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Monday, September 22, 2008

दूरी कहीं होती नहीं??


दूरी कभी पास नहीं आयी
जब तुम पास थी,
वक्त का आना-जाना
पता ही नहीं चलता था,
सब कुछ हसीन लगता था
इंतजार करना भी
एक खुशी देता था,
तुमसे मिलकर मेरा
अधूरापन खत्म सा हो गया था,
न कोई तन्हाई
न कोई खामोशी
और
न कोई उदासी
तुमने अपनी आहट से
बदल दिया था मेरा जीवन,
दिखाये थे जीने के नये रास्ते,
मैं भी बंदकर आखें
चल दिया था उसी पर,
सजाये थे सपने
तुम्हारे साथ हमेशा के लिए
तुमने भी तो जीता था-
मेरा विश्वास
मेरा प्यार
आखिर क्यों खुदगर्ज हो
गई तुम?
क्यों दिखाये टूटे सपने
क्यों तोड़ा मेरा विश्वास
और
क्यों दिया झूठा प्यार
है यही मेरे सवाल?
मिलते नहीं है जिसके जवाब।

3 comments:

Ashok Kumar Dixit said...

achi kavita hain

PREETI BARTHWAL said...

सुन्दर लिखा है ।
कुछ सवालों के जवाब कभी नही मिलते है ।

Udan Tashtari said...

बहुत उम्दा, क्या बात है!