जन संदेश

पढ़े हिन्दी, बढ़े हिन्दी, बोले हिन्दी .......राष्ट्रभाषा हिन्दी को बढ़ावा दें। मीडिया व्यूह पर एक सामूहिक प्रयास हिन्दी उत्थान के लिए। मीडिया व्यूह पर आपका स्वागत है । आपको यहां हिन्दी साहित्य कैसा लगा ? आईये हम साथ मिल हिन्दी को बढ़ाये,,,,,, ? हमें जरूर बतायें- संचालक .. हमारा पता है - neeshooalld@gmail.com

Friday, September 26, 2008

बच्चे भविष्य भारत के, गुडिया , रामू और श्याम के हाथ में कलम नहीं है कूड़े की बोरी


जिन हाथों में कलम होना चाहिए उन हाथों में कूड़े की बोरी देख कर मन बहुत ही दुखी होता है। इन नन्हें मुन्हें बच्चों की सुबह होती है कूड़े के ढेर पर । पिछली सर्दी में मुझे किसी काम से जल्दी उठकर कहीं बाहर जाना हुआ। घना कोहरा और कटीली हवाओं के चलते मैंने हाफ स्वेटर और उसके ऊपर से जैकेट पहन रखा था। मन न होते हुए घर से बाहर निकला कुछ स्पष्ट दिखायी न दे रहा था । आटो का इंतजार कर रहा था कुछ बच्चों की आवाज पास आती हुई सुनाई दी । मन में यह बात आयी कि शायद स्कूली बच्चे खड़े होकर अपनी बस का इंतजार कर रहे होगे। कोहरे कि वजह से कुछ दिख न रहा था। पर कुछ छोटे बच्चे पास आते दिखे उम्र मात्र ५ साल से कुछ ऊपर रही होगी । तन पर कुछ गंदे कपड़ों के सिवा कुछ भी नहीं । ठिठुरन भरी सर्दी में जब हम चैन से सोते है तो ये नन्हें मुन्हें बच्चे अपनी दो जून की रोटी के लिए गली मुहल्लों की गंदगी के चक्कर काटते हैं। शायद अपने जीवन को आगे बढाने के लिए । कोई उम्मीद नहीं होती सिवाय जीने के और जीवन संघर्ष के।
भारत सरकार ने वर्ष २००६ में बाल श्रम कानून को संसद में पारित कर अपनी जिम्मेदारी से छुटकारा पा लिया । पर क्या इस कानून के आने से बाल मजदूरी में कोई कमी आयी ?क्या कानून बनाना ही हमारी प्राथमिकता है ? मैने बहुत से ऐसे बच्चों से बात की है जो होटलों या चाय की दुकान या फिर मजदूरी करते हैं । मैंने पूछा कि यहां काम करना तुमको कैसा लगता है ? तो लाचारी से मुस्कुराते हुए जवाब था खाना पेट भर मिलता है । पढ़ाई के बारे में पूछा तो कई बच्चे ऐसे है जो कि पढ़ना चाहते हैं पर मजबूरी है कि मजदूरी करनी पड़ती है। ऐसा नहीं कि इन बच्चों को इनकी मजदूरी का मेहनताना पूरा मिलता है । जी तोड़ मेहनत के बार केवल रहना और खाना साथ ही कभी कुछ फटे पुराने कपड़े।
भारत की आबादी का बढ़ना और इन बच्चों की दुर्दशा का किसी के पास कोई जवाब नही है । सरकार के साथ ही साथ कई गैरसरकारी संगठन कार्य करते है बच्चों के लिए पर क्या ये संगठन आखं बंद करके चलते समाज में ? क्यों नहीं दिखता है इन्हें चाय की दुकान का रामू । कूड़ों की ढेर से पाँलीथीन बिनती हुई गुडिया और सड़क पे भीख मागंते हुए नन्हें बच्चे। क्या यही सूरते है भारत का । दिल्ली की दशा का यह नमूना है तो देश के अन्य जगहों की कल्पना आप स्वयं ही कर सकते हैं।
सरकार ने अपनी हेल्प लाईन नं समय समय पर लोगों को जागरूक करने के लिए खोल रखी है पर मेरा सवाल यह है कि क्या सरकार खुद नहीं सो रही है? जनता का सवाल बहुत बाद का है। १०९८ यह फोन नं आप याद करये और भूल जायिये हां अगर आप जागरूक है तो कभी फोन कर आपस के किसी बच्चे के बारे में न बताये अन्यथा उसकी रोजी रोटी जा सकती है। क्या यही भविष्य है जिसकी बात करते हैं हमारे प्रधानमंत्री जी? कैसे बदलेगी ये जिंदगी । और कैसा होगा सफर इसकी कल्पना करना बहुत मुश्किल नहीं है हमारे आप के लिए ।

2 comments:

PREETI BARTHWAL said...

इस तरह के छोटे बच्चे आपको कहीं भी दिख जाएंगे। इनकी आबादी दिन पर दिन बढती ही जा रही है। अफसोस सरकार इस तरफ नही सोच रही।

राज भाटिय़ा said...

बिलकुल सही कहा हे आप ने सरकार ने कानुन बना कर अपना फ़र्ज पुरा कर लिया अनिवार्य शिक्षा, लेकिन किसे ओर कहा, सब बकवास, ओर हमारे इमानदार प्रधानमत्री, पुरी इमानदारी से अपनी मेडम की सेवा करते हे, उन्हे यह भुखे नंगे बच्चे कहा दिखाई देते हे, जिन से हम सब ने बहुत सी उम्मीदे रखी थी, ओर लाल बाहदुर शास्त्री जी के बराबर खडा कर दिया था.... लेकिन
धन्यवाद इस अच्छी पोस्ट के लिये