सब कुछ कितना बदल गया
जो तुम नहीं हो ,
ये हवायें क्यों चलती नहीं
ये घटायें क्यों बरसती नहीं
ये मौसम क्यों बदलता नहीं
ये आसमां क्यों बरसता नहीं
बंद कलियां क्यों नाराज हैं
फूल भी क्यों उदास है
शाम क्यों गुमशुम ढ़लती है
सूरज क्यों चुपचाप निकलता है
चिड़िया क्यों चहकती नहीं
रास्ते क्यों साथ चलते नहीं
क्या
शायद इनको भी पता है कि
तुम नहीं हो।
जो तुम नहीं हो ,
ये हवायें क्यों चलती नहीं
ये घटायें क्यों बरसती नहीं
ये मौसम क्यों बदलता नहीं
ये आसमां क्यों बरसता नहीं
बंद कलियां क्यों नाराज हैं
फूल भी क्यों उदास है
शाम क्यों गुमशुम ढ़लती है
सूरज क्यों चुपचाप निकलता है
चिड़िया क्यों चहकती नहीं
रास्ते क्यों साथ चलते नहीं
क्या
शायद इनको भी पता है कि
तुम नहीं हो।
2 comments:
जैसे दिल्ली बमों की राजधानी बन गई है
अगर यही बदलाव है तो हम नहीं बदलना चाहते।
बहुत सुन्दर.
Post a Comment