जन संदेश

पढ़े हिन्दी, बढ़े हिन्दी, बोले हिन्दी .......राष्ट्रभाषा हिन्दी को बढ़ावा दें। मीडिया व्यूह पर एक सामूहिक प्रयास हिन्दी उत्थान के लिए। मीडिया व्यूह पर आपका स्वागत है । आपको यहां हिन्दी साहित्य कैसा लगा ? आईये हम साथ मिल हिन्दी को बढ़ाये,,,,,, ? हमें जरूर बतायें- संचालक .. हमारा पता है - neeshooalld@gmail.com

Friday, October 5, 2007

बस यात्रा का सच


वैसे तो बहुत से मुददे हैं लिखने को। पर कुछ बातें आप को प्रेरित करती है कि उस पर लिखा जाय तो एक ऐसी ही बात मुझे आज ये कुछ बातें लिखने को मजबूर कर रहीं है। शायद आपके साथ भी कभी हो सकता है अगर आप यात्रा करने में विश्वास करते होगें या फिर मजबूरी में करना पडता है तो आप ध्यान दे इस बात को । वैसे जो बात मैं आप सभी के सामने रखने जा रहा हूँ वो एक आम बात ही है । मैं तो रोज ही लगभग ५ घटें का सफर दिल्ली से नोएडा के लिए करता हूँ। (आने और जाने में) और आज कल मैं हिन्दी का उपन्यास "कितने पाकिस्तान" कमलेश्वरजी का पढ़ रहा हूँ तो सफर आसानी से कट जाता है ।पर आज मेरा कुछ खास पढ़ने का नहीं हुआ तो मैं बस पर बैठे -२ ही बाहर आती जाती सवारियों को निहार रहा था। साथ ही साथ जो पेड़ और बड़ी इमारतें (जो कि मैं रोज ही देखता था) थी उनको भी देखता जा रहा था । समय नहीं कट रहा था तो ऊबन हो रही थी बैठे - बैठे। तभी एक महिला जिसके साथ दो छोटे-छोटे बच्चे थे वो बस पर चढ़ी। और वो महिला सीट की तरफ बढ़ी। जिस सीट की तरफ वो महिला बढी थीं उस पर एक युवा पुरूष बैठे थे । तो महिला ने उन महाशय जो उठने का निवेदन किया तो महाशय ने न उठने का इशारा किया। तो महिला ने दुबारा आग्रह किया और अपने बच्चों को दिखाते हुए अपनी परेशानी को बताने का प्रयास किया ।परन्तु उन महाशय पर कोई असर नहीं हुआ, तो फिर उस महिला ने महापुरूष को बुरी तरह से लताड़ा ।और कहा कि क्या आप को ये नहीं दिख रहा है कि मेरे पास दो बच्चे है और वैसे भी शायद आप ये अच्छे कपडे पहन कर ये सोच रहें है कि आप हो गये एजुकेटेड हैं ।पर आप पहले अपने अन्दर की गन्दगी को साफ करिये ।और लगता है आप के यहाँ मां या बहन नहीं है इसी लिए ये संस्कार नहीं मिला है आप को। और मैं वैसे भी नहीं बठैती पर मेरे पास दो ब्च्चे हैं तो मै आपसे कह रही हूँ। अगर आप महिला है तो बैठिये?अब मामला गरम हो चुका था, ये देखते हुए पीछे बैठे एक महाशय ने अपनी सीट छोड़ कर महिला को बैठने का आग्रह किया ।पर महिला ने कहा कि देखती हूँ कि कैसे नहीं उठते हैं। तभी महिला सीट पर बैसे महाशय ने निर्लज्जता से कहा कि क्या आप मुझको थप्पड़ मारेगी? फिर तो महिला ने एकदम से उन महाशय को धो दिया और फिर वो महिला सही थी तो कुछ लोगों ने महिला का समर्थन किया और महिला सीट पर बैठे पुरूष को आखिर में उठना पड़ा ।और जब तक पुरूष महाशय यात्रा करे वो किसी से नजर नहीं मिला पायें और न जाने कहां पर उतर भी गयें । तो मेरा बस इतना कहना है कि यदि आप कभी महिला सीट पर बैठे तो जब कोई महिला आपके पास आकर खड़ी हो जाये तो आप बिना कुछ कहे ही सीट दें तो अच्छा होगा । क्योंकि हम खड़े हो कर जा सकते है पर महिलाओं को हमसे ज्यादा परेशानी होगी। इसलिए यहां पर शिष्टाचार का परिचय दें।
वैसे भी मेरा ये अनुभव रहा है कि जब हम अपने से बड़े लोगों के सामने सीट पर बैठे रहते तो कुछ अजीब सा लगता है क्योंकि हमारे संस्कार में ही बड़ो को सम्मान देना सिखाया जाता है।यही हमारी संस्कृति है परम्परा हैजिसपर हम गर्व करते है। तो भला कैसे हम ये बात भूल जाते हैं?

No comments: