गेदबाजी की बदौलत भारत को लगभग जीत कर द्वार पर ला खडा किया ।अब पारी का अन्तिम ओवर फेकनें के लिए कप्तान धोनी ने ये जिम्मेदारी जोगिन्दर शर्मा के हाथ में दी। अब जीत के लिए ६ गेंद पर २२ रन चाहिए थे ।आखिरी ओवर में जोगिन्दर ने अच्छी गेदबाजी की और आस्ट्रेलिया के फाइनल कमें पहुचने के सपने को धो दिया ।इस जीत के साथ भारत फाइनल में प्रवेश कर चुका है। जहां पर २४ को भारत का मुकाबला चिर प्रतिद्वन्दी पाकिस्तान से होगा।
भारत ने विश्वकप विजेता टीम को हरा कर अपने २००३ के विश्वकप के फाइनल के हार का बदला ले लिया है अब भारत को T-20 का ताज पहनने के लिए मात्र एक कदम आगे बढाना है। जिस तरह से भारतीय टीम खेल रही है उसके प्रदर्शन को देखते हुए पाकिस्तान के साथ एक कांटे की टक्कर होने की प्रबल संभावना है ।
वैसे भारत T-20 का फाइनल कप ले कर ही लौटे यही शुभकामना हमारी तरफ से भारतीय क्रिकेट टीम को। अब यह तय हो चुका है कि यह पहला T-20 कप एशिया में ही आयेगा पर किससे पास यह देखना होगा?

Saturday, September 22, 2007

हंसगुल्ले पार्ट-२


एक बार एक संता एक फिल्म हाल में जुरासिक पार्क देखने गया। जैसे ही डायनासोर अपना शिकार करते,वैसे ही संता अपनी सीट के नीचे छिप जाता।
दूसरी सीट पर बैठे एक व्यक्ति संता से कहा,'डरो मत , ये फिल्म है।
संताः मुझे तो पता है कि यह फिल्म है , पर डायनासोर को नहीं पता ना ।



मां (चिटूं से) उठो चिटूं, स्कूल के लिए देर हो जाएगी।
चिटूं मैं आज स्कूल नही जाना चाहता।
मां पर क्यों?
चिटूं मां ,' मैने अभी सपना देखा कि मैं १०० मीटर की दौड़ में दौड़ रहा हूँ।
मां तो क्या हुआ ?
चिटूं अरे मां इतनी लम्बी रेस के बाद मै बहुत थक गया हूँ।




एक बार अजीत अपनी बीबी के साथ आटि रिक्शा में कही जा रहा था।
आटो वाले ने जैसे ही शीशा सेट किया, अजीत चिल्लाया ओssए तू मेरी बीबी को देखता है। चल तू पीछे बैठ , आटो मै चलाता हूँ।



राबर्ट बास अब मै मिशन पर कैसे जाऊ? हैडएक हो गया है
अजीत राबर्ट हेड एक हो या दो , पर काम तो करना होगा।



एक बार एक व्यक्ति हेडमास्टर के पास गया और देखा कि वह अपने कुत्ते के साथ शतंरज खेल रहा है। लगता है आपका कुत्ता काफी बुद्धिमान है। उस व्यक्ति ने कहा।
' नही- नहीं' हेडमास्टर बोला," मै पहले भी तीन बाजियाँ जीत चुका हूँ।

