"छिनाल" शब्द का निकलना ही राय साहब को हिंदी साहित्य से जुडी महिलाओं और लेखिकाओं की नजरों में विलेन बना दिया ...लेकिन आज जयादातर लोग जो भी विभूति नारायण जी को गाली और गोली मारना या देना चाह रहें होगें उनको चाहे पूरे मामले के बारे में पूरी जानकारी ही न हो ...खुद को प्रगतिशील समझने वाले बिना बोले रहेगें कैसे ? वरना प्रगतिशीलता पर प्रशन खडा हो जायेगा ?
सभी को अपनी बात कहने का आधिकार है......वो कोई भी हो सकता है ...बिस्तर की बातों को पन्नों पर सजाना ही साहित्य और प्रगतिशीलता की निशानी होता जा रहा है और इसी का विरोध राय साहब ने किया ....अब इसको किस तरह से पेश किया जाता यह देखने वाली बात होगी ...
वी यन राय का साछात्कार नया ज्ञानोदय में आया ... जिस पर केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल का बयान आ गया . उन्होंने कहा है कि अगर टिप्पणी की गई है तो यह संपूर्ण नारी समाज का अपमान है. महिलाओं के खिलाफ ऐसी टिप्पणी उनके सम्मान को आहत करने वाली और मर्यादा के प्रतिकूल है. इस संबंध में आई खबरों का पता लगा रहा हूं. अगर यह सही हुआ तो कार्रवाई होगी....अब क्या करवाई होगी ये तो आने वाला समय ही बताएगा ...?
हिंदी साहित्य जगत में सबसे जायद परेशान हुआ तो वो हैं मैत्रयी पुष्पा जी जिनका कहना है की 'छिनाल', 'वेश्या' जैसे शब्द मर्दों के बनाये हुए हैं, हम इनकों ठेंगे पर रखते हैं....
फिलहाल ब्लॉगजगत की प्रगतिशील महिलाएं ...इस प्रकरण पर कई ब्लॉग पर अपनी बात लिखी है,,देखते हैं वो क्या सोचती हैं और समझती हैं ?....
mukti said:
सही है ये पुरुषों की उस मानसिकता का साक्षात उदाहरण है, जिसमें औरतों को एक शरीर से अधिक कुछ नहीं समझा जाता है. अधिकतर पुरुषों के लिए ये बेहद आम बात है कि तेजी से आगे बढती औरत को नीचा दिखाना हो तो या तो उसकी सुंदरता में कमी निकाल दो, या उसके बारे में ऐसी अश्लील बातें फैला दो कि लोग उसे बस सर्वसुलभ समझ लें. और इन सब से भी कुछ न बने तो उसके व्यक्तिगत जीवन को सरेराह खींच लाओ... और सबको बता दो कि ये औरत या फिर बहुतों के साथ सम्बन्ध बना चुकी है या इस काबिल ही नहीं कि कोई इसके साथ सम्बन्ध बनाए.
ये सोचने की बात है कि यह सब औरतों के लिए ही क्यों? रचनाजी ने सही कहा कि यह सब ब्लॉगजगत में भी हो सकता है. क्योंकि यहाँ भी तो वही मानसिकता है.
ये हमारे समाज का दोगलापन नहीं तो और क्या है? जहाँ गिल जैसे लोगों पर एक महिला आई.ए.एस.अधिकारी द्वारा छेडछाड का आरोप लगाने के बाद भी उसका कुछ नहीं बिगड़ता, चौदह साल की बच्ची के साथ यौन दुर्व्यवहार करने वाला पुलिस अधिकारी हँसते-हँसते कोर्ट से बाहर निकलता है. वहीं यदि एक महिला अपने जीवन के कुछ अनुभव साहित्य में लिख रही है, तो उसके लिए ऐसा शब्द इस्तेमाल किया जा रहा है.
पंकज की बात से सहमत हूँ इस समाज को तहस-नहस किये जाने की ही ज़रूरत है. भले इसके लिए एक पीढ़ी बर्बाद हो जाए, आने वाली पीढियाँ तो इस सड़ान्ध से दूर रहेंगी.
