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Wednesday, September 3, 2008

देखता हूँ उसको ....भाग-१

आते जाते वह हर रोज दिखता था
उसी जगह पर,
जहाँ मैं उसे प्रतिदिन देखा करता था,
सफेद बाल,
झुर्रीदार चमड़ी,
मुर्झाई आखें,
टकटकी बांधे रास्ते पर
आते जाते लोगों को निहारती,
जीवन से कुछ खास उम्मीद नजर नहीं आती थी
उसको देखकर,
कोइ आगे पीछे कभी नजर नही आया,
कई बार सोचा कि जाकर बात करू उससे
पर कभी जा न सका पास उसके।
मन ही मन सोचता और देखता हूँ
उसको।

2 comments:

Advocate Rashmi saurana said...

kya baat hai. bhut sundar rachana.

Udan Tashtari said...

वाह! सुन्दर.