Friday, September 21, 2007

मुझको भूल जाना और मुस्कराना तुम


मुझको भूल जाना और मुस्कराना तुम ,
न मुझको याद करना तुम और न ही याद आना तुम।
तेरी तस्वीर सजा रखी है मैनें दिवार -ए-दिल पर अपने,
उसी के सहारे काट दूगां जिदगी को मैं,
मगर ये बात याद रखना तुम,
मुझको भूल जाना और मुस्कराना तुम।
ये मानकर चलना कि कोई मुशाफिर था,
जो पल में ही बन गया अपना,
और कर गया दीवाना,
फिर अगले ही पल न जाने कहां खो गया इस जमाने में।
यहां तुम मान लेना कि -
था कोई सपना
या कोई अफसाना,
और फिर यही बात गुनगुनाना तुम,
मुझको भूल जाना और मुस्कराना तुम।
न मुझको याद रखना तुम और न ही याद आना तुम।
वैसे भी क्या यह मिलना, कम था किसी चमत्कार से कम,
कुछ पल ,कुछ घड़ी में बंध गये हम जन्मों के लिए।
और बिछडे तो ये कहते हुए- मुझको भूल जाना और मुस्कराना तुम ,
न याद करना तुम और न ही याद आना तुम?????????????????????

जरा नजर इधर भी करिये जनाब , सच भी देखिये ना


मैं हमेशा से कई चीजों के खिलाफ रहा हूँ। जिसमें से भिक्षावृति एक है । मेरा मानना है कि क्या मेरे १ रूपये देने से इनके कष्ट में कमी आ सकती है तो मैने पाया की नहीं। हाँ एक बात ये हो सकती है कि एक दिन के लिए उनकी कमायी में कुछ जरूर मदद हो जाए पर क्या इससे उनका ये भीख मागना छूट जायेगा नहीं कभी नहीं । मैं पहले सोचा करता था कि ये भीख मांगने वाले लोग जो भी पैसा पूरे दिन में कमाते है वह पूरा पैसा इनका हो जाता है पर जब मैने सच्चाई जानी तो और भी दुखी हुआ । क्या आपको मालूम है कि भीक्षावृति का भी एक व्यापार होता है ? इसको चलाने वाले भी कोई और है जो भीख मांगते हुए दिख जाते है ये मात्र एक दिहाडी वाले मजदूर मात्र के रूप में कार्य करते हैं।सारी कामयी में इनको दिन की मजदूरी के अलावा कुछ भी नहीं मिलता ।
इस भीक्षाबृति का कारोबार आजकल बहुत ही तेजी से बढ़ रहा है । इसका उदाहरण हम चौराहों पर जाम के बीच और बाजार और भीड़ वाली जगह पर आसानी से देख सकते है। मुझे जब यह पता चला कि इस कारोबार में छोटे बच्चों का बहुत ज्यादा उपयोग हो रहा है खासकर जो १ साल से लेकर १२ साल तक के बच्चें है। और जिस बच्चे की उमर जितनी कम होगी उसी अनुसार उस बच्चे को पैसा अधिक मिलता है । ये वो बच्चे होते है जिनके माँ-बाप इनका पालन-पोषण नहीं कर पाते है कारण होता है अधिक बच्चे होना जिस वजह से इनके माता पिता इनका लालन - पालन कर पाने में असमर्थ होते हैं और मजबूर हो के इस तरफ अपने नन्हे मुन्हे बच्चे को फेंक देते है। साथ ही साथ इससे बच्चे और परिवार का भी भरण पोषण आसानी से हो जाता है।
आपके साथ भी कभी यह हुआ होगा या फिर कभी हो सकता है कि आप अपनी मोटर साइकिल या फिर कार पर हों और आप के पास कोई नन्हा बच्चा प्यारी मुस्कान लिए हुए कहता है कि " बाबू जी १ रूपया दोना भूख लगी है खाना- खाना है " तब फिर मन में यही होता कि इसको दुत्कार दिया जाय या फिर आप जेब में हाथ डालकर एक सिक्के उसके हाथ पर रख देते हैं और वह मुस्कुराता हुआ अपने नये ग्राहक की तलाश में आगे बढ़ जाता है और न जाने ऐसे कितने लोगो से यही डायलाग दिन भर कहता है । कितनी हया और कितना निर्लज्जपन आ जाता है इनमें या फिर एक तरह का डर क्योंकि इनका भी एक निर्धारित लक्ष्य होता है जिसको दिन भरमें हासिल करना होता है नही तो अपने पेट से काट के दें पैसे ।
इस तरह की बुराईयां हमारे आसपास ही पल रही है। और हम सब इसको नजरंदाज कर देते हैं। जो कि एक युवा और पढ़लिखे समाज के लिये शर्म की बात है। आखिर इन सब को, इस सबसे कब निजात मिलेगी बात मैं मेट्रों सिटी दिल्ली की करता हूँ यहाँ तो समाज शिकक्षित है फिर भी यहाँ पर ही यह धन्धा जोरों पर हैं । क्या यहां कि सरकार इस पर नजर नहीं रखती या फिर जानबूझ कर आखों पर पर्दा डालें हुए है। पर मेरा आप सभी युवाओं से अनुरोध है कि इस समाजिक बुराई को दूर करने के लिए आगे आईये। आखिर कब तक हम मुह को छिपा कर अधेरें में बैठे रहेगें।