August 02, 2010 3:57 PM
सही है ये पुरुषों की उस मानसिकता का साक्षात उदाहरण है, जिसमें औरतों को एक शरीर से अधिक कुछ नहीं समझा जाता है. अधिकतर पुरुषों के लिए ये बेहद आम बात है कि तेजी से आगे बढती औरत को नीचा दिखाना हो तो या तो उसकी सुंदरता में कमी निकाल दो, या उसके बारे में ऐसी अश्लील बातें फैला दो कि लोग उसे बस सर्वसुलभ समझ लें. और इन सब से भी कुछ न बने तो उसके व्यक्तिगत जीवन को सरेराह खींच लाओ... और सबको बता दो कि ये औरत या फिर बहुतों के साथ सम्बन्ध बना चुकी है या इस काबिल ही नहीं कि कोई इसके साथ सम्बन्ध बनाए.
ये सोचने की बात है कि यह सब औरतों के लिए ही क्यों? रचनाजी ने सही कहा कि यह सब ब्लॉगजगत में भी हो सकता है. क्योंकि यहाँ भी तो वही मानसिकता है.
ये हमारे समाज का दोगलापन नहीं तो और क्या है? जहाँ गिल जैसे लोगों पर एक महिला आई.ए.एस.अधिकारी द्वारा छेडछाड का आरोप लगाने के बाद भी उसका कुछ नहीं बिगड़ता, चौदह साल की बच्ची के साथ यौन दुर्व्यवहार करने वाला पुलिस अधिकारी हँसते-हँसते कोर्ट से बाहर निकलता है. वहीं यदि एक महिला अपने जीवन के कुछ अनुभव साहित्य में लिख रही है, तो उसके लिए ऐसा शब्द इस्तेमाल किया जा रहा है.
पंकज की बात से सहमत हूँ इस समाज को तहस-नहस किये जाने की ही ज़रूरत है. भले इसके लिए एक पीढ़ी बर्बाद हो जाए, आने वाली पीढियाँ तो इस सड़ान्ध से दूर रहेंगी.
August 02, 2010 3:57 PM
वाणी गीत said:
आदमी की सोच का दायरा अभी भी जिस्म ही है...दुखद सच्चाई है
रचना जी की चिंता भी कुछ हद तक सही है ...यह आंच उड़ते उड़ते ब्लॉग तक भी आएगी ही ...!
आदमी की सोच का दायरा अभी भी जिस्म ही है...दुखद सच्चाई है
रचना जी की चिंता भी कुछ हद तक सही है ...यह आंच उड़ते उड़ते ब्लॉग तक भी आएगी ही ...!
संगीता स्वरुप ( गीत ) said:
किसी की सोच का दायरा जितना है उससे आगे कैसे सोच सकता है ....शर्म आती है ऐसी पुरुष मानसिकता पर .....
किसी की सोच का दायरा जितना है उससे आगे कैसे सोच सकता है ....शर्म आती है ऐसी पुरुष मानसिकता पर .....
रचना said:
अब आप ने पूछा हैं क्या सोचते हैं हम श्री विभूति नारायण के "छिनालपने" पर { कल बहस के दौरान उन्होने यही कहा हैं कि छिनाल परवर्ती हैं जो पुरुषो मे ख़ास कर पूरब के पाई जाती हैं ।
जल्दी ही ब्लॉग लिखती महिला पर वक्तव्य आ जायेगा क्युकी अगली ब्लॉग प्रयोग शाला इनके सौजन्य से ही करवायी जायेगी । ब्लॉग लिखती कोई ना कोई महिला तो उस दयास पर खड़ी होगी ही जहाँ ये प्रयोग शाला होगी अब वो वहाँ तक कैसे पहुची ये शायद वो नहीं बता पायेगी हां कोई ना कोई आयोजक जरुर बता सकेगा ।
अब आप ने पूछा हैं क्या सोचते हैं हम श्री विभूति नारायण के "छिनालपने" पर { कल बहस के दौरान उन्होने यही कहा हैं कि छिनाल परवर्ती हैं जो पुरुषो मे ख़ास कर पूरब के पाई जाती हैं ।
जल्दी ही ब्लॉग लिखती महिला पर वक्तव्य आ जायेगा क्युकी अगली ब्लॉग प्रयोग शाला इनके सौजन्य से ही करवायी जायेगी । ब्लॉग लिखती कोई ना कोई महिला तो उस दयास पर खड़ी होगी ही जहाँ ये प्रयोग शाला होगी अब वो वहाँ तक कैसे पहुची ये शायद वो नहीं बता पायेगी हां कोई ना कोई आयोजक जरुर बता सकेगा ।
अल्पना वर्मा said:
वी एन राय उस दोगले और कुंठित समाज के प्रतिनिधि हैं जिनके सोचने का दायरा संकुचित ही रहेगा,जिस्म से आगे ये अपने किसी विचार को बढ़ने ही नहीं देते .एक महिला अगर समाज का घिनौना सच सामने लाती है तो उसे छिनाल कहा जाता है.जो उसे ऐसा करने पर बाध्य करते हैं /जबरदस्ती करते हैं ,उन पुरुषों को क्या नाम देंगे?
