समाज में आज बदलाव तेजी से हो रहा है इस तेजी का प्रभाव हम सभी के ऊपर पड़ रहा है। कुछ अच्छा तो कुछ बुरा भी। समाज के इस बदलाव को विकास की रफ्तार से जोड़ कर देखा जाता है। हमारे रिश्तों के बीच में कुछ न कुछ दूरियां बढ़ी है । चाहे बात माता-पिता की करे या फिर बाप बेटे की या फिर पति पत्नी की। आज की भागदौड़ में इतना समय नहीं मिल पा रहा है कि हम एक दूसरे के दुख दर्द को सुन सके या फिर कुछ समय बैठकर प्यार से दो बातें कर सके। बदलते भारत के साथ ही साथ टूटते रिश्ते और खोती हुई हमारी संस्कृति से होता सामाजिक बदलाव
यह भागमभाग कहीं तो विकास को जरूर तेजी प्रदान कर रही लेकिन कहीं न कहीं हमारे समाज को एकांगी स्वरूप भी दे रही है। एक बच्चा क्या चाहता है? वह यही चाहेगा कि उसके मा-बाप उससे बात करें ,प्यार करें और समय दें जो कि नहीं हो रहा है। कहीं न कहीं आज के मेट्रो सिटी के बच्चे का बचपन सिर्फ चहरदीवारी के बीच घुट कर रहा गया है। (हमारे समाज में सबसे बड़ी बुरायी यही है कि जो सबसे घनवान है उसे ही सम्मानित नजर से देखा जाता है।) बच्चे को न तो संस्कार मिलता है न प्यार । जोकि एक सभ्य समाज के लिए बेहद जरूरी है। कहीं हम ये भूल करते है कि पैसे को ही सब कुछ समझने लगते है।
भारत में चलन था सामूहिक फैमिली का जो कि अब टूट चुका है । लोगों का एक साथ रहना एकता, भाईचारे और प्रेम का सूचक था ।पर हमने अपने को परिवार से अलग कर एक नयी शुरूआत की कुछ अच्छे परिणाम को सोच कर पर आकड़े तो यही बताते है कि ज्यादातर लोग जो अकेले रह रहें हैं वो खुश नहीं है जब कि उनके पास भौतिक सुविधाएं उपलब्ध है। जीवन एक मशीन जैसा हो गया है सुबह घर से आफिस और रात को घर यही जिंदगी हो गई।
किसी के पास समय नहीं किसी के लिए। आखिर टूटते रिश्ते क्या समाज को एक अच्छा भविष्य दे पायेगें। और इन रिश्तों का बुरा प्रभाव हम सभी के लिए भयानक होगा।
हम आगे जरूर बढे और देशहित और खुद के लिए भी अच्छा करें पर परिवार को साथ रखकर । रिश्तों में कटुता न आये इसके लिए प्रयास करें । मां , बाप ,भाई-बहन,पत्नी तथा बच्चों का ख्याल रखें और अपने आप में बदलाव लायें।जिससे एक अच्छे भारत की कल्पना को सार्थक रूप दिया जा सके। और साथ साथ हमारे संस्कार और संस्कृति का भी बचाव हो सके।
यह भागमभाग कहीं तो विकास को जरूर तेजी प्रदान कर रही लेकिन कहीं न कहीं हमारे समाज को एकांगी स्वरूप भी दे रही है। एक बच्चा क्या चाहता है? वह यही चाहेगा कि उसके मा-बाप उससे बात करें ,प्यार करें और समय दें जो कि नहीं हो रहा है। कहीं न कहीं आज के मेट्रो सिटी के बच्चे का बचपन सिर्फ चहरदीवारी के बीच घुट कर रहा गया है। (हमारे समाज में सबसे बड़ी बुरायी यही है कि जो सबसे घनवान है उसे ही सम्मानित नजर से देखा जाता है।) बच्चे को न तो संस्कार मिलता है न प्यार । जोकि एक सभ्य समाज के लिए बेहद जरूरी है। कहीं हम ये भूल करते है कि पैसे को ही सब कुछ समझने लगते है।
भारत में चलन था सामूहिक फैमिली का जो कि अब टूट चुका है । लोगों का एक साथ रहना एकता, भाईचारे और प्रेम का सूचक था ।पर हमने अपने को परिवार से अलग कर एक नयी शुरूआत की कुछ अच्छे परिणाम को सोच कर पर आकड़े तो यही बताते है कि ज्यादातर लोग जो अकेले रह रहें हैं वो खुश नहीं है जब कि उनके पास भौतिक सुविधाएं उपलब्ध है। जीवन एक मशीन जैसा हो गया है सुबह घर से आफिस और रात को घर यही जिंदगी हो गई।
किसी के पास समय नहीं किसी के लिए। आखिर टूटते रिश्ते क्या समाज को एक अच्छा भविष्य दे पायेगें। और इन रिश्तों का बुरा प्रभाव हम सभी के लिए भयानक होगा।
हम आगे जरूर बढे और देशहित और खुद के लिए भी अच्छा करें पर परिवार को साथ रखकर । रिश्तों में कटुता न आये इसके लिए प्रयास करें । मां , बाप ,भाई-बहन,पत्नी तथा बच्चों का ख्याल रखें और अपने आप में बदलाव लायें।जिससे एक अच्छे भारत की कल्पना को सार्थक रूप दिया जा सके। और साथ साथ हमारे संस्कार और संस्कृति का भी बचाव हो सके।
4 comments:
vikaas kae apney parinaam haae aur rahegaey
एक बच्चा क्या चाहता है? वह यही चाहेगा कि उसके मा-बाप उससे बात करें ,प्यार करें और समय दें जो कि नहीं हो रहा है।
aaj kal bachcho ko pyaar kae allwa bahut kuch chayae , abhi ek divorce case mae ek bachchey nae keha ki wo apni maa ko bahut pyaar kartaa haen par apne pita kae saath rahega kyuki pita ki aay maa sae jyaada haen aur wahan usey sukh suvidha jyaada milaegee
parivaar kae saath samay bitana sabko achcha lagtaa haen lekin aaj kal ki naukri mae yae samabhav nahin haen . pehlae sarkaari naukri bahut thee log 5 bajey ghar aajey they par ab professionlism kaa zamana haen
rishton ko majboot karna jaroori hai anytha iska prabhav hamare samajik aur saskiritik dhanchey per padega.
isi muddey per kal ki meri post -toottey rishtey daraktey sambandh-dekhein.
संयुक्त परिवार का टूटना अनायास नहीं हो रहा है। आदिम-जाँगल युग से मानव परिवार का परिस्थितियों के अनुसार विकास हुआ है। जिस में प्रधान भूमिका जीवन के लिए आवश्यक पदार्थो के उत्पादन की प्रणाली और उत्पादन संबंधों की प्रमुख भूमिका रही है। आज एकल परिवार जिस प्रकार से विकसित हो रहा है। उस का कारण भी बदलते हुए उत्पादन संबंध हैं। अलग अलग उत्पादन क्षेत्रों में अलग अलग प्रकार के संबंध प्रचलित हैं। इसलिए संयुक्त परिवार के बिखराव पर उदास होना ठीक नहीं। यह युग की आवश्यकता है। जरूरी तो यह है कि एकल परिवार की परिस्थितियों को किस प्रकार से मानवीय बनाया जाए?
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