Thursday, September 20, 2007

एक निवेदन ब्लागर समूह से

जब कुछ लिखिये तो यह बात मन में होती है जो कुछ मैने लिखा है वह सही है या फिर क्या गलती रह गयी है और यह कितना पसंद किया जायेगा और इसका मापक यह है कि जो लिखा है उसको कितने लोग पढते हैं और कितने लोग उस पर अपनी प्रतिक्रया और टिप्पणी करते है।पर मैने अब तक अपने ब्लाग पर जो भी लिखा है उसको हमारे ब्लागर समूह नें काफी हद तक पंसद भी किया है और जो कुछ कमियां रह गयी उसे बहुत ही अच्छी तरह से सुधारने के लिए टिप्पणियों द्वारा बताया ।
मै तो अपने को सौभागयशाली मानता हूँ क्यों कि मै एसी जगह पर लिख रहा हूँ ।जहाँ पर मेरी कमियां और अच्छाईयों का पता आसानी से चल जाता है । वैसे मैं ब्लाग के बारे में बहुत कुछ नहीं जानता था पर जब से मैने दिल्ली की राह(२८-०४-२००७) पकडी। तब मेरा उद्देश्य किसी अच्छे मीडिया स्कूल से पत्रकारिता करने का था और मैने कई जगह पर प्रवेश परीक्षाएं दी पर असफल रहा और अततः माखन लाल राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय में मास्टर्स आफ जर्नलिस्म में दाखिला हो गया । तो मन में कुछ लिखने की इच्छा होने लगी मैने कापी और कलम का सहारा लिया । और हाँ ब्लाग चलाने की प्रेरणा मुझे अपने भैया श्री पकंज तिवारी और मेरे मित्र प्रमेंन्द्रजी से मिली।
वैसे मेरी शिक्षा तो इलाहाबाद में हुई, तथा वही से ही लिखने का शौक था, पर १२वीं के बाद से मैंने कुछ कम ही लिखने का काम किया पर जब मुझे पत्रकारिता के क्षेत्र में आना ही था तो मैने दुबारा लिखना प्रारम्भ किया । और मैने कई लोगो की मदद से एक ब्लाग बनाया जिसका नाम "मीडिया व्यूह" रखा ।
पर सब कुछ बिलकुल नया था, इस लिए बहुत ही अटपटा लग रहा था और ना ही मुझे हिन्दी लिखने ही आता था तो अब एक और समस्या कि किस प्रकार से मैं अपनी लिखी हुई कविताऐं और लेख को ब्लाग पर डाल सकूं ।तो फिर यहां पर शैलेश जी हिन्द-युग्म के और अपने भाई साहब की मदद से हिन्दी लिखना सुलभ हो पाया और अब तक तो काफी हद तक लिखने भी लगा हूँ। तो यहां मेरे मन में यह विचार आता कि ऐसे बहुत से लोग है जो कि हिन्दी के लिए कुछ करना चाहते है पर हिन्दी न लिख पाने के कारण इस सबसे वंचित रह जाते है। अतः यहाँ पर सभी ब्लागर का ये दायित्व हो जाता है कि वे कुछ न कुछ लोगो की मदद अवश्य करें। और हिन्दी टंकण में सहायता प्रदान करें।

अगर सीखना है तो सीखो इनसे


न तन पर कपडें,
न सर पें छावं,
न खाने की रोटी,
और
न ही रहने की ठावं,
पर जिये जा रहें है,
जीने की उम्मीद लिये हुए?


