जन संदेश
Friday, March 7, 2008
परीक्छा काभूत
मार्च आते ही बच्चों के चहरे पर चहरे पर एक सिकन सी दिखने लगती है। परीक्छ की टेंशन ैर साथ में ंाता की उम्मीदओं पर खरा उतरने की समस्या साथ ही साथ भविष्य की चिंता। एक साथ अनेक तनाव तनाव तन युवा के मष्तिस्क में आ जाते ह?ैं।
पेपर से पहले यदि किसी छात्रया छात्रा से बात की जाय तो आत्म संतुष्टी वाली बात बहुत हू कम नजर आती है। ऐसे मेंबच्चों के आत्मविश्वास को बढाने में माता-पिता एं बडेँ बुजर्गों को इनका बच्चों का साथ देना चाहिए। और इनकी इच्छा शक्ति को बढाना चाहिए।
फोटो से कुछऐसा हीद्रश्य प्रस्तुत हो रहा है। यह छात्राएं परीक्छ सेकुछ देर तक इस त''रह पढँने में व्यस्त ती कि न जाने क्या-क्या पढँ लें। ये केनद्रीय विद्यालय की छात्राएं है इनसे बात करने पर ऐसा लगा जैसे कि किसी योद्धा को बिना शस्त्र के युद्ध क्ढेत्र में उतार दिया जाय। आखिर क्यों ऐसा होता है? ये छातराएं कयों घबराती है? परीक्ढ के भूत से।
कहीं न कहीं एक बात सामने यही देखने को मिलती है कि पूरे परिवार की इन बच्चों से उम्मीदें हैं जोकि इन्हें एक बोझ के तले दबा देती हें। जिससे ये छात्राएं परेशान रहती हैं। तो यहां ोपर देखने वाली बात यह होगी की इन बच्चों को फ्री छूट देनी चाहिए जिससे आत्म हत्या की घटनाएं कम हो सकें।
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