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Tuesday, December 4, 2007

मारो- मारो- मारो

दूर से आती आवाज मारो-मारो कानों में जब पडी़ तो मन में उत्सुकता बस मैने कमरे से बाहर निकलकर माजरा देखना ही उचित समझा । क्योंकि यदि मैं इस समय उठकर छत पर आकर गूजँती आवाज के दृश्य को न देखता तो दिमाग में ज जाने क्या - क्या प्रश्न उठते । तो मैने छत पर आना उचित समझा । दरवाजा खोल के मैं रेलिगं पर पहुचा और गली में झांककर देखा तो हर घर के दरवाजे सामने पर भीड़ थी । तो लगा कि माजरा कुछ गम्भीर है । ध्यान पूर्वक घरों के सामने खडे लोग गली के उस कोने को देख रहे थे जिस तरफ से आवाज आ रही थी । कुछ देर तक मैं भी छत पर खडा़ होकर देखता रहा । वहां पर कुछ लोगों के हाथों में लाठी और डण्डे देखे तो झगडा़ होने की शंका हुई। और कुछ घबराहट कारण था कि गली के जिस कोने से मारो मारो की आवाज आ रही थी लोग इधर उधर भाग रहे थे। मन में कल्पनाएं तो उत्पन्न होने लगी उसी तरफ घर की एक महिला ने एक पुरूष के हाथ में लाठी दी तो मैंने सोचा जरूर किसी से झगडा़ हो रहा है। पर कुछ ही देर में एक सफेद सांड को गली से भागते हुए देखा तो और दूर से आ रही आवाज करीब आ गई तो समझ में आया कि बात कुछ और ही है । धत तेरी कि खोदा पहाड़ निकला चूहा , यह तो साड़ निकला । फिर भी पूरे मोहल्ले वालों के लिए यह घटना कौतूहल और मनोरंजन का केन्द्र जरूर बन गया। इस घटना को देखकर सभी के चेहरे पर मुस्कान और शंका समाधान । वाह रे भारत एक जान के पीछे इतनी भीड़ ?

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