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Sunday, September 14, 2008

सब कुछ बदल गया

सब कुछ बदल गया
हंसती जिंदगी
खुशहाल दुनिया
में
मची तबाही
अपने ही बने
खून के प्यासे
मानवता के सारे रिश्ते
हो गये तार-तार
हंसती जिंदगी
में
छा गया
अंधकार
कहीं कोई सो गया
हमेशा के लिए।
कोई के रहा है
सांसे
इस उम्मीद से
शायद वह
कर सके संघर्ष
मौत से।
आंख से सूखे
आंसू
बंद पलकें
खामोश जुबान
पर है
यही सवाल
कहां खो गया इंसान
और
उसकी इंसानियत।

यह रचना समर्पित है दिल्ली बम विस्फोट पीड़ित के लिए।

2 comments:

दीपान्शु गोयल said...

:(....

राज भाटिय़ा said...

हमारी तरफ़ से भी श्रधांजलि उन सब को जो इन कांडो मे मरे गये,
धन्यवाद