फिर भी,
कितनी खुशी।
कितनी सन्तुष्टि है ।
क्या इनके भी है कुछ सपने?
क्या इनकी भी है कुछ उम्मीदें ?
शायद हां।
यह भी तो है हममें से ही एक।
मैने देखा-
मिट्टी से सना उसका पूरा शरीर,
रूखे -२, लटियाये बाल।
जस्ते की थाली में बिखॆरे कुछ भात।
और
इधर -उधर भिनभिनाती मक्खियों का झुण्ड।
दिन तो बीत जाता है धूप -छावं के खेल में सड़को पर,
पर जगमगाती रात में भी एक रोशनी की किरण भी नहीं इनके लिए।
क्या दुख नहीं होता है देखकर इनको?
पर साथ ही साथ,
जीवन संघर्ष देखना है तो देखो इनको,
और सीखो,
संघर्ष करना।

Wednesday, September 19, 2007

भूल -सुधार रिपोर्ट " राष्ट्र की प्रगति में हिन्दी पत्रकारिता का महत्व"

मैनें यह रिपोर्ट दुबारा से तैयार की है. कारण श्री संजय जी एवं राजीव जैन जी के कमेंट थे जिसके लिए मैने यह दुबारा प्रयास किया है और मुझे यकीन है कि मै अबकी बार कुछ हद तक कामयाब होऊगा । मै संजय जी और राजीव जैन जी का तहे दिल से शुक्रिया अदा करना चाहूगा , ऐसे ही अपनी प्रतिक्रया देते रहिए जिससे मार्गदर्शन होता रहे।

माखन लाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय के नोएडा परिसर में भारतीय प्रेस परिषद के तत्वाधान में एक वाद - विवाद प्रतियोगिता का आयोजन हुआ। जिसका विषय- " राष्ट्र की प्रगति में हिन्दी पत्रकारिता का महत्व" था।

इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि के रूप में माखन लाल विश्वविद्यालय के कुलपति श्री अच्युतानंदन मिश्र जी थे। तथा अन्य गणमान्य विशिष्ट जनों में माखन लाल विश्वविद्यालय, नोएडा परिसर के प्रबंधक श्री अशोक टण्डन जी , भारतीय प्रेस परिषद के सदस्य श्री एस एन सिन्हा जी एवं वरिष्ट पत्रकार श्री राम जी त्रिपाठी जी उपस्थित थे।
इस प्रतियोगिता में कुल १२ टीमों के कुल २६ प्रतिभागीओं ने हिस्सा लिया। इन टीमों में माखन लाल विश्व विद्यालय के नोएडा परिसर , भोपाल परिसर एवं राजधानी के आस-पास के मीडिया इन्स्टीट्यूट ने भाग लिया।
इस प्रतियोगिता के प्रथम विजेता भोपाल परिसर के अंकुर विजय वर्गीय रहे। द्वितीय स्थान पर पंकज शर्मा पाइनियर इन्स्टीट्यूट नई दिल्ली तथा तृतीय स्थान पर संत राम माखन लाल विश्वविद्यालय नोएडा परिसर के रहे।
प्रथम पुरस्कार के लिए ३००० रूपये एवं द्वितीय पुरस्कार के लिए २००० रूपये तथा तृतीय पुरस्कार के लिए १५०० रूपये प्रदान किया गया तथा साथ में भारतीय प्रेस परिषद की तरफ से प्रशस्ति पत्र प्रदान किया गया।
एक विशेष पुरस्कार पिकीं इयान स्कूल आफ मास कम्युनिकेशन की छात्रा को मिला।
कार्यक्रम के समापन पर एस एन सिन्हा जी के शब्द-
"पत्रकारिता का एक मिशन रहा है, न कि पैसा कमाने का जरिया, परन्तु अब समय बदला आज के युवा पत्रकार अपनी प्रगतिशील सोच एवं विचार धारा से हिन्दी पत्रकारिता को नयी दिशा देगें साथ ही साथ पत्रकारिता के मानदण्ड एवं ऊचाई को बनायें रखगें".
राम जी त्रिपाठी के शब्द-
"हिन्दी पत्रकारिता का एक लम्बा इतिहास रहा है इसने ही ब्रिटिश हुकूमत की जड़ों तक को हिला दिया तथा देश को एक नये आयाम तक ला पहुँचाया".आप के क्या विचार है इस विषय पर? जरूर अवगत करायें।

