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Sunday, September 7, 2008

अफसाने तेरे- गजल

बंद पलकें दीदार करती हैं हुस्न का तेरे।
खामोश लब इकरार करते हैं प्यार का तेरे।।

रास्ते चुप होकर गुजरते हैं घर से तेरे।
क्यों अब दूर नजर आते हैं अफसाने तेरे।।

वक्त ने दिल को बना दिया पत्थर तेरे।
हो जाये अभी खत्म फसाने तेरे।।

फिर लोग लगाते हैं क्यों तोहमत इश्क का तेरे।
भरी महफिल में हम भी सर झुकाये मुकर जाते हैं नाम से तेरे।।

न था मिलना हमको ए-संगदिल मेरे।
भूलकर भी कभी दिल से न जाना मेरे।।

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