थोडा भी बोल्ड लिखने वाली महिला या खुद पर हो रहे जुल्मों के खिलाफ आवाज़ उठाने वाली महिला पर इसी समाज की उँगलियाँ भी बहुत जल्दी उठने लगती हैं.
इनकी सोच में बदलाव न जाने कब आएगा.
वी एन राय उस दोगले और कुंठित समाज के प्रतिनिधि हैं जिनके सोचने का दायरा संकुचित ही रहेगा,जिस्म से आगे ये अपने किसी विचार को बढ़ने ही नहीं देते .एक महिला अगर समाज का घिनौना सच सामने लाती है तो उसे छिनाल कहा जाता है.जो उसे ऐसा करने पर बाध्य करते हैं /जबरदस्ती करते हैं ,उन पुरुषों को क्या नाम देंगे?
थोडा भी बोल्ड लिखने वाली महिला या खुद पर हो रहे जुल्मों के खिलाफ आवाज़ उठाने वाली महिला पर इसी समाज की उँगलियाँ भी बहुत जल्दी उठने लगती हैं.
इनकी सोच में बदलाव न जाने कब आएगा.
संगीता स्वरुप ( गीत ) said...
बहुत संयमित हो कर आपने इस विषय पर लिखा है....
बहुत संयमित हो कर आपने इस विषय पर लिखा है....
अब छिनाल शब्द का अर्थ अपनी दृष्टि से कुछ भी लगाएं पर शब्दकोष में तो इसका अर्थ वैश्या या व्यभिचारिणी ही है...और ऐसे शब्दों के प्रयोग पर आपत्ति उठना स्वाभाविक है ..
3 August 2010 11:41
3 August 2010 11:41
वाणी गीत said...
कई बार पढ़ा आपके इस लेख को ...
औरतें भी वही गलतियाँ कर रही हैं जो पुरुषों ने कीं...देह से परे भी ऐसा बहुत कुछ घटता है जो हमारे जीवन को अधिक सुन्दर और जीने योग्य बनाता है।"...
पुरुषों की गलती को मानते हुए स्त्रियों से इसे नहीं अपनाने की अपील ही लगी इसमें ...
लेकिन छिनाल शब्द का अर्थ जो भी हो , किसी भी स्त्री के लिए इसका प्रयोग तो अनुचित ही माना जाएगा ...
आपने पूरे वाकये को संतुलित और निरपेक्ष होकर समझाने की कोशिश की है मगर ...
लेख के शीर्षक पर मुझे आपत्ति है...शीर्षक के लिए सभ्य भाषा का प्रयोग किया जाता तो इसकी उपयोगिता बढती ...!
3 August 2010 13:14
कई बार पढ़ा आपके इस लेख को ...
औरतें भी वही गलतियाँ कर रही हैं जो पुरुषों ने कीं...देह से परे भी ऐसा बहुत कुछ घटता है जो हमारे जीवन को अधिक सुन्दर और जीने योग्य बनाता है।"...
पुरुषों की गलती को मानते हुए स्त्रियों से इसे नहीं अपनाने की अपील ही लगी इसमें ...
लेकिन छिनाल शब्द का अर्थ जो भी हो , किसी भी स्त्री के लिए इसका प्रयोग तो अनुचित ही माना जाएगा ...
आपने पूरे वाकये को संतुलित और निरपेक्ष होकर समझाने की कोशिश की है मगर ...