रिश्ते क्यों टूटते हैं ?


हाथ से हाथ छूटने से , रिश्ते नहीं टूटते ।बात ही बात में, हम नहीं रूठते ।
पर क्यों हो जाती है दूरियाँ इतनी, कि पास होके भी पास नही हो पाते ।

Tuesday, September 18, 2007

राष्ट्र की प्रगति में हिन्दी पत्रकारिता का महत्व

हिन्दी दिवस बीते अभी कुछ ही दिन हुए है । मेरे संस्थान में हिन्दी दिवस पर एक क्रार्यक्रम होना था पर किसी कारण वश यह क्रार्यक्रम आज(१८-९-२००७) सम्पन्न हुआ । माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय के नोएडा परिसर में " राष्ट्र की प्रगति में हिन्दी पत्रकारिता का महत्व" वाद -विवाद प्रतियोगिता हुई। इसमें कुल १२ टीमों ने भाग लिया ।ये टीमें राजधानी के आस पास के सभी मीडिया कालेजों से आयी थी, जो माखन लाल से जुडें हुए है। इस प्रतियोगिता को प्रेस काउन्सिल आफ इण्डिया के सानिध्य से कराया गया। इस प्रतियोगता में तीन प्रतिभागी विजयी रहे।वैसे इस (" राष्ट्र की प्रगति में हिन्दी पत्रकारिता का महत्व) पर ज्यादा वाद -विवाद की आवश्यकता नहीं रही पर सभी प्रतिभागी ने अपनी बात अपने ढ़ग से कही ।वैसे हिन्दी तो हमारी राष्ट्र भाषा १९४९ में बनी परन्तु इसके पहले भी हिन्दी का वर्चस्व पूरे देश मे रहा था । चाहे १८५७ की क्रान्ति हो या फिर स्वतन्त्रता अन्दोलन इन सब में हिन्दी भाषा का महत्व पूर्ण योगदान रहा है। पर यह भी बात उतनी ही सच है कि केवल हिन्दी भाषा ही भारत में नहीं बोली जाती बल्कि अन्य भाषाओं ने भी अपना भरपूर साथ दिया । ये बात जरूर रही कि सम्पूर्ण उत्तर भारत में हिन्दी का बोलबला रहा इस वजह से ये सम्पूर्ण राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करती है। हमारे स्वतन्त्रता स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी चाहे वे माखन लाल चतुर्वेदी हो, या फिर महात्मा गांधी जी, या फिर लाला लाज पत राय जी इत्यादी लोगो नें पत्र , अखबार और जनसमूह में जाकर हिन्दी के माध्यम से जन आन्दोलन कर सके। तो इस लिए भाषा का महत्तव हमेशा रहा है और रहेगा। कुछ लोग आज दूसरी अन्य भाषा के महत्व को बताते है पर हम किसी भाषा के गुलाम क्यों बने ।जब हमारी भाषा ब्रिटिश हुकूमत की जड़ को हिला दिया तो हम भला और की तरफ नजर क्यों डालें ये तो वो करें जिसके पास अपना वजूद नही है। हमारे पास तो इतिहास है। पिछले १५० वर्षों का।वैसे जब देश आजाद हुआ तो देश को विकास के नये रास्ते को ढूढना था और इस काम आसान किया पत्रकारिता ने अपना योगदान करके। इस तरह से पत्रकारिता का अहम योगदान रहा है राष्ट्र की प्रगति में। आप के क्या विचार है इस विषय पर? जरूर अवगत करायें।

