दिल्ली उन मेट्रों सिटी में शुमार की जाती है जहां नाइट लाइफ भी एक अहम हिस्सा है जिंदगी का। हाल ही में एक महिला पत्रकार की हत्या ने तमाम सवालों को जन्म दिया है । देर रात तक काम करके महिलाएं अपने घर आती है । और रास्ते में उनके साथ कोई घटना घटित हो तो ऐसे क्या दिल्ली की महिलाएं जान हथेली पर लिए अपनी जीविका कैसे चला पायेगीं ? दूसरा प्रश्न यह आता है कि आज कई ऐसे प्रोफेशन है ( मीडिया , बीपीओ )जहां पर देर रात तक काम करना मजबूरी है तो ऐसे में महिलाओं की सुरक्षा का जिम्मेदार कौन होगा ? वैसे दिल्ली जैसे शहरों की अपनी नाइट लाइफ भी है। मेट्रों ने इस तरह के कामों में इजाफा भी किया है । पर लोगों को रात में सुरक्षा दे पाने में पुलिस प्रशासन की नाकामी सब पर बुरा असर डाल रही है । पुलिस की अपराध पर काबू पाने के लिए जरूरी कि वह हर जगह मौजूद न हो पर उसकी छवि ऐसी होनी चाहिए कि वह अपराधियों को हर हाल में पकड़ सके।
कहने को तो प्रशासन का कहना है कि उसके पास मुहैया कराये गये संसाधन पूर्ण नहीं है । एक तरफ तो पुलिस का मानना है कि वह रात को गश्त करती है अगर यह सही है, तो यह हादसे कैसे हो रहें है? कहीं पर पुलिस ने यह कह कर छुटकारा पाया कि हमारे पास सीसी टी वी कैमरा नहीं है । और लड़कियों को खुद ही अपनी सुरक्षा के बारे में सोचना चाहिए। ऐसे तरह के बयान दिल्ली की महिलाओं में कहीं न कहीं दहशत फैला रहें है । पर मजबूर लोग तो अपनी रोजी रोटी तो नहीं छोड़ सकते हैं । ऐसे हादसे होते रहेगें और पुलिस तथा सरकार हाथ पर हाथ रखे रहेगी।
कहने को तो प्रशासन का कहना है कि उसके पास मुहैया कराये गये संसाधन पूर्ण नहीं है । एक तरफ तो पुलिस का मानना है कि वह रात को गश्त करती है अगर यह सही है, तो यह हादसे कैसे हो रहें है? कहीं पर पुलिस ने यह कह कर छुटकारा पाया कि हमारे पास सीसी टी वी कैमरा नहीं है । और लड़कियों को खुद ही अपनी सुरक्षा के बारे में सोचना चाहिए। ऐसे तरह के बयान दिल्ली की महिलाओं में कहीं न कहीं दहशत फैला रहें है । पर मजबूर लोग तो अपनी रोजी रोटी तो नहीं छोड़ सकते हैं । ऐसे हादसे होते रहेगें और पुलिस तथा सरकार हाथ पर हाथ रखे रहेगी।
2 comments:
sahi baat kahi hai,majboor log apni roji roti ka kya karien,khud ki suraksha kar bhi le,ya police karein,magar ye hadse hote hi kun hai? suraksha ke saath en hadson par kaise rok lagayi jaye?
चिन्ताजनक स्थितियाँ हैं.
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