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Sunday, September 21, 2008

देश में धर्म के नाम पर होती राजनीति सांप्रदायिक हिंसा को क्या बढ़ा रही है?


कर्नाटक की सांप्रदायिक हिंसा अब राजनीतिक रंग लेने लगी है। बीजेपी औ बजरंग दल का यही प्रयास लगता है कि कर्नाटक की घटना को राष्ट्रीय मुद्दा बनाया जाय । कर्नाटक में ईसाई और हिन्दू दंगों ने संपूर्ण विश्व में भारत की धर्मनिर्पेक्षता वाली छवि को कहीं न कहीं धूमिल किया है। अमेरिका ने भारत को धार्मिक स्वातन्त्रता की रक्षा करने को कहा है।
बीजेपी, बजरंग दल और अनेक हिन्दू संगठन का कहना है कि कर्नाटक में ईसाई धर्म को बढ़ावा देने के पैसे के बल पर तमाम गरीब हिन्दूओं को धर्मातंरण के लिए प्रेरित किया जाता है। जबकि मिशनरियों और ईसाईयों का ये कहा है कि जो लोग खुद अपना धर्म बदल रहें हैं तो उसमें हमारी क्या गलती? कर्नाटक के विषय को केन्द्र सरकार यदि गम्भीरता से नहीं लेती है तो यह सरकार और देश के लोगों के लिए एक बड़ी समस्या का रूप ले सकता है। अभी उड़ीसा के कंधमाल जिले में हिंदू कट्टर पंथियों ने ईसाई ग्रामीणों और गिरिजाघरों पर हमला किया। और अब कर्नाटक में भी ईसाईयों के खिलाफ हिंसा हो रही है। नेता इसे रजीनीति से जोड़ने लगे हैं।

भारत में कुछ समय से सांप्रदायिक हिंसा ने देश की संप्रभुता और अखण्डता को तोड़ने की कोशिश की जा रही है, चाहे जम्मू-कश्मीर , उड़ीसा या फिर अब कर्नाटक हो। यहां पर आम जन जीवन पर असर पड़ा है , कहीं न कहीं जाति और धर्म को निशाना बनाया जा रहा है और उसी के आड़ में देश को विखण्डित करने का दुष्प्रयास किया जा रहा है। इस तरह की घटना को बचाना सरकार के साथ साथ आम नागरिक का यह कर्तव्य है कि वह इनका सहयोग न करके बहिष्कार करें। तभी इन सभी ताकतों से निपटा जा सकता है।

4 comments:

Pramendra Pratap Singh said...

aaj ke daur me isai aur muslim tatvo ne shesh ke vatvik sagrachana se khilvad kar rahe hai aur dharmparivartan ka sahara le rahe hai, odisa aur karnatka ki ghatna sharmnak hai kintu avad tab hi kyo uthati hai jab hindu aakrosit hota hai ?

महेंद्र मिश्र.... said...

बढ़ता धार्मिक उन्माद इसके लिए दोषी है और लोकतंत्र में बढ़ता धार्मिक उन्माद खतरनाक है .

Unknown said...

बजरंग दल की हिंसा से भी बडी हिंसा यह है की विदेशी धन से ये चर्च गरीब भारतीयो का धर्म परिवर्तन करा रहे हैं। चर्च को ये गतिविधी तुरंत बन्द करनी चाहिए।

drdhabhai said...

बंधु आप तो पत्रकार हैं ,आपने हिंदु हिंसा के बारे मैं लिखा पर एक संत की नृशंस हत्या के वारे मैं आपने चुप्पी साध ली...कहीं भी प्रतिक्रिहैयात्मक हिंसा को किसी संपूर्ण समाज या संगठन पर यूं ही थोप देना कहां कि ईमानदारी है.और यह एक जाना माना तथ्य है कि ईसाई मिशनरी किस तरह लोभ लालच देकर धर्मांतरण करते हैं तो स्थानीय समाज मैं इसकी प्रतिक्रिया स्वाभाविक है.ये लोग स्थानीय आदिवासियों मैं जहर घोलने का काम कर रहे हैं इन्हें रोकना ही होगा ..अन्यथा पूर्वौत्तर की भांति यहां भी अलगाववाद की बातें उठेंगी ...क्या हमें तव तक इंतजार करना चाहियें