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Friday, September 12, 2008

आज तुम जल्दी आना


आज तुम जल्दी आना ,
और
देर से जाना ,
अच्छा नहीं लगता है कुछ भी,
तुम्हारे बिना,
जब से ,
मिला हूँ तुमसे ,
तुम्हारे ही सहारे जीता हूँ,
तुम्हारे ही सहारे सोता हूँ,
एक सपना लिए,
जिसमें केवल मैं होता हूँ,
तुम होती हो,
और
हमारी बातें होती है ,
जो हम करते हैं अपने आप से,
जब से तुम आयी हो ,
मेरे जीवन में ,
सब कुछ हसीन लगने लगा है,
यह मेरा भ्रम है
या
हकीकत यही है,
क्यों समझ नहीं आता है
कुछ भी,
जहां देखता हूँ तुम ही नजर आती,
जहां जाता हूँ तुमको ही पाता हूँ ,
क्या
ये सच है या मेरा भ्रम है,
मैं अकेलेपन में भी होता नहीं,
बिल्कुल भी अकेला,
अब तन्हाई में भी तन्हा नहीं होता हूँ,
ये तुम्हारा प्यार ही है ।
या
कुछ और समझ नहीं पाता हूँ।
अब तो इंतजार रहता तुम्हारे आने का ,
और फिर
देर से जाने का।
ये सब बात मैं तुम से कहता क्यों नहीं?
सोचता हूँ कि तुम आओगी तब कहूँगा,
तुम आती हो
और
कब चली जाती हो पता ही
नहीं चलता
और फिर से तुम्हारा इंतजार।
कि
आज जल्दी आना
और
देर से जाना।

4 comments:

Mukesh said...

अतिसुंदर.......लिखते रहिये..

मोहन वशिष्‍ठ said...

बहुत अच्‍छी कविता

राज भाटिय़ा said...

क्या बात हे...
धन्यवाद

!!अक्षय-मन!! said...

bahut sundar ehesaas bahut acchi kavita......