देश की समस्याओं और पेशानियों को सामने लाना मीडिया का कर्तव्य होता है और इस कार्य के लिए सबसे अहम भूमिका पत्रकार निभाता है । जब एक साधारण व्यक्ति समाज में फैली बुराईयों को देखता है और फिर उस बुराई के प्रति वह संघर्ष करना चाहता है । तो उस व्यक्ति को माध्यम की आवश्यकता पड़ती है। ऐसे में मीडिया एक सशक्त माध्यम के रूप में होता है और पत्रकार उसका वाहक।
यदि हम स्वतन्त्रता के पहले की बात करें, तो पत्रकारिता नें स्वतन्त्रता आन्दोलनों में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी । स्वतन्त्रता के समय कि जो पत्रकारिता थी वह एक उद्देश्य को लेकर थी । और वह उद्देश्य था भारत की स्वतन्त्रता।
जन जागरण कार्य किया था स्वतन्त्रता प्राप्ति में पत्रकारिता ने । पत्रकार निस्वार्थ भाव से कार्य करते थे । देश की उन्नति, विकास ही लक्ष्य हुआ करता था।
बात स्वतन्त्रता के बाद की पत्रकारिता पर यदि करें तो देश नये-२ आजादी की खुली हवा में सांसे ले रहा था । अब पत्रकारिता ने यहां पर देश के प्रगति में भूमिका निभाई। तथा देश को गावों से जोडा तथा गावों के रहन -सहन की दशा को पूरे देश तक पहुचाया ।
धीरे-धीरे भारत विकास के पथ पर बढ़ रहा था अर्थव्यवस्था, अन्तरराष्टीय मंच एवं युद्धों में पत्रकारिता का बहुत ही अहम योगदान रहा था । यह कहा जा सकता है कि समाज के दर्पण के रूप में थी उस समय की पत्रकारिता ।और पत्रकार भी अपनी बात स्वतन्त्रतापूर्वक रखते थे । तथा समाज कल्याण की भावना से प्रेरित थे।
अब बात विकासशील भारत की जहां पत्रकारिता एक व्यवसाय के रूप में स्थापित हो गयी। पत्रकारिता एवं पत्रकार के उद्देश्य बदल गये, मायने बदल गये। निस्वार्थ भावना की जगह, स्वार्थी भावनाओं ने जगह ले ली।सम्पादक की जगह पर मैनेजर और सामाजिकता की जगह पर भौतिकता की भावना जागृत हो गयी।
आज पत्रकार यदि कुछ अच्छे कार्य भी करना चाहता है, तो उसके ऊपर बैठा मैनेजर पहले उस खबर को आर्थिक नजर से देखकर तब उसको प्रसारित करता है क्योंकि कहीं ऐसा न हो जायेकि उस खबर से उसे आर्थिक हानि न उठानी पड़े । जब इस तरह की भावनाएं होगी तो स्वतन्त्र पत्रकारिता की कल्पना करना व्यर्थ है। और बेचारा पत्रकार भी अपनी रोजी रोटी भला क्यों दावं पर लगाये । वह भी अपने ऊपर हो रहे अत्याचार को खून का घूट पीकर सहन करता है ।कारण बेरोजगारी से अच्छा है यह जीविकोपार्जन। कम से कम दो रोटी तो मिल रही है।
2 comments:
अब तो खबर भी बिकाऊ माल बन गई है। इस चक्कर में यकीनन पत्रकारिता का कोई मूल्य नहीं रह गया है।
पत्रकारिता के उद्देश्य मे भटकाव नही आया है बल्कि पत्रकारों के उद्द्येश्य मे भटकाव आया है. जहा तक ऊपर बैठे आकाओं द्वारा बिघ्न डालने वाली बात है तो ये आका अंग्रेजो से ज्यादा ताकतवर नही है. अब हर पत्रकार के मन मे नौकरी गवाने का डर बैठा रहता है साथ ही ज्यादा कमाने और तरक्की की इक्षा तो होती ही है. पहले के पत्रकारों मे ये डर और लोभ नही होते थे. इसलिए पत्रकारिता नही पत्रकारों के उद्द्येश्य मे भटकाव आया है मित्र.
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