लेख के शीर्षक पर मुझे आपत्ति है...शीर्षक के लिए सभ्य भाषा का प्रयोग किया जाता तो इसकी उपयोगिता बढती ...!
3 August 2010 13:14
Akanksha~आकांक्षा said...
छिनाल शब्द का प्रयोग...कहीं से उचित नहीं. दुर्भाग्य से जब तथाकथित साहित्यकारों की दुकान उठने लगती है तो वे ऐसे ही शब्दों का प्रयोग कर चर्चा में आना चाहते हैं...
3 August 2010 14:07
छिनाल शब्द का प्रयोग...कहीं से उचित नहीं. दुर्भाग्य से जब तथाकथित साहित्यकारों की दुकान उठने लगती है तो वे ऐसे ही शब्दों का प्रयोग कर चर्चा में आना चाहते हैं...
3 August 2010 14:07
रंजना said...
किसी व्यक्ति/हस्ती ने ऐसा कुछ कहा ,जो कि कहीं से भी कुछ सकारात्मक प्रभाव छोड़ने लायक न हो...तो मेरे समझ से उस प्रसंग को ही छोड़ देना चाहिए...मटिया देना चाहिए...नहीं तो नीचे उतरने की कोई हद नहीं है....
ऐसी बातों को टूल दे हम बस वहीँ करेंगे जो आज के न्यूज चैनल कर रहे हैं...अश्लीलता का बाजार ज्यादा बड़ा और व्यापक हुआ करता है सदा ही...अच्छा कुछ करने में बड़ी मेहनत जो लगती है,सो कोई इसमें जुटना नहीं चाहता.....
3 August 2010 19:07
किसी व्यक्ति/हस्ती ने ऐसा कुछ कहा ,जो कि कहीं से भी कुछ सकारात्मक प्रभाव छोड़ने लायक न हो...तो मेरे समझ से उस प्रसंग को ही छोड़ देना चाहिए...मटिया देना चाहिए...नहीं तो नीचे उतरने की कोई हद नहीं है....
ऐसी बातों को टूल दे हम बस वहीँ करेंगे जो आज के न्यूज चैनल कर रहे हैं...अश्लीलता का बाजार ज्यादा बड़ा और व्यापक हुआ करता है सदा ही...अच्छा कुछ करने में बड़ी मेहनत जो लगती है,सो कोई इसमें जुटना नहीं चाहता.....
3 August 2010 19:07
mukti said...
आपने जहाँ तक हो सकता है, तठस्थ रहकर यह लेख लिखा है....वी.एन. राय को मैंने इलाहाबाद में सुना है और मुझे उनके विचार उस समय अच्छे लगे थे. वे वामपंथी हैं या नहीं, नहीं जानती.जहाँ तक बात इस स्टेटमेंट की है " दरअसल इससे स्त्री मुक्ति के बड़े मुद्दे पीछे चले गए हैं .........औरतें भी वही गलतियाँ कर रही हैं जो पुरुषों ने कीं। देह का विमर्श करने वाली स्त्रियाँ भी आस्था, प्रेम और आकर्षण के खूबसूरत सम्बन्ध को शरीर तक केन्द्रित कर रचनात्मकता की उस सम्भावना को बाधित कर रही हैं जिसके त...हत देह से परे भी ऐसा बहुत कुछ घटता है जो हमारे जीवन को अधिक सुन्दर और जीने योग्य बनाता है।"
मैं सहमत हूँ, पर फिर भी औरतों के लिए ऐसी भाषा के सख्त खिलाफ हूँ, चाहे वह दक्षिणपंथी हो या वामपंथी.इस तरह की भाषा ही औरतों को सिर्फ एक आब्जेक्ट के रूप में प्रस्तुत करती है, जिसके बारे में कोई भी अपने विचार प्रस्तुत कर सकता है, उसके लिए आदर्श की स्थापना कर सकता है और ये अपेक्षा करता है कि औरतें उसी पर चलें. मैं ये कहती हूँ कि अगर औरतें ऐसी बातें लिख भी रही हैं, तो समय उन्हें देखेगा. आप कौन होते हैं कहने वाले?
