दिल्ली बम धमाके को कई दिन गुजर चुके हैं , लोगों का जीवन फिर से अपनी रफ्तार पकड़ रहा है , इन हादसों में बहुत कुछ तबाह हो गया। कई जिंदगी बेकार हुई और कई जिंदगी की रोजी रोटी खत्म हो हई,किसी ने बाप खोया और किसी ने भाई , किसी ने पति और किसी ने अपना बेटा, तो किसी ने मां। दुख के सिवा हमारे पास और कोई लाचारी नहीं । सरकार ने एक मौत की कीमत पांच लाख रखी,
जो हादसे से गुजरे है आज उनकी दुनिया में सिवाय एक टीस के आलावा और कुछ नजर नहीं आ रहा है । सरकार अपना काम कर रही है और आतंकवादी अपना। पर जिसके परिवार का सहारा इस दुनिया से चला गया भला उसका काम कैसे चले।
रास्ते पर भला कैसे लौटे ये जिंदगी इस सवाल का जवाब किसी के पास नहीं है । आम दिल्ली वासी बम धमाके के बाद से सिहर सा गया है चेहरे पर एक डर सा दिखता है , हर जगह पर चर्चा का महौल है। कोई भी आज खुद को सुरक्षित नहीं मान रहा है।रोजी-रोटी के लिए लाखों लोग अपना घर परिवार छोड़ यहां आये है एक उम्मीद से कि शायद यहां पर जीवन को सही रास्ता मिल सके। पर रास्ता तो नहीं मंजिल जरूर मिली वो भी मौत की,
जिम्मेदारी कोई नहीं लेता है चाहे वह प्रशासन हो या सरकार । आखिर कब तक मरते रहेगें ये निर्दोष और क्या होगी इनके जान की कीमत । सवाल के जवाब ही नहीं है जान की कीमत ।सोते रहो तो हम जगा सकते है तुमतो पर जब जग ही रहे हो तो कैसे जागोगे। आखूं खत्म हो चुके है आखों से , आवाज ही नहीं निकलती है जुबां से।आशा की कोई उम्मीद ही नहीं , जिये तो जिये कैसे और किसके सहारे।
जो हादसे से गुजरे है आज उनकी दुनिया में सिवाय एक टीस के आलावा और कुछ नजर नहीं आ रहा है । सरकार अपना काम कर रही है और आतंकवादी अपना। पर जिसके परिवार का सहारा इस दुनिया से चला गया भला उसका काम कैसे चले।
रास्ते पर भला कैसे लौटे ये जिंदगी इस सवाल का जवाब किसी के पास नहीं है । आम दिल्ली वासी बम धमाके के बाद से सिहर सा गया है चेहरे पर एक डर सा दिखता है , हर जगह पर चर्चा का महौल है। कोई भी आज खुद को सुरक्षित नहीं मान रहा है।रोजी-रोटी के लिए लाखों लोग अपना घर परिवार छोड़ यहां आये है एक उम्मीद से कि शायद यहां पर जीवन को सही रास्ता मिल सके। पर रास्ता तो नहीं मंजिल जरूर मिली वो भी मौत की,
जिम्मेदारी कोई नहीं लेता है चाहे वह प्रशासन हो या सरकार । आखिर कब तक मरते रहेगें ये निर्दोष और क्या होगी इनके जान की कीमत । सवाल के जवाब ही नहीं है जान की कीमत ।सोते रहो तो हम जगा सकते है तुमतो पर जब जग ही रहे हो तो कैसे जागोगे। आखूं खत्म हो चुके है आखों से , आवाज ही नहीं निकलती है जुबां से।आशा की कोई उम्मीद ही नहीं , जिये तो जिये कैसे और किसके सहारे।
2 comments:
हौसला बनाये रखें..
यह एक गम्भीर समस्या है।
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