न कोई मजहब है मेरा
न कोई भगवान है
मैं तो बस इन्सान हूँ
इंसानियत मेरी पहचान है..
न कभी मंदिर गया मैं
न कभी गुरूद्वारे में
मैं तो बस देखता हूँ
सबमें ही भगवान है .
न किसी से इर्ष्या हो
न किसी से बैर हो
मैं तो बस ये चाहता हूँ
सबमें ख़ुशी और प्रेम हो
पढता हूँ मैं खबर
शहर कत्लेआम की
हो दुखी नम आँखों से
क्या खुदा , क्या राम है..
आज मैं मैं कर रहा
कल खाक में मिल जाऊंगा
सांसे टूट जाएगी एक दिन
क्या साथ मेरे जायेगा ...
आओ हम ये दूरी मिटा दें
न कोई हो दुर्भावना
राम पूजे मुसलमान
हिन्दू खुदा के साथ हो
मैं किसी को न कहूँगा
तुम कभी न छोडो धरम
राम , रहमत के नाम पर
तुम मिटा दो फासला ..
8 comments:
bahut achha likha hain
दिल खुश हो गया आपके ब्लॉग पर आकर। शुक्रिया इतनी सुंदर पंक्तियों के लिये।
थोड़ा सा सुधार कर कहते तो और अच्छा होता। जैसे कि -
कहते हैं रहीम जिसे वही राम है
नेकी ही फ़क़त बन्दे का काम है।
बहुत बढिया नीशू जी !!
waqaee!?
great !
bahut khub likha bhiya aapne, man khush ho gaya
bahut achaa likha hai.........maine bhi kabhi issi thought par likha tha.......time mile to padna..... http://sachinjain7882.blogspot...st_11.html
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उम्दा प्रस्तुति...
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