और ये जो आपने प्रगतिशील और नारीवादी आंदोलन के अंतर्विरोधों की बात कर रहे हैं, ये मुद्दा खुद नारीवाद के समक्ष एक बहुत बड़े विमर्श का मुद्दा रहा है. नारीवादियों ने वामपंथी दलों में ही औरतों को उचित प्रतिनिधित्व ना प्रदान करने के लिए समय-समय पर प्रश्न उठाया है.
इन सारी बातों में मुझे दुःख इस बात का होता है कि नारीवाद की सबसे अधिक आलोचना वे करते हैं, जिन्हें उसकी बारहखड़ी तक नहीं आती.
3 August 2010 02:19
आपने जहाँ तक हो सकता है, तठस्थ रहकर यह लेख लिखा है....वी.एन. राय को मैंने इलाहाबाद में सुना है और मुझे उनके विचार उस समय अच्छे लगे थे. वे वामपंथी हैं या नहीं, नहीं जानती.जहाँ तक बात इस स्टेटमेंट की है " दरअसल इससे स्त्री मुक्ति के बड़े मुद्दे पीछे चले गए हैं .........औरतें भी वही गलतियाँ कर रही हैं जो पुरुषों ने कीं। देह का विमर्श करने वाली स्त्रियाँ भी आस्था, प्रेम और आकर्षण के खूबसूरत सम्बन्ध को शरीर तक केन्द्रित कर रचनात्मकता की उस सम्भावना को बाधित कर रही हैं जिसके त...हत देह से परे भी ऐसा बहुत कुछ घटता है जो हमारे जीवन को अधिक सुन्दर और जीने योग्य बनाता है।"
मैं सहमत हूँ, पर फिर भी औरतों के लिए ऐसी भाषा के सख्त खिलाफ हूँ, चाहे वह दक्षिणपंथी हो या वामपंथी.इस तरह की भाषा ही औरतों को सिर्फ एक आब्जेक्ट के रूप में प्रस्तुत करती है, जिसके बारे में कोई भी अपने विचार प्रस्तुत कर सकता है, उसके लिए आदर्श की स्थापना कर सकता है और ये अपेक्षा करता है कि औरतें उसी पर चलें. मैं ये कहती हूँ कि अगर औरतें ऐसी बातें लिख भी रही हैं, तो समय उन्हें देखेगा. आप कौन होते हैं कहने वाले?
और ये जो आपने प्रगतिशील और नारीवादी आंदोलन के अंतर्विरोधों की बात कर रहे हैं, ये मुद्दा खुद नारीवाद के समक्ष एक बहुत बड़े विमर्श का मुद्दा रहा है. नारीवादियों ने वामपंथी दलों में ही औरतों को उचित प्रतिनिधित्व ना प्रदान करने के लिए समय-समय पर प्रश्न उठाया है.
इन सारी बातों में मुझे दुःख इस बात का होता है कि नारीवाद की सबसे अधिक आलोचना वे करते हैं, जिन्हें उसकी बारहखड़ी तक नहीं आती.
3 August 2010 02:19
2 comments:
चर्चा अच्छी है पर महिलाओं के दिमाग में नहीं जायेगी. कारण वे हर बात के लिए पुरुष को दोष देने में यकीन करतीं है. बाढ़ में, तूफ़ान में, ट्रेन हादसे में, बम विस्फोट में अथवा किसी भी हादसे में महिलाओं का मरना भी पुरुष की महिलाओं के प्रति संकीर्ण और देहवादी सोच के कारण है.
महिलाओं को यदि महिलाओं की देहवादी सोच देखनी है तो महिलाओं का लिखा साहित्य पढ़ें. मैत्रेयी पुष्पा, प्रभा खेतान, उषा प्रियंवदा, अनामिका, क्षमा शर्मा, गीतांजलि श्री आदि नई लेखिकाओं के अलावा महिलाओं की पसंदीदा कृष्णा सोबती को भी पढ़ लें................
शेष अब साहित्य में इस तरह के शब्दों की बहार है.......माँ, बहिन की गलियां तो आम हो गईं है......
जय हिन्द, जय बुन्देलखण्ड
दो कौड़ी के आदमी की शब्द भी दौ कौड़ी के ही होगें, ऐसे व्यक्ति से अपेक्षा ही क्या की जा सकती है।
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