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Thursday, October 16, 2008

चौथी बार आया बुकर भारत में - अरविंद अडिगा के उपन्यास " द वाइट टाइगर " को


ब्लागर समूह जब किसी चर्चा के पीछे पड़ता है जो भी चिट्ठों की भीड़ सी हो जाती है । मैंने बहुत ब्लाग देखे कि कुछ इस बारे (बुकर पुरस्कार से संबधित ) पर निराशा ही हाथ लगी । कहीं कोई चर्चा नहीं । दुख हुआ तो सोचा कि मैं ही कुछ थोड़ा बहुत प्रयास करता हूँ ।
भारतीय साहित्य ने हमेशा से अपना दबदबा कायम रखा है विश्व जगत में । चाहे वो हमारे रामायण की बात हो या फिर हमारे वेदों की । साहित्य में बहुत कुछ है । जीवन में बदलाव और कुछ नया सीखने के लिए तथा जीवन को सुखमय और आनन्दमय बनाने के लिए । हिन्दी साहित्य की बात से कई महान कवियों और लेखकों की तस्वीर आखों के सामने घूम जाती है जिन्होनें हिन्दी साहित्य में अपना अहम योहदान दिया है । पर एक बात ये भी सत्य है कि धीरे- धीरे हिन्दी साहित्य के लेखम और पाठक कम हुए है । हिन्दी में एक कमी है कि वह विश्व स्तर पर पुरस्कार की दौड़ में अन्य से पीछे रह जाता है ।
अरविंद अडिगा को ' द वाइट टाइगर ' के लिए २००८ का बुकर पुरस्कार दिया गया है । हनका यह पहला उपन्यास है । चैन्नै के जन्में इस युवा की यह रच्ना पूरे देश के स्याह पहलू पर रची हई है । यह उपन्यास दिल्ली से बहुत हद तक जुड़ा हुआ है । अरविंद ने इसे दिल्ली वासियों को समर्पित किया है ।द वाइट टाइगर सपनों को हकीकत में बदलने की जद्दोजहद की कहानी है ।
मुम्बई में रहने वाले अरविंद मैन बुकर पाने वाले चौथे भारतीय है । इसके पहले सलामान रूश्दी , अंरूधती रायकिरन देसाई और अब अरविंद अडिगा । यह ऐसे तीसरे लेखक है जिनका पहला उपन्यास पुरस्कार जीता है । अरविंद अडिगा से हमें प्रेणा मिलती साहित्य को बढ़ावा देने की । हमारे देश का नाम रोशन किया है इस उपन्यास ने । अरविंद जी को बधाई ।

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