जन संदेश

पढ़े हिन्दी, बढ़े हिन्दी, बोले हिन्दी .......राष्ट्रभाषा हिन्दी को बढ़ावा दें। मीडिया व्यूह पर एक सामूहिक प्रयास हिन्दी उत्थान के लिए। मीडिया व्यूह पर आपका स्वागत है । आपको यहां हिन्दी साहित्य कैसा लगा ? आईये हम साथ मिल हिन्दी को बढ़ाये,,,,,, ? हमें जरूर बतायें- संचालक .. हमारा पता है - neeshooalld@gmail.com

Tuesday, September 30, 2008

मेरा काव्य -"सब कुछ कितना बदल गया "


सब कुछ कितना बदल गया
जो तुम नहीं हो ,
ये हवायें क्यों चलती नहीं
ये घटायें क्यों बरसती नहीं
ये मौसम क्यों बदलता नहीं
ये आसमां क्यों बरसता नहीं
बंद कलियां क्यों नाराज हैं
फूल भी क्यों उदास है
शाम क्यों गुमशुम ढ़लती है
सूरज क्यों चुपचाप निकलता है
चिड़िया क्यों चहकती नहीं
रास्ते क्यों साथ चलते नहीं
क्या
शायद इनको भी पता है कि
तुम नहीं हो।

2 comments:

अविनाश वाचस्पति said...

जैसे दिल्‍ली बमों की राजधानी बन गई है
अगर यही बदलाव है तो हम नहीं बदलना चाहते।

Udan Tashtari said...

बहुत सुन्दर.