Monday, September 17, 2007

प्रात: काल की नव वेला मे


प्रात: काल की नव वेला मे
स्वर्णिम शान्ति का दूत बनू मै।
शान्ति सौहार्द व भाई चारा
सदा रहे सुन्दर वसुन्धरा में॥


न हथियारो से न औजरो से
न द्वेष भावना से शान्ति आयी है।
हिल मिल जुल कर रहने से
इस जग मे प्रेम भावना आयी है॥

Sunday, September 16, 2007

२०-२० विश्व कप


२०-२० विश्व कप की धूम मची है । जहां लोगो का भरपूर मनोरजन हो रहा है, साथ ही साथ समय की भी बचत भी हो रही है जहां पूरे दिन में एक ही मैच हो पाता था अब वही कम से कम तीन मैच आसानी से खेला जा रहा है।इस प्रतियोगिता में कुल १२ टीमें हिस्सा ले रही हैं।इस विश्व कप का पहला मैच काफी रोमाचंक रहा। वेस्टन्डीज के २०७ के जवाब में दक्षिण अफी्का ने उसे आसानी से८ विकेट से रौदां। क्वालीफाइग मुकाबलें में भारत और पाकिस्तान के बीच काटें की टक्कर देखने को मिली और मैच को "बाल आउट" नियम तक जाना पड़ा। इस में भारत ने ३-० से हरा दिया। इसके बाद सबसे बड़ा उलटफेर आस्ट्रेलिया और जिम्बाम्वें के मैच में हुआ । जिम्बाम्बें ने विश्व कप विजेता टीम को हरा दिया । इस प्रथम विश्व कप में रनों का अम्बार सा लग गया है सभी टीमें अपनी जीत के लिए जी जान लगा दे रही हैं । इस प्रतियोगिता में पहला शतक क्रिस गेल ने लगाया ।तथा श्रीलंका ने २०-२० में सबसे अधिक रनों के २२० रनों को तोड़कर २६० का लम्बा स्कोर बनाया । हब तक हुए सभी मुकाबलें में दर्शक ने भर पूर मनोरंजन किया है और आगे भी अच्छे मैच देखने को मिलेगें।वैसे सुपर आठ में पहुची सभी टीमें तीन -२ मैच खेलेगीं, तथा चार सार्वाधिक अंक पाने वाली टीम के बीच सेमी फाइनल मुकाबला होगा।आज हुए भारत और न्यूजीलैण्ड का मैच काफी रोमाचंक रहा पहले खेलते हुए न्यूजीलैण्ड ने १९३ रन बनाये सभी विकेट खोकर तथा जवाब में भारत की टीम नें अपनी पारी में ९ विकेट पर १८० रन ही बना सकी । इस मैच की खासियत सहवाग और गम्भीर की आकर्षक पारी रही जिसका सभी ने खूब आनन्द उठाया।

