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Friday, September 12, 2008

वो चेहरा अपना सा लगता है

वो चेहरा अपना सा लगता है,
शांत आखें कुछ कहती हैं,
चंचल मन मचलता है
दिल में हलचल सी होती है,
फिर क्यों?
वो कुछ कहती नहीं ।
क्यों देखती है वो नजरें बचाकर,
क्यों हंसती है वो हमसे चुराकर,
क्यों चुप सी रहती है वो हमको देखकर,
पर
फिर भी होता है हमारा मेल।
आखिर ऐसा क्यों होता है?
कुछ न कहना भी लगता है
कहने से अच्छा,
न मिलना भी लगता है
मिलने से अच्छा,
समझते हैं हम एक दूसरे को,
शायद
इसीलिए वो चेहरा अपना सा लगता है।

1 comment:

rakhshanda said...

फिर भी होता है हमारा मेल।
आखिर ऐसा क्यों होता है?
कुछ न कहना भी लगता है
कहने से अच्छा,
न मिलना भी लगता है
मिलने से अच्छा,
समझते हैं हम एक दूसरे को,
शायद
इसीलिए वो चेहरा अपना सा लगता है।

सुंदर...