टी वी चैनलों की दिनों दिन लगातार तीव्रगति से बढोत्तरी हो रही है, जिस वजह से सूचना के क्षेत्र में क्रान्ति आ गयी है ।और रोजगार के अवसर में वृद्धि हो रही है। पत्रकारिता के छात्रों के लिए यह बहुत ही सुखद बात है। और साथ ही साथ आम जनता के लिए भी खुशी की बात है क्योंकि जनता को अब कई विकल्प मिल गया है समाचार एवं जानकारियों को प्राप्त करने के लिए। परन्तु इस भाग दौड़ और प्रतियोगिता के दौर में टी वी वैनलों का अस्तित्व खतरे में है ।और अस्तित्व बचाना मुश्किल हो गया है। क्योंकि सूचना को सही और वास्तविक तौर से प्रस्तुत करना और दर्शकदीर्धा को अपनी ओर आकर्षित करना कोई आसान बात नहीं है। तो इसलिए टीवी चैनलों को सारी बातों को ध्यान में रखकर चलना पड़ता है। परन्तु आजकल के टी वी चैनलों में जो होड़ देखने को मिल रही है वो है स्टिगं आपरेशन की । तथा परदे के पीछे के सत्य को आगे लाने की। पर यहां पर एक बात यह गौर करने की है कि सत्य को सत्यता से हासिल किया जाय तो सही होगा। परन्तु हो क्या रहा है ? पत्रकार अपनी हर तरह की तकनीक का प्रयोग करता है ,नाम पाने के लिए और पैसा कमाने के लिए। जो कि एक गलत संकेत है हमारे लिए। टी आर पी (टेलीविजन रेटिगं प्वाइटं) भी एक बड़ी समस्या है इसके बढा़ने के प्रलोभन में आकर टीवी चैनल गलत हथकड़े अपना रहें है । यहां पर व्यवसायिकता का बोलबाला देखने को मिल रहा है ।अगर बात टीवी चैनल के उद्देश्य की की जाय तो केवल पैसा कमाना ही लक्ष्य नजर आ रहा है। वैसे जीविकोपार्जन करना गलत नहीं है, परन्तु गलत उद्देश्यों को लेकर क्या ये टी वी चैनल अपनी इमारत की नीव को नहीं कमजोर कर रहें है ।जिसका परिणाम यह है कि कभी सरकार तो ,कभी निजी करणों से ही ये टी वी चैनल बंद हो रहें है । वैसे एक सर्वे से पता चला है कि दुनिया में लगभग प्रतिदिन १० चैनल बंद हो जातें है। तो यहां कारण स्पष्ट है आगे बढ़ने की होड़। जो बात ध्यान देने की है कि पत्रकार भी अपने दायित्वों का निर्वहन पूर्ण सत्यता के साथ नहीं करते है। पत्रकार भी टी वी चैनलों के जाल में फंस जाते है और उनके ही बताये रास्ते पर चलते है। और जिस कारण इस स्थिती को पहुँच जाते हैं । यदि बात टी वी चैनलों में प्रसारित होने वाले कार्यक्रम की बात की जाय, तो हम यह पायेंगें कि कुछ चैनल तो इस हद तक नंगेपन को परोशने पर ऊतारू हो गयें है। कि हम परिवार के साथ समाचार चैनलों को नहीं देख सकते है। इस पर टीवी चैनलों की प्रतिक्रया होती है कि " जनता जो मांग करती है ।हम वही दिखाते है " जबकि बात उलटी होती है। ये चैनल जो दिखाते है वही हम देखते है। कुल मिला कर निष्कर्षतः यही बात निकलकर सामने आती है कि इस तरह के चैनलों को प्रतिबन्धित किया जाना चाहिये जो समाज की बुराईयों को और बढा़ रहे हैं और अपने उद्देश्यों से भटक गये हैं।
2 comments:
दबाव की राजनीति और मालिकों की मजबूरी के बीच आज एक पत्रकार मीडिया वॉकर बनकर रह गया है। जब तक उसके भीतर ये बोध और भरोसा पैदा न हो जाए कि पूंजीपतियों के न रहने पर भी मीडिया को चलाया जा सकता है तब तक तो मीडिया खतरे में रहेगी ही।
बढि़या लिखा है,
आज के दौर में मीडिया अपनी उपयोगिता भूलता जा रहा है।
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