Saturday, September 15, 2007

तेरे खत का इंतजार


करता हूँ तेरे खत का इंतजार आज भी
उतनी ही बेसब्री से,
जितना की प्यार की पहली सीढी की शुरूआत करते हुए किया करता था।
खत पर लिखी तुम्हारे दिल की एक -२ बात को पढ़कर,
हंसना, मुस्कराना, खिलखिलाना ,
अच्छा लगता था मुझे।
पर
अब नहीं आते है खत तेरे,
शायद डाकिया ही भूल गया है घर मेरा।
आज भी याद है मुझे ,
डाकिये का वो पुकारना -
बाबू जी डाक लाया हूँ,
और मेरा उससे झपट कर जल्दी -२
खत खोल कर सारी बातें एक सांस में पढ़ जाना ,
और फिर उस खत को देर तक निहारना ।
फिर कई बार उसी खत को पढ़ना,
एक -एक लाइनों को कई -२ बार पढ़ना,
न जाने क्या ढूढता था उन लाइनों में,
पता नहीं?
पर अच्छा लगता था,
यूँ पढ़ना और सोच -२ कर खुश हो जाना।
पर
अब ऐसा कुछ नहीं होता।
निहारता हूँ बार - बार उन विरान गलियों को,
न जाने कितनी बार पूछता हूँ उससे -
कि कोई खत तो नही आया है मेरा?
पर वही उत्तर -नहीं
नहीं आया।
फिर वही उदासी लिये इंतजार करता हूँ,
एक नयी सुबह की जिसमें कि उम्मीद होती है , उमंग होती है,
कि शायद आज मैं कामयाब हो जाऊगा। पर
वो आज कब आयेगा पता नहीं ;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;

Friday, September 14, 2007

१४ सितम्बर यानी हिन्दी दिवस


१४ सितम्बर यानी हिन्दी दिवस । वैसे तो मेरा मानना ये रहा है कि किसी भी साहित्य ,भाषा एवं संस्कृति के लिए कोई एक दिन रखा जाय ये पूर्णतः सही नहीं हैं , परन्तु हमारी परम्परा ऐसी रही है तो यह भी मान्य है।हिन्दी दिवस पर जो विचार मेरे मन में आता है वह यह है कि क्या आज हम अपनी राष्ट्रभाषा को किस हद तक प्रयोग करते हैं। और इसके विकास के लिए कितने प्रयत्नशील है? परन्तु यहाँ पर हमें नकारात्मक उत्तर ही मिलता है । हिन्दी दिवस पर ही नहीं हमें तो वर्ष के प्रत्येक दिवस पर इस बात को अपने मष्तिस्क एवं विचार में रखना चाहिए । वैसे यदि मैं स्वयं को ही लूँ तो यह बात सामने आती है कि क्या हम जो भाषा का प्रयोग बोलने में करते हैं वह हिन्दी ही है या कि कुछ और तो जो उत्तर मेरे समक्ष होता है वह है मिली जुली अर्थात खिचड़ी । मैने एक राष्ट्रीय पात्रिका में पढ़ा था ।कि विश्च में सबसे ज्यादा चीनी उसके बाद हिन्दी और फिर अग्रेजी भाषा बोली जाती है। परन्तु जब बात भारतीयों की की जाय तो यहां पर हमें विपरीत दृष्टिकोण देखने को मिलता है। मैने स्वयं यह महसूस किया है कि यदि आप हिन्दी भाषा का प्रयोग करते तो आप को एक पिछ़डे हुए क्षेत्र का व्यक्ति समझा जायेगा , यदि उसी स्थान पर आप यदि कमजोर एवं टूटी फूटी इग्लिश का प्रयोग करते है तो आप को बहुत ही सम्मानित दृष्टि से देखा जाता है । यहाँ पर विचारधारा बदलने की आवश्यकता है क्योंकि हिन्दी एक प्राचीन भाषा के साथ-२ कई भाषा की जननी रही है। मैं यहं पर किसी भाषा का विरोध नहीं कर रहा हूँ पर मेरा उद्देश्य हिन्दी के गिरते स्तर को लेकर है। मुझे गांधी का एक वक्तब्य याद आता है जिसमें उन्होंने कहा था कि " मैं अपनी बात अपनी भाषा में ही कहूंगा , जिसकी गरज होगी वह मेरी बात को सुनेगा"।यहां पर स्पष्ट बात यह रही कि यदि आप की बात प्रभावशाली ,औचित्यपूर्ण और सत्य है। तो उसे सभी लोग सुनेगें चाहे वो किसी भी भाषा की क्यों न हों। इसलिए किसी विदेशी भाषा का गुलाम न बनें।