न तन पर कपडें,
न सर पें छावं,
न खाने की रोटी,
और
न ही रहने की ठावं,
पर जिये जा रहें है,
जीने की उम्मीद लिये हुए?
फिर भी,
कितनी खुशी।
कितनी सन्तुष्टि है ।
क्या इनके भी है कुछ सपने?
क्या इनकी भी है कुछ उम्मीदें ?
शायद हां।
यह भी तो है हममें से ही एक।
मैने देखा-
मिट्टी से सना उसका पूरा शरीर,
रूखे -२, लटियाये बाल।
जस्ते की थाली में बिखॆरे कुछ भात।
और
इधर -उधर भिनभिनाती मक्खियों का झुण्ड।
दिन तो बीत जाता है धूप -छावं के खेल में सड़को पर,
पर जगमगाती रात में भी एक रोशनी की किरण भी नहीं इनके लिए।
क्या दुख नहीं होता है देखकर इनको?
पर साथ ही साथ,
जीवन संघर्ष देखना है तो देखो इनको,
और सीखो,
संघर्ष करना।
न सर पें छावं,
न खाने की रोटी,
और
न ही रहने की ठावं,
पर जिये जा रहें है,
जीने की उम्मीद लिये हुए?
फिर भी,
कितनी खुशी।
कितनी सन्तुष्टि है ।
क्या इनके भी है कुछ सपने?
क्या इनकी भी है कुछ उम्मीदें ?
शायद हां।
यह भी तो है हममें से ही एक।
मैने देखा-
मिट्टी से सना उसका पूरा शरीर,
रूखे -२, लटियाये बाल।
जस्ते की थाली में बिखॆरे कुछ भात।
और
इधर -उधर भिनभिनाती मक्खियों का झुण्ड।
दिन तो बीत जाता है धूप -छावं के खेल में सड़को पर,
पर जगमगाती रात में भी एक रोशनी की किरण भी नहीं इनके लिए।
क्या दुख नहीं होता है देखकर इनको?
पर साथ ही साथ,
जीवन संघर्ष देखना है तो देखो इनको,
और सीखो,
संघर्ष करना।
6 comments:
बहुत सही बंधु!!
सच मे हमें इनसे ज़ीजिविषा तो सीखनी ही पड़ेगी!
जीजिविषा- जब पेट भरा हो तो सामान्यत: आदमी अपने अहम के लिये या अपनी इन्द्रियों की तुष्टि के
लिये मरता है।
लगता है ज़िंदगी के लिये सबसे ज़रूरी चीज़ है आपस
का प्यार; तब भोज़न, वस्त्र और आवास
हाँ प्यार से ज़िंदगी नहीं चलती पर जिससे ज़िंदगी ना चले वो प्यार ही नहीं।
माफ़ कीजियेगा थोडा़ लीक से उतर गया।
जीवन संघर्ष देखना है तो देखो इनको,
और सीखो,
संघर्ष करना।
बहुत सही , आपका लिखा बहुत सच लगा
सत्य वचन.
कितनी सच्चाई है इन शब्दों में ...
बहुत ख़ूब निशू जी.. बड़ा सटीक चित्रण किया है आपकी |कविता पढ़कर स्वयं को "उनका" दर्द महसूस करते पाया | आपकी कविता सीधे अपने लक्ष्य को भेदती है और पाठकों को अपने से अंत तक जोड़े रखती है|
"मैने देखा-
मिट्टी से सना उसका पूरा शरीर,
रूखे -२, लटियाये बाल।
जस्ते की थाली में बिखॆरे कुछ भात।
और
इधर -उधर भिनभिनाती मक्खियों का झुण्ड।
दिन तो बीत जाता है धूप -छावं के खेल में सड़को पर,
पर जगमगाती रात में भी एक रोशनी की किरण भी नहीं इनके लिए। "
अंत भी बड़ा अच्छा बन पड़ा है...
पर साथ ही साथ,
जीवन संघर्ष देखना है तो देखो इनको,
और सीखो,
संघर्ष करना।
सोचने को मज़बूर करने वाली कविता के लिए बधाई
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